Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 3 नीति के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers. Show Hindi Guide for Class 10 PSEB नीति के दोहे Textbook Questions and Answers (क) विषय-बोध I. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें (1) रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। (2) कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता
अधिकाय। (3) मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान। (ख) भाषा-बोध निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें: सम्पत्ति = ———– निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएं: प्रकृति = ———– निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाएं: लघु = ———– (ग) पाठ्येतर सक्रियता प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (घ) ज्ञान विस्तार रहीम, बिहारी तथा वृंद ने अपने काव्य की रचना दोहा छंद में की है, जिसके पहले तथा तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं, जैसे- यहाँ पहली तथा तीसरी में 13-13 और दूसरी तथा चौथी में 11-11 मात्राएँ हैं, इसलिए दोहा छंद हुआ। (I = एक मात्रा, s = दो मात्राएँ) PSEB 10th Class Hindi Guide नीति के दोहे Important Questions and Answers प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. नीति के दोहे दोहों की सप्रसंग व्याख्या 1. कहि रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
2. एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
3.
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
4. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
5. कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
6. इहि आशा अटक्यो रहै, अलि गुलाब के मूल। शब्दार्थ: व्याख्या: विशेष:
7. सोहतु संगु समानु सो, यहै कहै सब लोग। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
8. गुनी गुनी सबकै कहैं, निगुनी गुनी न होतु। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
9. करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
10. फेर न ह्वै है कपट सों, जो कीजै व्यापार। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
11. मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
12. अरि छोटो गनिये नहीं, जाते होत बिगार। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
नीति के दोहे Summaryनीति के दोहे रहीम कवि परिचय रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनका जन्म सन् 1553 ई० में हुआ था। इनके पिता अकबर बादशाह के अभिभावक मुग़ल सरदार बैरम खाँ खानखाना थे। अकबर के राज्यकाल में ये अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। ये संस्कृत, अरबी, फारसी, ब्रज, अवधी आदि भाषाओं के विद्वान् तथा हिंदी काव्य के रचयिता थे। ये अत्यंत पानी तथा परोपकारी व्यक्ति थे। गोस्वामी तुलसीदास इनके प्रिय मित्र थे। इन्होंने मुग़ल साम्राज्य के विस्तार के लिए अनेक युद्ध भी लड़े थे। जहाँगीर के शासनकाल में इन्हें राजद्रोह के अपराध में बंदी बना लिया गया था तथा इनकी सारी जागीर भी छीन ली गई थी। इनकी वृद्धावस्था बहुत ग़रीबी में बीती थी। सन् 1625 ई० में इनका देहांत हो गया था। रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, श्रृंगार सोरठ, मदनाष्टक और रास पंचाध्यायी हैं। इनकी भाषा अत्यंत सरल, सहज तथा शैली भावानुरूप है। इन्होंने दोहा, सोरठा, सवैया, कवित्त, बरवै छंदों का प्रयोग किया है। नीति के दोहे बिहारी कवि परिचय रीतिकाल के सप्रसिद्ध कवि बिहारी का जन्म सन्
1603 ई० में बसुआ गोबिंदपुर गाँव (ग्वालियर) में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवराय था। बिहारी ने अपनी शिक्षा महात्मा नरहरिदास के आश्रम में रह कर ग्रहण की थी। इनका विवाह मथुरा में हुआ था तथा इनकी पत्नी भी विदुषी एवं कवयित्री थी। बिहारी को मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपने दरबार में आमंत्रित किया था। जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह के ये दरबारी कवि थे। एक बार जयपुर के राजा जयसिंह अपनी नव विवाहिता पत्नी के राग-रंग में इतने अधिक तल्लीन हो गए थे कि अपना समस्त राज-काज भी भुला बैठे थे तब बिहारी ने उन्हें निम्नलिखित
दोहा लिख कर भिजवाया था- इस दोहे ने महाराज को सचेत कर दिया था तथा वे राज-काज में रुचि लेने लगे थे। बिहारी रीति काल के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। सन् 1664 ई० में वृंदावन में इनका स्वर्गवास हो गया था। रचनाएँ: बिहारी द्वारा रचित केवल ‘सतसई’ ही मिलती है। इसमें सात सौ तेरह दोहे हैं। कुछ विद्वानों ने दोहों की संख्या सात सौ छब्बीस भी मानी है। इस रचना में मुख्य रूप से श्रृंगार रस की प्रधानता है। कवि ने श्रृंगार रस के अतिरिक्त नीति, वैराग्य, भक्ति आदि से संबंधित कुछ दोहों की रचना की है। बिहारी सतसई की लोकप्रियता से प्रभावित होकर इसकी अनेक टीकाएँ भी की गई हैं। संस्कृत, उर्दू, फारसी, खड़ी बोली, अंग्रेज़ी, मराठी आदि भाषाओं में भी इसके अनुवाद किए गए हैं। नीति के दोहे वृन्द कवि परिचय वृन्द रीतिकाल के ‘सूक्तिकार’ कवियों में प्रमुख माने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1685 ई० में मेड़ता (मेवाड़) जोधपुर में हुआ था। ये कृष्णगढ़ नरेश महाराज राजसिंह के गुरु थे। इनके संबंध में प्रसिद्ध है कि ये कृष्णगढ़ नरेश के साथ औरंगज़ेब की सेना में ढाका तक गए थे। इनके वंशजों के बारे में कहा जाता है कि वे अब भी कृष्णगढ़ में रहते हैं। इनका देहावसान सन् 1765 ई० में हुआ था। रचनाएँ-वृन्द की प्रमुख रचना ‘वृन्द सतसई’ है। इसमें नीति से संबंधित सात सौ दोहे हैं। इनकी अन्य रचनाएँ ‘श्रृंगार शिक्षा’, ‘पवन पचीसी’, ‘हितोपदेश संधि’, ‘वचनिका’ तथा ‘भावपंचाशिका’ हैं। इनकी काव्य भाषा अत्यंत सरल, सहज, सरस तथा भावपूर्ण है। अपने काव्य में इन्होंने सूक्तियों का बहुत सुंदर तथा सटीक प्रयोग किया है। नीति के दोहे रहीम दोहों का सार पाठ्य-पुस्तक में रहीम जी के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में कवि ने कहा है कि अच्छे समय में तो सभी मित्र बन जाते हैं परंतु सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत के समय साथ देता है। दूसरे दोहे में कवि एकनिष्ठ भाव से एक की ही साधना करने पर बल देते हैं। तीसरे दोहे में स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ करने का लाभ बताया गया है तथा चौथे दोहे में बड़ी वस्तु देखकर छोटी वस्तु की उपयोगिता को नहीं भूलने के लिए कहा गया है। नीति के दोहे बिहारी दोहों का सार पाठ्यपुस्तक में बिहारी के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में धन-संपत्ति के नशे, दूसरे दोहे में मनुष्य के आशावादी होने का, तीसरे दोहे में एक जैसे स्वभाव वालों के परस्पर मेल-जोल से रहने तथा चौथे दोहे में कवि ने गुणों के महत्त्व का वर्णन किया है। नीति के दोहे बिहारी दोहों का सार पाठ्यपुस्तक में वृन्द के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में कवि ने परिश्रम का महत्त्व बताया है, जिससे हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे दोहे में कवि ने बताया है कि जैसे काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती वैसे ही चालाकी भी बार-बार नहीं की जा सकती। तीसरा दोहा मधुर वचन का प्रभाव स्पष्ट करता है। चौथे दोहे में अपने शत्रु को भी कमज़ोर नहीं समझने का संदेश दिया गया है। धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया?व्याख्या-धतूरे की अपेक्षा सोने में सौ गुना अधिक मादकता होती है, क्योंकि धतूरे को खाने पर आदमी पागल हो जाता है, जबकि सोने (स्वर्ण) की प्राप्ति होने पर भी वह पागल हो जाता है अर्थात् । सोना मिलने पर वह घमण्डी हो जाता है।
नाम बड़ा होने से कोई बड़ा नहीं हो जाता इस कथन की पुष्टि के लिए कवि ने कौन सा उदाहरण दिया है?1 Answer. धतूरे को कनक (सोना) कहने से वह बड़ा नहीं हो जाता क्योंकि उससे गहने नहीं बनाए जा सकते। (उसमें बड़ा होने का गुण नहीं है।)
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