प्रतिवर्ती क्रिया क्या है एक उदाहरण द्वारा समझाइए - prativartee kriya kya hai ek udaaharan dvaara samajhaie

2. अबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Unconditioned Reflex Action) ये प्रतिवर्ती क्रियाएँ अर्जित न होकर जन्मजात होती है; जैसे-तेज प्रकाश पड़ने पर पुतली का सिकुड़ना, ठण्ड में रोंगटे खड़े होना, छींकना, खाँसना, पलक का झपकना एवं उबासी लेना आदि।

उत्तर : प्रतिवर्ती क्रियाएं स्वायत्त प्रेरक के प्रत्युत्तर हैं। ये क्रियाएं मस्तिष्क की इच्छा के बिना होती हैं। इसलिए ये अनैच्छिक क्रियाएं हैं। यह बहुत स्पष्ट और यांत्रिक प्रकार की हैं। जैसे-जब हमारी आंखों पर तेज़ रोशनी पडती है तो हमारी आंख की पुतली अचानक छोटी होने लगती है। यह क्रिया तुरंत और हमारे मस्तिष्क पीछे की इच्छा के बिना होती है।

प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित पेशियों द्वारा अनैच्छिक क्रियाएं होती हैं जो प्रेरक के प्रत्युत्तर में होती हैं।

यदि शरीर के किसी भाग में अचानक एक पिन चुभोया जाए तो संवेदियों द्वारा प्राप्त यह उद्दीपक इस क्षेत्र के एफैरेंट तंत्रिका तन्तु को उद्दीपित करता है। तंत्रिका तंत्र मेरु तंत्रिका के पृष्ठीय पथ द्वारा इस उद्दीपक को मेरुरज्जु तक ले जाता है।

मेरुरज्जु से यह उद्दीपन के अधरीय पथ द्वारा एक या अधिक इफैरेंट (Efferent) तंत्रिका तंतु में पहुंचता है। इफैरेंट तंत्रिका तंतु प्रभावी अंगों को उद्दीपित करता है। पिन चुभोने के तुरंत बाद इसी कारण प्राणी प्रभावी भाग हटा लेता है। उद्दीपक का संवेदी अंग से प्रभावी अंग तक का पथ प्रतिवर्ती चाप कहलाता है।

प्रतिवर्ती चाप तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकाई बनाती है। प्रतिवर्ती चाप में होता है

(i) संवेदी अंग-वह अंग या स्थान जो प्रेरक को प्राप्त करता है।

(ii) एफैरेंट तंत्रिका तन्तु (Afferent Nerve Fibre)– यह संवेदक प्रेरणा को संवेदी अंग से केंद्रीय तंत्र तक ले जाता है जैसे मस्तिष्क या मेरुरज्जु।

(ii) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र-मस्तिष्क या मेरुरज्जु का कुछ भाग।

(iv) इफैरेंट अथवा मोटर तंत्रिका (Efferent Or Motor Nerve) यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मोटर प्रेरणाओं को प्रभावी अंगों तक लाता है जैसे पेशियां अथवा ग्रंथियां।

 (v) प्रभावी अंग (Effector)—यह तंत्रिका विहीन भाग जैसे ग्रंथियों की पेशियां जहां मोटर प्रेरणा खत्म होती है और प्रत्युत्तर दिया जाता है।

कार्य-प्रतिवर्ती क्रिया प्रेरक को तुरंत प्रत्युत्तर देने में सहायता करती है और मस्तिष्क को भी अधिक कार्य से मुक्त करती है।

“अनेक क्रियाएं बाहरी उद्दीपनों के कारण अनुप्रिया (response) के रूप में होती है। इन्हें प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) कहते हैं।”

स्वादिष्ट भोजन देखते ही मुंह में लार का आना, कांटा चुभते ही पैर का झटके के साथ ऊपर उठ जाना, तेज प्रकाश में आंख की पुतली का सिकुड़ जाना तथा अंधेरे में उसका फेल जाना, खांसना आदि अनेक प्रतिवर्ती क्रिया में है। यह क्रियाएं रीड-रज्जु से नियंत्रित होती है। मस्तिष्क निकाल देनी है पर भी यह चलती है अतः प्रतिवर्ती क्रिया किसी उद्दीपन के प्रति आ गया अंगों के तंत्र द्वारा तीव्र गति से की जाने वाले स्वचालित अनुक्रिया है। इनके संचालन में मस्तिष्क भाग नहीं लेता है।

Table of Contents

  • प्रतिवर्ती क्रिया-
  • महत्व (Importance)-
  • प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की भूमिका-

प्रतिवर्ती क्रिया क्या है एक उदाहरण द्वारा समझाइए - prativartee kriya kya hai ek udaaharan dvaara samajhaie
प्रतिवर्ती क्रिया के लिए प्रतिवर्ती चाप।

रीड-रज्जु से रीड तंत्रिका निकलती है। प्रत्येक रीड तंत्रिका पृष्ठ मूल तथा अधर मूल से बनती है। पृष्ठ मूल में संवेदी तंतु (sensory filament) तथा अधर मूल में चालक तंतु (motor filament)‌ होते हैंं।

