सामाजिक समस्याओं के प्रमुख तत्व क्या है? - saamaajik samasyaon ke pramukh tatv kya hai?

नवीन विषय के रूप में समाजशास्त्र के उद्भव, विकास एवं परिवर्तन की पृष्ठभूमि में सामाजिक समस्या (सामाजिक मुद्दा या सामाजिक समस्या) की अवधारणा ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। समाजशास्त्र का विकास समस्यामूलक परिवेश एवं परिस्थितियों का अध्ययन करने एवं इनका निराकरण करने के प्रयासों के रूप में हुआ है। सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में सामाजिक विचारकों का ध्यान सहज रूप से इसलिए आकर्षित हुआ है क्योंकि ये सामाजिक जीवन का अविभाज्य अंग है। मानव समाज न तो कभी सामाजिक समस्याओं से पूर्ण मुक्त रहा है और न ही रहने की सम्भावना निकट भविष्य में नजर आती है, परन्तु इतना तो निश्चित है कि आधुनिक समय में विद्यमान संचार की क्रान्ति तथा शिक्षा के प्रति लोगों की जागरूकता के फलस्वरूप मनुष्य इन समस्याओं के प्रति संवेदनशील एवं सजग हो गया है। सामाजिक समस्याओं के प्रति लेगों का ध्यान आकर्षित करने में जन संचार के माध्यम, यथा-टेलीविजन, अखबार एवं रेडियो ने अति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। मुख्यतः टेलीविजन पर प्रसारित विभिन्न चेनलों के कार्यक्रमों तथा स्थानीय, प्रादेशिक एवं अन्तर्राज्यीय अखबारों की भूमिका प्रशंसनीय है।

मानव समाज में संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक भिन्नताएं पाई जाती है। परन्तु भिन्न भिन्न समाजों में इनका स्वरूप, प्रकृति एवं गहनता अलग-अलग होती है। सामाजिक समस्याओं का सम्बन्ध समाजशास्त्र विषय के अन्तर्गत विद्यमान गत्यात्मक एवं परिवर्तन विषय से सम्बद्ध रहा है।

जो समाज जितना अधिक गत्यात्मक एवं परिवर्तनशील होगा उसमें उतनी ही अधिक समस्याएं विद्यमान होंगी। समाज का ताना-बाना इतना जटिल है कि इसकी एक इकाई में हेने वाला परिवर्तन अन्य इकाईयों को भी प्रभावित करता है। इस परिवर्तन का स्वरूप क्या होगा? एवं इसके प्रभाव क्या होंगे?, यह समाज की प्रकष्ति पर निर्भर करता है। विभिन्न युगों में सामाजिक परिवर्तन की गति अलग-अलग रही है। इसलिए भिन्न-भिन्न समाजों में सामाजिक समस्याओं की प्रकृति एवं स्वरूप भी अलग-अलग पाये जाते हैं। वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन अति तीव्र गति से हो रहा है। इस तरह बदलते आधुनिक समाज के स्वरूप ने सामाजिक समस्याओं में बेतहाशा वृद्धि की है। मानव समाज इन सामाजिक समस्याओं का उन्मूलन करने के लिए सदैव प्रयासरत रहा है, क्योंकि सामाजिक समस्याएं सामाजिक व्यवस्था में विघटन पैदा करती हैं जिससे समाज के अस्तित्व को खतरा पैदा हो जाता है।

समाजशास्त्र मानव समाज को निर्मित करने वाली इकाईयों एवं इसे बनाए रखने वाली संरचनाओ तथा संस्थाओं का अध्ययन अनेक रूपों से करता है। समाजशास्त्रियों एवं सामाजिक विचारकों ने अपनी रूचि के अनुसार समाज के स्वरूपों, संरचनाओ, संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं का अध्ययन किया है। समस्या विहीन समाज की कल्पना करना असम्भव सा प्रतीत होता है।

