धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 3 नीति के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

Hindi Guide for Class 10 PSEB नीति के दोहे Textbook Questions and Answers

(क) विषय-बोध

I. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
रहीम जी के अनुसार सच्चे मित्र की क्या पहचान है?
उत्तर:
रहीम जी के अनुसार जो व्यक्ति मुसीबत में काम आता है, वही सच्चा मित्र होता है।

प्रश्न 2.
ज्ञानी व्यक्ति संपत्ति का संचय किस लिए करते हैं?
उत्तर:
ज्ञानी व्यक्ति संपत्ति का संचय परोपकार अथवा दूसरों की भलाई के लिए करते हैं।

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

प्रश्न 3.
बिहारी जी के अनुसार किस का साथ शोभा देता है?
उत्तर:
बिहारी जी के अनुसार एक जैसे स्वभाव अथवा प्रकृति वालों का साथ शोभा देता है।

प्रश्न 4.
बिहारी जी ने मानव को आशावादी होने का क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
बिहारी जी ने संदेश दिया है कि मनुष्य को निराश न हो कर आने वाले अच्छे दिनों के लिए आशावादी होना चाहिए।

प्रश्न 5.
छल और कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चल सकता-इस के लिए वृन्द जी ने क्या उदाहरण दिया है?
उत्तर:
वृन्द जी के अनुसार जैसे काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती उसी प्रकार छल और कपट का व्यवहार भी बार-बार नहीं चल सकता।

प्रश्न 6.
निरंतर अभ्यास से व्यक्ति कैसे योग्य बन जाता है? वृन्द जी ने इस के लिए क्या उदाहरण दिया है?
उत्तर:
जैसे बार-बार रस्सी घिसने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, वैसे ही निरंतर अभ्यास से अयोग्य व्यक्ति भी योग्य बन जाता है।

प्रश्न 7.
शत्रु को कमज़ोर या छोटा क्यों नहीं समझना चाहिए?
उत्तर:
शत्रु को कमज़ोर या छोटा नहीं समझना चाहिए क्योंकि शत्रु के प्रति लापरवाही बहुत हानि पहुँचा सकती है जैसे तिनकों के बड़े ढेर को आग का छोटा-सा अंगारा क्षण भर में जला कर राख कर देता है।

II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

(1) रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहां काम आवे सुई, का करे तरवारि।।
उत्तर:
रहीम जी कहते हैं कि किसी बड़े व्यक्ति अथवा वस्तु को देखकर हमें छोटे व्यक्ति अथवा वस्तु को छोड़ नहीं देना चाहिए अथवा उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि आवश्यकता के समय जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार किसी काम नहीं आती।

(2) कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वह खाये बौराय है, यह पाये बौराय।
उत्तर:
महाकवि बिहारी कहते हैं कि धतूरे की तुलना में स्वर्ण में सौगुना अधिक नशा होता है क्योंकि धतूरे को खाने पर नशा होता है जबकि सोने के प्राप्त होने पर ही नशा हो जाता है। जो नशा धतूरा खाने पर होता है, उससे कहीं अधिक नशा धन-वैभव के प्राप्त होने पर होता है।

(3) मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान।
तनिक सीत जल सो मिटे, जैसे दूध उफान।।
उत्तर:
कवि कहता है कि मधुर वचनों अथवा मीठी वाणी के बोलों से किसी भी अभिमानी व्यक्ति के गर्व को उसी प्रकार से शांत किया जा सकता है जैसे थोड़े से ठंडे पानी के छींटों से उबलते हुए दूध के उफ़ान को कम कर लिया जाता है।

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

(ख) भाषा-बोध

निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें:

सम्पत्ति = ———–
उत्तम = ———–
हित = ———–
आशा = ———–
बैर। = ———–
उत्तर:
शब्द – विपरीत शब्द
संपति – विपत्ति
उत्तम – अधम
हित – अहित।
आशा – निराशा
बैर – मिलाप।

निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएं:

प्रकृति = ———–
विष = ———–
बल = ———–
मूल = ———–
हित = ———–
व्यापार। = ———–
उत्तर:
शब्द विशेषण
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
प्रकृति – प्राकृतिक
विष – विषैला
बल – बलवान
मूल – मूलभूत
हित – हितैषी
व्यापार। – व्यापारिक।

निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाएं:

लघु = ———–
मादक = ———–
एक = ———–
मधुर। = ———–
उत्तर:
शब्द – भाववाचक संज्ञा
लघु – लघुता
मादक – मादकता
एक – एकता
मधुर – मधुरता।

(ग) पाठ्येतर सक्रियता

प्रश्न 1.
अध्यापक महोदय उपर्युक्त नीति के दोहों पर आधारित शिक्षाप्रद कहानियाँ छात्र/छात्राओं को सुनाएं और उनसे भी इस प्रकार की कोई सच्ची घटना अथवा कहानी सुनाने के लिए कहें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)

प्रश्न 2.
छात्र-छात्राएँ इस प्रकार के अन्य दोहों का संकलन कर विद्यालय की भित्ति पत्रिका पर लगाएँ।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)

प्रश्न 3.
कक्षा में ‘दोहा गायन प्रतियोगिता’ में सक्रिय रूप से भाग लें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें)

प्रश्न 4.
रहीम अथवा अन्य कवियों के द्वारा रचित दोहों की ऑडियो/वीडियो सी०डी० लेकर अथवा इंटरनेट के माध्यम से सुनें/देखें। उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें)

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

(घ) ज्ञान विस्तार

रहीम, बिहारी तथा वृंद ने अपने काव्य की रचना दोहा छंद में की है, जिसके पहले तथा तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं, जैसे-

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

यहाँ पहली तथा तीसरी में 13-13 और दूसरी तथा चौथी में 11-11 मात्राएँ हैं, इसलिए दोहा छंद हुआ। (I = एक मात्रा, s = दो मात्राएँ)

PSEB 10th Class Hindi Guide नीति के दोहे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रहीम ने सब को साधने का क्या उपाय बताया है?
उत्तर:
रहीम जी मानते हैं कि एक की साधना पूरी तरह करने से सब सध जाते हैं तथा मनुष्य को अपना लक्ष्य भी प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
सुई के महत्त्व से रहीम जी क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर:
कवि यह कहना चाहते हैं कि संसार में कोई भी वस्तु महत्त्वहीन नहीं होती है। छोटी-से छोटी वस्तु का भी अपना महत्त्व होता है। इसलिए कुछ बड़ा पा कर छोटे को त्यागना नहीं चाहिए क्योंकि जो काम छोटी-सी सुई कर सकती है वह काम तलवार नहीं कर सकती।

प्रश्न 3.
बिहारी के अनुसार किस का नशा नशीले पदार्थ के सेवन से भी अधिक होता है?
उत्तर:
बिहारी जी के अनुसार सोने अर्थात् धन-संपत्ति का नशा नशीले पदार्थ से भी सौ गुणा अधिक होता है क्योंकि जिस के पास धन-संपत्ति आ जाती है वह उसी के नशे में अहंकारी बन जाता है।

प्रश्न 4.
बिहारी के अनुसार गुणवान कौन होता है?
उत्तर:
बिहारी जी का मानना है कि किसी गुणहीन व्यक्ति को बार-बार गुणी-गुणी कहते रहने से वह गुणवान नहीं बन जाता क्योंकि सच्चा गुणी तो वही होता है जिसमें स्वाभाविक रूप से सद्गुण होते हैं।

प्रश्न 5.
वृन्द जी के अनुसार मधुर वाणी के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
वृन्द जी के अनुसार मीठे वचनों का प्रयोग करने से क्रोधी तथा अभिमानी व्यक्ति के क्रोध एवं अहंकार को उसी प्रकार शांत कर सकते हैं जैसे उबलते हुए दूध के उफान को ठंडे जल के छींटे मारने से शांत किया जाता है।

एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रहीम के अनुसार लोग कब हमारे सगे बन जाते हैं?
उत्तर:
जब हमारे पास सम्पत्ति होती है।

प्रश्न 2.
बिहारी ने किस में धतूरे से भी अधिक मादकता बताई है?
उत्तर:
बिहारी ने सोने में धतूरे से भी अधिक मादकता बताई है।

प्रश्न 3.
काजल की शोभा कहाँ होती है?
उत्तर:
काजल आँखों में सुशोभित होता है।

प्रश्न 4.
मधुर वचनों से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
मधुर वचनों से क्रोधी के क्रोध को शांत तथा अभिमानी के गर्व को शांत किया जा सकता है।

बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
सज्जन किसके लिए धन एकत्र करते हैं?
(क) परहित
(ख) स्वहित
(ग) राजहित
(घ) परलोक हित।
उत्तर:
(क) परहित

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

प्रश्न 2.
गुलाब के मूल से कौन अटका रहता है?
(क) कलि
(ख) अलि
(ग) कली
(घ) आली।
उत्तर:
(ख) अलि

प्रश्न 3.
अरक का अर्थ है
(क) चंद्रमा
(ख) तारे
(ग) दीपक
(घ) सूर्य।
उत्तर:
(घ) सूर्य

एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न

प्रश्न 1.
ठंडे जल के छींटे से किसका उफान मिट जाता है? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
दूध का

प्रश्न 2.
सोने को पाकर ही मनुष्य बौरा जाता है। (सही या गलत में उत्तर लिखें।)
उत्तर:
सही

प्रश्न 3.
जहाँ तलवार काम आती है वहाँ सुई भी काम आती है। (सही या गलत में उत्तर लिखें)
उत्तर:
गलत

प्रश्न 4.
वृक्ष अपने फल स्वयं खाते हैं। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 5.
शत्रु को कम समझने से हानि होती है। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 6.
जैसे ……….. काठ की, चढ़ें न ………. बार।
उत्तर:
हाँडी, दूजी

प्रश्न 7.
सोहतु संगु ……… सों, यहै कहै ……… लोग।
उत्तर:
समानु, सब

प्रश्न 8.
रहिमन देखि ………… को, लघु न ………… डारि।
उत्तर:
बड़ेन, दीजिये।

नीति के दोहे दोहों की सप्रसंग व्याख्या

1. कहि रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपत कसौटी जे कसे, सोई साँचै मीत।।

शब्दार्थ:
कहि = कहते हैं। सम्पति = धन-दौलत। सगे = सगे-संबंधी। बनत = बनते हैं। बहु = अनेक। रीति = प्रकार। विपत = मुसीबत। जे = जो। कसौटी कसे = कसौटी पर खरा उतरना। सोई = वही। साँचे = सच्चा। मीत = मित्र।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ पाठ में से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने सच्चे मित्र के लक्षण बताये हैं।

व्याख्या:
रहीम जी कहते हैं कि जब पास में धन-दौलत होती है तो अनेक प्रकार से लोग हमारे सगे-संबंधी-मित्र आदि बन जाते हैं परंतु जो मुसीबत रूपी कसौटी पर कसे जाने के समय साथ देता है वही सच्चा मित्र होता है।

विशेष:

  1. कठिनाई में काम आने वाले ही सच्चा मित्र होता है।
  2. भाषा सरल, सरस, सहज और दोहा छंद है। अनुप्रास अलंकार है।

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

2. एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
रहिमन सींचे मूल को, फूलै फलै अधाय।।

शब्दार्थ:
मूल = जड़। फूलै = फूल आना। फलै = फल आना। अधाय = तृप्त होना।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ में से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने एकनिष्ठ भाव से एक की आराधना करने पर बल दिया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि एकनिष्ठ भाव से एक ईश्वर की आराधना करने से सब को साध लिया जाता है जबकि सब की साधना करने से सभी हाथ नहीं आते अथवा सब कुछ नष्ट हो जाता है। रहीम जी उदाहरण देकर समझाते हैं कि जैसे किसी वृक्ष की जड़ को सींचने से वह फलता-फूलता है तथा उसके फलों को खा कर सब तृप्त हो जाते हैं।

विशेष:

  1. अपना ध्यान एक लक्ष्य की ओर केंद्रित करने से ही सफलता की प्राप्ति होती है।
  2. भाषा सहज, सरल, भावानुकूल तथा दोहा छंद है। अनुप्रास अलंकार है।

3. तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, सम्पति संचहिं सुजान।

शब्दार्थ:
तरूवर = वृक्ष, पेड़। खात = खाना। सरवर = तालाब। पान = पानी। परकाज = परोपकार, दूसरे की भलाई। हित = के लिए। संचहिं = एकत्र करना। सुजान = अच्छे लोग, सज्जन।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने परोपकार की महत्ता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि वृक्ष कभी भी अपने फल नहीं खाता और तालाब भी अपना जल कभी नहीं पीता। रहीम जी कहते हैं कि दूसरों की भलाई के लिए ही सज्जन धन-दौलत एकत्र करते हैं।

विशेष:

  1. मनुष्य को अपनी धन-संपत्ति का सदुपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए।
  2. भाषा सरल, सरस, दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार है।

4. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, का करे तरवारि।।

शब्दार्थ:
लघु = छोटा, तुच्छ। तरवारि = तलवार।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने कहा है कि हमें छोटी वस्तु के महत्त्व को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए।

व्याख्या:
रहीम जी कहते हैं कि किसी बड़े व्यक्ति अथवा वस्तु को देखकर हमें छोटे व्यक्ति अथवा वस्तु को छोड़ नहीं देना चाहिए अथवा उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि आवश्यकता के समय जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार किसी काम नहीं आती।

विशेष:

  1. हमें बड़ी वस्तु अथवा संपन्न व्यक्ति को देखकर छोटी वस्तु अथवा निर्धन व्यक्ति की उपयोगिता को भूलना नहीं चाहिए। दोनों का सम्मान करना चाहिए।
  2. भाषा सरल, भावानुरूप, दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार है।

5. कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
बह खाये बौरात है, इहिं पाये बौराय।।

शब्दार्थ:
कनक = धतूरा, सोना। मादकता = नशा। बौराय = पागल हो जाता है।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है जिसमें कवि ने यह बताया है धन और वैभव का नशा मनुष्य को पागल बना देता है। धनी व्यक्ति नशा करने वाले व्यक्ति की तरह व्यवहार करने लगता है।

व्याख्या:
महाकवि बिहारी कहते हैं कि धतूरे की तुलना में स्वर्ण में सौगुना अधिक नशा होता है क्योंकि धतूरे को खाने पर नशा होता है जबकि सोने के प्राप्त होने पर ही नशा हो जाता है। जो नशा धतूरा खाने पर होता है, उससे कहीं अधिक नशा धन-वैभव के प्राप्त होने पर होता है।

विशेष:

  1. धन-संपत्ति पाकर मनुष्य अहंकारी बन जाता है।
  2. दोहा छंद, ब्रज भाषा तथा यमक अलंकार है।

6. इहि आशा अटक्यो रहै, अलि गुलाब के मूल।
हो इहै बहुरि बसन्त ऋतु, इन डारनि पै फूल॥

शब्दार्थ:
इहि = इस। अलि = भँवरा। मूल = जड़। होइहै = हो जाएगी। बहरि = फिर। _प्रसंग-प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने मनुष्य को सदा आशावादी रहने का संदेश दिया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि फूल न होने पर भी इस उम्मीद से भँवरा गुलाब की जड़ के पास रहता है कि फिर से बसंत ऋतु आएगी और इन डालियों पर फूल खिल जाएँगे। भाव यह है कि मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि दुःख के बाद सुख आता ही है।

विशेष:

  1. कवि ने मनुष्य को अपना कर्म करते हुए निरन्तर आशावादी बने रहने का संदेश दिया है।
  2. ब्रज भाषा, दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार है।

7. सोहतु संगु समानु सो, यहै कहै सब लोग।
पान पीक ओठनु बनैं, नैननु काजर जोग।।

शब्दार्थ:
सोहतु = शोभामान होता है। संगु = साथ। यहै = यही। काजर = काजल।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि बताता है कि एक जैसे स्वभाव वालों का साथ सदा बना रहता है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि एक जैसे स्वभाव वाले लोगों का साथ ही सदा रहता है ऐसा ही सब लोग भी कहते हैं क्योंकि पानी की पीक की लालिमा सदा ओंठों पर तथा काजल आँखों में सुशोभित होता है। पान की पीक की लालिमा ओंठों के लिए तथा काजल आँखों के लिए बना है।

विशेष:

  1. समान प्रकृति तथा स्वभाव के व्यक्तियों का साथ सदा बना रहता है।
  2. ब्रज भाषा, दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार है।

8. गुनी गुनी सबकै कहैं, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यौ कहूँ तरू अरक तें, अरक-समान उदोतु॥

शब्दार्थ:
गुनी = गुणवान। कहैं = कहने से। निगुनी = गुणहीन। तरू = वृक्ष । अरकतें = आक के। अरक-समान = सूर्य के समान। उदोतु = प्रकाशवान।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने स्पष्ट किया है कि कहने मात्र से ही गुणहीन व्यक्ति गुणवान नहीं हो सकता।

व्याख्या:
कवि कहता है कि सब लोगों के द्वारा किसी गुणहीन व्यक्ति को बार-बार गुणवान कहने से वह गुणहीन व्यक्ति गुणवान नहीं बन सकता क्योंकि कहीं यह नहीं सुना कि आक के वृक्ष में भी सूर्य के समान तेज तथा उजाला है। जैसे आक कहने से आक का वृक्ष अरक अर्थात् सूर्य नहीं हो सकता वैसे ही गुणहीन को गुणी-गुणी कहते रहने से वह गुणवान नहीं हो सकता है।

विशेष:

  1. गुणहीन को गुणी कहते रहने से उसे गुणवान नहीं बनाया जा सकता।
  2. ब्रज भाषा, दोहा छंद, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

9. करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।

शब्दार्थ:
जड़मति = मूर्ख। सुजान = विद्वान्, बुद्धिमान। रसरी = रस्सी। सिल = पत्थर, चट्टान।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा वृन्द द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने यह बताया है कि अभ्यास करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि बार-बार अभ्यास करने से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान् बन सकता है जैसे बार-बार रस्सी के घिसने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं।

विशेष:

  1. परिश्रम करने से व्यक्ति अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेता है।
  2. भाषा अत्यंत सरल, भावपूर्ण, दोहा छंद और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

10. फेर न ह्वै है कपट सों, जो कीजै व्यापार।
जैसे हाँडी काठ की, चढ़े न दूजी बार।।

शब्दार्थ:
फेर = दुबारा। ह्वै = फिर से होना। कपट = छल। काठ = लकड़ी। दूजी = दूसरी।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा वृन्द द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि छल-कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चलता है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि यदि कोई व्यक्ति छल-कपट और चालाकी से अपना कार्य करता है तो उसकी चालाकी एक बार तो चल जाती है परंतु बार-बार नहीं चलती जैसे काठ की हांडी एक बार तो चढ़ जाती है परंतु दोबारा नहीं चढ़ सकती।

विशेष:

  1. छल-कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चलता है।
  2. भाषा सरल, भावपूर्ण, दोहा छंद है।

11. मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान।
तनिक सीत जल सों मिटे, जैसे दूध उफान।।

शब्दार्थ:
मधुर = मीठे। वचन = शब्द, वाणी। अभिमान = घमंड, अहंकार। तनिक = थोड़े से। सीत = ठंडा। उफान = उबाल।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा वृन्द द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने मधुर वाणी के प्रभाव का वर्णन किया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि मधुर वचनों अथवा मीठी वाणी के बोलों से किसी भी अभिमानी व्यक्ति के गर्व को उसी प्रकार से शांत किया जा सकता है जैसे थोड़े से ठंडे पानी के छींटों से उबलते हुए दूध के उफ़ान को कम कर लिया जाता है।

विशेष:

  1. मधुर वाणी के प्रयोग से क्रोधी व्यक्ति के क्रोध तथा अभिमानी के गर्व को भी शांत किया जा सकता है।
  2. भाषा सरल, सहज, भावपूर्ण तथा दोहा छंद है।

12. अरि छोटो गनिये नहीं, जाते होत बिगार।
तृण समूह को तनिक में, जारत तनिक अंगार।

शब्दार्थ:
अरि = शत्रु, दुश्मन। गनिये = मानना, गिनना। बिगार = बिगड़ना। तृण = तिनका। तनिक = क्षण भर में। जारत = जलाना। तनिक = छोटा-सा। अंगार = आग का अंगारा।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा वृन्द द्वारा रचित ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने संदेश दिया है कि अपने छोटे-से-छोटे शत्रु को भी कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए।

व्याख्या:
कवि कहता है कि अपने शत्रु को कभी भी छोटा, तुच्छ या अपने से कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि इस से बहुत हानि हो जाती है। जिस प्रकार तिनकों के ढेर को आग का केवल एक अंगारा क्षणभर में जला कर नष्ट कर देता है वैसे ही शत्रु को कम समझने से हानि होती है।

विशेष:

  1. कभी भी किसी कार्य अथवा शत्रु को अपने से कम नहीं समझना चाहिए।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण, दोहा छंद और अनुप्रास अलंकार है।

नीति के दोहे Summary

नीति के दोहे रहीम कवि परिचय

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनका जन्म सन् 1553 ई० में हुआ था। इनके पिता अकबर बादशाह के अभिभावक मुग़ल सरदार बैरम खाँ खानखाना थे। अकबर के राज्यकाल में ये अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। ये संस्कृत, अरबी, फारसी, ब्रज, अवधी आदि भाषाओं के विद्वान् तथा हिंदी काव्य के रचयिता थे। ये अत्यंत पानी तथा परोपकारी व्यक्ति थे। गोस्वामी तुलसीदास इनके प्रिय मित्र थे। इन्होंने मुग़ल साम्राज्य के विस्तार के लिए अनेक युद्ध भी लड़े थे। जहाँगीर के शासनकाल में इन्हें राजद्रोह के अपराध में बंदी बना लिया गया था तथा इनकी सारी जागीर भी छीन ली गई थी। इनकी वृद्धावस्था बहुत ग़रीबी में बीती थी। सन् 1625 ई० में इनका देहांत हो गया था।

रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, श्रृंगार सोरठ, मदनाष्टक और रास पंचाध्यायी हैं। इनकी भाषा अत्यंत सरल, सहज तथा शैली भावानुरूप है। इन्होंने दोहा, सोरठा, सवैया, कवित्त, बरवै छंदों का प्रयोग किया है।

नीति के दोहे बिहारी कवि परिचय

रीतिकाल के सप्रसिद्ध कवि बिहारी का जन्म सन् 1603 ई० में बसुआ गोबिंदपुर गाँव (ग्वालियर) में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवराय था। बिहारी ने अपनी शिक्षा महात्मा नरहरिदास के आश्रम में रह कर ग्रहण की थी। इनका विवाह मथुरा में हुआ था तथा इनकी पत्नी भी विदुषी एवं कवयित्री थी। बिहारी को मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपने दरबार में आमंत्रित किया था। जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह के ये दरबारी कवि थे। एक बार जयपुर के राजा जयसिंह अपनी नव विवाहिता पत्नी के राग-रंग में इतने अधिक तल्लीन हो गए थे कि अपना समस्त राज-काज भी भुला बैठे थे तब बिहारी ने उन्हें निम्नलिखित दोहा लिख कर भिजवाया था-
“नाहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।
अलि कली ही सौ बंध्यौ, आगे कौन हवाल।”

इस दोहे ने महाराज को सचेत कर दिया था तथा वे राज-काज में रुचि लेने लगे थे। बिहारी रीति काल के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। सन् 1664 ई० में वृंदावन में इनका स्वर्गवास हो गया था।

रचनाएँ: बिहारी द्वारा रचित केवल ‘सतसई’ ही मिलती है। इसमें सात सौ तेरह दोहे हैं। कुछ विद्वानों ने दोहों की संख्या सात सौ छब्बीस भी मानी है। इस रचना में मुख्य रूप से श्रृंगार रस की प्रधानता है। कवि ने श्रृंगार रस के अतिरिक्त नीति, वैराग्य, भक्ति आदि से संबंधित कुछ दोहों की रचना की है। बिहारी सतसई की लोकप्रियता से प्रभावित होकर इसकी अनेक टीकाएँ भी की गई हैं। संस्कृत, उर्दू, फारसी, खड़ी बोली, अंग्रेज़ी, मराठी आदि भाषाओं में भी इसके अनुवाद किए गए हैं।

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया है - dhatoore kee apeksha sone ko adhik maadak kyon kaha gaya hai

नीति के दोहे वृन्द कवि परिचय

वृन्द रीतिकाल के ‘सूक्तिकार’ कवियों में प्रमुख माने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1685 ई० में मेड़ता (मेवाड़) जोधपुर में हुआ था। ये कृष्णगढ़ नरेश महाराज राजसिंह के गुरु थे। इनके संबंध में प्रसिद्ध है कि ये कृष्णगढ़ नरेश के साथ औरंगज़ेब की सेना में ढाका तक गए थे। इनके वंशजों के बारे में कहा जाता है कि वे अब भी कृष्णगढ़ में रहते हैं। इनका देहावसान सन् 1765 ई० में हुआ था।

रचनाएँ-वृन्द की प्रमुख रचना ‘वृन्द सतसई’ है। इसमें नीति से संबंधित सात सौ दोहे हैं। इनकी अन्य रचनाएँ ‘श्रृंगार शिक्षा’, ‘पवन पचीसी’, ‘हितोपदेश संधि’, ‘वचनिका’ तथा ‘भावपंचाशिका’ हैं। इनकी काव्य भाषा अत्यंत सरल, सहज, सरस तथा भावपूर्ण है। अपने काव्य में इन्होंने सूक्तियों का बहुत सुंदर तथा सटीक प्रयोग किया है।

नीति के दोहे रहीम दोहों का सार

पाठ्य-पुस्तक में रहीम जी के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में कवि ने कहा है कि अच्छे समय में तो सभी मित्र बन जाते हैं परंतु सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत के समय साथ देता है। दूसरे दोहे में कवि एकनिष्ठ भाव से एक की ही साधना करने पर बल देते हैं। तीसरे दोहे में स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ करने का लाभ बताया गया है तथा चौथे दोहे में बड़ी वस्तु देखकर छोटी वस्तु की उपयोगिता को नहीं भूलने के लिए कहा गया है।

नीति के दोहे बिहारी दोहों का सार

पाठ्यपुस्तक में बिहारी के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में धन-संपत्ति के नशे, दूसरे दोहे में मनुष्य के आशावादी होने का, तीसरे दोहे में एक जैसे स्वभाव वालों के परस्पर मेल-जोल से रहने तथा चौथे दोहे में कवि ने गुणों के महत्त्व का वर्णन किया है।

नीति के दोहे बिहारी दोहों का सार

पाठ्यपुस्तक में वृन्द के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में कवि ने परिश्रम का महत्त्व बताया है, जिससे हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे दोहे में कवि ने बताया है कि जैसे काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती वैसे ही चालाकी भी बार-बार नहीं की जा सकती। तीसरा दोहा मधुर वचन का प्रभाव स्पष्ट करता है। चौथे दोहे में अपने शत्रु को भी कमज़ोर नहीं समझने का संदेश दिया गया है।

धतूरे की अपेक्षा सोने को अधिक मादक क्यों कहा गया?

व्याख्या-धतूरे की अपेक्षा सोने में सौ गुना अधिक मादकता होती है, क्योंकि धतूरे को खाने पर आदमी पागल हो जाता है, जबकि सोने (स्वर्ण) की प्राप्ति होने पर भी वह पागल हो जाता है अर्थात् । सोना मिलने पर वह घमण्डी हो जाता है।

नाम बड़ा होने से कोई बड़ा नहीं हो जाता इस कथन की पुष्टि के लिए कवि ने कौन सा उदाहरण दिया है?

1 Answer. धतूरे को कनक (सोना) कहने से वह बड़ा नहीं हो जाता क्योंकि उससे गहने नहीं बनाए जा सकते। (उसमें बड़ा होने का गुण नहीं है।)