नदी अपरदन वाले क्षेत्र से निर्मित स्थल आकृतियों का सचित्र वर्णन कीजिए - nadee aparadan vaale kshetr se nirmit sthal aakrtiyon ka sachitr varnan keejie

उत्तर :

भूमिका में:


नदी अपरदन एवं उसके सिद्धांत के बारे में थोड़ा परिचय देते हुए उत्तर आरंभ करें।

नदी का सर्वप्रमुख कार्य भूपटल का अपरदन करना है। नदियाँ सदैव अपने मार्ग के समीप के चट्टानों को घिसकर तथा काटकर उनका परिवहन करती हैं। नदी का अपरदन कार्य नदी के ढाल तथा वेग एवं उसमें स्थित नदी के अवसाद भार पर आधारित होता है।

विषय-वस्तु में:


विषय-वस्तु के प्रथम भाग में

नदी एक अपरदनकारी व निक्षेपणकारी कारक है जिसमें अपक्षय भी सहायक होकर भूतल को आकार देते हैं और उन्हें बदलते हैं। इनके लंबे समय तक चलने वाले इन कार्यों से क्रमबद्ध बदलाव आते हैं जिसके फलस्वरूप स्थलरूपों का विकास होता है।

विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम अपरदन द्वारा निर्मित विभिन्न स्थल रूपों के बारे में चर्चा करेंगे-

  • घाटियाँ:

क्षुद्र सरिताएँ धीरे-धीरे लंबी व विस्तृत अवनलिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। ये अवनलिकाएँ धीरे-धीरे गहरी, चौड़ी व लंबी होकर घाटियों का रूप धारण कर लेती हैं। लंबाई, चौड़ाई एवं आकृति के आधार पर ये घाटियाँ: ट-आकार घाटी, गॉर्ज, कैनियन आदि में वर्गीकृत की जाती हैं। उदाहरणार्थ- जबलपुर के पास नर्मदा नदी का भेड़ाघाट संगमरमरी गार्ज, संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोरैडो नदी का ग्रांड कैनियन।

  • जलगर्तिका तथा अवनमित कुंड

पहाड़ी क्षेत्रों में नदी तल में जल भंवर के साथ छोटे चट्टानी टुकड़े वृत्ताकार रूप में तेज़ी से घूमते हैं जिन्हें जलगर्तिका कहते हैं। कालांतर में इन गर्तों का आकार बढ़ता जाता है और आपस में मिलकर गहरी नदी-घाटी का निर्माण करते हैं।

जब जलगर्तिका की गहराई तथा इसका व्यास अधिक होता है तो उसे अवनमन कुंड कहते हैं। ये कुंड भी घाटियों को गहरा करने में सहायक होते हैं।

  • जलप्रपात

जब किसी स्थान पर नदियों का जल ऊँचाई पर स्थित खड़े ढाल के ऊपरी भाग से अधिक वेग से नीचे गिरता है तो उसे जलप्रपात कहते हैं। जब नदी के मार्ग में कठोर तथा मुलायम चट्टानों की परतें क्षैतिज या लंबवत अवस्था में मिलती हैं तो यह स्थिति बनती है।

  • अध:कर्तित विसर्प या गभीरीभूत विसर्प

मंद ढालों पर बहती हुई प्रौढ़ नदियाँ पार्श्व अपरदन और क्षैतिज अपरदन अधिक करती हैं। इसके साथ ही टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर बहने के कारण नदी विसर्प का निर्माण होता है। जब ये विसर्प कठोर चट्टानों में मिलते हैं तो गहरे कटे और विस्तृत होते हैं। इन्हें ही अध:कर्तित या गभीरीभूत विसर्प कहते हैं।

  • नदी वेदिकाएँ

नदी वेदिकाएँ मुख्ययत: अपरदित स्थलरूप हैं जो नदी द्वारा निक्षेपित बाढ़ मैदानों के लंबवत अपरदन से निर्मित होते हैं। ये प्रारंभिक बाढ़ मैदानों या पुरानी नदी घाटियों के तल के चिह्न होते हैं।

निष्कर्ष


अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

इस प्रकार हम पाते हैं कि नदियाँ अपने जल तथा अवसाद के द्वारा घाटी की तली तथा किनारे को काटते हुए अपरदन का कार्य करती हैं तथा इस दौरान विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण करती हैं।

नदी द्वारा निर्मित स्थलाकृति कौन कौन सी हैं?

जब किसी स्थान पर नदियों का जल ऊँचाई पर स्थित खड़े ढाल के ऊपरी भाग से अधिक वेग से नीचे गिरता है तो उसे जलप्रपात कहते हैं। जब नदी के मार्ग में कठोर तथा मुलायम चट्टानों की परतें क्षैतिज या लंबवत अवस्था में मिलती हैं तो यह स्थिति बनती है। मंद ढालों पर बहती हुई प्रौढ़ नदियाँ पार्श्व अपरदन और क्षैतिज अपरदन अधिक करती हैं

नदी के अपरदन द्वारा निर्मित स्थल रूप को क्या कहते हैं?

नदी अपरदन के द्वारा बने इस प्रकार के मैदान, समप्राय मैदान या पेनीप्लेन (Peneplain) कहलाते हैं। प्रवाहित जल से निर्मित प्रत्येक अवस्था की स्थलरूप संबंधी विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है: वृद्धावस्था में छोटी सहायक नदियाँ कम होती हैं और ढाल मंद होता है।

नदी अपरदन से आप क्या समझते हैं?

जब नदी अपने उद्गम से निकलती है तो तेज़ डाल के कारण पानी का बहाव अधिक होता है जिससे नदी अपने किनारे तथा तली को काटती हैं। यही 'अपरदन' होता है।

नदी अपरदन और निक्षेपण क्या है?

अपरदन में हवा, जल जैसे कारकों के कारण भू-आकृतियों का क्षय होता है और नई भू-आकृतियों का निर्माण होता है। उदाहरण के लिये छत्रक और पदस्थली पवन द्वारा अपरदन से निर्मित आकृतियाँ हैं। वहीं निक्षेपण की प्रक्रिया में अपरदित कण इकठ्ठा होकर भू-आकृति का निर्माण करते हैं।