विभिन्न आधार पर वर्णों का वर्गीकरणदोस्तों जैसा कि आप जानते हैं सरकारी नौकरियों के लिए ली जाए वाली विभिन्न परीक्षाओं के सिलेबस में हिंदी भी एक महत्वपूर्ण विषय होता है, और ऐसी परीक्षाओं में अक्सर हिंदी वर्णमाला पर आधारित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। इसलिए आपको हिंदी वर्णमाला का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है।इसलिए आज हम आपके लिए हिंदी वर्णमाला या वर्ण विचार के संबंध में महत्वपूर्ण और विस्तृत जानकारी लेकर आए हैं जो परीक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। Show
वर्णों के उच्चारण स्थानों के नाम:-कण्ठ - गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग तालु - जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग तालु कहलाता है मूर्धा - तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक का भाग मूर्धा होता है दन्त - यानी कि दाँत जो आप पहले से जानते ही हैं ओष्ठ - होंठ को संस्कृत में ओष्ठ कहते हैं कंठतालु - कंठ व तालु एक साथ कंठौष्ठ- कंठ व ओष्ठ को एक एक साथ कंठौष्ठ कहते हैं दन्तौष्ठ - दाँत व ओष्ठ को एक साथ दन्तौष्ठ कहते हैं अब आप सभी उच्चारण स्थानों को भली प्रकार जान चुके हैं, आइए अब जानते हैं विभिन्न वर्णों के उच्चारण स्थान कौन से हैं- उच्चारण स्थान के आधार पर वर्णों का वर्गीकरण :-1. कण्ठ अ, आ क, ख, ग, घ, ड़ ह, अ: 2. तालु इ, ई च, छ, ज, झ, ञ य श 3. मूर्द्धा ऋ, ॠ ट, ठ, ड, ढ, ण र ष 4. दन्त लृ त, थ, द, ध, न ल स 5. ओष्ठ उ, ऊ प, फ, ब, भ, म 6. नासिका अं, ड्, ञ, ण, न्, म् - - 7. कण्ठतालु ए, ऐ - - - 8. कण्ठोष्टय ओ, औ 9. दन्तोष्ठ्य - - व - प्रयत्न के आधार पर वर्णों का वर्गीकरण इस प्रकार है-(i) स्पर्शी :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफ़ड़ों से आई वायु किसी अवयव को स्पर्श करके निकले, उन्हें स्पर्शी कहते हैं। क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ स्पर्शी व्यंजन हैं। (ii) संघर्षी :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु संघर्ष पूर्वक निकले, उन्हें संघर्षी वर्ण कहते हैं। श, ष, स, ह आदि व्यंजन संघर्षी हैं। (iii) स्पर्श संघर्ष :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा तालु के स्पर्श के साथ-साथ कुछ घर्षण भी करती हुई आए तो ऐसी ध्वनियाँ स्पर्श संघर्षी ध्वनियाँ होती है। जैसे – च, छ, ज, झ। (iv) संघर्षहीन या अर्ध-स्वर : जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकल जाती है वे संघर्षहीन ध्वनियाँ कहलाती हैं। य, व व्यंजन संघर्षहीन या अर्ध-स्वर हैं। (v) नासिक्य : जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु मुख्यतः नाक से निकले, उन्हें नासिक्य कहते हैं। ङ, ञ, ण, न, म व्यंजन नासिक्य हैं। (vi) लुंठित- इन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वानोक में लुण्ठन या आलोड़न क्रिया होती है। हिंदी की ‘र’ ध्वनि प्रकम्पित या लुंठित वर्ग में आती है। (vii) उत्क्षिप्त : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ के अगले भाग को थोड़ा ऊपर उठाकर झटके से नीचे फेंकते हैं, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। ड, ढ, व्यंजन उत्क्षिप्त हैं। (viii) प्रकंपी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कंपन करना पड़ता है, वे प्रकंपी कहलाते हैं। हिन्दी में 'ऱ' व्यंजन प्रकंपी है। (ix) पार्श्विक : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ तालु को छुए किन्तु पार्श्व (बगल) में से हवा निकल जाए, उन्हें पार्श्विक व्यंजन कहते हैं। हिन्दी में केवल 'ल' व्यंजन पार्श्विक है। वायु की शक्ति (प्राण) के आधार पर हिंदी की ध्वनियाँ का वर्गीकरण(i) अल्पप्राण- जिन ध्वनियों के उच्चारण करने समय फेफड़ों से कम श्वास या वायु बाहर निकलती हो, उन्हें अल्पप्राण कहते है। जैसे- प, ब, त, द, च, ज, क, ल, र, व, य आदि। ट्रिक - (वर्णों के प्रथम, तृतीय और पंचम) और और ड़ य र ल व (ii) महाप्राण- जिन ध्वनियों का उच्चारण करने समय फेफड़ों से अधिक श्वास या वायु बाहर निकलती हो, उन्हें महाप्राण कहते है। जैसे—ख, घ, फ, भ, थ, ध, छ, झ आदि। ट्रिक - (वर्णों के द्वितीय और चतुर्थ) और ढ़ ह कंपन या घोषत्व के आधार पर ध्वनियां :-(i) सघोष- जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु स्वर-तंत्रियों में कंपन करती हुई निकलती है, उन्हें सघोष कहते है। ट्रिक :- (वर्णों के तृतीय, चतुर्थ और पंचम व्यंजन) और य, र, ल, व, ड, ढ, ह जैसे – ग, घ, ङ, ञ, झ, म, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म (ii) अघोष- जिन ध्वनियों के उच्चारण में फेफड़ों से श्वास वायु स्वर-तंत्रियों से कंपन करती हुई नहीं निकलती अघोष कहलाती है। ट्रिक :- (वर्णों के प्रथम तथा द्वितीय व्यंजन) और श, ष, स। जैसे- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, कुछ अन्य वर्गीकरण :-अनुनासिक ध्वनियाँ :-जिन ध्वनियों का उच्चारण मुंह और नाक दोनों के सहयोग से होता है। सभी पाँचों वर्गों के अंतिम वर्ण ङ, ञ, ण, न और म अनुनासिक ध्वनि है। नोट:- देवनागरी लिपि में अनुनासिकता को चन्द्रबिंदु (ँ) द्वारा व्यक्त किया जाता है। किंतु जब स्वर के ऊपर कोई मात्रा हो तो चन्द्रबिन्दु के स्थान पर केवल बिंदु (ं) लगाई जाती है। जैसे – अँ, ऊँ, ऐं, ओं आदि (अनुस्वार भी इसी के अंतर्गत आते हैं) जिह्वामूलक ध्वनियाँ- अरबी-फारसी से हिंदी में अपनाई गई तीन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के बिलकुल पीछे के भाग (मूल) से होता है। ये हैं- क़, ख़ और ग़ वर्त्स्य ध्वनियाँ- इसके अंतर्गत अरबी-फारसी की ज़ और फ़ की ध्वनि आती है। स्वरों के कुछ अन्य भेद(i) जिह्रा का कौन-सा अंश उच्चारण में उठता है, इस आधार पर स्वरों के भेद निम्नलिखित हैं- अग्र स्वर : इ, ई, ए, ऐ मध्य स्वर : अ पश्च स्वर : आ, उ, ऊ, ओ, औ (ii) होठों की स्थिति गोलाकार होती है या नहीं, इस आधार पर स्वरों के भेद निम्नलिखित हैं- वृत्तमुखी स्वर : उ, ऊ, ओ, औ अवृत्तमुखी स्वर : अ, आ, इ, ई, ए, ऐ वर्ण केे प्रकार प्रयत्न के आधार पर व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं?व्यंजन का वर्गीकरण. उच्चारण प्रयत्न के आधार पर –. स्पर्श – क, ख, ग, घ, ट,ठ, ड, झ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ. स्पर्श-संघर्षी – च, छ, ज, झ. संघर्षी – स, श, ष. पार्श्विक – ल. लुंठित – र. उत्क्षिप्त – ड़, ढ़. अन्तस्थ या अर्द्धस्वर – य, व. व्यंजनों के वर्गीकरण का क्या आधार है?व्यंजनों के वर्गीकरण में स्वर-तंत्रियों की स्थिति भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इस दृष्टि से व्यंजनों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है - घोष और अघोष। जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है, उन्हें घोष या सघोष कहा जाता हैं। दूसरे प्रकार की ध्वनियां अघोष कहलाती हैं।
बाह्य प्रयत्न के आधार पर वर्णों के मुख्यतः कितने भेद हैं?बाह्य प्रयत्न- वर्णों के समाप्ति पर होने वाले यत्न को बाह्य प्रयत्न कहते है। बाह्य प्रयत्न के दो भेद होते है- घोष का अर्थ 'नाद' या 'गूँज' होता है। वर्णों के उच्चारण में होने वाली ध्वनि की गूँज के आधार पर वर्णों के दो भेद हैं- घोष या सघोष और अघोष। अंतस्थ व्यंजन य, र, ल, व सभी स्वर घोष या सघोष हैं।
व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं?हिंदी में वर्णों (स्वर और व्यंजन) की कुल संख्या 52 है, जिसमें 11 स्वर और 41 व्यंजन होते हैं।
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