पृष्ठ पोषण से आप क्या समझते हैं? - prshth poshan se aap kya samajhate hain?

इसे सुनेंरोकेंपृष्‍ठपोषण एक ऐसी प्रकिया है जिसमे छात्रों को उनकी कमियों गलतीयों तथा त्रुटियो से अवगत कराया जाता है । ताकि छात्र उन्‍‍हे सुधार सके । साथ ही इस प्रकिया मे छात्रों की अच्‍छी विशेषतायें, अच्‍छा कार्य उनके गुणो तथा उनकी अच्‍छाईयों का भी विवरण दिया जाता है । ताकि वे आगे भी अपने व्‍यवहारों मे प्रदर्शित कर सके ।

प्रश्न पूछने की तकनीक क्या है?

इसे सुनेंरोकें* प्रश्न पूछने की तकनीक (Questioning technique) प्रश्न इतनी तेज आवाज में पूछा जाए कि पीछे बैठे छात्र भी उसे स्पष्ट रूप से सुन सके। अन्यथा अध्यापक को प्रश्न दोहराना पड़ेगा। इसके साथ ही उसकी वाणी में उतार-चढ़ाव आरोह-अवरोह आदि को भी प्रश्न के अनुसार ध्यान में रखा जाना चाहिए।

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शिक्षण में प्रश्न पूछने से क्या अभिप्राय है?

प्रश्न के माध्यम से शिक्षक छात्रों के ध्यान को किसी बिंदु पर आकर्षित करता है।

  • प्रश्न व्यक्तिगत शिक्षण में सहायक हैं।
  • प्रश्नों के द्वारा व्यक्तिगत कठिनाइयों का पता लगाया जा सकता है।
  • प्रश्न छात्रों की अभिव्यक्ति में सहायक है।
  • प्रश्नों के माध्यम से शिक्षक व छात्रों के बीच अंत: क्रिया में वृद्धि होती है।
  • पृष्ट पोषण पद्ति के जनक कौन है?

    इसे सुनेंरोकेंAnswer: माना जाता है कि, सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का सबसे पहले उपयोग जनसंख्या और सम्पति का अध्ययन करने के लिए प्रसिद्ध इतिहासकार HERODOTUS (हेरोडोटस) ने मिश्र नामक देश में आज से लगभग 300 साल पहले किया था।

    अधिगम से आप क्या समझते हैं?

    इसे सुनेंरोकेंसीखना या अधिगम (जर्मन: Gernen, अंग्रेज़ी: learning) एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है।

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    प्रश्न पत्र निर्माण कला क्या है?

    इसे सुनेंरोकेंप्रश्न पत्र निर्माण की योजना बनाना प्रथम सोपान के अंतर्गत आता है इसके अंतर्गत परीक्षा से सम्बंधित अनेक निर्णय लिए जाते हैं , इसके निर्माण हेतु विषय वस्तु ,शिक्षण उद्देश्यों ,प्रश्नो के प्रकार , प्रश्नों की संख्या ,प्रसाशन का समय, अंकन विधि , परिक्षण प्रारूप जैसी बातों का निर्धारण किया जाता है ।

    प्रश्न कौशल कैसे बनाते हैं?

    प्रश्न कौशल क्या है

    1. प्रश्न पूछने के उद्देश्य- शिक्षण कार्य को प्रभावशाली बनाना अर्जित ज्ञान का परीक्षण करने के लिए किसी बिंदु को स्पष्टता से समझने के लिए
    2. घटक प्रश्नों में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए- व्याकरण की दृष्टि से प्रश्नों की रचना ठीक होनी चाहिए संक्षिप्त प्रश्न होने चाहिए उपयुक्तता होनी चाहिए
    3. मुल्याकंन सूची

    शिक्षण में प्रश्न पूछने से क्या अभिप्राय है छात्रों से प्रश्न पूछते समय कौन कौन सी सावधानियां रखनी चाहिए?

    1 प्रश्न पूछना और सोचना ऐसे प्रश्न पूछना महत्वपूर्ण है जिससे विद्यार्थी सिद्धान्त और अपने अनुभव को जोड़ते हुए खोज कर सके और स्वयं अपेक्षित हल को निकाल कर बल विषय में गहन समझ विकसित कर सकें।

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  • 2 प्रश्नों को पूछने के तरीके
  • 3 खुले सिरे वाली गतिविधियों का उपयोग करना
  • 4 सारांश
  • प्रश्न कितने प्रकार के होते हैं ज्ञानात्मक पूछताछ प्रश्न की रूपरेखा समझाइए?

    ➲ प्रश्न निम्नलिखित प्रकार के होते हैं…

    • तथ्यात्मक प्रश्न
    • अभिसारी प्रश्न
    • अपसारी प्रश्न
    • विश्लेषणात्मक प्रश्न
    • प्रश्नवाचक प्रश्न

    पद्धति के जनक कौन थे?

