समुद्रगुप्त के बाद शासक कौन था? - samudragupt ke baad shaasak kaun tha?

इस प्रथम विजय अभियान के दौरान समुद्रगुप्त ने तीन प्रमुख शक्तियों-अच्युत (बरेली, उत्तरप्रदेश ), नागसेन (ग्वालियर), कोतकुलज आदि को पराजित किया। यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि समुद्रगुप्त ने इन राजाओं को एक ही युद्ध में पराजित किया अथ्वा अलग-अलग युद्धों में |

दक्षिणापथ का विजय अभियान

इस द्वितीय विजय अभियान के दौरान समुद्रगुप्त ने जिन राजाओं को पराजित कर बंदी बना लिया, वे हैं-कोसल के राजा महेंद्र, महाकांतार के राजा व्याघ्रराज, कौराल के राजा मण्टराज, पिस्टपुर के राजा महेंद्रगिरि, कुट्टूर के राजा स्वामीदत्त, एरण्डपल्ल के राजा दमन, कांची के राजा विष्णुगोप, अवमुक्त के राजा नीलराज, वेंगी के राजा हस्तिवर्मा, पालक्कनरेश उग्रसेन, देवराष्ट्र के राजा कुबेर तथा कुस्थलपुर के राजा धनंजय। इस उल्लेख से पूर्णतया स्पष्ट है कि समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत के करीब 12 राजाओं को परास्त किया था।

आर्यावर्त का द्वितीय युद्ध

दक्षिणापथ विजय के बाद समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत में एक और युद्ध किया, जिसे आर्यावर्त का द्वितीय युद्ध कहा गया। पहले युद्ध के दौरान समुद्रगुप्त ने सिर्फ उन्हें परास्त किया था, लेकिन आर्यावर्त के दूसरे युद्ध में उसने उत्तर भारत के राजाओं का उन्मूलन कर दिया। प्रयाग प्रशस्ति की 21वीं पंक्ति में 9 राजाओं का उल्लेख किया गया है। वे हैं-रूद्रदेव, मत्तिल, नागदत्त, चंद्रवर्मा, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नंदि और बलवर्मा।

आटविक राज्य की विजय

प्रयाग प्रशस्ति की 21वीं पंक्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने आटविक राज्यों को अपना सेवक बना लिया। फ्लीट के मततानुसार उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से लेकर मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के वन-प्रदेश तक आटविक राज्य फैले हुए थे। उत्तर तथा दक्षिण भारत के बीच यातायात को सुगम एवं अवरोधमुक्त करने के लिए आटविक राज्यों को नियंत्रण में रखना आवश्यक था।

प्रत्यंत या सीमावर्ती राज्यों की विजय

प्रयाग प्रशस्ति की 24वीं एवं 25वीं पंक्ति में 5 राज्यतंत्रात्मक प्रत्यंत राज्यों का वर्णन मिलता है, जो इस प्रकार हैं-समतट राज्य, डवाक, कामरूप, नेपाल और कर्तृपुर। इन राज्यों के राजाओं ने समुद्रगुप्त के प्रभाव को देखते हुए स्वयं ही आत्मसमर्पण कर दिया।

समुद्रगुप्त की विजय नीतियां

  • राज्य प्रसभोद्धरण की नीति-  मगध के आसपास के राज्यों को पराजित कर उन्हें अपने राज्य में मिला लिया।
  • सर्वकरदानाज्ञाकरण की नीति-   यह  नीति सीमांत क्षेत्रों के लिए थी।
  • परिचारिकीकृत नीति -  आटविक (जनजातीय) राज्यों को सेवक बनाने की नीति।
  • ग्रहणमोक्षानुग्रह-   भारत के 12 राजाओं के संघ को पराजित कर उन्हें पुनः उनके राज्य सौंप दिये।
  • कन्योपायन-   विदेशियों को पराजित कर उनके साथ वैवाहिक संबंधों की नीति।

समुद्रगुप्त की मुद्राएं

  • समुद्रगुप्त की हमें कुल छः मुद्राएं प्राप्त होती हैं। मुद्राएं उसके जीवन एवं कार्यां पर सुंदर प्रकाश डालती हैं।
  •   गरूड़ प्रकार की मुद्राएं समुद्रगुप्त की नागवंशी राजाओं पर विजय का साक्ष्य प्रदान करती हैं। इन मुद्राओं में समुद्रगुप्त को सैकड़ों युद्धों को जीतने वाला बताया गया है। मुद्रा के पृष्ठभाग पर सिंहासनासीन देवी के साथ-साथ ‘पराक्रमः’ शब्द अंकित है।
  • धनुर्धारी प्रकार इसके पृष्ठ भाग पर सिंहवाहिनी देवी के साथ उसकी उपाधि अप्रतिरथः अंकित है। मुद्रा के मुख भाग पर राजा धनुष-बाण लिये खड़ा हुआ है।
  • परशु प्रकार इसमें राजा परशु धारण किये हुए है तथा उसकी उपाधि ‘कृतांत (यम) परशु’ अंकित है।
  • अश्वमेध प्रकार इस प्रकार के सिक्के समुद्रगुप्त द्वारा किये गए अश्वमेध यज्ञों का प्रमाण है। इनकी मुद्रा पर यज्ञ रूप में बंधे हुए घोड़े का चित्र तथा मुद्रालेख-‘राजाधिराज’ पृथ्वी को जीतकर तथा अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान कर स्वर्गलोक की विजय करता है, उत्कीर्ण है।
  • व्याघ्रहनन प्रकार इसमें समुद्रगुप्त को व्याघ्र का आखेट करते हुए दिखाया गया है। पृष्ठ भाग पर गंगा घाटी की विजय के रूप में ‘मकरवाहिनी गंगा’ तथा ‘राजा समुद्रगुप्त’ उत्कीर्ण है।
  • वीणावादन प्रकार इसमें समुद्रगुप्त के संगीत प्रेमी होने का साक्ष्य मिलता है। इसमें समुद्रगुप्त को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।

समुद्रगुप्त की अन्य विशेषताएं

समुद्रगुप्त विजेता के साथ-साथ कवि, संगीतज्ञ तथा विद्या का संरक्षक था। उसके सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है तथा ‘कविराज’ की उपाधि प्रदान की गई है।

सम्राट समुद्रगुप्त (अंग्रेजीः Samudragupta) प्राचीन भारत के गुप्त वंश के चौथे राजा थे। उन्होंने 350 ईस्वी से लेकर 375 ईस्वी तक शासन किया।

वे भारत के महानतम राजाओं में से एक थे जिन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधा। आज हम समुद्रगुप्त के इतिहास व जीवन परिचय के बारे में जानेंगे। तो आइए शुरू करते हैं समुद्रगुप्त की जीवन गाथा।

Table of Contents

  • समुद्रगुप्त का परिचय (Introduction to Samudragupta)
  • समुद्रगुप्त के शिलालेख (Inscriptions of Samudragupta)
  • भारत को बांधा राजनीतिक एकता में (Tied India in Political Unity)
  • समुद्रगुप्त की विजय (Victories of Samudragupta)
  • अश्वमेध का यज्ञ (Ashwamedha Yagya)
  • समुद्रगप्त ने जारी किये सोने के सिक्के (Samudragupta issued gold coins)
  • समुद्रगुप्त की मृत्यु (Death of Samudragupta)
  • बार-बार पूछे गये प्रश्न (FAQs)

समुद्रगुप्त का परिचय (Introduction to Samudragupta)

