Deep se Deep Jale Kavita, दीप से दीप जले, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार Deep se Deep Jale Kavita उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें इसे भी पढ़ें: माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचयमाखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ
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