    इसे सुनेंरोकेंद्विनाम पद्धति (Binomial nomenclature) जीवों (जंतु एवं वनस्पति) के नामकरण की पद्धति है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक लिनिअस ने इसका प्रतिपादन किया। इसके अनुसार दिए गए नाम के दो अंग होते हैं, जो क्रमशः जीव के वंश (जीनस) और जाति (स्पीशीज) के द्योतक हैं। जैसे एलिअम सेपा (प्याज)।

    अधिगम से आप क्या समझते हैं PDF?

    इसे सुनेंरोकेंनए ज्ञान को अर्जित करना तथा विभिन्न प्रकार के एकत्रित ज्ञान, व्यवहार , कौशलों ,मूल्यों तथा जानकारियों को संश्लेषित करना अधिगम या सीखना कहलाता है। को एकत्र करता रहता है, ये नवीन अनुभव, व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इसलिए यह अनुभव तथा इनका उपयोग ही सीखना या अधिगम करना कहलाता है।

    प्रत्येक व्यक्ति यह जानना चाहता है कि वह कैसा कार्य कर रहा है इसके लिए उस व्यक्ति को अपने बारे में तथा उसके द्वारा किए गए कार्य के बारे में सूचनाओं की आवश्यकता होगी, यदि वह अपने कार्य निष्पादन के बारे में सत्य ही जानना चाहता है। किसी व्यक्ति को उसके कार्य निष्पादन के विषय में समय-समय पर सूचित करना कि वह कैसा कर रहा है पृष्ठपोषण कहलाता है।

    छात्र के प्रदर्शन के अवलोकन के आधार पर शिक्षकों द्वारा प्रदान की गई प्रतिक्रिया ही पृष्ठपोषण है। पृष्ठपोषण द्विमार्गी प्रक्रिया है जिसमें प्रदाता प्राप्तकर्त्ता के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान उनकी गतिविधियों के अवलोकन के आधार पर किया जाता है।

    बॉल और मार्टिन के अनुसार, “पृष्ठपोषण, प्राप्तकर्ता द्वारा प्राथमिक व्याख्यायित प्रतिक्रिया है।”

    बोवी एवं अन्य के अनुसार, “पृष्ठपोषण, प्राप्तकर्ता द्वारा की गई अनुक्रिया है जो प्रदाता को यह बताती है कि सम्प्रेषण को सामान्य रूप से प्राप्त किया जा रहा है। “

    पृष्ठपोषण की विशेषताएँ (Characteristics of Feedback)– पृष्ठपोषण में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए—

    (1) पृष्ठपोषण आंकलन प्रारूप का भाग होना चाहिए।

    (2) पृष्ठपोषण रचनात्मक होना चाहिए ताकि छात्र अपने अभ्यास (Practice) में सुधार हेतु प्रोत्साहित हो सकें।

    (3) पृष्ठपोषण निश्चित समयान्तराल पर प्रदान करना चाहिए जिससे छात्र उसका प्रयोग अपने आगामी अधिगम एवं कार्य को और अच्छे ढंग से प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित हो सके।

    (4) पृष्ठपोषण तत्कालिक (Prompt) रूप से प्रदान किया जाना चाहिए ताकि उन्हें याद रहे कि उन्हें पृष्ठपोषण किस लिए प्रदान किया गया है।

    (5) पृष्ठपोषण, मानदण्डों एवं मानकों की अपेक्षा प्रदर्शन की स्पष्ट व्याख्या के आधार पर न्यायोचित ढंग से किया जाना चाहिए।

    पृष्ठपोषण के प्रकार (Types of Feedback)—पृष्ठपोषण के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं—

    (1) संरचनात्मक पृष्ठपोषण (Constructive Feedback ) — संरचनात्मक पृष्ठपोषण एक प्रकार का धनात्मक पृष्ठपोषण (Positive Feedback) ही है। संरचनात्मक पृष्ठपोषण विशिष्ट सूचनाओं, विचारविषय केन्द्रित (Issue focused) और अवलोकन पर आधारित होता है। संरचनात्मक पृष्ठपोषण में दो विशेषताएँ पाई जाती हैं— प्रशंसा एवं आलोचना, ये दोनों ही किसी प्रदर्शन प्रयास या परिणाम के बारे में व्यक्तिगत निर्णय होते हैं। प्रशंसा किसी व्यक्ति या वस्तु के पक्ष में निर्णय होता है जबकि आलोचना उस व्यक्ति या वस्तु के पक्ष में प्रतिकूल निर्णय होता है। यह तथ्यात्मक अवलोकन पर आधारित होता है न कि व्यक्तिगत भावनाओं पर, यह विशिष्ट मुद्दों या मामले को सम्बोधित करता है। संरचनात्मक पृष्ठपोषण का उद्देश्य संशोधन या सुधार के माध्यम से एक व्यक्ति में उसके व्यवहार से सम्बन्धित जागरूकता विकसित करना है । संरचनात्मक पृष्ठपोषण में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं—

