उत्तर- पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह- (Energy flow in ecosystem) — प्राणी जीवन की विभिन्न जैव क्रियाओं के संचालन के लिए ऊर्जा अति आवश्यक होती है। हमारी पृथ्वी पर ऊर्जा का एक मात्र स्रोत सूर्य का प्रकाश है। सूर्य का प्रकाश किरणों के रूप में वायुमण्डल से गुजरते हुए पृथ्वी पर आता है। सूर्य के विकिरण का लगभग 20 प्रतिशत भाग वायुमण्डल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है एवं 50 प्रतिशत ऊष्मा के रूप में पृथ्वी के धरातल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, शेष 30 प्रतिशत प्रकाश को धरती की वायु में उपस्थित धूल के कण एवं आकाश में मौजूद बादल परावर्तित कर देते हैं। Show विभिन्न पारितन्त्रों में संचालित खाद्य श्रृंखलाओं (food chains) में भोजन एक पोष स्तर (trophic level) से दूसरे पोष स्तर पर स्थासान्तरित होता है। दूसरे शब्दों में भोजन के माध्यम से ऊर्जा का अभिगमनं विभिन्न पोष स्तरों में खाद्य श्रृंखला के द्वारा संचालित होता है। पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा के प्रवाह को ऊर्जागतिकी (thermodynamics) के सिद्धान्तों के आधार पर समझा जा सकता है क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवेश, स्थानान्तरण और विभिन्न स्तरों पर इसका वितरण, ऊष्मागतिकी के सिद्धान्तों के अनुरूप होता है। ऊष्मागतिकी के सिद्धान्त निम्न हैं 1. ऊर्जा के संरक्षण का नियम (The Law of Conservation)- यह ऊष्मागतिकी का प्रथम सिद्धान्त (first law of thermodynamics) है। इस नियम के अनुसार ऊर्जा अनित्य एवं अविनाशी है, अर्थात् ऊर्जा का न तो निर्माण किया जा सकता है और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है। ऊर्जा का रूपान्तरण एक प्रारूप से दूसरे प्रारूप में किया जा सकता है। ऊर्जा के इसी एक से दूसरे प्रारूप में परिवर्तन की प्रक्रिया ऊर्जा रूपान्तरण (transformation of energy) कहलाती है। पौधों के द्वारा प्रकाशित ऊर्जा का भोजन की रासायनिक ऊर्जा में, और इसके पश्चात् भोजन की रासायनिक ऊर्जा का श्वसन द्वारा ऊष्मा में रूपान्तरण इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। पौधों द्वारा प्रकाशिक ऊर्जा की कुछ मात्रा रासायनिक ऊर्जा या भोजन के रूप में संचित व संश्लेषित कर ली जाती है। स्वपोषी हरे पौधों द्वारा इस भोजन का अधिकांश भाग श्वसन क्रिया में खर्च कर दिया जाता है तथा बची हुई शेष ऊर्जा से पादप शरीर का निर्माण होता है। जब कोई शाकाहारी प्राणी उपभोक्ता अर्थात् प्रथम श्रेणी का उपभोक्ता भोजन के रूप में इन पौधों को प्रयुक्त करता है तो इस शाकभक्षी उपभोक्ता द्वारा इस भोजन का अधिकांश भाग श्वसन क्रिया द्वारा ताप ऊर्जा में बदल दिया जाता है एवं इस प्रकार ऊर्जा का बहुत थोड़ा भाग ही शाकाहारी उपभोक्ता जन्तु के शरीर में रह पाता है। इसी प्रकार से ऊर्जा की मात्रा में क्रमिक ह्रास की प्रक्रिया उपभोक्ताओं के अगले स्तरों पर निरन्तर जारी रहती है और प्रकाशित ऊर्जा की सम्पूर्ण यात्रा धीरे-धीरे विभिन्न जैवीय घटकों से प्रवाहित होती हुई ऊष्मा में रूपान्तरित हो जाती है। सजीवों की विभिन्न आवश्यकताओं के लिए सूर्य के द्वारा प्रकाशिक ऊर्जा की नियमित आपूर्ति होती है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का स्थानान्तरण चक्र (cycle) के रूप में न होकर एक सीधे रेखीय प्रवाह के रूप में होता है। 