वैष्णो देवी के गुरु कौन थे? - vaishno devee ke guru kaun the?

जब सती जी (उमा देवी) अपने पिता राजा दक्ष के हवन कुण्ड में छलांग लगाने से जलकर मृत्यु को प्राप्त हुई। भगवान शिव जी उसकी अस्थियों के कंकाल को मोहवश सती जीे (पार्वती जी) जान कर दस हजार वर्ष तक कंधे पर लिए पागलों की तरह घूमते रहे। भगवान विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से सती जी के कंकाल को छिन्न-भिन्न कर दिया। जहां धड़ गिरा वहाँ पर उस को जमीन में गाढ़ दिया गया। इस धार्मिक घटना की याद बनाए रखने के लिए उसके उपर एक मन्दिर जैसी यादगार बना दी कि कहीं आने वाले समय में कोई यह न कह दे कि पुराण में गलत लिखा है। उस मन्दिर में एक स्त्री का चित्र रख दिया उसे वैष्णो देवी कहने लगे।

उसकी देख-रेख व श्रद्धालु दर्शकों को उस स्थान की कहानी बताने के लिए एक नेक व्यक्ति नियुक्त किया गया। उसको अन्य धार्मिक व्यक्ति कुछ वेतन देते थे। बाद में उसके वंशजों ने उस पर भेंट (दान) लेना प्रारम्भ कर दिया तथा कहने लगे कि एक व्यक्ति का व्यापार ठप्प हो गया था, माता के सौ रूपये संकल्प किए, एक नारियल चढ़ाया। वह बहुत धनवान हो गया। एक निःसन्तान दम्पति था, उसने माता के दो सौ रूपए, एक साड़ी, एक सोने का गले का हार चढ़ाने का संकल्प किया। उसको पुत्र प्राप्त हो गया।

इस प्रकार भोली आत्माऐं इन दन्त कथाओं पर आधारित होकर अपनी पवित्र गीता जी तथा पवित्र वेदों को भूल गए, जिसमें वह सर्व साधनाएं शास्त्र विधि रहित लिखी हैं। जिसके कारण न कोई सुख होता है, न कोई कार्य सिद्ध होता है, न ही परम गति अर्थात् मुक्ति होती है। (प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 मंत्र 23.24)। इसी प्रकार जहां देवी की आँखे गिरी वहाँ नैना देवी का मन्दिर व जहां जिह्ना गिरी वहाँ श्री ज्वाला जी के मन्दिर तथा जहां धड़ गिरा वहाँ वैष्णो देवी के मन्दिर की स्थापना हुई।

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वैष्णो देवीः जानें मां वैष्णो देवी के दरबार का महत्व, पौराणिक कथा और मां के भवन से जुड़ी ये हैं कुछ खास बातें

कहते हैं मां के दर्शनों का सौभाग्य केवल उन्ही को मिलता है जिन्हे मां का बुलावा आता है। और जिन्हे मां का निमंत्रण मिले वो भाग्यशाली कहलाते है। मां वैष्णो देवी की महिमा ही ऐसी है। तभी तो पूरे साल मां का दरबार भक्तों से गुलज़ार रहता है। हर समय मां के जयकारे गुंजायमान रहते हैं यहां। ना सर्दी का खौफ, ना भीषण गर्मी की परवाह, ना बरसात का डर। हर मौसम में मां के दर्शनों के लिए यहां भक्तों के पहुंचने का सिलसिला जारी रहता है। नवरात्र का पावन पर्व बस शुरू ही होने वाला है। नवरात्र के इन नौ दिनों में मां देवी दुर्गा के 9 रूपों  शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। वैष्णो देवी भी साक्षात दुर्गा हीं हैं। त्रिकूट पर्वत पर पिंडी के रूप मे विराजमान मां की क्या है पौराणिक कथा और भवन से जुड़ी कुछ खास बातें हम आपको बताते हैं।

मां वैष्णो देवी की पौराणिक कथा
जम्मू-कश्मीर में स्थित मां वैष्णो देवी हिंदुओं में सबसे ज्यादा पूजनीय देवी हैं। कहते हैं कि कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गई पर माँ वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं- ‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस – पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। वहाँ से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी हैरान थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? सभी लोग भोजन के लिए इक्ठ्ठे हुए तब कन्या रुपी माँ वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई तो भैरवनाथ ने खीर पूरी की जगह,  मांस और मदिरा मांगी। कन्या ने मना कर दिया। लेकिन भैरवनाथ ज़िद पर अड़ा रहा। भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब माँ ने उसके कपट को जान लिया। माँ रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ से छिपकर  इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ महीने तक तपस्या की।  यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। इस गुफा का उतना ही महत्व है जितना भवन का। 9 महीने बाद कन्या ने गुफा से बाहर देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। लेकिन जब वो नहीं माना तो तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा’ अथवा ‘भवन के नाम से प्रसिद्ध है।

वैष्णो देवी से जुड़ी कुछ खास बातें
-वैष्णो देवी का मंदिर अथवा भवन 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बात आता है इस दौरान रास्ते में और भी कई दिव्य स्थल मौजूद हैं जिनका धार्मिक महत्व है। इनमे बाणगंगा, अर्द्धकुंवारी, सांझी छत शामिल है।
-अर्द्धकुंवारी गुफा का उतना ही महत्व है जितना ही मां के भवन का। कहते हैं इसी गुफा में मां के कन्या रूप में 9 महीनों तक तपस्या की। इस गुफा को गर्भजून के नाम से भी जाना जाता है।
-जिस स्थान पर वैष्णो देवी पिंडियों, देवी काली , देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी  के रूप में गुफा में विराजमान हैं। वह स्थान ‘माता रानी का भवन’ कहलाता है। मान्यता है कि यहीं पर वैष्णो देवी ने भैरोनाथ का वध किया था।
-मौजूदा वक्त में माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जिस रास्ते का इस्तेमाल किया जाता है, वह गुफा में प्रवेश का प्राकृतिक रास्ता नहीं है। बल्कि भक्तों की ज्यादा भीड़ को देखते हुए प्राकृतिक गुफा का निर्माण किया गया है।
-जब मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या दस हजार से कम होती है, तब प्राचीन गुफा का द्वार खोल दिया जाता है और भक्त पुराने रास्ते से माता के दरबार तक पहुंच सकते हैं। लेकिन कहते है ये सौभाग्य बेहद ही कम भक्तों को मिल पाता है।
-मां वैष्णो देवी के दरबार में प्राचीन गुफा का महत्व इसीलिए भी ज्यादा है क्योंकि कहा जाता है कि यहां भैरव का शरीर मौजूद है।
-कहा जाता है कि यहीं पर भैरव को मां नेअपने त्रिशूल से मारा था और उसका सिर उड़कर भैरव घाटी में चला गया और शरीर इस गुफा में रह गया था।

वैष्णो देवी के गुरु कौन है?

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां वैष्णो के परम भक्त श्रीधर को माता ने भण्डारा करने को कहा। माता की बात मानकर श्रीधर ने पूरे गांव को आमंत्रित किया और साथ ही उन्होंने अपने गुरू गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरवनाथ को भी यज्ञ का निमंत्रण दिया।

वैष्णो देवी का असली नाम क्या है?

मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं।

माता वैष्णो देवी किसका रूप है?

मान्यता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए एक सुंदर राजकुमारी का अवतार लिया था। उन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर तपस्या की थी। बाद में उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के सूक्ष्म रूप में विलीन हो गया।

वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को क्यों मारा?

घाटी में कटकर गिरा भैरव का सिर माता गुफा के भीतर चली गईं। तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी गुफा के बाहर थे और उन्होंने भैरवनाथ से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया।