पृथ्वी की उसमें बजट क्या है? - prthvee kee usamen bajat kya hai?

मानचित्र पर तापमान के क्षैतिज वितरण को समताप रेखा द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है। समताप रेखा वह काल्पनिक रेखा है जो समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती है।

तापमान असंगति

किसी स्थान के औसत तापमान और उस अक्षांश के औसत तापमान के अंतर को तापमान असंगति कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान में अधिकतम तथा और दक्षिण गोलार्द्ध में न्यूनतम असंगतियाँ पाई जाती है। जब किसी स्थान का तापमान उस अक्षांश के औसत तापमान से कम होता है तो तापमान असंगति धनात्मक होती है।

तापमान का व्युत्क्रमण (Inversion of Temperature) 

कभी-कभी वायु की निचली परत में तापमान में ऊँचाई के साथ कमी होने के बदले वृद्धि होने लगती है। ऐसा सामान्यत: सर्दियों की रातों में होता है जब आकाश साफ होता है। इस परिस्थिति में पृथ्वी के धरालत और हवा की निचली परतों से उष्मा का विकिरण तेज गति से होने लगता है। इससे निचले परतों की हवा ठंडी हो जाती है। भारी होने के कारण यह ठंडी हवा धरातल के पास ही रहती है। ऊपर की हवा जिसमें उष्मा का विकिरण धीमी गति से होता है अपेक्षाकृत गर्म रहती है। ढालों पर नीचे की ओर ठंडी हवा के फिसलने से भी जमीन अधिक ठंडी हो जाती है। इस परिस्थिति में ऊँचाई में वृद्धि के साथ-साथ तापमान भी बढ़ने लगता है। इस प्रक्रिया को ही  तापमान का व्युत्क्रमण या प्रतिलोपन कहते हैं।

पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूरज है, और सूरज से लघु तरंग के रूप में सूर्य की किरणें पृथ्वी तल तक लगभग 3 लाख किमी प्रति सेकंड की दर से आती है। सौर्यिक विकिरण का वायुमंडल एवं पृथ्वी द्वारा अवशोषण होता है। जिससे पृथ्वी एवं वायु मंडल में ताप संतुलन बना रहता है। पृथ्वी और वायुमंडल सौर्यिक ऊर्जा का जिस मात्रा में अवशोषण करता है, उसके बराबर मात्रा ही अंतरिक्ष में वापस लौटा देता है। इस तरह पृथ्वी और वायुमंडल को प्राप्त सौर्य ऊर्जा की मात्रा एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है। अर्थात प्राप्त सौर्य ऊर्जा और उत्सर्जित ऊर्जा में संतुलन बना रहता है। इसे उसमें बजट कहते हैं।

वायुमंडल एवं पृथ्वी पर तापीय स्थिति, तापीय संतुलन एवं अनुकूल अधिवासीय वातावरण के लिए ऊष्मा का संतुलित रूप से प्राप्त होना आवश्यक है। इसी संदर्भ में विभिन्न जलवायु वेत्ताओं द्वारा ऊष्मा बजट के मध्य अवशोषित एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा अत्यंत जटिल प्रक्रियाओं से निर्धारित होती है, अतः उष्मा बजट का निर्धारण पूर्णतया अनुमान पर आधारित है। इसी कारण विभिन्न जलवायु वेत्ताओ के ऊष्मा बजट में भिन्नता पाई जाती है।

हालांकि समान रूप से स्वीकार किया गया है कि पृथ्वी पर सूर्य से प्राप्त उर्जा व उत्सर्जित ऊर्जा में पूर्णता संतुलन पाया जाता है। पृथ्वी सूर्य ऊर्जा का 51 प्रतिशत प्राप्त करता है, और विभिन्न प्रक्रियाओं से 51 प्रतिशत सौर ऊर्जा का उत्सर्जित करता है। पृथ्वी का वायुमंडल लगभग 48 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है एवं 48 प्रतिशत ही उत्सर्जित भी करता है। इसी प्रकार पृथ्वी एवं वायुमंडल को ऊष्मा की प्राप्ति होती रहती है और ताप संतुलन बना रहता है।

सूर्य से उत्सर्जित ऊर्जा का 35 प्रतिशत भाग शून्य (वायुमंडल) में वापस लौटा दिया जाता है। शेष 65 प्रतिशत में लगभग 14 प्रतिशत वायुमंडल का जलवाष्प, बादल, धूलकण तथा कुछ स्थायी गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस तरह केवल 51 प्रतिशत ऊर्जा ही पृथ्वी को प्राप्त हो पाती है। इस 51 प्रतिशत ऊर्जा का 34 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होता है तथा शेष 17 प्रतिशत विसरित दिवा प्रकाश से प्राप्त होता है। सूर्य से प्राप्त 51 प्रतिशत ऊष्मा ही पृथ्वी को सही रूप में प्राप्त होती है। पृथ्वी से ऊष्मा की यही मात्रा उत्सर्जित होना आवश्यक होता है। यदि पृथ्वी को प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा से अधिक उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में कमी आने लगेगी। ठीक इसी तरह यदि प्राप्त ऊर्जा की संतुलन में तुलना में कम उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में वृद्धि हो जाएगी। अतः पृथ्वी को प्राप्त एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है और पृथ्वी का ताप संतुलन बना रहता है। यह स्थिति ऊष्मा बजट कहलाती है।

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  • प्रश्न :

    ‘ऊष्मा बजट’ क्या है और यह पृथ्वी के वातावरण में तापमान को किस प्रकार प्रभावित करता है?