2. एन्ट्रॉपी का नियम (The Law of Entropy)- ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (second law of thermodynamics) है। इस नियम के अनुसार जब ऊर्जा का रूपान्तरण एक प्रारूप से दूसरे प्रारूप में होता है तो इस रूपान्तरण प्रक्रिया के दौरान ऊर्जा का ह्रास (loss of energy) होता है। यह ह्रास हुई ऊजर ऊष्मा (heat) के रूप में वायुमण्डल में विकिरत हो जाती है। पौधों को उपलब्ध सम्पूर्ण प्रकाशिक ऊर्जा पौधों द्वारा भोजन के रूप में संश्लेषित व संचित नहीं की जाती। सजीव प्राणी अपने भोजन द्वारा प्राप्त सम्पूर्ण ऊर्जा को अपने शरीर में एकत्र नहीं रख सकता। ऊर्जा प्रवाह के संदर्भ में किये गये विभिन्न प्रयोगों एवं अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कोई भी सजीव अपने द्वारा प्राप्त कुल ऊर्जा का औसत दस प्रतिशत भाग ही अपने शरीर के निर्माण हेतु प्रयुक्त करता है, इससे अधिक नहीं। दूसरे शब्दों में खाद्य श्रृंखला (food chain) के अन्तर्गत, ऊर्जा स्थानान्तरण के दौरान, लगभग केवल दस प्रतिशत ऊर्जा ही एक पोष स्तर (trophic level) से दूसरे स्तर पर स्थानान्तरित होती है या इस स्तर के प्राणियों द्वारा एकत्रित की जाती है, शेष नब्बे प्रतिशत ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में अपव्यय हो जाता है। सर्वप्रथम लिण्डेमेन, 1942 ने पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य श्रृंखला के दौरान ऊर्जा प्रवाह के संबंध में बताया। उन्होंने अमरीका में मिनिसोटा (Minnesota) नामक स्थान की झील के पारितन्त्र में विभिन्न पोष स्तरों से ऊर्जा प्रवाह की प्रक्रिया को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया। लिण्डेमेन ने पोष स्तर की ऊर्जा को ग्रीक अक्षर बड़े लैम्बडा (capital lembda) λ द्वारा प्रदर्शित किया तथा अगले पोष स्तर को स्थानान्तरित होने वाली ऊर्जा को छोटे लैम्बडा (small lambda) λ द्वारा प्रदर्शित किया। इस प्रकार उत्पादक द्वारा प्राप्त ऊर्जा λ1 प्रथम उपभोक्ता को स्थानान्तरित ऊर्जा, λ2 द्वितीयक तथा तृतीयक उपभोक्ता को स्थानान्तरित ऊर्जा क्रमशः λ3, λ4 प्रदर्शित किया। लिण्डेमेन मॉडल के अनुसार किसी भी पोष स्तर पर ऊर्जा मात्रा में परिवर्तन की दर निम्न समीकरण के अनुसार होता है
चित्र- ऊर्जा प्रवाह का आरेख (लिण्डमेन के अनुसार)
