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Document Description: पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या for Teaching 2022 is part of Teaching preparation. The notes and questions for पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या have been prepared according to the Teaching exam syllabus. Information about पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या covers topics like and पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या Example, for Teaching 2022 Exam. Find important definitions, questions, notes, meanings, examples, exercises and tests below for पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या.Introduction of पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या in English is available as part of our Teaching preparation & पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या in Hindi for Teaching courses. Download more important topics, notes, lectures and mock test series for Teaching Exam by signing up for free. Teaching: पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या Notes - Teaching 1 Crore+ students have signed up on EduRev. Have you? पाठ्यक्रम की परिभाषा
पाठ्यक्रम की आवश्यकता एवं उपयोगिता
पाठ्यक्रम के उद्देश्य
पाठ्यक्रम के प्रकार
गुण अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम गुण क्रिया केन्द्रित पाठ्यक्रम: इस पाठ्यक्रम में पुस्तक प्रधान नहीं होती, विषय प्रधान नहीं होता। इसमें बालक की क्रियाएं एवं अनुभव को आधार माना जाता है। बालकों की प्रकृति क्रियाशील होती है। इसलिए उन्हें क्रिया के द्वारा पढ़ाना चाहिए। गुण
विशेषताएँ इस पाठ्यक्रम के अन्तर्गत स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान, सामाजिक विषय, भाषा एवं गणित अनिवार्य विषय हैं। अन्य प्रकार के पाठ्यक्रम
इसके अतिरिक्त एकीकृत पाठ्यक्रमए बुनियादी शिक्षा का पाठ्यक्रमए अन्तरविहीन पाठ्यक्रम आदि अनेक प्रकार के पाठ्यक्रम हो सकते हैं। बच्चों के
स्कूल छोड़ने के कारण:
छात्रों के पोशाक (Uniform)
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जे.डी. अरस्तेह के अनुसार ‘पोशाक धारण करने के बाद सृजनात्मकता का विकास होता है और उनमें आत्मविश्वास, बौद्धिक स्थिरता, जिज्ञासा, साहसिकता, विनोदप्रियता, वैचारिक स्पष्टता, आत्मानुशासन, उच्च अभिलाषाएं, लचीलापन, सौन्दर्यात्मक आदर्श आदि में वृद्धि होती है।’ पोशाक की आवश्यकता: जिस प्रकार विद्यालय में बच्चों के लिए समुचित शिक्षा प्रदान करने में शिक्षण के विभिन्न उपादानों की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार पेाशाक की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह तो निश्चित है कि विद्यालय में विभिन्न परिवेश से बच्चे आते हैं, लेकिन यहां तो एक परिवेश की आवश्यकता पड़ती है। पोशाक तो एकता का प्रतीक है। सभी बच्चों के लिए एक प्रकार की पोशाकें होने से बच्चों में अमीरी-गरीबी की भावना उत्पन्न नहीं होती है। अगर कोई बच्चा गरीब परिवार से यहां आते हैं तो एक पोशाक रहने के कारण उनमें हीन भावना घर नहीं करती है। अतः बच्चों में मानसिक भावना को समाप्त करने के लिए एक तरह की पोशाकें विद्यालय में आवश्यक है।
बेल्ट बांधने, जूता-मोजा आदि नियमित रूप से धारण करने के पीछे भी एक विशेष मकसद होता है। दिल्ली के एक प्रसिद्ध एक्यूप्रेशर (दबाव चिकित्सा) विशेषज्ञ डाॅ. राधा गुप्त के अनुसार कमर पर नियमित रूप से बेल्ट बांधने से एक विशेष नस पर दबाव पड़ता रहता है। जिससे कमर दर्द, रीढ़ की हड्डी का दर्द, आदि अनेक बीमारियों से बच्चा बचा रहता है। जूता एवं मोजा पहनने से पैर एवं उसके जोड़ की कुछ नसों पर दबाव पड़ता रहता है। ये दबाव ऐसे होते हैं जिनके करण मिरगी, हाईब्लडप्रेशर आदि का दौरा नहीं पड़ता है। साथ ही मस्तिष्क की ज्ञान तंतुओं को भी चेतना प्राप्त होती रहती है।
प्रायः प्रत्येक निजी (प्राइवेट) स्कूलों में पोशाक की अनिवार्यता होती है, किन्तु आज भी अनेक ऐसे सरकारी स्कूल हैं जहां पोशाक की अनिवार्यता नहीं समझी जा रही है। पोशाक समानता के अधिकार को प्रदान करता है, साथ ही एक सौम्य वातावरण का निर्माण भी करता है। अतः वर्तमान समय में पोशाक की अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता है। पोशाक की आवश्यकता, उद्देश्य महत्व व कारण
बच्चों को खेलकूद की आवश्यकता: The document पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या Notes - Teaching is a part of Teaching category. All you need of Teaching at this link: Teaching Description Full syllabus notes, lecture & questions for पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या Notes - Teaching - Teaching | Plus excerises question with solution to help you revise complete syllabus | Best notes, free PDF download Information about पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या In this doc you can find the meaning of पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या defined & explained in the simplest way possible. Besides explaining types of पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या theory, EduRev gives you an ample number of questions to practice पाठ्यक्रम: परिभाषा, आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व (भाग - 1) - बाल विकास एवं अध्ययन विद्या tests, examples and also practice Teaching tests. पाठ्यक्रम क्या है इसके निर्माण के सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए?पाठ्यक्रम का आधार पाठ्यक्रम निर्माण एवं विकास की प्रक्रिया अनेकों तथ्यों व सिद्धान्तों पर निर्भर करती है। शिक्षा के मुख्य आधार ये हैं- दार्शनिक आधार, मनोवैज्ञानिक आधार, ऐतिहासिक आधार, सामाजिक आधार, सांस्कृतिक आधार, वैज्ञानिक आधार, आदि।
पाठ्यक्रम के सिद्धांत कौन कौन से हैं?पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत. पाठ्यक्रम शैक्षिक उद्देश्यों के अनुकूल हो: पाठ्यक्रम ऐसा हो जो शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक हो। ... . मानसिक स्तरानुकूल: आज सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया बाल-केन्द्रित है। ... . क्रियाशीलता: पाठ्यक्रम का आयोजन इस प्रकार से किया जाए जिसमें छात्र को स्वयं कार्य करने के अवसर प्राप्त हों।. पाठ्यक्रम निर्माण से आप क्या समझते हैं?पाठ्यक्रम निर्माण का अर्थ (Meaning of Curriculum Development) जब शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों एवं विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार की क्रमबद्ध विधि द्वारा योजना बनाई जाती है करना है तो उसे पाठ्यक्रम निर्माण कहते हैं।
पाठ्यक्रम क्या है पर्यावरण पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांतों का वर्णन कीजिए?यह एक ऐसा साधन है जो छात्र तथा अध्यापक को जोड़ता है । अध्यापक पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सांस्कृतिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक विकास के लिए प्रयास करता है । पाठ्यचर्या द्वारा छात्र को जीवन जीने की शिक्षा प्राप्त होती है ।
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