पूरा नामसम्राट समुद्रगुप्तउपनामकवियों का राजा, राजाओं का उन्मूलकजन्म335 ईस्वी, इंद्रप्रस्थ (प्राचीन भारत)माताकुमार देवीपिताचंद्रगुप्त प्रथमपत्नीदत्ता देवीपुत्रचंद्रगुप्त द्वितीय, रामगुप्तपौतेकुमारगुप्त प्रथम, पुरुगुप्तधर्महिंदूसाम्राज्यगुप्तप्रसिद्धि का कारणगुप्त वंश का द्वितीय और महान शासकपूर्ववर्ती राजाचंद्रगुप्त प्रथमउत्तराधिकारी राजाचंद्रगुप्त द्वितीयमृत्युपाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार)

समुद्रगुप्त के बाद शासक कौन था? - samudragupt ke baad shaasak kaun tha?
समुद्रगुप्त के बाद शासक कौन था? - samudragupt ke baad shaasak kaun tha?

सम्राट समुद्रगुप्त का जन्म 335 ईस्वी में प्राचीन भारत के शहर इंद्रप्रस्थ में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम तथा माता का नाम कुमार देवी था। एक मत के अनुसार, समुद्रगुप्त का पुराना नाम “कचा” था। परंतु, अपने राज्य को समुद्र तक फैलाने के बाद उसने अपना नाम “समुद्र” रखा।

समुद्रगुप्त के पिता चंद्रगुप्त प्रथम जब वह वृद्ध हो गये थे तो उन्होने गुप्त राज्य को अपने पुत्र समुद्रगुप्त को सौंप दिया और उसे सम्राट घोषित कर दिया।

समुद्रगुप्त के सिक्कों में उन्हे लंबा और मजबूत पेशियों वाला दिखाया गया है। अभिलेख के अनुसार, उसने गरीब, कमजोर और मध्यम वर्ग के लोगों की हर तरह से मदद की। यहां तक कि उसने अमीर लोगों को भी उनका राज्य वापस दे दिया जो युद्ध में हार गए थे।

इसके साथ ही वह एक महान कवि और संगीतकार भी था। पढ़े-लिखे लोगों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कवियों और साहित्यकारों में भी रचनात्मक क्षमता से एक मजबूत पहचान बनाई और बहुत सारी कविताओं का भी सृजन किया। इस कारण उसे “कवियों का राजा” भी कहा जाने लगा। उसके संगीत के प्रेम को सिक्कों में भी देखा जा सकता है जहां वह वीणा को धारण करके सिंहासन पर बैठे हुए हैं।

समुद्रगुप्त के बाद शासक कौन था? - samudragupt ke baad shaasak kaun tha?
समुद्रगुप्त के बाद शासक कौन था? - samudragupt ke baad shaasak kaun tha?
सम्राट समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त के शिलालेख (Inscriptions of Samudragupta)

समुद्रगुप्त ने राजा बनने के बाद जो महान कार्य किए उनको अभिलेखों (शिलालेखों) में लिखवाया। उसके दरबार में कवि हरिषेण रहता था जिसने समुद्रगुप्त की विजयगाथाओं व अभियानों को अभिलेखों में लिखा।

उसके अभिलेख उसी स्तम्भ पर लिखे गए हैं जिस पर सम्राट अशोक के लेख हैं। प्रयाग का अभिलेख उसके इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह अभिलेख वर्तमान समय में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में है। इस अभिलेख में उसकी दिग्विजयों, व्यक्तित्व, और चरित्र का प्रमाण मिलता है।

अभिलेख में समुद्रगुप्त को लाख गायों का दानी, विद्वान, विद्या का संरक्षक, धर्म का प्राचीर, कविराज, संगीतकार इत्यादि नामों से संबोधित किया गया है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है।

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भारत को बांधा राजनीतिक एकता में (Tied India in Political Unity)

समुद्रगुप्त अखिल भारतीय साम्राज्य से बहुत प्रभावित हुआ। उसने भारत को राजनीति एकता में बांधा। वर्तमान कश्मीर, पश्चिम पंजाब, पश्चिमी राजस्थान, सिंध और गुजरात को छोड़कर उसने संपूर्ण भारत पर अपने शासन का झंडा लहराया। उसका प्रभुत्व आसपास के देशों में भी फैला हुआ था।

