सुदर्शन (1895-1967) प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार हैं। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी है। ये आदर्शोन्मुख यथार्थवादी थे। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। अपनी प्रायः सभी प्रसिद्ध कहानियों में इन्होंने समस्यायों का आदशर्वादी समाधान प्रस्तुत किया है। चौधरी छोटूराम जी ने कहानीकार सुदर्शन जी को जाट गजट का सपादक बनाया था। केवल इसलिये कि वह पक्के आर्यसमाजी थे और आर्य समाजी समाज सुधारर होते हैं। एक गोरे पादरी के साथ टक्कर लेने से गोरा शाही सुदर्शन जी से चिढ़ गई। चौ. छोटूराम, चौ. लालचन्द से आर्यसमाजी सपादक को हटाने का दबाव बनाया। चौ. छोटूराम अड़ गये। सरकार की यह बात नहीं मानी। यह घटना प्रथम विश्व युद्ध के दिनों की है। सुदर्शन जी 1916-1917 में रोहतक में कार्यरत थे। Show
सुदर्शन की भाषा सरल, स्वाभाविक, प्रभावोत्पादक और मुहावरेदार है। इनका असली नाम बदरीनाथ है। इनका जन्म सियालकोट में 1895 में हुआ था। प्रेमचन्द के समान वह भी ऊर्दू से हिन्दी में आये थे। लाहौर की उर्दू पत्रिका हज़ार दास्ताँ में उनकी अनेकों कहानियां छपीं। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। उन्हें गद्य और पद्य दोनों ही में महारत थी। "हार की जीत" पंडित जी की पहली कहानी है और १९२० में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। मुख्य धारा के साहित्य-सृजन के अतिरिक्त उन्होंने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे हैं। सोहराब मोदी की सिकंदर (१९४१) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके पटकथा लेखन को जाता है। सन १९३५ में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया। वे १९५० में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे। वे १९४५ में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा की साहित्य परिषद् के सम्मानित सदस्यों में थे। उनकी रचनाओं में तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर, पृथ्वी-वल्लभ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद्ध गीत तेरी गठरी में लागा चोर, बाबा मन की आँखें खोल आदि उन्ही के लिखे हुए हैं। सुदर्शन जी महान लेखक थे । वे बुद्धिमान थे। रचनाएं[संपादित करें]
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सुदर्शन का जीवन-परिचय
सुदर्शन प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार हैं। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी है। आपकी प्रायः सभी प्रसिद्ध कहानियों में समस्यायों का समाधान आदशर्वाद से किया गया है। हमें खेद है कि 'हार की जीत' जैसी कालजयी रचना के लेखक के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। यदि आप पंडित सुदर्शन की जन्मतिथि, जन्मस्थान या कर्मभूमि के बारे में खोजें तो निराशा ही हाथ लगती है। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह पंडित सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। लाहौर की उर्दू पत्रिका, 'हज़ार दास्तां' में उनकी अनेक कहानियां प्रकाशित हुईं। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। सुदर्शन को गद्य और पद्य दोनों में महारत थी। "हार की जीत" पंडित जी की पहली कहानी है और १९२० में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। मुख्यधारा विषयक साहित्य-सृजन के अतिरिक्त आपने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे। सोहराब मोदी की सिकंदर (१९४१) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके पटकथा लेखन को जाता है। सन १९३५ में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया। आप १९५० में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे। सुदर्शन १९४५ में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा की साहित्य परिषद् के सम्मानित सदस्यों में थे। उनकी रचनाओं में हार की जीत, सच का सौदा, अठन्नी का चोर, साईकिल की सवारी, तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर, पृथ्वी-वल्लभ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद्ध गीत 'बाबा मन की आँखें खोल' व एक अन्य गीत 'तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफ़िर जाग ज़रा' जो शायद किसी फिल्म का गीत न होते हुए भी बहुत लोकप्रिय हुआ सुदर्शन के लिखे हुए गीत हैं। Biography Of Hindi Writer Sudarshan In Hindi: आज हम हिंदी लेखक सुदर्शन का जीवन परिचय पढ़ेगे. इनका वास्तविक नाम बद्रीनाथ भट्ट था. ये प्रेमचंद युग के हिंदी व उर्दू लेखक रहे है. सुदर्शन पक्के आर्यसमाजी थे इन्होने लम्बे समय तक जाट गजट के लिए सम्पादन का कार्य भी किया. हार की जीत इनकी पहली कहानी थी जो सरस्वती पत्रिका में 1920 में प्रकाशित हुई थी. आज हम लेखक सुदर्शन की जीवनी, इतिहास, रचनाएं यहाँ पढेगे.
