संस्मरण का शाब्दिक अर्थ होता है सम्यक् स्मरण, जिसके मूल में गम्भीर चिन्तन का भाव निहित होता है। मानव-जीवन की कटु, तिक्त एवं मधुर स्मृतियाँ अनुभूति और संवेदना का संसर्ग प्राप्त करके जब हृदय से निकलती हैं तब वे संस्मरण का रूप धारण कर लेती हैं। Show अगर आप भी उन्हीं लोगों में से हैं जो कि रिपोतार्ज के बारे में जानना चाहते हैं कि रिपोतार्ज क्या है? रिपोतार्ज का क्या अर्थ होता है? तो यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। दोस्तों रिपोतार्ज शब्द से हम बचपन से ही वाकिफ होते हुए आ रहे हैं लेकिन अगर देखा जाए तो रिपोतार्ज किसे कहते हैं। यह बहुत कम लोगों को पता होगा तो आज मैंने सोचा कि मैं आपको इसी विषय पर जानकारी देती हूं। दोस्तों मैं nityastudypoint.com में आपका हार्दिक स्वागत करती हूं तो आइए अब हम रिपोतार्ज के बारे में जानते हैं। रिपोतार्ज की परिभाषा रिपोर्ट के कलात्मक तथा साहित्यिक रूप को रिपोतार्ज कहते हैं। वास्तव में रेखाचित्र की शैली में प्रभावोत्पादक ढंग से लिखे जाने में ही रिपोतार्ज की सार्थकता है। आंखों देखी और कानों सुनी घटनाओं पर भी रिपोतार्ज लिखा जा सकता है। कल्पना के आधार पर रिपोतार्ज नहीं लिखा जा सकता है। रिपोतार्ज का अर्थ [Nitya Study Point] जिस गद्द साहित्य में किसी घटना या घटनास्थल का आंखों देखा हाल जब साहित्यिक और कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे रिपोतार्ज कहते हैं। रिपोतार्ज के जनक हिंदी में रिपोर्ताज का जनक शिवदान सिंह चौहान को माना जाता है। 'लक्ष्मीपुरा' जो कि रुपाभ पत्रिका के दिसंबर 1938 में प्रकाशित हुआ था, हिंदी प्रथम रिपोतार्ज माना जाता है। रिपोर्ताज लेखक का जन्म कब से माना जाता है? [Nitya Study Point] इसका विकास सन 1936 ईस्वी के बाद दितीय विश्व युद्ध के समय पाश्चात्य प्रभाव से हुआ। जीवन की सूचनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए रिपोतार्ज का रिपोर्ताज लेखक की वैयक्तिकता के साथ-साथ इसमें भावना एवं संवेदना का आवेश भी समन्वित होता है। लेखक घटना विशेष को लेखक अपनी मानसिकता से प्रदीप्त करके पुन: मूर्त रूप में इसका प्रस्तुतीकरण रिपोर्ताज का स्वाभाविक धर्म है। रिपोर्ट की साहित्यिकता उसे रिपोर्ताज का स्वरूप प्रदान करती है। रिपोर्ताज को अन्य अनेक नाम दिए गए हैं जिनमें रूपनिका, सूचनिका तथा वृत निदेशन आदि प्रमुख हैं किंतु प्रचलित एवं सर्वमान्य शब्द रिपोर्ताज है। डॉ. हरदयाल का मानना है कि द्वितीय विश्व महायुद्ध के समय रिपोर्ताज का प्रचार प्रसार हुआ। डॉ. हरदयाल का कहना है-
"रिपोर्ताज का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुआ जब साहित्यकारों ने युद्ध भूमि में राष्ट्रीयता और मानवीयता की भावना से लिया हुआ तथ्य, युद्ध भूमि के दश्यों और घटनाओं की रिपोर्ट समाचार पत्रों में दी। इन रिपोर्टों में व्यावसायिक संवाददाताओं की रिपोर्ट में स्वाभाविक भिन्नता आ गई थी यह भिन्नता इनकी साहित्यिकता कलात्मकता और उत्साह में थी जो युद्ध में विद्यमान था। इस प्रकार अनायास ही रिपोर्ताज का जन्म हो गया।"
महादेवी वर्मा का कहना है -
"रिपोर्ट या विवरण से संबंध रिपोर्ताज समाचार युग की देन है और उसका जन्म सैनिक की खाईयों में हुआ है।" रिपोर्ताज का विकास रूस में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के समय इलिया एहरेन वर्ग को रिपोर्ताज लेखक के रूप में विशेष प्रसिद्धि मिली।
रिपोर्ताज शब्द का अर्थ
रिपोर्ताज की व्याख्या
रिपोर्ताज की परिभाषाडॉ. भगीरथ मिश्र ने रिपोर्ताज को परिभाषित करते हुए लिखा है-
कोई भी निबंध, कहानी, रेखाचित्र या संस्मरण पत्रकारिता से संपक्त होकर रिपोर्ताज का स्वरूप ग्रहण कर लेता है। साहित्यिकता इसका अनिवार्य तत्व है। रेखांकित एवं रिपोर्ट का समन्वित रूप रिपोर्ताज को जन्म देता है क्योंकि रेखाचित्र साहित्यिक विधा है।
रिपोर्ताज का विवेचन करते हुए शिवदान सिंह चौहान ने लिखा है -"आधुनिक जीवन की द्रुतगामी वास्तविकता में हस्तक्षेप करने के लिए मनुष्य को नई साहित्यिक रूप विधा को जनम देना पड़ा। |