नवाब साहब ने खीरे के टुकड़ों को खिड़की से बाहर क्यों फेंक दिया? - navaab saahab ne kheere ke tukadon ko khidakee se baahar kyon phenk diya?

छात्रों के लिए 10वीं क्लास सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, इसलिए NCERT अपने सिलेबस में उन टॉपिक को ज़रूर कवर करती हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होती हैं। हिंदी के इस ब्लॉग में हम कक्षा 10 के “Lakhnavi Andaaz Class 10 की कहानी के लेखक परिचय और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर के बारे में जानेंगे। तो चलिए जानते हैं ” Lakhnavi Andaaz Class 10 के बारे में विस्तार से।

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बोर्ड CBSE
टेक्स्टबुक NCERT
कक्षा कक्षा 10
विषय हिंदी क्षितिज
पाठ संख्या पाठ 12
पाठ का नाम लखनवी अंदाज़

लेखक यशपाल का जीवन परिचय

लखनवी अंदाज कहानी के लेखक मशहूर रचनाकार यशपाल साहब हैं। यशपाल साहब का जन्म सन 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कांगड़ा में हुई। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से BA किया था। यहीं पढ़ाई के दौरान ही उनका परिचय भारत के वीर शहीद भगत सिंह और सुखदेव से भी हुआ था। पढ़ाई के बाद बाद वो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान वो कई बार जेल भी गए। उनकी मृत्यु 1976 में हुई।

यशपाल साहब की रचनाएं

यशपाल की रचनाओं में आम आदमी के सरोकारों की उपस्थिति साफ दिखती है। वो यथार्थवादी शैली के विशिष्ट रचनाकार थे। सामाजिक विषमता, राजनीतिक पाखंड और रूढ़िवादियों के खिलाफ उनकी रचनाएं मुखर हैं।

  • कहानी संग्रह – ज्ञानदान, तर्क का तूफान, पिंजरे की उड़ान, वा दुलिया, फूलों का कुर्ता।
  • उपन्यास  – झूठा सच (यह भारत विभाजन की त्रासदी का मार्मिक दस्तावेज है)
  • अन्य प्रमुख उपन्यास – अमिता, दिव्या, पार्टी कामरेड, दादा कामरेड, मेरी तेरी उसकी बात।

पाठ सारांश

Lakhnavi Andaaz Class 10 का पाठ सारांश नीचे दिया गया है-

  • लखनवी अंदाज कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह होती है। लेखक को अपने घर से थोड़ी दूर कहीं  जाना था। लेखक ने भीड़ से बचने , एकांत में किसी नई कहानी के बारे में सोचने व ट्रेन की खिड़की से बाहर के प्राकृतिक दृश्यों को निहारने के लिए लोकल ट्रेन (मुफस्सिल) के सेकंड क्लास का कुछ महंगा टिकट खरीद लिया। जब वो स्टेशन पहुंचे तो गाड़ी छूटने ही वाली थी। इसीलिए वो सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर उसमें चढ़ गए लेकिन जिस डिब्बे को वो खाली समझकर चढ़े थे , वहां पहले से ही एक लखनवी नवाब बहुत आराम से पालथी मारकर बैठे हुए थे और उनके सामने दो ताजे खीरे एक तौलिए के ऊपर रखे हुए थे।
  • लेखक को देख नवाब साहब बिल्कुल भी खुश नही हुए क्योंकि उन्हें अपना एकांत भंग होता हुआ दिखाई दिया। उन्होंने लेखक से बात करने में भी कोई उत्साह या रूचि नहीं दिखाई । लेखक उनके सामने वाली सीट में बैठ गए। लेखक खाली बैठे थे और कल्पनायें करने की उनकी पुरानी आदत थी। इसलिए वो उनके आने से नवाब साहब को होने वाली असुविधा का अनुमान लगाने लगे। वो सोच रहे थे शायद नवाब साहब ने अकेले सुकून से यात्रा करने की इच्छा से सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा । लेकिन अब उनको यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है कि शहर का कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें सेकंड क्लास में सफर करते देखें। उन्होंने अकेले सफर में वक्त अच्छे से कट जाए यही सोचकर दो खीरे खरीदे होंगे। परंतु अब किसी सफेदपोश आदमी के सामने खीरा कैसे खाएं।
  • नवाब साहब गाड़ी की खिड़की से लगातार बाहर देख रहे थे और लेखक कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। अचानक नवाब साहब ने लेखक से खीरा खाने के लिए पूछा लेकिन लेखक ने नवाब साहब को शुक्रिया कहते हुए मना कर दिया। उसके बाद नवाब साहब ने बहुत ही तरीके से खीरों को धोया और उसे छोटे-छोटे टुकड़ों (फाँक) में काटा। फिर उसमें जीरा लगा नमक , मिर्च लगा कर उनको तौलिये में करीने से सजाया। इसके बाद नवाब साहब ने एक और बार लेखक से खीरे खाने के बारे में पूछा। क्योंकि लेखक पहले ही खीरा खाने से मना कर चुके थे इसीलिए उन्होंने अपना आत्म सम्मान बनाए रखने के लिए इस बार पेट खराब होने का बहाना बनाकर खीरा खाने से मना कर दिया।
  • लेखक के मना करने के बाद नवाब साहब ने नमक मिर्ची लगे उन खीरे के टुकड़ों को देखा। फिर खिड़की के बाहर देख कर एक गहरी सांस ली। उसके बाद नवाब साहब खीरे की एक फाँक (टुकड़े) को उठाकर होठों तक ले गए , फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में नवाब साहब की पलकें मूँद गई । मुंह में भर आए पानी का घूंट गले में उतर गया।उसके बाद नवाब साहब ने खीरे के उस टुकड़े को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसी प्रकार नवाब साहब खीरे के हर टुकड़े को होठों के पास ले जाते , फिर उसको सूंघते और उसके बाद उसे खिड़की से बाहर फेंक देते। खीरे के सारे टुकड़ों को बाहर फेंकने के बाद उन्होंने आराम से तौलिए से हाथ और होंठों को पोछा। और फिर बड़े गर्व से लेखक की तरफ देखा। जैसे लेखक को कहना चाह रहे हो कि “यही है खानदानी रईसों का तरीका”।
  • नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थक कर लेट गए। लेखक ने सोचा कि “क्या सिर्फ खीरे को सूंघकर ही पेट भरा जा सकता है”। तभी नवाब साहब ने एक जोरदार डकार ली और बोले “खीरा लजीज होता है पर पेट पर बोझ डाल देता है”।  यह सुनकर लेखक के ज्ञान चक्षु खुल गए। उन्होंने सोचा कि जब खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से ही पेट भर कर डकार आ सकती है , तो बिना किसी विचार , घटना , कथावस्तु और पात्रों के , सिर्फ लेखक की इच्छा मात्र से “नई कहानी” भी तो लिखी जा सकती है।

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कठिन शब्द

Lakhnavi Andaaz Class 10 के लिए कठिन शब्द इस प्रकार हैं:

  • मुफ़स्सिल – केंद्र में स्थित नगर के इर्द-गिर्द स्थान
  • उतावली – जल्दबाजी
  • प्रतिकूल – विपरीत
  • सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति
  • अपदार्थ वस्तु – तुच्छ वस्तु
  • गवारा ना होना – मन के अनुकूल ना होना
  • लथेड़ लेना – लपेट लेना
  • एहतियात – सावधानी
  • करीने से – ढंग से
  • सुर्खी – लाली
  • भाव-भंगिमा – मन के विचार को प्रकट करने वाली शारीरिक क्रिया
  • स्फुरन – फड़कना
  • प्लावित होना – पानी भर जाना
  • पनियाती – रसीली
  • तलब – इच्छा
  • मेदा – पेट
  • सतृष्ण – इच्छा सहित
  • तसलीम – सम्मान में
  • सिर ख़म करना – सिर झुकाना
  • तहजीब – शिष्टता
  • नफासत – स्वच्छता
  • नफीस – बढ़िया
  • एब्सट्रैक्ट – सूक्ष्म (बहुत छोटी)
  • सकील – आसानी से ना पचने वाला
  • नामुराद – बेकार चीज़
  • ज्ञान चक्षु – ज्ञान रूपी आँखें

लखनवी अंदाज़ कक्षा 10 PDF

Lakhnavi Andaaz Class 10 पाठ को अब आप PDF की मदद से भी समझ सकते हैं।

लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?

उत्तर- भीड़ से बचकर यात्रा करने के उद्देश्य से जब लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा तो देखा उसमें एक नवाब साहब पहले से बैठे थे। लेखक को देखकर
1.नवाब साहब के चिंतन में व्यवधान पड़ा, जिससे उनके चेहरे पर व्यवधान के भाव उभर आए।
2.नवाब साहब की आँखों में असंतोष का भाव उभर आया।
3.उन्होंने लेखक से बातचीत करने की पहल नहीं की।
4.लेखक की ओर देखने के बजाए वे खिड़की से बाहर देखते रहे।
5.कुछ देर बाद वे डिब्बे की स्थिति को देखने लगे।
6.इन हाव-भावों को देखकर लेखक ने जान लिया कि नवाब साहब उनसे बातचीत करने के इच्छुक नहीं हैं।

बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर-लेखक का मानना है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है अर्थात विचार, घटना और पात्र के बिना कहानी नहीं लिखी जा सकती है। मैं लेखक के इन विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ। वास्तव में कहानी किसी घटना विशेष का वर्णन ही तो है। इसका कारण क्या था, कब घटी, परिणाम क्या रहा तथा इस घटना से कौन-कौन प्रभावित हुए आदि का वर्णन ही कह्मनी है। अतः किसी कहानी के लिए विचार, घटना और पात्र बहुत ही आवश्यक हैं।

आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?

उत्तर- मैं इस निबंध को दूसरा नाम देना चाहूँगा–’रस्सी जल गई पर ऐंठन न गई’ या नवाबी दिखावा। इसका कारण यह कि नवाब साहब की नवाबी तो कब की छिन चुकी थी पर उनमें अभी नवाबों वाली ठसक और दिखावे की प्रवृत्ति थी।

नवाब साहब ने बहुत ही यत्ने से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सँधकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?

उत्तर- नवाब साहब ने यत्नपूर्वक खीरा काटकर नमक-मिर्च छिड़का और सँधकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। उनका ऐसा करना उनकी नवाबी ठसक दिखाता है। वे लोगों के कार्य व्यवहार से हटकर अलग कार्य करके अपनी नवाबी दिखाने की कोशिश करते हैं। उनका ऐसा करना उनके अमीर स्वभाव और नवाबीपन दिखाने की प्रकृति या स्वभाव को इंगित करता है।

(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।

(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?

उत्तर- (क) नवाब साहब पैसेंजर ट्रेन के सेकंड क्लास के डिब्बों में आराम से बैठे थे। उनके सामने साफ़ तौलिए पर दो चिकने खीरे रखे थे। नवाब साहब ने सीट के नीचे से लोटा निकाला और खिड़की से बाहर खीरों को धोया। उन्होंने खीरों के सिरे काटे, गोदकर उनका झाग निकाला और खीरे छीलकर फाँकें बनाईं। उन पर नमक-मिर्च का चूर्ण बुरका। जब फाँकें पनियाने लगीं तो उन्होंने एक फाँक उठाई, मुँह तक ले गए सँघा और खिड़की से बाहर फेंक दिया। ऐसा करते हुए उन्होंने सभी फाँकें फेंककर डकारें लीं।

(ख) छात्र अपनी रुचि के अनुसार स्वयं लिखें।

खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।

उत्तर- नवाबों की सनक और शौक यह रही है कि वे अपनी वस्तु, हैसियत आदि को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते और बताते थे। वे बात-बात में दिखावा करते थे। एक बार लखनऊ के ही नवाब जो प्रात:काल किसी पार्क में भ्रमण करने के शौकीन थे, प्रतिदिन पार्क में आया करते थे। एक दिन एक साधारण सा दिखने वाला आदमी वहीं भ्रमण करने आ गया। उसने नवाब साहब को सलाम ठोंका और पूछा, “नवाब साहब! क्या खा रहे हैं?” नवाब साहब ने गर्व से उत्तर दिया-बादाम’, नवाब साहब ने जेब में हाथ डालकर अभी निकाला ही था कि उनका पैर मुड़ा और वे गिर गए। उनके हाथ से खाने का सामान बिखर गया। उस व्यक्ति ने देखा कि खाने के बिखरे सामान में एक भी बादाम न था सारी मूंगफलियाँ थीं। अब नवाब साहब का चेहरा देखने लायक था।

‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक यशपाल ने यात्रा करने के लिए सेकंड क्लास का टिकट क्यों खरीदा?

उत्तर- लेखक यशपाल ने यात्रा करने के लिए सेकंड क्लास का टिकट इसलिए खरीदा, क्योंकि
उन्हें अधिक दूरी की यात्रा नहीं करनी थी।
1.वे भीड़ से बचकर एकांत में यात्रा करते हुए नई कहानी के बारे में सोचना चाहते थे।
2.वे खिड़की के पास बैठकर प्राकृतिक दृश्य का आनंद उठाना चाहते थे।
3.सेकंड क्लास का कम दूरी का टिकट बहुत महँगा न था।

क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-हाँ, सनक का सकारात्मक रूप भी होता है। प्रसिद्ध व्यक्तियों, वैज्ञानिकों की सफलता के पीछे उनकी सनक ही होती है। वे अपनी सनक के कारण ही अपना लक्ष्य पाए बिना नहीं रुकते हैं। बिहार के दशरथ माँझी ने अपनी सनक के कारण ही पहाड़ काटकर ऐसा रास्ता बना दिया जिससे वजीरगंज अस्पताल की दूरी सिमटकर एक चौथाई रह गई। अपनी सनक के कारण वे ‘भारतीय माउंटेन मैन’ के नाम से जाने जाते हैं।

लेखक के डिब्बे में आने पर नवाब ने कैसा व्यवहार किया?

उत्तर- लेखक जब डिब्बे में आया तो उसका आना नवाब साहब को अच्छा न लगा। उन्होंने लेखक से मिलने और बात करने का उत्साह न दिखाया। पहले तो नवाब साहब खिड़की से बाहर कुछ देर तक देखते रहे और फिर डिब्बे की स्थिति पर निगाहें दौडाने लगे। उनका यह उपेक्षित व्यवहार लेखक को अच्छा न लगा।

खीरे को खाने योग्य बनाने के लिए नवाब साहब ने क्या-क्या किया और उन्हें किस तरह सजाकर रखा? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर- नवाब साहब ने खीरे को खाने योग्य बनाने के लिए पहले उसे अच्छी तरह धोया फिर तौलिए से पोछा। अब उन्होंने चाकू निकालकर खीरों के सिरे काटे और गोदकर झाग निकाला। फिर उन्होंने खीरों को छीला और फाँकों में काटकर करीने से सजाया।

खीरे की फाँकें खिड़की से फेंकने के बाद नवाब साहब ने गुलाबी आँखों से लेखक की ओर क्यों देखा?

उत्तर- खीरे की फाँकें एक-एककर उठाकर सँधने के बाद नवाब साहब खिड़की से बाहर फेंकते गए। उन्होंने डकार ली और लेखक की ओर गुलाबी आँखों से इसलिए देखा क्योंकि उन्होंने लेखक को दिखा दिया था नवाब खीरे को कैसे खाते हैं। अपनी नवाबी का प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने खीरा खाने के बजाय फेंक दिया था।

नवाब साहब ने खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़का जिसे देखकर लेखक ललचाया पर उसने खीरे खाने का प्रस्ताव अस्वीकृत क्यों कर दिया?

उत्तर- नवाब साहब ने करीने से सजी खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़ककर लेखक से खाने के लिए आग्रह किया तो लेखक ने साफ़ मना कर दिया। जबकि लेखक खीरे खाना चाहता था। इसका कारण यह था लेखक पहली बार नवाब साहब को खीरा खाने के लिए मना कर चुका था।

नवाब साहब द्वारा लेखक से बातचीत की उत्सुकता न दिखाने पर लेखक ने क्या किया?

उत्तर- नवाब साहब ने लेखक से बातचीत की उत्सुकता उस समय नहीं दिखायी जब वह डिब्बे में आया। लेखक ने इस उपेक्षा का बदला उपेक्षा से दिया। उसने भी नवाब साहब से बातचीत की उत्सुकता नहीं दिखाई और नवाब साहब की ओर से आँखें फेर लिया। यह लेखक के स्वाभिमान का प्रश्न था, जिसे वह बनाए रखना चाहता था।

बिना खीरा खाए नवाब साहब को डकार लेते देखकर लेकर क्या सोचने पर विवश हो गया?

उत्तर- लेखक ने देखा कि नवाब साहब ने खीरों की फाँकों का रसास्वादन किया उन्हें मुँह के करीब ले जाकर सूंघा और बाहर फेंक दिया। इसके बाद नवाब साहब को डकार लेता देखकर लेखक यह सोचने पर विवश हो गया कि क्या इस तरह सँघने मात्र से पेट भर सकता है।

सेकंड क्लास के डिब्बे में लेखक के अचानक आ जाने से नवाब साहब के एकांत चिंतन में विघ्न पड़ गया? उनके चिंतन के बारे में लेखक ने क्या अनुमान लगाया?

