पैरों की नसों (शिरा) में सूजन और गांठें हो तो इसे सामान्य बात समझकर नजरअंदाज करना आपको भारी पड़ सकता है। अक्सर लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते और यह अल्सर बन जाता है। नसों की इस बीमारी के इलाज के लिए सफदरजंग अस्पताल में लेजर व रेडियो फ्रीक्वेंसी अबलेशन (आरएफए) तकनीक से सर्जरी शुरू की गई है। इस तकनीक से नसों की बीमारी की सर्जरी आसान हो गई है। Show
अस्पताल के सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. गुलशनजीत सिंह ने कहा कि शिरा शरीर के गंदे खून को हृदय में पहुंचाने का काम करती है। नसों के वॉल्व में खराबी आने पर खून पैरों से ऊपर हृदय की ओर न जाकर नीचे की ओर आने लगता है। इस वजह से पैरों की नसों में खून जमने लगता है और नसें मोटी होने लगती हैं। इससे नसों की लंबाई बढ़ जाती है और उनका रंग काला पड़ जाता है। उन्होंने बताया कि इसका कारण अधिक देर तक खड़े रहना है। उन्होंने कहा कि भारत में करीब 30 फीसद लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। प्रसव के बाद 50 फीसद महिलाओं में यह विकार होता है। डॉ. गुलशनजीत के अनुसार अक्सर लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते और यह अल्सर बन जाता है। उन्होंने बताया कि अब तक पैरों में दो चीरे लगाकर (ओपन सर्जरी) बढ़ी हुई नसों को निकाल कर इलाज किया जाता था। इसमें चार घंटे का समय लगने के साथ मरीज को दर्द भी ज्यादा होता था। सर्जरी के दौरान मरीज को चार-पांच दिन तक बिस्तर पर रहना पड़ता था। लेजर तकनीक में लेजर फाइबर व आरएएफ तकनीक में एक तारनुमा कैथेटर की सहायता से बढ़ी हुई नसों को जला दिया जाता है। एक कैथेटर की कीमत 35 से 40 हजार रुपये आती है। एक कैथेटर को स्ट्रलाइज कर पांच मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए एक व्यक्ति की सर्जरी में करीब दस हजार रुपये तक का खर्च आता है। सफदरजंग अस्पताल में सर्जरी की इस तकनीक पर एक कार्यशाला में मरीजों की सर्जरी की गई, जिसे डॉक्टरों ने लाइव देखा। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीडी अथानी ने कहा कि नई तकनीक से मरीजों को फायदा होगा। इसे सुनेंरोकेंगलत साइज के जूते पहनने से भी पैरों में गांठ पड़ने की समस्या हो सकती है। ऐसे में आप सही साइज के जूते पहने जिससे आपके पैरों को आराम मिले। कोशिश करें ऐसे जूते पहनने की जो आपको अधिक टाइट ना हो। हमेशा ऐसे जूते पहने जिससे आपके पैरों पर दबाव ना पड़े। इसे सुनेंरोकेंऊंची एड़ियों के सैंडल या जूते पहनना भी एक कारण है। कई बार नंगे पैर चलने के कारण भी पैर दुखते हैं और इसी कारण पैर की त्वचा की मोटाई एक जगह से बढ़ने लगती है। कुछ विशेष प्रकार के डिज़ाइन वाले जूते-चप्पलों से पैरों के एक खास हिस्से पर दबाव लगातार पड़ता रहता है और इसी वजह से वहां कॉर्न बन जाते हैं। पढ़ना: व्यक्तियों के बीच सामाजिक मुठभेड़ के किसी भी रूप को क्या कहा जाता है? पैर में गांठ हो जाए तो क्या करना चाहिए?
घुटने के नीचे वाले को क्या कहते हैं? इसे सुनेंरोकेंहैमस्ट्रिंग बहुत ही ताकतवर और लंबी मांसपेशियां होती हैं। उन पर बहुत दबाव होता है, लेकिन जब आप बैठे या खड़े रहते हैं तो उनका इस्तेमाल नहीं हो पाता। इसलिए इनमें संकुचन आ जाता है। उनमें खिंचाव पैदा करना… जांघ में गिल्टी क्यों होता है? इसे सुनेंरोकेंअगर आपके हाथ, पैर या पीठ पर बचपन में कोई उभरी हुई मुलायम गांठ रही हो। टीनएज में इसका आकार बढ़ गया हो, तो यह वैस्कुलर ट्यूमर हो सकता है। कभी भी आपकी हाथ, जांघ, या टांग में अगर चोट लगने के कुछ महीने के बाद उभरी सूजन कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हो तो यह एन्युरिच्म की निशानी हो सकती है। पढ़ना: टेम्स नदी के किनारे कौन सा देश बसा है? कैंसर की गांठ की पहचान कैसे करे?पाचन संस्थावाले कैंसर के लक्षण