वर्तमान समय में भारतीय समाज अनेक सामाजिक समस्याओं से पीड़ित है जिनके निराकरण के लिए राज्य एवं समाज द्वारा मिलकर प्रयास किये जा रहे हैं। भारतीय समाज की प्रमुख समस्याओं में जनसंख्या मे़ बढ़ौत्तरी, निर्धनता, बेरोजगारी, असमानता, अशिक्षा, गरीबी, आतंकवाद, घुसपैठ, बाल श्रमिक, श्रमिक असंतोष, छात्र असंतोष, भ्रष्टाचार, नषाखोरी, जानलेवा बीमारियां, दहेज प्रथा, बाल विवाह, भ्रूण बालिका हत्या, विवाह-विच्छेद की समस्या, बाल अपराध, मद्यपान, जातिवाद, अस्पृश्यता की समस्या ये सभी समाजिक समस्याअें के अन्तर्गत आती है। सामाजिक समस्याओं के निराकरण के लिए यह अत्यावश्यक है कि इनकी प्रकृति को समझा जाए एवं स्वरूपों की व्याख्या की जाए। भिन्न-भिन्न सामाजिक समस्याओं के मध्य पाए जाने वाले परस्पर सम्बन्धों का विष्लेशण एवं अनुशीलन कर हम इन समस्याओं के व्यावहारिक निराकरण के लिए एक नई सोच प्रस्तुत कर सकते हैं।

[Monu Banshiwal]

सामाजिक समस्या उन परिस्थितियों अथवा दशाओं का नाम है जिन्हें समाज हानिकारक मानता है तथा जिनमें

सुधार की समाज को आवश्यकता होती है। सामाजिक समस्या का तात्पर्य उन परिस्थितियों अथवा दशाओं से है जिन्हें एक समुदाय के अधिकांश व्यक्तियों के द्वारा अपने सुस्थापित नियमों, सामाजिक मूल्यों तथा समूह-कल्याण के विरूद्ध माना जाता है। जब समाज में समस्याऐं वैयक्तिक अभियोजन में गम्भीर बाधा उत्पन्न करके समाज के सन्तुलन को बिगाड़ देती हैं तभी उसको हम सामाजिक विघटन कहते हैं।

कुछ समस्याऐं ऐसी होती हैं जिन्हें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है और कुछ ऐसी भी होती हैं जिनके लिए कोई निश्चित माप नहीं होता है। 

सामाजिक समस्या का अर्थ

सामाजिक समस्या वह अवस्था हैं जबकि एक समाज-विशेष के सांस्कृतिक मापदण्ड के अनुसार सामाजिक जीवन का कोई पक्ष या समाज के सदस्यों का कोई व्यवहार अपने लोकप्रिय या स्वस्थ स्वरूप को खोकर विकृत या अवांछनीय रूप धारण कर लेता है और उस रूप में वह समाज के लिए अहितकर परिणामों को उत्पन्न करता है। संक्षेप में, सामाजिक ऐसी स्थितियां जो अनुकूलन में बाधा डालती हैं या सामाजिक जीवन पर हानिकर प्रभाव डालने वाली स्थितियां को ही हम सामाजिक समस्याएं कहते हैं।  सामाजिक समस्या कोई वैयक्तिक घटना नहीं है, इसमें सामूहिकता का तत्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक समस्याओं को हम सामाजिक समस्या नहीं कह सकते क्योंकि यह सामाजिक ढाँचे से सम्बन्धित नहीं हैं,जैसे- बाढ, भूकम्प, महामारी, सूखा इत्यादि। इसके विपरीत अपराध, भिक्षावृति, मद्यपान, छुआछूत अथवा वेश्यावृृत्ति का सम्बन्ध एक विशेष सामाजिक संरचना से होने के कारण इन्हें हम सामाजिक समस्या कह सकते है। 

सामाजिक समस्या की परिभाषा

विभिन्न विद्वानों ने इसी दृष्टिकोण से सामाजिक समस्या के अर्थ को परिभाषित किया है। 

फुलर और मेयर्स के अनुसार, ‘‘सामाजिक समस्या वह स्थिति है जिसे अधिकांश व्यक्तियों के द्वारा उन सामाजिक आदर्श नियमों के विचलन के रूप में देखा जाता है जिन्हें वे अपने लिए आवश्यक मानते हैं।’’

लारेन्स फ्रेन्क ने बताया कि, ‘‘सामाजिक समस्या काफी अधिक संख्यक लोगों की कोई ऐसी कठिनाई या दुव्यवहार है जिसे कि हम दूर करना या सुधारना चाहते हैं।’’ 