ओडम का प्रयोग– ओडम, 1963 ने एक प्रारूपिक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह को समझाने के लिए डिब्बों व नलिकाओं के एक मॉडल का उपयोग किया। इस प्रदर्श अथवा मॉडल में डिब्बे (Box) पोष स्तर को एवं नलिकाएँ (Pipes) प्रत्येक पोष स्तर में ऊर्जा प्रवाह के प्रवेश एवं निकासी को निरूपित करती हैं। इस मॉडल के अनुसार उत्पादकों अर्थात् हरे पौधों को कुल 3000 K.cal. सूर्य का प्रकाश प्राप्त हो रहा है, इसमें से अनुमानत: 50 प्रतिशत भाग (1500 K.cal.) ही अवशोषित होता है तथा इस अवशोषित मात्रा में से भी केवल 1 प्रतिशत भाग (15K.cal.) प्रथम पोष स्तर पर भोजन ऊर्जा या रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित होता है। प्रथम श्रेणी के वे शाकाहारी उपभोक्ता, जो इन हरे पौधों को अपने भोजन के रूप में प्रयुक्त करते हैं, वे अपने शरीर में, इसका केवल 10 प्रतिशत भाग अर्थात् केवल 1.5 K.cal. ऊर्जा को संचित करते हैं। इसके बाद इन शाकाहारियों का भक्षण करने वाले मांसाहारी उपभोक्ता केवल 0.15K. cal. (10%, कभी-कभी 20%) ऊर्जा का ही संचय कर पाते हैं। इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि पारिस्थितिक तन्त्र की खाद्य श्रृंखला, में एक पोष स्तर को प्राप्त कुल ऊर्जा में से, सारी ऊर्जा का उपयोग नहीं होता, अपितु इसका अधिकांश भाग बिना किसी उपयोग के ही रह जाता है। इसका यह अर्थ हुआ कि शाकाहारी प्राणी पौधों की जड़, लकड़ी व छाल आदि का भक्षण नहीं करते हैं। इसी प्रकार मांसाहारी परभक्षी (predator) अपने शिकार किये गये प्राणि की हड्डियों, बाल व खाल आदि को छोड़ देते हैं।
चित्र- एक रेखा में भोजन श्रृंखला में ऊर्जा प्रवाह के चित्र में तीन पोष स्तरों (1, 2, 3 संख्या के डिब्बे) को प्रदर्शित करते हुए। चित्र में जिन चिह्नांकनों का प्रयोग किया गया है वे -I= कुल ग्रहीत (input) ऊर्जा L= पादपों द्वारा सूर्य प्रकाश का अवशोषण, PG सकल प्राथमिक उत्पादकता, A = कुल संश्लेषण, PN= नेट प्राथमिक उत्पादकता, P = द्वितीयक (उपभोक्ता) उत्पादन, NU = अप्रयुक्त ऊर्जा (विसर्जित), NA = उपभोक्ताओं द्वारा ऊर्जा का संश्लेषण नहीं किया गया (बहिक्षेपण), R = श्वसन। चित्र के नीचे की रेखा 3000 K. cal. प्रति वर्ग मीटर प्रतिदिन ग्रहित सूर्य ऊर्जा से शुरू होकर मुख्य स्थानान्तरण बिन्दुओं पर ऊर्जा ह्रास के परिमाण का क्रम प्रदर्शित करते हैं। यह खाद्य सामग्री जिसका उपयोग किसी भी पोष स्तर के प्राणी करते हैं, उसका कुछ भाग मल विसर्जन द्वारा उत्सर्जित कर दिया जाता है। इस प्रकार पारितन्त्र का प्रत्येक पोष स्तर ऊर्जा प्रवाह के दस प्रतिशत के नियम की अनुपालना प्रदर्शित करता है। दूसरे नियम के अनुसार ऊर्जा की अधिकांश मात्रा स्थानान्तरण के दौरान ऊष्मा के रूप में, या अन्य जैविक उपापचयित क्रियाओं में, एक पोष स्तर से दूसरे पोष पर जाते समय खर्च हो जाती है। इस प्रकार एक पोष स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह के दौरान ऊर्जा की मात्रा में धीरे-धीरे कम होती जाती है। उपर्युक्त मॉडल ऊर्जा प्रवाह के सामान्यकृत (generalized) विवरण को प्रदर्शित करता है। परन्तु प्रकृति में सदैव स्वपोषी या उत्पादक द्वारा निर्मित सम्पूर्ण भोजन या ऊर्जा का स्थानान्तरण शाकाहारी-मांसाहारी-शीर्ष मांसाहारी श्रृंखला द्वारा नहीं होता है। उपर्युक्त प्रकार का ऊर्जा प्रवाह मुख्यतः घास स्थली (grass land) तथा जलीय इकोतन्त्र (aquatic ecosystem) में मिलता है, जहाँ प्राथमिक उत्पादन का अधिकतर भाग शाकाहारी के खाने योग्य (edible) होता है।
