मानचित्र पर तापमान के क्षैतिज वितरण को समताप रेखा द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है। समताप रेखा वह काल्पनिक रेखा है जो समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती है। Show तापमान असंगतिकिसी स्थान के औसत तापमान और उस अक्षांश के औसत तापमान के अंतर को तापमान असंगति कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान में अधिकतम तथा और दक्षिण गोलार्द्ध में न्यूनतम असंगतियाँ पाई जाती है। जब किसी स्थान का तापमान उस अक्षांश के औसत तापमान से कम होता है तो तापमान असंगति धनात्मक होती है। तापमान का व्युत्क्रमण (Inversion of Temperature)कभी-कभी वायु की निचली परत में तापमान में ऊँचाई के साथ कमी होने के बदले वृद्धि होने लगती है। ऐसा सामान्यत: सर्दियों की रातों में होता है जब आकाश साफ होता है। इस परिस्थिति में पृथ्वी के धरालत और हवा की निचली परतों से उष्मा का विकिरण तेज गति से होने लगता है। इससे निचले परतों की हवा ठंडी हो जाती है। भारी होने के कारण यह ठंडी हवा धरातल के पास ही रहती है। ऊपर की हवा जिसमें उष्मा का विकिरण धीमी गति से होता है अपेक्षाकृत गर्म रहती है। ढालों पर नीचे की ओर ठंडी हवा के फिसलने से भी जमीन अधिक ठंडी हो जाती है। इस परिस्थिति में ऊँचाई में वृद्धि के साथ-साथ तापमान भी बढ़ने लगता है। इस प्रक्रिया को ही तापमान का व्युत्क्रमण या प्रतिलोपन कहते हैं।
हालांकि समान रूप से स्वीकार किया गया है कि पृथ्वी पर सूर्य से प्राप्त उर्जा व उत्सर्जित ऊर्जा में पूर्णता संतुलन पाया जाता है। पृथ्वी सूर्य ऊर्जा का 51 प्रतिशत प्राप्त करता है, और विभिन्न प्रक्रियाओं से 51 प्रतिशत सौर ऊर्जा का उत्सर्जित करता है। पृथ्वी का वायुमंडल लगभग 48 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है एवं 48 प्रतिशत ही उत्सर्जित भी करता है। इसी प्रकार पृथ्वी एवं वायुमंडल को ऊष्मा की प्राप्ति होती रहती है और ताप संतुलन बना रहता है। सूर्य से उत्सर्जित ऊर्जा का 35 प्रतिशत भाग शून्य (वायुमंडल) में वापस लौटा दिया जाता है। शेष 65 प्रतिशत में लगभग 14 प्रतिशत वायुमंडल का जलवाष्प, बादल, धूलकण तथा कुछ स्थायी गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस तरह केवल 51 प्रतिशत ऊर्जा ही पृथ्वी को प्राप्त हो पाती है। इस 51 प्रतिशत ऊर्जा का 34 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होता है तथा शेष 17 प्रतिशत विसरित दिवा प्रकाश से प्राप्त होता है। सूर्य से प्राप्त 51 प्रतिशत ऊष्मा ही पृथ्वी को सही रूप में प्राप्त होती है। पृथ्वी से ऊष्मा की यही मात्रा उत्सर्जित होना आवश्यक होता है। यदि पृथ्वी को प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा से अधिक उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में कमी आने लगेगी। ठीक इसी तरह यदि प्राप्त ऊर्जा की संतुलन में तुलना में कम उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में वृद्धि हो जाएगी। अतः पृथ्वी को प्राप्त एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है और पृथ्वी का ताप संतुलन बना रहता है। यह स्थिति ऊष्मा बजट कहलाती है। सामान्य अध्ययन पेपर 1 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामान्य अध्ययन पेपर 3 सामान्य अध्ययन पेपर 4 रिवीज़न टेस्ट्स निबंध लेखन
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