संस्कृत में उपसर्ग को क्या कहते हैं? - sanskrt mein upasarg ko kya kahate hain?

वे शब्दांश जो किसी मूल शब्द के पहले लगकर नये शब्द का निर्माण करते है, उन्हें उपसर्ग कहते है। स्वतंत्र रुप से इनका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन किसी अन्य शब्द के साथ जुडकर ये अर्थ में विशेष परिवर्तन ला देते है।

संस्कृत में 22 उपसर्ग होते है।

  • उपसर्ग   अर्थ          

  1. अति    अधिक/परे     अत्यन्त, अतीव, अतीन्द्रिय, अत्यधिक, अत्युत्तम।
  2. अधि   मुख्य/श्रेष्ठ।     अधिकृत, अध्यक्ष, अधीक्षण, अध्यादेश, अधीन, अध्ययन, अध्यापक।
  3. अनु     पीछे/ समान    अनुज, अनुरूप, अन्वय, अन्वीक्षण, अनूदित, अन्वेक्षण, अनुच्छेद।
  4. अप     विपरीत/बुरा    अपव्यय, अपकर्ष, अपशकुन, अपेक्षा।
  5. अभि    पास/सामने     अभिभूत, अभ्युदय, अभ्यन्तर, अभ्यास, अभीप्सा, अभीष्ट।
  6. अव      बुरा/ हीन       अवज्ञा,अवतार, अवकाश, अवशेष।
  7. आ       तक/से          आघात, आगार, आगम, आमोद, आतप
  8. उत्       ऊपर/ श्रेष्ठ     उज्जवल, उदय, उत्तम, उद्धार, उच्छ्वास, उल्लेख।
  9. उप       समीप           उपवन, उपेक्षा, उपाधि, उपहार, उपाध्यक्ष।
  10. दुर्        बुरा/ कठिन    दुरूह, दुर्गुण, दुरवस्था, दुराशा, दुर्दशा।
  11. दुस्       बुरा/ कठिन    दुष्कर, दुस्साध्य, दुस्साहस, दुश्शासन।
  12. नि         बिना/विशेष    न्यून, न्याय, न्यास, निकर, निषेध, निषिद्ध।
  13. निर्        बिना/बाहर     निरामिष, निरवलम्ब, निर्धन, नीरोग, नीरस, नीरीह।
  14. निस्       बिना/बाहर     निश्छल, निष्काम, निष्फल,निस्सन्देह।
  15. प्र         आगे/अधिक    प्रयत्न, प्रारम्भ, प्रोज्जवल, प्रेत, प्राचार्य,प्रार्थी।
  16. परा       पीछे/अधिक    पराक्रम, पराविद्या, परावर्तन,पराकाष्ठा।
  17. परि       चारों ओर       पर्याप्त, पर्यटन, पर्यन्त, परिमाण, परिच्छेद,पर्यावरण।
  18. प्रति       प्रत्येक           प्रत्येक, प्रतीक्षा, प्रत्युत्तर, प्रत्याशा, प्रतीति।
  19. वि         विशेष/भिन्न     विलय, व्यर्थ, व्यवहार, व्यायाम,व्यंजन,व्याधि,व्यसन,व्यूह।
  20. सु         अच्छा/सरल    सुगन्ध, स्वागत, स्वल्प, सूक्ति, सुलभ।
  21. सम्       पूर्ण शुद्ध        संकल्प, संशय, संयोग, संलग्न, सन्तोष।
  22. अन्       नहीं/बुरा        अनुपम, अनन्य, अनीह, अनागत, अनुचित, अनुपयोगी।

संस्कृत के उपसर्ग को क्या कहते हैं?

वे शब्दांश जो किसी मूल शब्द के पहले लगकर नये शब्द का निर्माण करते है, उन्हें उपसर्ग कहते है। स्वतंत्र रुप से इनका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन किसी अन्य शब्द के साथ जुडकर ये अर्थ में विशेष परिवर्तन ला देते है। संस्कृत में 22 उपसर्ग होते है। अति अधिक/परे अत्यन्त, अतीव, अतीन्द्रिय, अत्यधिक, अत्युत्तम।

उपसर्ग का अन्य नाम क्या है?

संस्कृत एवं संस्कृत से उत्पन्न भाषाओं में उस अव्यय या शब्द को उपसर्ग (prefix) कहते हैं जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषता उत्पन्न करता है। उपसर्ग = उपसृज् (त्याग) + घञ्। जैसे – अ, अनु, अप, वि, आदि उपसर्ग है।

उपसर्ग कौन से शब्द होते हैं?

उपसर्ग ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व जुड़ कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं या उसके अर्थ में विशेषता ला देते हैं। उप (समीप) + सर्ग (सृष्टि करना) का अर्थ है - किसी शब्द के समीप आ कर नया शब्द बनाना। उदाहरण: प्र + हार = प्रहार, 'हार' शब्द का अर्थ है पराजय।

संस्कृत के उपसर्ग की संख्या कितनी है?

अर्थात् क्रिया के योग में प्र आदि की उपसर्ग संज्ञा होती है। संस्कृत में उपसर्गों की संख्या 22 है। वे हैं - प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आङ् (आ), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप।