स्कूल में बच्चों को मारने पर कानून - skool mein bachchon ko maarane par kaanoon

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अब बच्चों को सजा नहीं दे सकेंगे शिक्षक

अब स्कूलों में शिक्षक बच्चों के साथ मारपीट व दंडित नहीं कर सकेंगे। स्केल से पीटने अथवा अन्य प्रकार से प्रताड़ित करने पर शिक्षक के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। आरोप साबित होने पर शिक्षक को तीन माह तक की सजा हो सकती है। संस्था पर एक लाख रुपए जुर्माना हो सकता है।

देश में स्कूलों में मिलने वाली प्रताड़ना से तंग आकर बच्चों के आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम-2015 लागू किया है। इसमें धारा 82 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। बच्चों या अभिभावक द्वारा शिकायत करने पर पुलिस को संबंधित शिक्षक के खिलाफ उक्त धाराओं में प्रकरण दर्ज करना होगा। एडवोकेट ओमप्रकाश शर्मा ने बताया अधिनयम से स्कूल में बच्चों की प्रताड़ना के मामलों में कमी आएगी।

शिक्षकों को ट्रेनिंग देंगे- उत्कृष्ट विद्यालय में अप्रैल में बाल संरक्षण अधिनियम 2015 व किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत कार्यशाला होगी। इसमें तीनों ब्लाॅक के 300 शिक्षकों को अधिनियम की जानकारी दी जाएगी। डीईओ केसी शर्मा ने बताया इससे शिक्षक व स्कूल संचालक बच्चों को दंडित करने से पहले विचार करेंगे।

धारा 82 में है सजा का प्रावधान
धारा 82(1) : शारीरिक दंड देना का दोष सिद्ध होने पर शिक्षक पर 10 हजार रुपए जुर्माना। दूसरी बार दोष सिद्ध होने पर तीन माह जेल।

धारा 82(2) : संबंधित शिक्षक को बर्खास्त करना अनिवार्य।

धारा 82(3) : जांच में सहयोग नहीं वाले को तीन माह सजा। संस्था पर एक लाख का जुर्माना।

बच्चों की पिटाई के मामलों में कमी लाने के लिए केंद्र सरकार ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 को लागू किया है.

Updated: 22 Oct 2021, 12:49 PM IST

स्कूल में बच्चों को मारने पर कानून - skool mein bachchon ko maarane par kaanoon

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अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए बच्चों की पिटाई कर देना या उन्हें सजा देने इस पर कई लोग अपने-अपने तर्क देते हैं. राजस्थान के चूरू (Rajasthan Churu) जिले में एक होम वर्क ना करने पर एक टीचर ने बच्चे की इतनी पिटाई कर दी कि उसकी मौत हो गई. ऐसे कई मामले स्कूल या शिक्षकों के खिलाफ दर्ज होते रहते हैं. लेकिन बच्चों को सजा देने को लेकर भारत में क्या कानून है, क्या-क्या प्रावधान है ताकि स्कूल के बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके.

राजस्थान में हुई घटना पर बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने कहा कि 'शिक्षक द्वारा छात्र को होमवर्क नहीं करने पर इस तरह की सजा देना बहुत ही दर्दनाक और निंदनीय मामला है. स्कूलों में कॉर्पोरल पनिशमेंट के तहत बच्चे में अनुशासन स्थापित करना गलत है.'

कॉर्पोरल पनिशमेंट से मतलब शारीरिक और मानसिक सजा देना होता है. जिसमें चांटा मारने से लेकर कान खींचना शामिल हैं. इस तरह की सजाओं पर कई एक्सपर्ट का मानना है कि इससे बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है. उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नेगेटिव असर पड़ सकता है. इसके परिणाम स्वरूप वह किसी भी तरह के कदम भी उठा सकते हैं.

बच्चों की पिटाई के मामलों में कमी लाने के लिए केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम 2015 यानि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लागू किया है. लेकिन इसके अलावा भी देश में कई कानून और गाइडलाइनंस हैं जो बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है.

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 में क्या कहा गया है?

शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 17 के तहत किसी भी तरह के शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना और भेदभाव पूरी तरह से प्रतिबंधित है.

इसके अलावा जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 82 के तहत भी जेल और जुर्माने का प्रावधान है.

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 75 में कहा गया है कि बच्चे की देखभाल और उनकी सुरक्षा स्कूल की जिम्मेदारी होगी.

स्कूल प्रबंधन ऐसे कदम उठाए ताकि हर बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित हो. नियमों का उल्लंघन होने पर जेल और जुर्माने का प्रावधान हो. अगर कोई दोषी सिद्ध होता है तो 5 साल तक की सजा और 5 लाख रुपये का जुर्माना लग सकता है. अगर यह पाया जाता है कि किसी वजह से बच्चा मानसिक बीमारी का शिकार हो गया है तो फिर 3 से 10 साल तक की सजा और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.

CBSE और NCPCR की गाइडलाइंस क्या कहती है?

कई बार ऐसे मामले भी हो जाते हैं कि बच्चों के मां-बाप की शिकायत को स्कूल प्रबंधन या तो नजरअंदाज कर देते हैं या खारिज करते हैं. ऐसे में नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स यानि एनसीपीसीआर में जाकर भी शिकायत की जा सकती है.

एनसीपीसीआर बच्चों की सुरक्षा के लिए कई गाइडलाइंस जारी कर चुका है. जैसे स्कूल में जिन लोगों को नौकरी पर रखा जाता है, उनका पुलिस वेरिफिकेशन अनिवार्य रूप से हो. स्टाफ से एफिडेविट लेना. वह पहले से जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी नहीं होना चाहिए.

CBSE की गाइडलाइंस के तहत अगर स्कूल किसी भी नियम का उल्लंघन करता है, तो उसकी मान्यता भी रद्द की जा सकती है. सीबीएसई ऐसी घटनाओं को लेकर कई बार स्कूलों को धारा 82 से अवगत करवाते आया है.

धारा 82 (1) के तहत फिजिकल पनिशमेंट देने पर शिक्षक को 10 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है. अपराध दोहराने पर तीन महीने की जेल का भी प्रावधान है. धारा 82 (2) के तहत शिक्षक को सस्पेंड कर दिया जाता है. वहीं धारा 82 (3) के तहत अगर जांच में सहयोग नहीं किया तो तीन माहीने की सजा का प्रावधान है. स्कूल पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा.

इसके अलावा भारत में जुवेनाइल जस्टिस नियम की धारा 23 के मुताबिक बच्चों के साथ किसी भी तरह की क्रूरता नहीं की जा सकती है. शिक्षा का अधिकार (RTE) की धारा 17 के तहत बच्चों को सजा देने पर पूरी तरह प्रतिबंध है. बच्चों के साथ गलत व्यवहार करने पर 2012 में एक विधेयक पारित किया गया है, जिसके मुताबिक बच्चों को फिजिकल पनिशमेंट देने पर शिक्षक को तीन साल की जेल हो सकती है.

IPC की धारा का भी हो सकता है इस्तेमाल

बच्चों की पिटाई के मामले में मां-बाप पुलिस में भी शिकायत करवा सकते हैं. यहां तक आईपीसी की धारा 323 (मारपीट), 324 (जख्मी करना), 325 (गंभीर जख्म पहुंचाना) के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है.

धारा-325 तहत आरोप सिद्ध होने पर 7 साल तक की जेल का प्रावधान है. अगर बच्चे पर जानलेवा हमला किया गया हो तो फिर धारा-307 लगाया जा सकता है इसमें अधिकतम 10 साल या फिर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

स्कूली बच्चों की पिटाई को लेकर विदेशों में क्या हाल है?

1970 में इटली, जापान और मॉरीशस ने स्कूलों में फिजिकल पनिशमेंट पर प्रतिबंध लगा दिया था. 2016 तक अब 100 से अधिक देशों ने इस इस पर प्रतिबंध लगा दिया है.

यूरोप के कई देशों में स्कूली बच्चों की पिटाई की अनुमति नहीं है.

अमेरिका में कई राज्य ऐसे हैं जहां बच्चों को सजा देने पर दंड का प्रावधान नहीं है. न्यूज पोर्टल स्क्रोल के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी स्कूलों में शारीरिक दंड की प्रथा को असंवैधानिक करार नहीं दिया है. 1977 में एक निर्णय में अमेरिकी स्कूलों में शारीरिक दंड की ऐतिहासिक परंपरा और सामान्य कानून सिद्धांत दोनों का उल्लेख किया गया था कि जब तक यह "उचित लेकिन अत्यधिक नहीं" है, तब तक शारीरिक दंड की अनुमति होगी.

भारत में बच्चों की पिटाई को लेकर कई कानून है लेकिन कानून में कमियों को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं.

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Published: 22 Oct 2021, 12:41 PM IST