चौबीस तीर्थंकरों में सबसे ज्यादा उपसर्गों को सहन करने वाले तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जीवन परिचय एवं चारित्र के विकास का वर्णन इस अध्याय में है। बालक पार्श्वनाथ का जन्म ईसा पूर्व 877 सन् में बनारस में हुआ था। जब बालक पार्श्वकुमार 16 वर्ष के हो गए तब वे एक दिन क्रीड़ा करने के लिए अपने साथियों के साथ नगर के बाहर
गए। वहाँ क्या देखते हैं कि एक तापसी जो उनका नाना महीपाल था, नानी के वियोग में पञ्चाग्नि तप तपने वाला तापसी हो गया था। वह अग्नि में लकड़ी डाल रहा था। पार्श्वकुमार ने उसे रोका और कहा कि तुम क्या कर रहे हो? इसमें एक नाग-नागिन का युगल जल रहा है। जब जलती हुई लकड़ी को चीरा गया तब सचमुच वह जोड़ा जल रहा था। पार्श्वकुमार ने उस युगल को उपदेश दिया। उपदेश सुनते-सुनते उनका मरण हुआ और वह युगल धरणेन्द्र-पद्मावती हुए। कालान्तर में वह तापसी भी संक्लेश को प्राप्त होकर मरण को प्राप्त हुआ और वह संवर नामक ज्योतिषी
देव हुआ।
जन्मक्रयाणक्र - पौष कृष्ण एकादशी। दीक्षाकल्याणक - पौष कृष्ण एकादशी। ज्ञानकल्याणक - चैत्र कृष्ण चतुर्थी। पार्श्वकुमार की दीक्षा स्थली-वाराणासी, दीक्षा वन - अश्ववन/अश्वत्थ वन एवं दीक्षा वृक्ष-धाव/देवदारु वृक्ष। मुनि पार्श्वनाथ की पारणा गुलमखेट (द्वारावती) में राजा ब्रह्मदत्त के यहाँ हुई। मुनि पार्श्वनाथ को केवलज्ञान अश्ववन (काशी) में देवदारु वृक्ष के नीचे हुआ था। तीर्थंकर पार्श्वनाथ की आयु 100 वर्ष एवं ऊँचाई 9 हाथ थी। तीर्थंकर पार्श्वनाथ को मोक्ष सम्मेदशिखरजी के स्वर्णभद्र कूट से हुआ था। तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने 69 वर्ष 7 माह उपदेश दिया था | तीर्थंकर पार्श्वनाथ के मुख्य गणधर स्वयंभू, मुख्य गणिनी सुलोचना एवं मुख्य श्रोता महासेन थे। तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समवसरण में 16,000 मुनि, 38,000 आर्यिकाएँ, 1 लाख श्रावक और 3 लाख श्राविकाएँ थीं। तीर्थंकर पार्श्वनाथ के यक्ष मातंग, यक्षिणी पद्मावती थी।
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