संवेदी अंग उद्दीपन को ग्रहण कर संवेदी तंतुओं द्वारा रीड-रज्जू तक पहुंचते हैं। इसके फलस्वरूप रीड-रज्जू से अनुक्रिया के लिए आदेश चालक। तंतुओं द्वारा संबंधित मांसपेशियों को मिलता है और अंग अनुक्रिया‌ करता है।

इस प्रकार संवेदी अंगों से, संवेदनाओं को संवेदी तंतुओं द्वारा, रीड-रज्जू तक आने या रीड-रज्जू से प्रेरणा के रूप में अनुक्रिया‌ करने वाले अंग की मांस पेशियों तक पहुंचने के मार्ग को प्रतिवर्ती चाप (reflex arch) तथा होने वाली क्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) कहते हैं।

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महत्व (Importance)-

बाह्य या आंतरिक उद्दीपन के फल स्वरुप होने वाली यह क्रियाएं मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती है। इससे मस्तिष्क का कार्यभार कम हो जाता है। क्रिया होने के पश्चात मस्तिष्क को सूचना प्रेषित कर दी जाती है।

प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की भूमिका-

रुधिर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से थकान महसूस होती है। गहरी श्वास द्वारा CO2 की अधिक मात्रा को शरीर से बाहर निकालना उबासी लेना (yawning) कह जाता है कहलाता है।

प्रतिवर्ती क्रियाओं का उदाहरण: रुधिर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से थकान महसूस होती है। गहरी श्वास द्वारा CO2 की अधिक मात्रा को शरीर से बाहर निकालना उबासी लेना (yawning) कह जाता है कहलाता है।

Solution : कुछ अनुक्रियाएँ तुरन्त होती हैं और मस्तिष्क के आदेश के बिना ही हो जाती हैं । इस प्रकार की अनुक्रियाएँ प्रतिवर्ती क्रियाएँ या स्वत: प्रेरित क्रियाएँ (Reflex actions) कहलाती हैं, जो मेरुरज्जु द्वारा ही संपन्न हो जाती हैं। पलकों का झपकना, छींकना या खाँसना आदि प्रतिवर्ती क्रियाएँ कोई बाहरी अवाछित कण के आँख, नाक या गले में चले जाने की अनुक्रिया के फलस्वरूप होती हैं। प्रतिवर्ती क्रिया का पथ इस प्रकार हैं- उद्दीपन ग्राही अंग `to` संवेदन तंत्रिका `to` मेरूरज्जु प्रेरित तंत्रिका `to` मांसपेशियों द्वारा क्रियाएँ जब हाथ को गर्म पानी के संपर्क में लाते हैं तो हाथ एकदम हट जाता है। इस प्रतिवर्ती क्रिया की उद्दीपन के संचरण पथ को निम्न चित्र में दर्शाया गया है-

प्रतिवर्ती क्रिया क्या है एक उदाहरण द्वारा समझाइए - prativartee kriya kya hai ek udaaharan dvaara samajhaie

प्रतिवर्ती क्रिया क्या है और उदाहरण?

इन्हें प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) कहते हैं।” स्वादिष्ट भोजन देखते ही मुंह में लार का आना, कांटा चुभते ही पैर का झटके के साथ ऊपर उठ जाना, तेज प्रकाश में आंख की पुतली का सिकुड़ जाना तथा अंधेरे में उसका फेल जाना, खांसना आदि अनेक प्रतिवर्ती क्रिया में है। यह क्रियाएं रीड-रज्जु से नियंत्रित होती है।

प्रतिवर्ती क्रिया क्या है इन हिंदी?

Solution : संवेदी अंगों द्वारा ग्रहण किये गये उद्दीपनों को संवेदी तन्त्रिकाओं द्वारा मेरुरज्जु (Spinal cord) तक लेकर जाना एवं तुरन्त ही उसका प्रत्युत्तर चालक तन्त्रिकाओं द्वारा पेशियों, ऊतकों या अंगों में लाकर उसको उत्तेजित करने की क्रिया को प्रतिवर्ती किया (Reflex action) कहते हैं।

प्रतिवर्ती क्रिया क्या है इसका क्या महत्व है?

1. प्रतिवर्ती क्रिया के लिए मस्तिष्क के किसी प्रक्रम की आवश्यकता नहीं होती इसलिए सोचने-समझने में समय नहीं लगता। 2. प्राणी बिना सोचे-समझे इन की सहायता से शरीर की रक्षा करता रहता है।

प्रतिवर्ती क्रिया कैसे करते हैं?

अतः सामान्य प्रतिवर्ती क्रिया जैसे पुतली के आकार में परिवर्तन तथा कोई सोची क्रिया जैसे कुर्सी खिसकाना के मध्य एक और पेशी गति का सैट है जिस पर हमारे सोचने का कोई नियंत्रण नहीं है। इन अनैच्छिक क्रियाओं में से कई मध्यमस्तिष्क तथा पश्चमस्तिष्क से नियंत्रित होती हैं