    (i)संरचनात्मक पृष्ठपोषण विद्यार्थियों को अपने ज्ञान, कौशल एवं व्यवहार में सुधार करने में सहायता करता है।

    (ii) यह छात्रों को अपने नैदानिक अभ्यास को यथार्थवादी तरीके से मूल्यांकन करने में सहायता करता है।

    (iii) यह छात्रों को अपने अधिगम के प्रति और अधिक स्वविनियमित होने में सहायता करता है ।

    ( 2 ) मौखिक पृष्ठपोषण (Oral Feedback) — मौखिक पृष्ठपोषण प्रायः शिक्षण के दौरान दिया जाता है। कभी-कभी इसे ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता क्योंकि यह कम औपचारिक (Less Formal) होता है किन्तु यह बहुत शक्तिशाली और प्रभावी उपकरण हो सकता है। यदि इसे पढ़ाने के समय सफलतापूर्वक और समयोचित तरीके (Timely way) से प्रदान किया जाए। जैसे—उनसे यह पूछना कि आप इस बारे में और क्या जानते हैं ? या यह मानदण्ड से कैसे सम्बन्धित है । तथा उनके अधिगम के बारे में उनके विचारों को प्रोत्साहित करना ।

    मौखिक पृष्ठपोषण छात्रों को अधिगम में आगे बढ़ाने हेतु प्रभावशाली बल के रूप में कार्य करता है। यह प्रत्यक्ष (व्यक्तियों या समूहों को लक्षित) लेकिन अप्रत्यक्ष (दूसरों से सुनी बात और क्या कहा गया है पर प्रतिबिम्बित करना) भी होता है। प्रश्नोत्तर एवं संवाद शिक्षकों के लिए मौखिक पृष्ठपोषण प्रदान करने का प्रमुख साधन के रूप में कार्य करते हैं। इसके माध्यम से शिक्षक यह ज्ञात कर सकता है कि छात्रों को पहले से कितना ज्ञान है उनके ज्ञान एवं समझ के मध्य अन्तराल की पहचान करने में और उन्हें इस योग्य बनाना कि वे अपने वर्तमान ज्ञान एवं अधिगम लक्ष्य के मध्य अन्तराल को समाप्त कर सकें।

    ( 3 ) लिखित पृष्ठपोषण (Written Feedback)– लिखित पृष्ठपोषण को अपने अधिगम में आगे बढ़ने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है। लिखितं पृष्ठपोषण कार्य समाप्त होने के पश्चात् लिखित रूप में दिया जाता है। एक प्रभावी लिखित पृष्ठपोषण, छात्रों को उन्होंने क्या अच्छा किया है ? उनमें क्या सुधार की आवश्यकता है ? और अगले चरण के लिए सुझाव एक अभिलेख के रूप में प्रदान किया जाता है। छात्रों को लिखित पृष्ठपोषण प्रदान करने का एक लाभ यह होता है कि छात्र उससे प्रेरित होकर उस कार्य को बार-बार करने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि मौखिक रूप में दिया गया पृष्ठपोषण छात्र भूल जाते हैं। लिखित पृष्ठपोषण प्रदान करते समय निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए—

    (i) पृष्ठपोषण समयानुकूल प्रदान करना चाहिए ताकि इसका घटना के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जा सके।

    (ii) लिखित पृष्ठपोषण एक सुव्यवस्थित क्रम में लिखा होना चाहिए जिससे छात्रों को सरलता से समझ में आ जाए।

    (iii) पृष्ठपोषण वाद- योग्य होना चाहिए ताकि छात्र अपनी कमियों को दूर कर सकें ।

    ( 4 ) व्यक्तिगत पृष्ठपोषण ( Individual Feedback) व्यक्तिगत पृष्ठपोषण छात्रों को कक्षा के बाहर व्यक्तिगत परिचर्चा (Individual Discussions) या अन्य माध्यमों से प्रदान किया जाता है। इसका उपयोग सहकारी अधिगम में छात्रों की उपलब्धि को अभिप्रेरित करने, समूह के छात्रों के मध्य उपलब्धि की एकरूपता को बनाए रखने एवं उच्च उपलब्धि के प्रभाव को बनाए रखने में किया जा सकता है। व्यक्तिगत पृष्ठपोषण समूह पृष्ठपोषण से अधिक प्रभावशाली होता है। व्यक्तिगत पृष्ठपोषण में निम्नलिखित गुण होते हैं—

