1 जुलाई 2015 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को 12वीं नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति के 15वें सत्र में अपनाया गया। और हर साल 15 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा दिवस के रूप में नामित किया गया था । Show
राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा दिवस का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति जन जागरूकता बढ़ाना, राष्ट्रीय सुरक्षा की सुरक्षा का सकारात्मक माहौल बनाना, राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों को दूर करने की क्षमता बढ़ाना, संविधान की समझ को मजबूत करना, बुनियादी कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र अल पहचान की भावना को बढ़ावा देना है । हम आशा करते हैं कि 15 अप्रैल के इस विशेष दिन पर जनता को देश, हांगकांग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र और हांगकांग के प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व की बेहतर समझ होगी, ताकि वे अपने नागरिक कर्तव्य का निर्वहन करेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए मिलकर काम करेंगे । मौलिक कर्तव्यों की प्रासंगिकता
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा और वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं। संदर्भकैटलिन के शब्दों में “नागरिकता किसी व्यक्ति की वह वैधानिक स्थिति है जिसके कारण वह राजनीतिक रूप से संगठित समाज की सदस्यता प्राप्त कर विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकार प्राप्त करता है।” जब व्यक्ति को नागरिकता प्राप्त हो जाती है तो उसके बेहतर निर्वहन के लिये मौलिक अधिकारों की आवश्यकता होती है वहीं राज्य की व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिये राज्य नागरिकों से मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन की भी अपेक्षा करता है। गौरतलब है कि बीते दिनों संविधान दिवस के अवसर पर संसद के संयुक्त सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सेवा और कर्तव्यों के मध्य अंतर को स्पष्ट करते हुए संवैधानिक कर्तव्यों के महत्त्व पर ज़ोर दिया। कर्तव्य की अवधारणा
भारतीय संविधान और कर्तव्य
42वाँ संविधान संशोधन
संविधान में उपबंधित मौलिक कर्तव्य
मौलिक कर्तव्यों की विशेषताएँ
मौलिक कर्तव्यों की गैर-प्रवर्तनीयता
मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व
मौलिक कर्तव्यों की आलोचना
इस संबंध में प्रमुख समितियाँस्वर्ण सिंह समिति
वर्मा समिति
मौलिक कर्तव्यों की प्रासंगिकता
निष्कर्षगैर-प्रवर्तनीय होने के बावजूद भी मौलिक कर्तव्य की अवधारणा भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्रों के लिये महत्त्वपूर्ण है। एक लोकतंत्र को तब तक जीवंत नहीं कहा जाएगा जब तक उसके नागरिक, शासन में सक्रिय भाग लेने और देश के सर्वोत्तम हित के लिये जिम्मेदारियां संभालने हेतु तैयार न हों। अतः संविधान से मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा को समाप्त करना बिल्कुल भी भारतीय हित में नहीं है, आवश्यक है कि इसके विभिन्न पहलुओं में सुधार पर चर्चा की जाए और आवश्यक विकल्पों की खोज की जाए। प्रश्न: “मौलिक कर्तव्य संविधान में गैर-प्रवर्तनीय होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।” इस कथन की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये। नागरिकों के कितने कर्तव्य है?संविधान में मौलिक कर्तव्य को अनुच्छेद 51 के भाग 4 में जोड़ा गया है. मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 थी. 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 धारा 11वां मौलिक कर्तव्य जोड़ दिया गया. वर्तमान में भारतीय संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं.
नागरिकों के मूल कर्तव्य क्या है?भारत के संविधान में मौलिक कर्तव्य के अंतर्गत भारतीय संविधान का पालन करना, राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना, राष्ट्रगान के प्रति आदर सम्मान का भाव एवं सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा एवं देखभाल करने जैसे कर्तव्य शामिल है।
कर्तव्य कितने प्रकार के होते हैं?कर्त्तव्य दो प्रकार के होते हैं- नैतिक तथा कानूनी। नैतिक कर्त्तव्य वे हैं जिनका संबंध मानवता की नैतिक भावना, अंत:करण की प्रेरणा या उचित कार्य की प्रवृत्ति से होता है। इस श्रेणी के कर्तव्यों का सरंक्षण राज्य द्वारा नहीं होता।
नागरिक कर्तव्य का क्या महत्व है वर्णन कीजिए?1) “संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें”। 2) “स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें”। 3) “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें”।
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