चित्र 5 आकार का ऊर्जा प्रवाह मॉडल वन इको तंत्र में पौधों द्वारा निर्मित अधिकांश भोजन शाकाहारियों द्वारा उपयोग नहीं किया जाता है। इसके क्षय होने पर इसका उपभोग अपरदहारी द्वारा इसका उपभोग होता है तथा अपरदहारियों का उपभोग मांसाहारियों द्वारा होता है। इस प्रकार की खाद्य श्रृंखला अपरद खाद्य श्रृंखला कहलाती है। इसे Y- आकार मॉडल में प्रदर्शित किया गया है। ओडम का सार्वत्रिक मॉडल- ओडम (Odum 1966) द्वारा पुनः एक और मॉडल प्रस्तुत किया गया जिससे सार्वत्रिक मॉडल (universal model) कहा जाता है (चित्र)। यहां एक चौकोर डिब्बा (Box) 'B' जैवभार (biomass) को प्रदर्शित करता है। इन सजीवों को ऊर्जा मात्र 'I' प्राप्त होती है। यहाँ पौधों के लिए यह ऊर्जा सूर्य के प्रकाश के रूप में तथा प्राणियों के लिए उनके द्वारा खाये गये भोजन के बराबर होती है। इस प्रकार प्राणियों में पचाये गये भोजन व पौधों में संश्लेषित भोजन की मात्रा के रूप में 'A' ऊर्जा प्राप्त होती है व इस प्राप्त ऊर्जा का कुछ भाग 'R' श्वसन के रूप में खर्च हो जाता है। इसके बाद शेष बची ऊर्जा 'p' से कुछ कार्बनिक पदार्थ निर्मित होते हैं, जिनके द्वारा सजीव शरीर के ऊतकों एवं विभिन्न अंगों का निर्माण होता है। यही नहीं, इस ऊर्जा 'A' का कुछ भाग 'S' संग्रहीत हो जाता है, जैसे पौधों में भूमिगत प्रकन्द एवं कन्दों द्वारा संचित भोजन एवं प्राणियों में वसा आदि। ऊर्जा की कुछ नगण्य मात्रा ‘E जीवों द्वारा उत्सर्जन में निष्कासित कर दी जाती है। बचा हुआ ऊर्जा का शेष भाग 'G' जीवों की वृद्धि द्वारा जैवभार (biomass) को बढ़ाने का काम करता है।
चित्र-ऊर्जा प्रवाह का सार्वत्रिक मॉडल (ओडम, 1966) पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा प्रवाह कैसे होता है?Solution : पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह एकदिशीय होता है तथा सौर ऊर्जा ही एकमात्र ऊर्जा का स्रोत है आपत्तित सूर्य বিकिरणों से 50% से कम हिस्सा संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण (PAR) में प्रयुक्त होता है। प्रकाश संश्लेषण द्वारा पादप सूर्य की विकिरित ऊर्जा का इस्तेमाल करके अकार्बनिक पदार्थों से खाद्य निर्माण करते हैं ।
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का क्या होता है?खाद्य जाल खाद्य श्रृंखलाओं का एक नेटवर्क है जहाँ सभी श्रृंखलाएँ स्वाभाविक रूप से परस्पर जुड़ी होती हैं। एक खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशात्मक है, एक बार जब यह अगले ट्रॉपिक/ पोषण स्तर तक पहुंच जाता है तो यह फिर से वापस नहीं आता है।
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह सदैव कैसे होता है 1 Point?- सभी पारितंत्रों के लिये ऊर्जा का स्रोत सौर विकिरण है जिसे स्वपोषी अवशोषित करके भोजन (जैव पदार्थ) के रूप में उपभोक्ताओं को स्थानांतरित कर देते हैं। ऊर्जा प्रवाह सदैव ऊपर से नीचे की ओर होता है तथा एकदिशिक होता है।
ऊर्जा का प्रवाह कैसे होता है?ऊर्जा प्रवाह क्या है ?
|