सैमुएल किंग के शब्दों में, ‘‘सामाजिक समस्या उन परिस्थितियों अथवा दशाओं का नाम है जिन्हें समाज हानिकारक मानता है तथा जिनमें सुधार की समाज को आवश्यकता होती है।’’ 

पाँल मर्टन के अनुसार, ‘‘सामाजिक समस्या वह दशा है जो अनुचित रूप से एक बड़ी संख्या में व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करती है तथा जिसके बारे में यह समझा जाता है कि सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा इसमें सुधार किया जा सके।’’ 

सामाजिक समस्या के प्रकार एवं वर्गीकरण

अपराध, तलाक, वेश्यावृत्ति, अवैध यौन-सम्बन्ध, अस्पृश्यता, सम्प्रदायवाद, भ्रष्टाचार, बंधुआ-श्रमिक आदि ऐसी समस्याऐं हैं। शारीरिक रोग तथा विकलांगता आदि जैविकीय समस्याओं का उदाहरण हैं। 

मानसिक दुर्बलता, मद्यपान, नशीले पदार्थों का सेवन, भिक्षावृत्ति, वेश्यावृत्ति, आत्महत्या तथा वैयक्तिक अनुकूलन में कमी जैसी समस्याऐं जैविक-मनोवैज्ञानिक समस्याऐं होती हैं। निर्धनता, बेरोजगारी, बाल-श्रम, आर्थिक शोषण आदि कुछ प्रमुख आर्थिक समस्याऐं हैं। विभिन्न क्षेत्रों की विभिन्न प्रकार की समस्याऐं होती हैं। प्रत्येक समूह तथा समाज में अपनी-अपनी समस्याऐं होती हैं इनका प्रभाव विशेष समूहों तक ही सीमित रहता है, अनेक समस्याऐं एक बड़ी सीमा तक स्थानीय दशाओं से प्रभावित होती हैं। 

जातिवाद, भ्रष्टाचार, अपराध, श्वेतवसन-अपराध, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि, आतंकवाद तथा निर्धनता आदि इसी तरह की समस्याएँं राष्ट्रीय हंै।इस वैश्वीकरण के युग में देशों में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय दशाऐं भी हमारे राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन को प्रभावित करती हैं, बहुत सी समस्याऐं ऐसी हैं जिसका विस्तार अधिक या कम मात्रा में पूरे विश्व में देखने को मिलता है। 

यह आर्थिक और सामाजिक दोनों जीवन को प्रभावित करता है, युद्ध, आतंकवाद, मादक पदार्थों का सेवन, अन्तर-पीढी संघर्ष, युवा-सक्रियता आदि समस्याऐं लगभग सभी देशों की सामान्य समस्याऐं हैं।

  1. अपराध, 
  2. तलाक, 
  3. वैश्यावृत्ति, 
  4. अवैध यौन-सम्बन्ध, 
  5. अस्पृश्यता, 
  6. सम्प्रदायवाद, 
  7. बंधुआ-श्रमिक, 
  8. मद्यपान, 
  9. नशीले पदार्थों का सेवन, 
  10. भिक्षावृत्ति, 
  11. आत्महत्या, 
  12. निर्धनता, 
  13. बेरोजगारी, 
  14. बाल-श्रम, 
  15. आर्थिक शोषण, 
  16. जनसंख्या-वृद्धि, 
  17. जातिवाद, 
  18. प्रजातिवाद, 
  19. श्वेतवसन-अपराध, 
  20. क्षेत्रवाद, 
  21. दहेज प्रथा, 
  22. परम्परावादिता, 
  23. सम्प्रदायवाद, 
  24. जाति-संघर्ष, 
  25. धार्मिक-अन्धविश्वासों, 
  26. आतंकवाद, 
  27. निर्धनता, 
  28. युवा-तनाव, 
  29. असन्तुलित-औद्योगीकरण और 
  30. भ्रष्टाचार

