स्त्री पुरुष अनुपात में गिरावट आने के क्या क्या कारण हैं? - stree purush anupaat mein giraavat aane ke kya kya kaaran hain?

“स्त्री-पुरुष अनुपात’ का क्या अर्थ है? एक गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के क्या निहितार्थ हैं? क्या आप यह महसूस करते हैं कि माता-पिता आज भी बेटियों के बजाय बेटों को अधिक पसंद करते हैं? आपकी इस राय में पसंद के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?

स्त्री-पुरुष अनुपात (लिंगानुपात) किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान प्रति 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को दर्शाता है।

  • यह अनुपात जनसंख्या में लैंगिक संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है।
  • ऐतिहासिक रूप से, विश्व के अधिकांश देशों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक है।
    इसके दो कारण हैं:
  1. बालिको शिशुओं में बाल शिशुओं की अपेक्षा रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा बीमारियों से प्रतिरोध करने की क्षमता अधिक होती है।
  2. अधिकांश समाजों में स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा दीर्घजीवी होती हैं।
  • बालिका शिशु तथा बालक शिशु के बीच अनुपात मोटे तौर पर प्रति 1000 पुरुषों पर 1050 स्त्रियों का है।
  • भारत में एक शताब्दी से भी अधिक वर्षों से स्त्री-पुरुष अनुपात में बड़े पैमाने पर लगातार कमी आ रही है। जहाँ बीसवीं शताब्दी में प्रति 1000 पुरुषों पर 972 महिलाएँ थीं, वहीं इक्कीसवीं सदी में प्रति 1000 हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या घटकर घटकर 933 हो गई।
  • राज्य-स्तर पर बाल लिंगानुपात भी चिंताजनक है। कम-से-कम 6 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में बाल लिंगानुपात 793 से भी कम है। सर्वाधिक बाल लिंगानुपात सिक्किम (986) में है।
  • भारत, चीन तथा दक्षिण कोरिया में स्त्री-पुरुष अनुपात में गिरावट की प्रवृत्ति देखने में आ रही है। भारत में अभी भी माता-पिता बालकों को प्राथमिकता देते हैं। ऐसा मूलतः सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारणों से होता है। कृषिगत समाज होने के कारण ग्रामीण जनसंख्या कृषि की देखभाल के लिए बालकों को अधिमान्यता देते हैं। किंतु बाल शिशु को अधिमान्यता देने का संबंध निश्चित रूप से आर्थिक कारणों से नहीं है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़ तथा महाराष्ट्र भारत के समृद्ध राज्य हैं तथा वहाँ बाल लिंगानुपात सर्वाधिक होना चाहिए था, किंतु स्थिति इसके विपरीत है।
    2001 की जनगणना से यह प्रदर्शित होता है कि इन राज्यों में लिंगानुपात सबसे कम-प्रति 1000 बालक शिशु पर 350 बालिका शिशु हैं। यह आँकड़ा प्रमाणित करता है कि इन राज्यों में बालिकाओं की भ्रूण हत्या गरीबी, अज्ञानता अथवा संसाधनों के अभाव के कारण नहीं होती। बच्चियों के प्रति पूर्वाग्रह की मानसिकता ही भारत में निम्न स्त्री-पुरुष अनुपात का कारण है।
  • धार्मिक तथा सांस्कृतिक विश्वास- ऐसा माना जाता है कि केवल बेटा ही अपने माता-पिता की अंत्येष्टि तथा उनसे संबद्ध रीति-रिवाजों को करने का हकदार है। केवल बेटा ही परिवार का वारिश होता है। माना जाता है कि बेटा के बिना वंश नहीं चल सकता।
  • आर्थिक कारण- भारतीय समाज का प्रमुख पेशा कृषि है। ग्रामीणों का ऐसा मानना है कृषिगत संपत्ति लड़कियों को नहीं दी जा सकती, क्योंकि ‘ शादी के बाद वे दूसरे गाँव, शहर या नगर में चली जाएँगी। न तो लड़कियाँ उनके घर का बोझ ढो सकती है और न ही वे कृषि की देखभाल ही कर सकती हैं।
  • जागरूकता का अभाव- अज्ञानता तथा संकुचित प्रवृत्ति के कारण भारतीय समाज में लोग स्त्री को समान दर्जा नहीं देते। वे सोचते हैं कि बुढ़ापे में उनका बेटा ही सहारा होगा। केवल बेटा ही उनके खाने-पीने, आवास, परंपराओं तथा अन्य जिम्मेदारियों को निभा सकता है।
  • शिशु लिंगानुपात को प्रभाव- यदि निम्न शिशु लिंगानुपात जारी रहा, तो यह हमारी सामाजिक संरचना पर बहुत ही बुरा प्रभाव छोड़ेगा, विशेष तौर से विवाह जैसी संस्थाओं पर। इससे महिलाओं से संबंधित कानून व्यवस्था की स्थिति पर भी बुरा असर पड़ेगा।

Concept: भारत में गिरता हुआ स्त्री-पुरुष अनुपात

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महिला-पुरुषों के अनुपात में गिरावट

Publish Date: Mon, 02 May 2011 05:31 PM (IST)Updated Date: Wed, 16 Nov 2011 04:44 PM (IST)

अंबाला शहर, जागरण संवाद केंद्र : एक दशक में जिले की आबादी 1.23 लाख से भी ज्यादा बढ़ गई है। प्रदेश के अन्य जिलों की ही भांति यहां भी महिला-पुरुष अनुपात में गिरावट दर्ज की गई है।

इस वर्ष की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 11 लाख 36 हजार 784 हो गई है। 2001 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 10 लाख 13 हजार 607 थी। प्रदेश के प्राचीन जिलों में शुमार इस जिले का कुल क्षेत्रफल 1574 वर्ग किलोमीटर है। नई जनगणना के मुताबिक इस जिले में पुरुषों की संख्या 6 लाख 4044 दर्ज की गई है जबकि महिलाओं की संख्या 5 लाख 32 हजार 740 है। गत 10 वर्षो के दौरान जिले की जनसंख्या में 12.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। नई जनगणना के अनुसार जिले में 1000 पुरुषों के पीछे 882 महिलाएं है। 6 वर्ष तक आयु वर्ग में यह आंकड़ा बहुत चिंताजनक है। आकड़ों के अनुसार 1000 लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या 807 ही है। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के आकड़ों के मुताबिक 0 से 6 वर्ष आयु वर्ग में लड़के- लड़कियों के अनुपात की खाई निरतर बढ़ रही है और यह आकड़ा 795 तक पहुंच चुका है। जिला में पुरुषों की तुलना में 61304 महिलाएं कम है। कन्या भ्रूणहत्या के कारण महिला-पुरुष के अनुपात की खाई बढ़ रही है। उपायुक्त समीर पाल सरो ने उक्त आंकड़ों की पुष्टि करते हुए महिला-पुरुष के अनुपात में संतुलन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने इसके लिए सरकार के अलावा आम लोगों की भागीदारी को भी अहम बताया है। उपायुक्त ने नई जनगणना से प्राप्त आंकड़ों के माध्यम से जिले में साक्षरता दर में हुई वृद्धि पर प्रसन्नता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2001 में जिले की साक्षरता दर 75.3 प्रतिशत थी और वर्ष 2011 में यह दर बढ़कर 82.9 प्रतिशत हो चुकी है। उन्होंने कहा कि पुरुषों की साक्षरता दर महिलाओं की तुलना में अधिक है और प्राप्त आकड़ों के मुताबिक जिला के 88.5 प्रतिशत पुरुष साक्षर है जबकि 76.6 प्रतिशत महिलाओं की साक्षरता श्रेणी में पहचान की गई है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2001 की गणना के मुताबिक जिला के 82.3 प्रतिशत पुरुष तथा 67.4 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थीं। उन्होंने बताया कि मई माह के अंत तक जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या, साक्षरता दर, लिंगानुपात इत्यादि के आकडे़ भी जारी कर दिए जाएंगे।

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बाल स्त्री पुरुष अनुपात में गिरावट आने के क्या कारण है?

बच्चियों के प्रति पूर्वाग्रह की मानसिकता ही भारत में निम्न स्त्री-पुरुष अनुपात का कारण है। धार्मिक तथा सांस्कृतिक विश्वास- ऐसा माना जाता है कि केवल बेटा ही अपने माता-पिता की अंत्येष्टि तथा उनसे संबद्ध रीति-रिवाजों को करने का हकदार है। केवल बेटा ही परिवार का वारिश होता है। माना जाता है कि बेटा के बिना वंश नहीं चल सकता।

भारत में लिंग अनुपात में गिरावट के कारण क्या है?

SRB प्रत्येक 1000 लड़कों पर पैदा होने वाली लड़कियों की संख्या को दर्शाता है। SRB में गिरावट के कारण आज भारत और चीन जैसे देशों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या बढ़ रही है। इससे पुरुषों और महिलाओं दोनों के प्रति हिंसा में बढ़ोतरी के साथ ही मानव तस्करी जैसे अपराध भी बढ़ रहे हैं।

भारत में महिला जनसंख्या कम होने का क्या कारण है?

गरीबी और शिक्षा की कमी : अत्यधिक गरीबी और शिक्षा की कमी भी समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति के कुछ कारण हैं। शिशु और मातृ मृत्यु दर- शिशु मृत्यु दर एक वर्ष की आयु से पहले बच्चों की मृत्यु की संख्या है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण लिंगानुपात में भारी गिरावट आई है।

महिला व पुरुष अनुपात में क्या अंतर आता है?

वहीं भारत का लिंग अनुपात 108.2पुरुष प्रति 100 स्त्रियों पर है। जनगणना 2011के अनुसार भारत के लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषो पर 943 स्त्रियाँ है।