सुदर्शन का जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफीसुदर्शन का नाम प्रेमचंद युग के सशक्त कथाकार के रूप में माना जाता हैं. सुदर्शन की पहली कहानी हार की जीत 1920 में प्रकाशित हुई. इनकी यह पहली कहानी ही श्रेष्ठतम रचनाओं में मानी जाती हैं. सर्वप्रथम कथाकार सुदर्शन ने उर्दू में लिखना आरम्भ किया, इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली. अधिक लोकप्रियता इन्हें हिंदी कहानी लेखन में ही मिली. Telegram Group Join Nowये सुदर्शन उपनाम से कहानी लेखन करने वाले कहानीकार का वास्तविक नाम बद्रीनाथ भट्ट था. इनका जन्म सियालकोट पंजाब में हुआ था. उस समय भारत का पंजाब प्रान्त अविभाजित था, सुदर्शन ने कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद का अनुसरण किया और प्रसिद्धि के चरम पर पहुंचे. कहानी संग्रहसुदर्शन मानवीय भावों को कुशलता से चित्रित करने में सिद्धहस्त थे. इनकी कहानियाँ सहजता और सरलता से परिपूर्ण होती थी, इनके प्रमुख कहानी संग्रह इस प्रकार हैं.
कथावस्तु व संवादइनकी कहानियों की कथावस्तु रोचक प्रभावशाली और पाठक के अंतर्मन को स्पर्श करने वाली होती थी. इनकी कहानियों के शीर्षक कहानी के प्रारम्भ से अंत तक पाठक की जिज्ञासा बनाये रखने वाले थे. कहानी में समाज और राष्ट्र के प्रति मंगल कामना ही इनकी कहानियों का मूल कथ्य होता था. सुदर्शन की कहानियों का विकास पात्रों के संवाद से होता हैं और संवादों के माध्यम से ही पात्रों के चरित्र स्वरूप उभरकर सामने आ जाता हैं. संवादों से ही कहानियों की घटनाओं को गति मिलती हैं. इनकी कहानियों के संवाद सरल, सहज एवं सुबोध होते हैं. इनकी कहानियों के पात्र किसी न किसी चारित्रिक विशेषता के पूरक होते हैं. पहली कहानी हार की जीत का पात्र बाबा खदंगसिंह डाकू होते हुए भी मानवीय गुणों से युक्त एक आदर्श पात्र हैं. हिंदी साहित्य में बाबा का नाम अमर पात्र के रूप में याद किया जाता हैं. एल्बम कहानी का मुख्य पात्र सदानंद करुणा की प्रतिमूर्ति गरीबों के मसीहा के रूप में सदा याद किये जाएगे. भाषासुदर्शन की कहानियों की भाषा सरल सहज एवं सुबोध हैं. पात्रों द्वारा किये गये संवादों के शब्द उनकी योग्यता के अनुरूप हैं, किन्तु जहाँ जहाँ भी पात्रों की मानसिकता दर्शानी है वहां वहां इनकी भाषा का भावात्मक रूप उभरकर सामने आता हैं. तत्सम तद्भव और देशज शब्दों के प्रयोग से भाषा के कथ्य जीवंत हैं. मुहावरों व कहावतों का प्रयोग यथास्थान सुंदर बना हैं. इनकी कहानियों में समकालीन कहानीकारों की तरह किसी न किसी प्रकार के जीवन मूल्यों की स्थापना लक्षित होती हैं, सुदर्शन ने मानवीय व्यवहार तथा मानवों को अच्छी बुरी प्रवृत्तियों से भली भांति जाना पहचाना हैं. उसी के अनुरूप वे अपनी कहानी का स्वरूप बनाते हैं. अतः इनकी कहानियों में उद्देश्य निष्ठता और सर्वत्र प्रेरणा के स्रोत प्रवाहमान दिखाई देते हैं. सुदर्शन की कहानी कलाप्रेमचंद युग के लोकप्रिय कथाकारों में सुदर्शन महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. इनका मूल नाम बद्रीनाथ भट्ट व उपनाम सुदर्शन हैं. सुदर्शन जी अविभाजित पंजाब के स्यालकोट जिले में पैदा हुए थे. आपका हिंदी व उर्दू भाषाओं पर समान अधिकार था. सुदर्शन कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद के अनुयायी थे. यदपि आपने उपन्यास व नाटक भी लिखे हैं, तथापि आपकी प्रसिद्धि का कारण कहानियाँ ही हैं. सुदर्शन की पहली कहानी 1920 में हार की जीत नाम से प्रकाशित