उत्तर- सेकंड क्लास के जिस डिब्बे में नवाब साहब अब तक अकेले बैठे थे वहाँ अचानक लेखक के आ जाने से उनके एकांत चिंतन में विघ्न पड़ गया। उसके बारे में लेखक ने यह अनुमान लगाया कि ये भी शायद किसी कहानी के लिए नई सूझ में होंगे या खीरे जैसी साधारण वस्तु खाने के संकोच में पड़ गए होंगे।

नवाब साहब के व्यवहार में अचानक कौन-सा बदलाव आया और क्यों?

उत्तर- सेकंड क्लास के डिब्बे में जैसे ही लेखक चढ़ा, सामने एक सफ़ेदपोश सज्जन को बैठे पाया। लेखक का यूँ आना उन्हें अच्छा न लगा और वे खिड़की से बाहर देखने लगे पर अचानक ही उनके व्यवहार में बदलाव आ गया। उन्होंने लेखक से खीरा खाने के लिए कहा। ऐसा करके वे अपनी शराफ़त का नमूना प्रस्तुत करना चाहते थे।

लेखक ने ऐसा क्या देखा कि उसके ज्ञान चक्षु खुल गए?

उत्तर- लेखक ने देखा कि नवाब साहब खीरे की नमक-मिर्च लगी फाँकों को खाने के स्थान पर सँघकर खिड़की के बाहर फेंकते गए। बाद में उन्होंने डकार लेकर अपनी तृप्ति और संतुष्टि दर्शाने का प्रयास किया। यही देखकर लेखक के ज्ञान-चक्षु खुल गए कि इसी तरह बिना घटनाक्रम, पात्र और विचारों के कहानी भी लिखी जा सकती है।

‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।

उत्तर- ‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक के मूल में व्यंग्य निहित है। इस कहानी में वर्णित स्थान लखनऊ के आसपास का प्रतीत होता है। इसके अलावा नवाब साहब की शान, दिखावा, रईसी का प्रदर्शन, नवाबी ठसक, नज़ाकत आदि सभी लखनऊ के उन नवाबों जैसी है, जिनकी नवाबी कब की छिन चुकी है पर उनके कार्य व्यवहार में अब भी इसकी झलक मिलती है। पाठ को पूरी तरह अपने में समेटे हुए यह शीर्षक ‘लखनवी अंदाज़’ पूर्णतया सार्थक एवं उपयुक्त है।

लखनवी अंदाज’ पाठ में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए?

उत्तर- ‘लखनवी अंदाज’ नामक पाठ के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना व्यावहारिक दृष्टिकोण विस्तृत करते हुए दिखावेपन से दूर रहना चाहिए। हमें वर्तमान के कठोर यथार्थ का सामना करना चाहिए तथा काल्पनिकता को छोड़कर वास्तविकता को अपनाना चाहिए जो हमारे व्यवहार और आचरण में भी दिखना चाहिए।

Source: EDUMANTRA

MCQs

लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?

A. यशपाल
 B. प्रेमचंद
 C. स्वयं प्रकाश
 D. रामवृक्ष बेनीपुरी

उत्तर= a

लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट किस लिए खरीदा था?

A. भीड़ से बचने के लिए
 B. अपना स्टैंडर्ड दिखाने के लिए
 C. एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोचने के लिए
 D. आराम करने के लिए

उत्तर= C

‘सफेदपोश’ का अर्थ है?

A. सफ़ेद कपड़े
 B. सफ़ेद कपड़े पहनने वाला
 C. साफ़-सुथरा
 D. भद्रपुरुष

उत्तर= D

सफेदपोश सज्जन ने तौलिए पर कौन-सी वस्तु रखी हुई थी?

 A. आम
 B. तरबूज
 C. खीरे
 D. नींबू

उत्तर= C

‘आँखें चुराना’ मुहावरे का अर्थ है?

A. आँखों की चोरी करना
 B. आँखें न रहना
 C. नज़रें बचाना
 D. आँखों को छुपा देना

उत्तर C

लेखक की दृष्टि में ‘खीरा’ किस वर्ग का प्रतीक है?

 A. मामूली लोगों के वर्ग का
 B. उच्च वर्ग का
 C. सामंती वर्ग का
 D. मध्यवर्ग का

उत्तर= A

लेखक ने खीरा खाने से क्यों इंकार कर दिया था?

