पृथ्वी बच्चो के बैचेन पेरो के …CBSE, JEE, NEET, NDAQuestion Bank, Mock Tests, Exam Papers NCERT Solutions, Sample Papers, Notes, Videos पृथ्वी बच्चो के बैचेन पेरो के पास कैसे आती है Posted by Yuvraj Singh 1 year, 4 months ago
(क) पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास इस तरह आती है, मानो वह अपना पूरा चक्कर लगाकर आ रही हो। (ख) छतों को नरम बनाने से कवि का आशय यह है कि बच्चे छत पर ऐसी तेजी और बेफ़िक्री से दौड़ते फिर रहे हैं मानो किसी नरम एवं मुलायम स्थान पर दौड़ रहे हों, जहाँ गिर जाने पर भी उन्हें चोट लगने का खतरा नहीं है। (ग) बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की कल्पना यह रही होगी कि बच्चे पतंग उड़ाते हुए उनकी डोर थामें आगे-पीछे यूँ घूम रहे हैं, मानो वे किसी लचीली डाल को पकड़कर झूला झूलते हुए आगे पीछे हो रहे हों। (घ) इन पंक्तियों में कवि ने पतंग उड़ाते बच्चों की तीव्र गतिशीलता का वर्णन पृथ्वी के घूमने के माध्यम से और बच्चों की चंचलता का वर्णन डाल पर झूला झूलने से किया है। Posted by Nikhil Sidhu 1 month, 2 weeks ago
Posted by Manisha Kumari 3 weeks, 1 day ago
Posted by Tania Sidhu 2 weeks ago
Posted by Amit Negi 4 days, 12 hours ago
Posted by Itz_ Tannu 1 week, 1 day ago
Posted by Yashrajsinh Jadeja 2 weeks, 3 days ago
Posted by Nikhil Pal 1 month, 1 week ago
Posted by Jatin Kumar 1 month, 2 weeks ago
Posted by Divyanshi Patel 1 month, 1 week ago
Posted by Divyansh Lodhi 13 hours ago
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Test GeneratorCreate papers at ₹10/- per paper प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें? जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास जब वे दौड़ते हैं बेसुध छतों को भी नरम बनाते हुए दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं डाल की तरह लचीले वेग से अकसर छतों के खतरनाक किनारों तक- उस समय गिरने से बचाता है उन्हें सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज एक धागे के सहारे पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं अपने रंध्रों के सहारे अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास। प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें? जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास जब वे दौड़ते हैं बेसुध छतों को भी नरम बनाते हुए दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं डाल की तरह लचीले वेग से अकसर छतों के खतरनाक किनारों तक- उस समय गिरने से बचाता है उन्हें सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज एक धागे के सहारे पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं अपने रंध्रों के सहारे अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास। |