सामाजिक समस्या की प्रमुख विशेषताएं

सामाजिक समस्या की प्रमुख विशेषताएं इन रूप से समझ सकते हैं- 

  1. सामाजिक समस्या की प्रकृति सामूहिक होती है। एक या एक से अधिक व्यक्तियों के आपसी दोषारोपण में उत्पन्न होने वाली बाधा को सामाजिक समस्या नहीं कह सकते। 
  2. सामाजिक समस्या वह स्थिति है जिसे दूर करने में भलाई है। 
  3. सामाजिक समस्या एक ऐसी स्थिति है जो समुदाय में बहुत से व्यक्तियों के विचलित व्यवहारों अथवा समाज के आदर्श नियमों के उल्लंधन के रूप मे देखने को मिलती है। 
  4. सामाजिक समस्या की अवधारणा का सम्बन्ध समाज के मूल्यों से है। मूल्यों में परिवर्तन होने के साथ सामाजिक समस्या के रूप में भी परिर्वतन हो जाता है। जिस प्रकार ‘बाल विवाह’ को पहले एक सामाजिक समस्या नहीं मानते थे परन्तु वर्तमान समय में मूल्य बदल जाने के कारण अब इसे उचित नहीं समझा जाता है। 
  5. प्राकृतिक अथवा जैविकीय क्षेत्र की समस्याओं को सामाजिक समस्या नहीं कह सकते हैं। 

भारत की सामाजिक समस्याएँ

1. जाति व्यवस्था

जाति-आधारित भेदभाव ने बहुत बार हिंसा को भी भड़काया। जातिव्यवस्था हमारे देश में प्रजातंत्र की कार्यप्रणाली में भी बाधा डालती है।

2. लिंग भेद

भारत में महिलाओं के साथ अनेक क्षेत्रों में जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, नियुक्ति आदि में भेदभाव किया जाता है। लड़कियों के सिर पर दहेज का भारी बोझ होता है और उन्हें विवाह के बाद अपने माता-पिता के घर को छोड़कर जाना पड़ता है। बहुत से गर्भस्थ बालिका शिशु का गर्भपात करवा दिया जाता है, त्याग दिया जाता है, जान-बूझकर उनकी परवाह नहीं की जाती और उन्हें पूरा भोजन भी नहीं दिया जाता क्योंकि वे बालिकाएं हैं।

अधिकतर देशों में पुरुष के मुकाबले स्त्री की साक्षरता दर बहुत कम है। 66 देशों में, पुरुष एवं स्त्री की साक्षरता दर का अंतर 10 प्रतिशत बिंदु से भी अधिक है।

ज्यादातर भारतीय परिवारों में ‘कन्या’ के आने पर खुशी नहीं मनाई जाती। यद्यपि लड़किया छोटी-सी उम्र से ही पूजनीय मानती जाती हैं, यद्यपि आज लड़किया शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं पिफर भी, परंपरा, रिवाज तथा समाज के कार्यो में लड़कों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। लड़की को खाना, कपड़ा, आश्रय, शिक्षा, चिकित्सा सुविध, पालन-पोषण तथा खेलने का समय तक अक्सर नहीं दिया जाता। उनको सुरक्षा का अिध्कार (अवसर), उत्पीड़न तथा शोषण से मुक्ति, उनके पनपने और विकसित होने तथा प्रसन्न होने का अधिकार भी नहीं दिया जाता है।

3. दहेज व्यवस्था

हमारे समाज की सबसे बड़ी कुप्रथा दहेज प्रथा है जिसने हमारी संस्कृति को प्रभावित किया है। ‘स्वतंत्र भारत’ में दहेज प्रथा के विरुद्ध भारत सरकार ने ‘दहेज प्रतिबंध अधिनियम 1961’ कानूनी धारा बनाई। दहेज का लेना और देना दोनों ही कानून द्वारा निषिद्ध हैं और यह दण्डनीय अपराध माने जाते हैं। यह प्रथा हमारी संस्कृति में इस प्रकार घर कर गई है कि यह खुलेआम चल रही है। ग्रामीण या शहरी लोग खुलेआम इसका उल्लंघन करते हैं। इससे न केवल दहेज हत्याएं की जाती हैं बल्कि ज्यादातर इसी के कारण मारपीट आदि भी की जाती है तथा महिलाओं को मानसिक एवं शारीरिक यंत्रणा दी जाती है। इस बुराई से समाज को मुक्त करना भी आज की अत्यंत आवश्यकता है।

4. मादक द्रव्यों का दुष्प्रयोग/व्यसन/लत

नियमित रूप से हानिकारक द्रव्य जैसे शराब, नशीले पेय, तंबाकू, बीड़ी या सिगरेट, डंग्स आदि का सेवन (निर्धरित चिकित्सा के उद्देश्यों के अतिरिक्त) व्यसन कहलाता है। जैसे-जैसे मादक पदार्थो की संख्या बढ़ती जाती है, अधिक से अधिक लोग विशेषकर युवा वर्ग व्यसनी होते चले जाते हैं। युवा तथा प्रौढ़ों को इस नशीले द्रव्य के सेवन के जाल में फंसाने वाले और भी तथ्य हैं जो इसके लिए उनरदायी हैं।  शराब और सिगरेट, मादक द्रव्यो में से सबसे ज्यादा प्रचलित और हानिकारक पदार्थ हैं।

शराब पीने के बाद ज्यादातर समय वे अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ दुर्व्यवहार भी करते हैं। धूम्रपान बुरी आदत है जो स्वास्थ्य के लिए शराब से भी ज्यादा हानिकारक है। इससे धूम्रपान करने वालों को ही केवल नुकसान नहीं होता बल्कि उनके आस-पास के लोगों को भी वातावरण में धुएँ! से हानि होती है। यदि हम दूसरों के अधिकारों का मान करते हैं तो हमें बस, रेलगाड़ी, बाजार, ऑफिस आदि सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान नहीं करना चाहिए। धूम्रपान, प्रदूषण का बड़ा कारण है और इससे गंभीर बीमारिया! जैसे कैंसर, ह्रदय रोग, श्वास समस्या आदि हो जाती हैं।

5. साम्प्रदायिकता

भारत विभिन्न धर्मिक आस्थाओं वाला देश है। भारत में हिंदु, मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी आदि विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं। एक समुदाय का दूसरे समुदाय के प्रति आक्रमक व्यवहार तनाव पैदा करता है और दो धार्मिक समुदायों में टकराव उत्पन्न हो जाता है। सैंकड़ों लोग इन सांप्रदायिक झगड़ों में मारे जाते हैं। यह घृणा और परस्पर संदेह को जन्म देता है। देश की एक मुख्य सामाजिक समस्या साम्प्रदायिकता है, जिसको सुलझाना और दूर करना आवश्यक है। यह हमारी उन्नति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। हमें सभी धर्मो का आदर करना चाहिए। हमारा देश धर्म-निरपेक्ष है, जिसका अभिप्राय है कि सभी धर्मो के साथ समान व्यवहार किया जाता है और हर व्यक्ति को अपना धर्म पालन करने में पूरी स्वतंत्रता है।

6. वृद्धजनों की समस्याएँ

संसार की आबादी बूढ़ी हो रही है। विश्वस्तर पर 1950 में 8% बूढ़े थे, 2000 में 10% तथा 2050 में बढ़कर यह संख्या 21% होने का अनुमान है। भारत में सन् 1961 में 5.8% (25-5 मिलियन) वृद्धजन थे 1991 में 6.7% (56-6 मिलियन) तथा 2011 में बढ़कर 8. 1% (96 मिलियन) होने का अनुमान है। अब 2021 में इसके 137 मिलियन हो जाने की आशा है। भारतीय वृद्धजनों (60 वर्ष एवं इससे ज्यादा वाले) की संख्या आगामी कुछ दशकों में तिगुना होने की उम्मीद है। इन वृद्धजनों को सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक सहारा देना सामाजिक विकास की मूलभूत समस्या बनकर उभर रही है। वृद्धो के लिए सामुदायिक सहायता की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। हमारी वृद्धजनों के सम्मान की संस्कृति को युवा वर्ग में पुन: जागृत करना होगा जिससे वृद्धजन आत्मसम्मान से जी सकें। याद रखिए, वृणें का अवश्य सम्मान करना चाहिए। आपको अपने वृद्ध दादा-दादी की देखभाल और सेवा करनी चाहिए।