    02 Apr, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पृथ्वी का ऊष्मा बजट क्या है, इसे परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत करें।
    • एक उपयुक्त आरेख के साथ ऊष्मा बजट पर चर्चा करें और बताएँ कि यह पृथ्वी के तापमान को कैसे प्रभावित करता है।
    • संक्षिप्त निष्कर्ष दें।

    पृथ्वी एक निश्चित मात्रा में सूर्यातप (लघु तरंगें) प्राप्त करती है और स्थलीय विकिरण (दीर्घ तरंगों) के माध्यम से अंतरिक्ष में पुनः ऊष्मा छोड़ देती है।

    ऊष्मा के इस प्रवाह के माध्यम से पृथ्वी अपने तापमान को संतुलित रखती है। इसी प्रक्रिया को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहा जाता है।

    पृथ्वी का प्रत्येक भाग सूर्य से समान मात्रा में सूर्यातप प्राप्त नहीं करता है। ध्रुवीय क्षेत्रों की तुलना में भूमध्यरेखीय क्षेत्र अधिक सूर्यातप प्राप्त करते हैं। वायुमंडल और महासागरीय सतहें, संवहन, वर्षा, हवाओं और समुद्र के वाष्पीकरण इत्यादि के माध्यम से ऊष्मा बजट को असंतुलित नही होने देते हैं।

    वातावरण एवं महासागरीय परिसंचरण की इस प्रक्रिया से निम्न तरीकों से पृथ्वी पर तापमान का संतुलन बना रहता है:

    • इसके ज़रिये जलवायु में ऊष्मा का न केवल भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर, बल्कि पृथ्वी की सतह और निचले वातावरण से लेकर अंतरिक्ष तक सौर ताप का पुनर्वितरण होता है।
    • जब सौर ऊर्जा की आने वाली किरणें अंतरिक्ष में उत्सर्जित ऊष्मा द्वारा संतुलित होती हैं, तो पृथ्वी पर विकिरण का संतुलन बना रहता है एवं वैश्विक तापमान अपेक्षाकृत स्थिर होता है।
    • भूमध्य रेखा से 40° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशीय क्षेत्रों को प्रचुर मात्रा में सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है, अतः वे ऊर्जा अधिशेष क्षेत्र हैं। 40° उत्तर और दक्षिण अक्षांशों से परे के क्षेत्र सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होने वाली ऊष्मा की तुलना में अधिक ऊष्मा उत्सर्जित करते हैं, अतः वे ऊर्जा की कमी वाले क्षेत्र हैं।
      • वायुमंडल (वायुमंडलीय पवनें) और महासागर (महासागरीय धाराएँ) उष्णकटिबंधीय (ऊर्जा अधिशेष क्षेत्र) से ध्रुवों (ऊर्जा की कमी वाले क्षेत्रों) की ओर अधिक ऊष्मा का स्थानांतरण करते हैं।
    • अधिकांश ऊष्मा का हस्तांतरण मध्य-अक्षांश यानी 30° से 50° [जेट स्ट्रीम और चक्रवात का अध्ययन करते समय] के मध्य होता है, अतः इस क्षेत्र में कई तूफान आते रहते हैं।

    इस प्रकार निम्न अक्षांशों से अधिशेष ऊष्मा का स्थानांतरण उच्च अक्षांशों में ऊष्मा की कमी वाले क्षेत्रों में होते रहने से पृथ्वी की सतह पर ऊष्मा संतुलन बना रहता है।

    निष्कर्ष

    सूर्य उष्मा का अंतिम स्रोत है और पृथ्वी पर विभिन्न क्षेत्रों द्वारा सूर्य से प्राप्त ऊष्मा में अंतर सभी प्रकार के जलवायु विशेषताओं के पीछे अंतिम कारण है। इसलिये विभिन्न मौसमों जैसे- हवा प्रणाली, दबाव प्रणाली, वर्षा आदि को समझने के लिये विभिन्न मौसमों में तापमान के वितरण के पैटर्न को समझना आवश्यक है।

    पृथ्वी का ऊष्मा बजट क्या है?

    पृथ्वी का ऊष्मा बजट | Heat Budget of Earth पृथ्वी द्वारा सीधे प्राप्त किए गए सौर विकिरण में से 51 इकाई, 17 इकाइयां वापस बाह्य अंतरिक्ष में उत्सर्जित होती हैं और शेष 34 इकाइयां (51-17) जावक स्थलीय विकिरण के रूप में वातावरण द्वारा अवशोषित की जाती हैं। यह कुल 48 इकाइयाँ (14+ 34 = 48) निकला।

    उसमें बजट क्या है?

    इस तरह पृथ्वी और वायुमंडल को प्राप्त सौर्य ऊर्जा की मात्रा एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है। अर्थात प्राप्त सौर्य ऊर्जा और उत्सर्जित ऊर्जा में संतुलन बना रहता है। इसे उसमें बजट कहते हैं।

    उसमें संतुलन क्या है?

    दो भौतिक तंत्र ऊष्मीय संतुलन (thermal equilibrium) में कहें जाते हैं जब उन दोनो के बीच ऊष्मा के लिए पारगम्य मार्ग हो (यानि जिसके द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा सहजता से आ-जा सके) लेकिन इसके बावजूद उनके बीच ऊष्मीय ऊर्जा का कोई औसत प्रवाह न हो।

    ऊष्मा बजट क्या है UPSC?

    वायुमंडल कुल 48 इकाइयों का अवशोषण करता है, जिसे विकिरण द्वारा पुन: अंतरिक्ष में वापस लौटा देता है। इस प्रकार पृथ्वी जितनी ऊष्मा सूर्य से प्राप्त करती है उतनी ही मात्रा पुन: वापस लौटा देती है। इसे ही पृथ्वी का ऊष्मा बजट अथवा ऊष्मा संतुलन कहते हैं।