    (i) व्यक्तिगत पृष्ठपोषण व्यक्तिगत, अभ्यान्तर एवं आधिकारिक रूप से प्रदान किया जा सकता है।

    (ii) शिक्षक प्रत्येक छात्र को उसकी आवश्यकता, क्षमता एवं कमजोरियों से परिचित करा सकता है।

    (iii) यह लिखने या टाइप करने की अपेक्षा ज्यादा शीघ्र रूप से प्रदान किया जा सकता है।

    (5) सामूहिक पृष्ठपोषण (Group Feedback)—इस प्रकार के पृष्ठपोषण प्राय: समय-सारणिक रूप से ट्यूटोरियल सत्र के समय या जहाँ छात्र परियोजना या प्रायोगिक कार्यों में सामूहिक रूप से कार्य कर रहे हैं ऐसे स्थानों पर प्रदान किया जाता है। सामूहिक पृष्ठपोषण में निम्नलिखित गुण होते हैं—

    (i) यह छात्रों की आलोचनात्मक व्याख्या करते समय व्यक्तिगत पृष्ठपोषण की अपेक्षा कम भयावह होता है।

    (ii) छात्र समूह में अन्य लोगों को प्राप्त पृष्ठपोषण के माध्यम से अनेक बातें सीख सकता है। जैसे कि उन्हें किन समस्याओं का सामना करना पड़ा कार्य की पूर्ण करने में तथा उन्होंने किस सन्दर्भ में अपना कार्य किया है।

    (iii) व्यक्तिगत योग्यताओं को तभी सूचित किया जाता है जब शिक्षक को यह आभास हो कि उस समूह में किसी छात्र की योग्यता को गुप्त रखा जा रहा है। छात्र की व्यक्तिगत योग्यताओं को उजागर करने का उद्देश्य केवल इतना ही होता है कि उस योग्यता का लाभ समूह को मिले तथा वह छात्र विशेष भी समूह में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।

    पृष्ठपोषण का महत्त्व—पृष्ठपोषण का महत्त्व निम्नलिखित है—

    (1) पृष्ठपोषण के माध्यम से छात्रों में आत्म-जागरूकता एवं विश्वास को बढ़ाया जाता है।

    (2) पृष्ठपोषण का प्रयोग आंकलन के प्रदर्शन एवं अधिगम में वृद्धि करने हेतु किया जाता है।

    (3) यह छात्रों को विषय को समझने में सहायता करता है।

    (4) इसके माध्यम से छात्रों को अधिगम में सुधार हेतु उचित मार्गदर्शन प्रदान किया जा सकता है।

    (5) पृष्ठपोषण, छात्रों को रचनात्मक प्रतिबिम्ब के लिए बढ़ावा देता है।

    (6) पृष्ठपोषण शिक्षण अधिगम एवं आंकलन को संरेखित (Aligning) करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करता है।

    पृष्ठ पोषण कितने प्रकार के होते हैं?

    पृष्‍ठ पोषण सामान्‍यत; दो प्रकार का होता है – धनात्‍मक पृष्‍ठ पोषण मे यदि अद् ( निवेश ) मे वृद्धि होती है । तो तद् ( उत्‍पादन ) घ्‍ढता है जबकि ऋणात्‍मक पृष्‍ठ पोषण तद् ( उत्‍पादन ) घटता है तो अद् ( उत्‍पादक ) वृद्धि होती है ।

    पृष्ठ पोषण के जनक कौन हैं?

    =पोषक तत्वों की कमी और अधिकता (toxicity).

    शिक्षक प्रतिपुष्टि से आप क्या समझते हैं?

    इस सन्दर्भ में प्रतिपुष्टि (फीडबैक) का अर्थ है किसी विशिष्ट शिक्षण उद्देश्य के सन्दर्भ में छात्र - छात्राओं को उनके प्रदर्शन की जानकारी देना और इस बारे में उनका मार्गदर्शन करना कि वे किस तरह इसमें सुधार कर सकते हैं या आगे बढ़ सकते हैं

    मौखिक पृष्ठ पोषण क्या है?

    मौखिक पृष्ठपोषण छात्रों को अधिगम में आगे बढ़ाने हेतु प्रभावशाली बल के रूप में कार्य करता है तथा यह पृष्ठपोषण अत्यन्त नियमित एवं अंतःक्रियात्मक रूप में दिया जाता है। यह प्रत्यक्ष (व्यक्तियों या समूहों को लक्षित) लेकिन अप्रत्यक्ष (दूसरों से सुनी बात और क्या कहा गया है पर प्रतिबिम्बित करना) भी होता है।