7. गरीबी तथा बेरोजगारी की समस्या

बेरोजगारी वह स्थिति है जब एक सुयोग्य स्वस्थ मनुष्य जो काम करना चाहता है परन्तु जीविकोपार्जन के लिए काम नहीं ढूंढ पाता।  क्षेत्रफल में भारत एक बड़ा देश है। यह विश्व के संपूर्ण क्षेत्रफल का प्राय: 2.4% है पर क्या आप जानते हैं कि विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या यहाँ निवास करती है? जी हाँ। यह प्राय: 16.7% है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ है। इतनी बड़ी जनसंख्या के साथ निश्चित ही कुछ आर्थिक समस्याएं भी विकसित हो जाएंगी। ये समस्याएं हैं बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी और कीमतों में वृद्धि हमारी जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग गरीबी रेखा से नीचे रह रहा है। भयानक बेरोजगारी है। महंगाई और कीमतों में वृद्धि ने इस समस्या को ओर भी गंभीर बना दिया है।

8. भीख मांगना

बाजार में, रेलवे स्टेशन, हास्पिटल, मंदिर यहां तक कि चौराहों पर भी आप कुछ लोगों को अपनी खुली हथेली फैलाए आपके पास आते हुए दिखाई देंगे। वे खाना या पैसा मांगते हैं। हम गलियों में कई बच्चों को भी भीख मांगते देखते हैं। भारत में भीख मांगना एक प्रमुख सामाजिक समस्या है। भीख का प्रधान कारण गरीबी और बेरोजगारी है।आजकल हमारे समाज में कुछ लोग गिरोह बनाकर सुनियोजित ढंग से भीख मंगवाने का धंधा कर रहे हैं। फिर भी भीख मांगना एक सामाजिक अभिशाप है जिसे देश से समाप्त करना आवश्यक है। यदि आपको सड़क पर या कहीं भी भिखारी दिखें तो उनको बताएं कि यह कानूनन दण्डनीय अपराध है और यह नियम भीख लेने वाले तथा भीख देने वाले दोनों पर ही लागू होता है।

सामाजिक समस्याओं के प्रमुख तत्त्व क्या है?

निर्धनता, बेरोजगारी, बाल-श्रम, आर्थिक शोषण आदि कुछ प्रमुख आर्थिक समस्याऐं हैं। विभिन्न क्षेत्रों की विभिन्न प्रकार की समस्याऐं होती हैं। प्रत्येक समूह तथा समाज में अपनी-अपनी समस्याऐं होती हैं इनका प्रभाव विशेष समूहों तक ही सीमित रहता है, अनेक समस्याऐं एक बड़ी सीमा तक स्थानीय दशाओं से प्रभावित होती हैं।

सामाजिक समस्या के कारण क्या है?

सामाजिक समस्या का प्रमुख कारण आर्थिक होता है। बेरोजगारी न केवल व्यक्तिगत समस्या है वरन् यह आर्थिक समस्या भी है। पारसन्स के अनुसार मनुष्य का भौतिक साधनों के साथ अधूरा समायोजन ही मनुष्य की समस्याओं के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इलियट एवं मैरिल ने सामाजिक विघटन को सामाजिक समस्याओं का प्रमुख कारण माना है।

सामाजिक समस्या का उदाहरण क्या है?

यह संभव है कि आज भारत में जिस स्थिति को एक सामाजिक समस्या के रूप में माना जाता है, वह कुछ समय पूर्व उस रूप में नही मानी जाती हो। उदाहरण के रूप में आज अस्पृश्यता को एक गंभीर सामाजिक समस्या माना जाता है परंतु भूतकाल में यह समस्या नही समझी जाती थी।

सामाजिक समस्या की क्या विशेषता है?

सामाजिक समस्याओं को समाज के अनेक सदस्यों द्वारा निंदनीय आपत्तिजनक माना जाता है। अर्थात समाज यह तय करता है कि कौन सी गतिविधियाँ सामाजिक समस्या के रूप में हैं और कौन सी नहीं। 2. सामाजिक समस्याओं में परिवर्तन आ जाता है यदि उनसे जुड़े व्यवहारों के संरूपों की व्याख्या अलग तरह से की जाए।