A. भूख नहीं थी
 B. आत्म सम्मान की रक्षा हेतु
 C. अहंकारी होने के कारण
 D. दूसरों की चीज़ खाना पसंद नहीं था

उत्तर= B

नवाब साहब ने खीरे की तैयारी के बाद उसका क्या किया?

(a) खा गए
(b) खिड़की से बाहर फेंक दिया
(c) नवाब साहब को दे दिया
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर= b

लेखक कनखियों से किसकी ओर देख रहे थे?

(a) खिड़की की तरफ
(b) घर की तरफ
(c) स्टेशन की तरफ
(d) नवाब साहब की तरफ

उत्तर= d

ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत किसकी थी?

(a) नवाब साहब की
(b) यात्री की
(c) लेखक की
(d) कवि की

उत्तर= c

अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए नवाब साहब ने क्या खरीदा था?

(a) अखबार
(b) पुस्तक
(c) खीरा
(d) पत्रिका

उत्तर= c

लेखक ने नवाब साहब से खीरा न खाने का कारण क्या बताया?

(a) उन्हें खीरा पसंद नहीं है
(b) पेट भरा हुआ है
(c) इच्छा नहीं है
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर= c

नवाब साहब ने खीरों को खिड़की से बाहर क्यों फेंक दिया?

(a) अमीरी दिखाने के लिए
(b) पेट भरने के कारण
(c) तबीयत खराब होने के कारण
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर= a

नवाब साहब ने खीरों की फाँक का क्या किया?

(a) खिड़की से बाहर फेंक दिया
(b) लेखक को दे दिया
(c) खा गए
(d) बच्चे को दे दिया

उत्तर= a

नवाब साहब का सहसा क्या करना लेखक को अच्छा नहीं लगा?

(a) बात करना
(b) खीरा खाना
(c) भाव-परिवर्तन करना
(d) जेब से चाकू निकालना

उत्तर= c

लखनऊ स्टेशन पर कौन खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं?

(a) नवाब साहब
(b) लेखक
(c) खीरा बेचने वाले
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर= c

वार्तालाप की शुरुआत किसने की?

(a) लेखक ने
(b) नवाब साहब ने
(c) दुकानदार ने
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर= b

FAQs

लखनवी अंदाज कहानी का उद्देश्य क्या है?

‘लखनवी अंदाज’ नामक पाठ के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना व्यावहारिक दृष्टिकोण विस्तृत करते हुए दिखावेपन से दूर रहना चाहिए। हमें वर्तमान के कठोर यथार्थ का सामना करना चाहिए तथा काल्पनिकता को छोड़कर वास्तविकता को अपनाना चाहिए जो हमारे व्यवहार और आचरण में भी दिखना चाहिए।

लखनवी अंदाज पाठ में क्या व्यंग्य है?

‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में नवाब साहब के माध्यम से लेखक ने समाज के उस सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है, जो वास्तविकता से दूर एक बनावटी जीवन-शैली का आदी है।

लखनवी अंदाज पाठ के रचयिता कौन हैं?

लखनवी अंदाज पाठ के रचयिता मशहूर रचनाकार यशपाल हैं।

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नवाब साहब ने खीरे को खिड़की से बाहर क्यों फेंक दिया था?

उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्‌य वस्तु खाने में शर्म भव करते थे। लेखक को अपने डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसीलिए उन्होंने खीरे को मात्र सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दियानवाब साहब के ऐसा करने से ऐसा लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं।

नवाब साहब ने खीरे की फाँकों के साथ क्या किया?

नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी।

नवाब साहब द्वारा खीरे को खाने की बजाय सूंघ कर ही खिड़की से बाहर फेंक देना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?

उनका यह स्वभाव उनके दिखावटी स्वभाव को प्रकट करता है। नवाब साहब ने लेखक के सामने खीरा काटा और फिर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। शायद वह अपनी झूठी आन-बान के एक के सामने खीरा खाने से शर्मा रहे हों। वह खीरे को एक साधारण वस्तु समझते थे और खीरे जैसी आम वस्तु को खाकर वह अपनी श्रेष्ठता को कम नहीं करना चाहते।

8 नवाब साहब ने खीरे की फाँको का स्वाद कैसे लिया?

नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खा कर नहीं लिया बल्कि उन फाँकों को नाक के पास ले जाकर तथा सूँघकर आनंद लिया। सूँघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकते रहे।