श्रीलंका के मेधवर्धन ने गया में एक बोध मंदिर बनवाने के लिए उससे अनुमति मांगी। इस कार्य को करवाने के लिए उसने कई सारे उपहार भी भेजें। बाद में समुद्रगुप्त ने इस कार्य को अनुमति भी दे दी।

जिससे पता चलता है कि वह विदेशी राजाओं के साथ भी मित्रतापूर्वक व्यवहार रखता था। उसने (Samudragupta) अपने बल पर एक नए युग की स्थापना की।

समुद्रगुप्त की विजय (Victories of Samudragupta)

समुद्रगुप्त एक महान शासक, कूटनीतिज्ञ और विद्वान था। उसने गंगा, यमुना दोआब पर सैन्य मार्च किया जिसमें 9 राजाओं रुद्रदेव, चंद्रवर्मन, नाग, नागसेन, मतिल, नागदंत, गणपति, अच्युत, नंदी एवं बलवर्मा को हरा दिया और उनको अपने राज्य में मिला लिया। जहां ग्रहण = शत्रु पर अधिकार, मोक्ष = शत्रु को मुक्त करना, अनुग्रह = राज्य को लौटाना है।

उसे पता था कि दूर देश के राज्यों पर खुद का शासन चलाना संभव नहीं है तो उसने उन राज्यों को जीतने के बाद अपने शत्रु को ही सौंप कर अपना आधिपत्य बनाये रखा।

समुद्रगुप्त पहले उनसे युद्ध करता और उन्हें हरा देने के बाद उनके राज्य को अपने राज्य में मिला लेता। परंतु, उन राज्यों पर उन्हीं राजाओं को वापस सौंप देता जो युद्ध में हार गए थे। इस तरह से उसने बहुत सारे राजाओं का विश्वास जीत लिया और भारत को एक धागे में बांधने का काम किया।

मध्य भारत पर उसका शासन तो पहले ही कायम था। उसके भय से सीमांत क्षेत्रों के राज्यों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। कुछ विदेशी शासकों जैसे शाहिशाहानुशाही, शक-मरूण्ड और सिंहल ने उसके साथ अपनी पुत्रियों के विवाह का प्रस्ताव भी रखा और उससे मित्रता बना ली।

अश्वमेध का यज्ञ (Ashwamedha Yagya)

प्राचीन युग में राजा अपने प्रभुत्व स्थापित हो जाने या महान कार्य पूरा हो जाने के बाद एक यज्ञ करते थे जिसे अश्वमेध यज्ञ कहते हैं।

समुद्रगुप्त ने भी अश्वमेध यज्ञ करवाया और सोने के सिक्के  चलाये। परंतु यह बात इलाहाबाद के अभिलेख में नहीं मिलती है कि समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि उसने कई सारी घोड़ों का दूसरे यज्ञों के लिए त्याग भी किया था।

इलाहाबाद के अभिलेख की शुरुआती चार लाइने मिट चुकी हैं तो कुछ विद्वान अनुमान लगाते हैं कि इन लाइनों में समुद्रगुप्त के अश्वमेध यज्ञ का वर्णन था। वहीं कुछ इस तथ्य के खिलाफ भी हैं जो कहते हैं कि अश्वमेध की बातों को चार लाइनों में वर्णन करना, तत्कालीन कवि के लिए औचित्य पूर्ण है।

समुद्रगुप्त की पोती ने भी उसके अश्वमेध यज्ञ का वर्णन किया है जो शिलालेख पर आज भी देखा जा सकता है। कुछ इतिहासकार यह मानते हैं अश्वमेध यज्ञ की प्रथा सदियों से बंद हो चुकी थी जिसने समुद्रगुप्त (Samudragupta) ने फिर से शुरू किया।

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समुद्रगप्त ने जारी किये सोने के सिक्के (Samudragupta issued gold coins)

समुद्रगुप्त, गुप्त वंश का पहला शासक था जिसने सोने के सिक्के बनवाए। इन सिक्कों पर उसकी फोटो बनी हुई है। इतिहास प्रमाणों के अनुसार, समुद्रगुप्त ने कुषाण साम्राज्य के शासक वासुदेव द्वितीय के सिक्कों की नकल करके अपने सिक्के बनाये।

वासुदेव द्वितीय के सिक्कों पर जिस तरह से वासुदेव को दिखाया गया है और कलाकारी की गई है उसी तरह से समुद्रगुप्त को भी बैठा हुआ दिखाया गया है और उन पर भी वैसी ही कलाकारी की गई है।

समुद्रगुप्त के सिक्के कई प्रकार के थे जिनमें से मुख्य प्रकार निम्न थे (Types of Gold Coins of Samudragupta)-

  1. मानक
  2. तीरंदाज
  3. युद्ध-कुल्हाड़ी
  4. बाघ कातिल
  5. संगीतकार
  6. अश्वमेध

समुद्रगुप्त की मृत्यु (Death of Samudragupta)

समुद्रगुप्त की मृत्यु पाटलिपुत्र शहर (वर्तमान पटना, बिहार) में हुई थी।

इतिहासकार ए वी स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है क्योंकि उसने भारत को एकता के धागे में बांधा और सैकड़ों युद्ध में विजय प्राप्त की। कवि हरिषेण द्वारा लिखे गए प्रयाग प्रशस्ति में उसे एक महान सम्राट बताया है।

समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय राजगद्दी पर बैठा जो उसकी रानी दत्ता देवी का पुत्र था। समुद्रगुप्त (Samudragupta) का यह इतिहास हमें आज भी एक विद्वान शासकीय दिलाता है जिसने भारत को एकता के धागे में पिरोया।

बार-बार पूछे गये प्रश्न (FAQs)

समुद्रगुप्त का जन्म कब हुआ था?

335 ईस्वी को इंद्रप्रस्थ में।

समुद्रगुप्त का पुत्र कौन था?

चंद्रगुप्त द्वितीय और रामागुप्ता। चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद गुप्त वंश का शासक बना।

समुद्रगुप्त की मृत्यु कहां हुई?

पाटलिपुत्र शहर में (वर्तमान पटना बिहार)।

समुद्रगुप्त की पत्नी कौन थी?

दत्ता देवी जो चंद्रगुप्त द्वितीय की माता थी।

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तो बस दोस्तों मुझे उम्मीद है आपको समुद्रगुप्त (Samudragupta) का इतिहास जानकर बहुत अच्छा लगा होगा। अगर हां तो, अपने दोस्तों के साथ यह पोस्ट शेयर करना मत भूलना, आपका धन्यवाद।

समुद्रगुप्त के बाद कौन राजा बना?

समुद्रगुप्त एक अच्छा राजा होने के अतिरिक्त एक अच्छा कवि तथा संगीतज्ञ भी था। उसे कला मर्मज्ञ भी माना जाता है। उसका देहान्त 380 ई. में हुआ जिसके बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय राजा बना

गुप्त वंश का सबसे महान शासक कौन था?

चन्द्रगुप्त को महाराजाधिराज चन्द्रगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, महाराजाधिराज एक उपाधि थी, जो चन्द्रगुप्त प्रथम को दी गयी थी। संभवतः यह उपाधि उसके महान कार्यों के कारण ही उसे दी गयी होगी। गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम को ही माना जाता है।

समुद्रगुप्त का प्रथम शासक कौन था?

इस वंश के पहले शासक थे चंद्रगुप्त प्रथम। उन्होंने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए शक्तिशाली लिच्छवी राजवंश की कुमारदेवी से शादी की। समुद्रगुप्त इन्हीं के पुत्र थे।

समुद्र के पिता का नाम क्या था?

समुद्रगुप्त का परिचय (Introduction to Samudragupta).