भारतीय उपमहाद्वीप में मानसूनी जलवायु Show जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक | factors affecting climate in hindi जलवायु का अर्थ विशाल क्षेत्र में लंबे समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की दशाओं (वायुमंडलीय दशाओं) तथा विविधताओं का कुल योग से है। अर्थात किसी भी विशाल क्षेत्र में मौसमी दशाओं (तापमान, वर्षा, आर्द्रता, पवनों की दिशा आदि) का लंबे समय तक एक समय में एक जैसे रहते हैं। उसे जलवायु कहा जाता है। जैसे- भारत के संदर्भ में देखे तो प्रत्येक दिसंबर-जनवरी में ठण्ड पड़ती है, अपैल-मई गर्म महीना होता है और जून से अगस्त में वर्षा होती है। ये स्थिति लगातार कई वर्षो से चला आ रहा है। इसे ही जलवायु कहते हैं। भारत में मानसूनी जलवायु पायी जाती है। भूमध्य रेखा पर विषुवतीय जलवायु पायी जाती है। इसी तरह विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न जलवायु स्थिति पायी जाती है। जलवायु में भिन्नता के लिए कई कारक जिम्मेवार होते हैं। जो निम्न हैं- जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (factors affecting climate) 1. अक्षांश 1. अक्षांश:- पृथ्वी के गोल आकार के कारण इसे प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा में अक्षांशों के अनुसार भिन्नता पाई जाती है। जैसे-जैसे विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं, तापमान घटता जाता है। यही कारण है कि ध्रुवों पर लगभग सालों भर वर्फ जमा रहता है। जबकि विषुवत वृत के आस-पास हमेशा गर्मी रहती है। ताप कटिबंध2. ऊंचाई (तुंगता):- पृथ्वी की सतह से जैसे-जैसे ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं तापमान घटता जाता है। अमूमन 165 मीटर की ऊंचाई पर 1 डिग्री तापमान में कमी हो जाता है। इस तरह जो स्थान जितना अधिक ऊंचाई पर होगा वहां तापमान नीचे वाले स्थान की अपेक्षा कम होगा। यही कारण है कि हिमालय जैसे ऊंचे पर्वतीय चोटियां हमेशा बर्फ से ढकी रहती है एवं ठंड के समय घाटियों में हिमपात होता है। 3. वायुदाब:–किसी भी क्षेत्र में वायुदाब का संबंध तापमान से होता है। तापमान अधिक होने पर निम्न वायुदाब तथा तापमान में कमी होने पर उच्च वायुदाब की स्थिति बनती है। हवाएं उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती है। यही कारण है कि वर्षा ऋतु में उत्तर भारत में अधिक तापमान के कारण निम्न विकसित होता है। जिससे उच्च वायुदाब क्षेत्र हिंद महासागर से निम्न वायुदाब क्षेत्र भारत की ओर हवायें (मानसूनी पवनें) आती हैं और अपने साथ जलवाष्प लाती है। जिससे भारत में वर्षा होती है। इसी कारण भारतीय जलवायु को मानसूनी जलवायु भी कहते हैं। 4. पवन तंत्र:- पवन तंत्र भी जलवायु को प्रभावित करती है। जिसे कुछ उदाहरणों से समझते हैं। ठंड के समय में उत्तर भारत में व्यापारिक पवनों के कारण मौसम शुष्क बना रहता है। लेकिन भूमध्य सागर से आने वाली पवनों (पश्चिमी विक्षोभ) के कारण उत्तर भारत में ठण्ड के समय में वर्षा होती है। उसी तरह ध्रुवों से आने वाली हवाएं के कारण विश्व के कई भागों में ठंड बढ़ जाती है। इसी तरह अफ्रीका में हरमट्टन के कारण सहारा रेगिस्तान के एक हिस्से में गर्मी की उमस से राहत मिलती है। विश्व की स्थायी पवनें5. समुद्र से दूरी:- समुद्र तरल होने के कारण देर से गर्म एवं देर से ठंडा होने की प्रवृत्ति रखता है। इस कारण स्थल भाग समुद्र से जितना करीब रहता है दैनिक और वार्षिक तापमान में अंतर उतना ही कम होता है। जबकि जो क्षेत्र समुद्र से जितना दूर होता है दैनिक और वार्षिक तापमान में उतना ही अंतर अधिक रहता है। यही कारण है कि चेन्नई, कोचीन, मुंबई जैसे शहरों पर ठंड का प्रभाव नहीं पड़ता है। 6. महासागरीय धाराएं:- महासागरीय जलधाराएं जलवायु को प्रभावित करती है। गर्म जलधारा के पास स्थित स्थल गर्म एवं वर्षा प्राप्त करता है। जबकि ठंडी जलधारा के पास स्थित स्थल ठंड एवं कम वर्षा वाला क्षेत्र होता है। यही करण है कि आर्कटिक वृत पर स्थित होने के वाबजूद नार्वे तक गर्म जलधारा के कारण हमेशा खुला रहता है। इसी तरह ठण्डी जलधारा के पास विश्व के अधिकतर मरुस्थल विद्यमान। अटलांटिक महासागर की जलधार7. उच्चावच लक्षण:- धरातल पर उच्चावच लक्षण जैसे पर्वत, पठार, पहाड़ी भी जलवायु को प्रभावित करते हैं। पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलान पर स्थित कोंकण, कन्नड और मालाबार तट पर भारी वर्षा होती है। वहीं पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलान पर कम वर्षा होती है। वृष्टि छाया क्षेत्र बनता है। उसी तरह हिमालय के कारण शीत ऋतु में ध्रुव से आने वाली ठंडी पवन से भारत में बचाव होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि उपर्युक्त कारकों से जलवायु प्रभावित होता है। 👉 वेबसाइट को सब्सक्राइब करने के लिए घंटी को दबाएं. जिससे पोस्ट के साथ ही आपके मोबाइल पर notification पहुंच जाएगी. ———— इसे भी जानें 👉
ज्वालामुखी क्या है, प्रकार एवं वितरण इसे भी देखें 👉 हमारा ब्रह्मांड कितना बड़ा है देखें विडियो ____________________________________________ प्रस्तुतीकरण पवनो की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक क्या है व्याख्या कीजिए?कोरिऑलिस बल दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है। दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। जितनी दाब प्रवणता अधिक होगी, पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी। इन दो बलों के एक दूसरे से समकोण पर होने के कारण निम्न दाब क्षेत्रों में पवनें इसी के इर्द-गिर्द बहती हैं।
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख बल कौन से हैं?उत्तर- पवनों का वेग व उनकी दिशा, पवनों को उत्पन्न करने वाले बलों का परिणाम हैं। पृथ्वी की सतह से 2-3 कि०मी० की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमंडल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं। और दाब प्रवणता तथा कोरिऑलिस बल से नियंत्रित होती हैं।
दाब के आधार पर पवन की दिशा क्या होती है?ध्रुवीय कोष्ठ के अन्तर्गत ध्रुवीय उच्चदाब से उपध्रुवीय निम्न दाब की ओर धरातलीय पवनें चलती हैं। उत्तरी गोलार्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिमी की ओर तथा दक्षिण गोलार्ध में दक्षिणपूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती हैं।
धरातलीय पवनें कहाँ प्रवाहित होती है?देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं । उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवन पश्चिम तथा उत्तर- पश्चिम से गंगा घाटी में बहती हैं। सामान्यतः इस मौसम में आसमान साफ, तापमान तथा आर्द्रता कम एवं पवनें शिथिल तथा परिवर्तित होती हैं।
|