क्या कैंसर की गांठ दर्द करती है?इसे सुनेंरोकेंकारण कि कैंसर की जो गांठ होती है जरूरी नहीं कि वो हमेशा दर्द करती हो, काफी कैंसर की गांठ में दर्द ही नहीं करती है. अगर ऐसी स्थिति हो तो हम उसे इग्नोर ना करें. इस तरह से हमारे पेशाब और शौच के अंदर खून आ रहा है तो वह भी यह दर्शाता है कि इसकी जांच होनी आवश्यक है. आपने कई लोगों के हाथ-पैर या शरीर के किसी हिस्से पर एक नरम या कोमल गांठ देखी होगी, जिसमें दर्द नहीं होता है। लिपोमा एक गोल या अंडाकार गांठ होता है जो त्वचा के ठीक नीचे बढ़ती है। यह फैट से बनी होती और इसे छूने पर आसानी से हिल सकती है। आमतौर पर इसमें दर्द नहीं होता है। लिपोमा की गांठ शरीर के किसी भी हिस्से में बन सकती है लेकिन पीठ, धड़, हाथ, कंधे और गर्दन पर सबसे ज्यादा बनती है। वास्तव में यह सॉफ्ट टिश्यू ट्यूमर हैं। वे धीरे-धीरे बढ़ते हैं और कैंसर का कारण नहीं बनते। अधिकांश लिपोमा को उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। अगर अप इसे हटवाना चाहते हैं, तो डॉक्टर इसे आसानी से हटा सकते हैं। लिपोमा की गांठ का ज्यादा खतरा किसे है (Lipoma risk factors)लिपोमा बहुत आम है। एक रिपोर्ट के अनुसार, हर 1,000 लोगों में से लगभग 1 को लिपोमा होता है। लिपोमा अक्सर 40 और 60 की उम्र के बीच दिखाई देते हैं, लेकिन वे किसी भी उम्र में हो सकते हैं। वे जन्म के समय भी उपस्थित हो सकते हैं। लिपोमा सभी लिंगों के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन वे महिलाओं में थोड़ा अधिक आम हैं। लिपोमा के लक्षण क्या हैं (Symptoms of Lipoma)लिपोमा आमतौर पर दर्दनाक नहीं होते हैं। बहुत से लोग जिन्हें लिपोमा होता है, उन्हें कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है। राहत की बात यह है कि लिपोमा अपने आसपास के ऊतकों में नहीं फैलते हैं। हालांकि कई मामलों में आपको दर्द और परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इनका आकार गोल या अंडाकार होता है। इस तरह की गांठ का साइज 2 इंच से छोटा होता है लेकिन कई बार इस तरह की गांठ 6 इंच से अधिक चौड़ी हो सकती है। लिपोमा की गांठ के कारण (Causes of Lipoma)लिपोमा की गांठ के क्या कारण हैं, इस बारे में पर्याप्त सबूत नहीं हैं। यह किसी को जेनेटिक हो सकती है। कुछ स्थितियों के कारण शरीर पर कई लिपोमा बन जाते हैं। इनमें शामिल हैं- डर्कम रोग जोकि एक दुर्लभ विकार दर्दनाक लिपोमा को बढ़ने का कारण बनता है। इसके अलावा गार्डनर सिंड्रोम, जेनेटिक मल्टिपल लिपोमैटोसिस और , मैडेलुंग डिजीज इसका कारण बन सकते हैं। लिपोमा के लिए घरेलू उपचार (Lipoma home remedies)इसके लिए 1) हल्दी का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह हल्दी में यौगिक करक्यूमिन है जो लिपोमा से निपटने में मदद करता है। लिपोमा पर हल्दी का पेस्ट लगाया जा सकता है। इसके लिए 2) सेज भी फायदेमंद है। इस जड़ी बूटी में ऐसे गुण होते हैं, जो फैट को कम करते हैं। सेज के अर्क को लिपोमा पर लगाने से लिपोमा को घुलने में मदद मिल सकती है। आप 3) थूजा ऑक्सिडेंटलिस का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस जड़ी बूटी का उपयोग त्वचा पर और उसके नीचे गांठ के लिए किया जाता है। इसे लिपोमा का होम्योपैथिक उपचार माना जा सकता है। आपको पानी में थूजा का अर्क मिलाना होगा और इसे लिपोमा पर लगाना होगा। आपको पेस्ट को हर दिन लगभग 3 बार लगाने की जरूरत है। पैर में गांठ पड़ जाए तो क्या करना चाहिए?ऑलिव ऑयल | Olive Oil in Lumps
कॉर्न्स वाली जगह पर हर रोज ऑलिव ऑयल लगाने से जल्दी आराम मिल जाता है. यह तेल गांठ को ठीक करने में सबसे कारगर है. इसके अलावा आप सैलिसिलिक एसिड को भी आजमा सकते हैं. गर्म पानी में सैलिसिलिक एसिड मिलाकर कॉर्न्स वाली जगह को भिगो लें.
गांठ कैसे खत्म करें?अगर शरीर में बहुत अधिक गांठे है तो शिला सिंदूर 4 ग्राम, प्रभाल पिष्टी 10 ग्राम के साथ मोती और गिलोय मिलाकर सात पूड़िया बना लें। इसे सुबह-शाम खिलाएं। इससे 99 प्रतिशत तक गांठ से निजात मिल जाता है। एक से 3 माह में लाभ मिल जाता है।
गांठ की पहचान कैसे करें?चर्बी की गांठ होने के प्रमुख लक्षण
इसके लक्षण अन्य प्रकार की गांठ से अलग हो सकते हैं। यह गांठ गर्दन, कंधे, हाथ, कमर, पेट व जांघ पर नजर आते हैं. इस तरह की गांठ में ज्यादा दर्द नहीं होता है, लेकिन किसी नस पर दबाव पड़ने पर इसमें हल्का दर्द हो सकता है. कुछ लोगों को चर्बी की गांठ होने पर कब्ज की समस्या भी रहती है.
कैंसर की गांठ की पहचान कैसे होती है?कभी ये गांठ दर्द के साथ होते हैं तो कभी ये गांठ बिना दर्द के भी होते हैं. यदि गांठ के साथ खून आ रहा हो तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है. अधिकतर कैंसर की शुरुआत गांठ से ही होती है. शुरुआती में गांठ छोटा होता है और उसमें दर्द नहीं रहता है तो लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं.
|