हुई थी और इसी पहली कहानी को ही उनकी श्रेष्ठतम रचनाओं में से एक मानी जाती हैं. पहले उन्होंने उर्दू में भी कुछ कहानियाँ लिखी पर सफलता इन्हें हिंदी कहानी में ही मिली. सुदर्शन मानवीय भावों के कुशल चितेरे थे. उनकी कहानियाँ अत्यंत सहज एवं सरल हैं. उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह सुदर्शन सुधा, सुदर्शन सुमन, पुष्पलता, तीर्थयात्रा, पनघट, गल्प मंजरी, सुप्रभात, नगीने व प्रमोद हैं. उनकी अधिकांश कहानियों में सामाजिक समस्याओं ही चित्रित हुई हैं. जिसमें आपकों अपूर्व सफलता भी मिली हैं. ये आर्य समाजी थे अतः समाज सुधारक का रूप सुदर्शन की कहानियों में स्पष्टतः प्रतिबिम्बित हुआ हैं. कहीं कहीं इनकी सुधारवादी प्रवृत्ति कहानी कला पर हावी हो गई हैं. अतः उन पर घोर आदर्शवादी होने का दोष भी लगाया जाता हैं. पर वे मानवीय मूल्यों का सूक्ष्म अंकन करते हैं. इसलिए उनकी कहानियाँ पाठक के मर्म को छूती हैं. सुदर्शन की कहानियों की कथावस्तु रोचक, प्रभावशाली और दिल को छू लेने वाली होती हैं. कहानियों का शीर्षक उनका प्रारम्भ और अंत निसंदेह आकर्षक व कौतूहलपूर्ण हैं. राष्ट्र व समाज की मंगल कामना ही इनकी कहानियों का मूल कथ्य हैं. वे कथा वस्तु का ताना बाना इस तरह बुनते हैं कि अंत तक पाठक की जिज्ञासा बनी रहती हैं. कहानियों का विकास, कथोपकथन सुंदर सरल व स्वाभाविक हैं. संवादों के द्वारा जहाँ एक ओर कहानी की घटनाओं को गति मिलती हैं वहीँ दूसरी तरफ उनके माध्यम से पात्रों के चरित्रांकन को भी उभारा गया हैं. वातावरण सृजन व चरित्रीकरण में आपको अद्भुत सफलता मिली हैं. सुदर्शन की कहानी के पात्र जीवंत होते हैं. फ़िल्मी लेखक करियरसुदर्शन जी गद्य और पद्य दोनों में दक्ष थे. इन्होने साहित्य सृजन के साथ ही साथ कई फिल्मों के लिए भी पटकथा और गीत लिखे हैं. साल 1941 में सोहराब मोदी की बनाई फिल्म सिकन्दर की स्क्रिप्ट इन्होने ही लिखी थी. वर्ष 1935 में इनके निर्देशन में कुँवारी या विधवा फिल्म भी बनी. वर्ष 1950 में बने फिल्म लेखक संघ के ये उपाध्यक्ष भी बनाएं गये. अगर सुदर्शन जी के लोकप्रिय फ़िल्मी गीतों के सफर की बात करें तो फिल्म धूप छाँव का गीत बाबा मन की आँखे खोल तथा तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफ़िर जाग ज़रा इन्ही की कलम से लिखे गये थे. यह भी पढ़े
उम्मीद करता हूँ दोस्तों Biography Of Hindi Writer Sudarshan In Hindi का यह आर्टिकल आपकों पसंद आया होगा. यदि आपकों सुदर्शन का जीवन परिचय, जीवनी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें. सुदर्शन जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?इनका जन्म सियालकोट में 1895 में हुआ था। प्रेमचन्द के समान वह भी ऊर्दू से हिन्दी में आये थे। लाहौर की उर्दू पत्रिका हज़ार दास्ताँ में उनकी अनेकों कहानियां छपीं। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं।
सुदर्शन जी का जन्म कब हुआ * 1 Point?सुदर्शन का वास्तविक नाम बदरीनाथ था। आपका जन्म सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में १८९६ में हुआ था।
सुदर्शन जी का जन्म कब हुआ था * A 29 मई 1895 B 29 जून 1895 C 29 मई 1995 D 26 जून 1962?इसे सुनेंरोकेंपरिचय सुदर्शन का जन्म वर्ष 1896 ई. में सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था।
सुदर्शन जी का पूरा नाम क्या था?केएस सुदर्शन का पूरा नाम कुप्प्हल्ली सीतारमैया सुदर्शन था।
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