तोड़ती पत्थर कविता में कवि ने स्त्री को कहाँ के पथ पर देखा? - todatee patthar kavita mein kavi ne stree ko kahaan ke path par dekha?

Solution : वह तोड़ती पत्थर' कविता में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी जी ने इलाहाबाद में भयानक गर्मी में रास्ते पर पत्थर तोड़ने का काम करने वाली एक मजदूर स्त्री को देखा। <br> कड़ी धूप में वह पत्थर तोड़ने का मेहनत का काम कर रही थी। उसके नजदीक कोई भी पेड़ नहीं था जिसके नीचे बैठकर छाँव में वह अपना काम कर सके। कवि ने देखा कि पत्थर तोड़ने जैसा कठिन काम कड़ी धूप में करने के लिए उसके जीवन की विवशता ने मजबूर किया है। उसके सामने विशाल भवन है जिसे वह अनदेखा करती है जैसे उसे वह देखने से कोई फायदा भी न हो। उसके भाग्य में तो पत्थर ही तोड़ना लिखा है। उसे जलती हुई धूप और गर्म हवा ही आखिर सहनी है। <br> उस स्त्री के हृदय के सितार ऐसी विवशता से टूटकर उसके तार छिन्न होते हैं जिसकी करुण ध्वनि कवि को सुनाई देती है तो उनका हृदय दहल जाता है। <br> उस स्त्री को किसी भी बात में दिलचस्पी नहीं वह कवि को भी बडी उपेक्षा से देखती है। अपने माथे का पसीना पोंछकर फिर अपने काम में लग जाती है। <br> इस तरह कवि ने इलाहाबाद के पथ पर कड़ी धूप में पत्थर तोड़ने वाली लीन स्त्री को अपने काम के प्रति श्रद्धा रखते हुए देखा है।

नारी कहाँ पत्थर तोड़ रही है?

सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार। वह तोड़ती पत्थर। सजा सहज सितार, सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।

पत्थर तोड़ती हुई औरत को कवि ने कौन से स्थान पर देखा था *?

कर्म-रत मन। निराला रचित कविता 'तोड़ती पत्थर' से गृहीत प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उस पत्थर तोड़नेवाली मजदूरनी के रूप-रंग का वर्णन किया है जिसे उसने इलाहाबाद के पथ पर देखा था

पत्थर तोड़ने वाली स्त्री कहाँ बैठकर काम कर रही थी और वहाँ किस चीज की कमी थी?

उत्तर: पत्थर तोड़नेवाली स्त्री इलाहाबाद में सड़क के किनारे बैठकर काम कर रही थी और वहाँ छायादार वृक्ष की कमी थी

वह तोड़ती पत्थर कविता का उद्देश्य क्या है?

मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा। वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी।