यह दुनिया किन्हें भूल गई हैं? - yah duniya kinhen bhool gaee hain?

उनको प्रणाम कविता व्याख्या सहित

unko prnam उनको प्रणाम

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।

कुछ कंठित औ’ कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !

जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !

एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !

कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !

थी उग्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
या जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ !
उनको प्रणाम !

दृढ़ व्रत औ’ दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत !
उनको प्रणाम !

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर !
उनको प्रणाम !

पृष्ठभूमि –

प्रस्तुत कविता प्रगतिवाद से प्रभावित कवि नागार्जुन की है। इस कविता में कवि ने कर्म का संदेश दिया है। कवि ने उपर्युक्त  पंक्तियों के हर एक अंतर पर उनको प्रणाम किया है जो कर्मशील है। यह कविता उनके संपन्नता से लेकर विपन्नता तक का परिणाम है। कवि ने पूरे कविता में कर्मशील होने का प्रमाण दिया है। छायावाद में और प्रगतिवाद  में आधारभूत अंतर होता है। छायावादी प्रकृति सौंदर्य प्रेमी होते हैं , प्रगतिवादी श्रम में विश्वास करते हैं। वह उसी में सौंदर्य को खोजते हैं। खेत में काम करने वाली किशोरी धान कूटती  युवतियां इन सभी के कर्मों में सौंदर्य की अनुभूति होती है। प्रगतिवादी मानते हैं यदि बालक पैदा हुआ तो वह कर्म करेगा , यह कर्म में ही सौंदर्य है। नागार्जुन वैसे तो किसी एक वाद में फस कर नहीं रहे किंतु उन्हें प्रगतिशील अथवा प्रयोगवाद कवि माना जाता है। वह मार्क्सवाद से भी प्रभावित हुए किंतु उन्हें जहां भी इन वाद में कमियां नजर आई वहां उन्होंने फटकार भी लगाया है। बाबा नागार्जुन  की भाषा में विभिन्नता इसलिए मिलती है क्योंकि वह एक जगह टिककर नहीं रहते। वह घुमक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे। इसी स्वभाव के कारण उनका नाम यात्री पड़ गया था। वह दुर्गम घाटियों में अथवा सुदूर देशों में भी यात्रा करने से नहीं रुकते। वह अपने गांव में जब यात्रा करके लौटते तो वहां के जीवन को वह जी भर कर जिया करते थे। इस सभी यात्रा में जीवन के अनुभव आदि को उन्होंने उनको प्रणाम कविता में कर्मशील होने का संदेश देकर पूरा किया है।

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम  ………………………………………………………उनको प्रणाम !

मैं उन सभी व्यक्तियों को प्रणाम करता हूं जिन्होंने अपने कार्य में सफलता प्राप्त नहीं की उन्होंने कार्य का आरंभ तो पूरे उत्साह से किया था , किंतु वह कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। मैं वैसे लोगों के कार्य आरंभ करने के लिए प्रणाम करता हूं। मैं उन वीरों को प्रणाम करता हूं जिनके मंत्रों द्वारा लक्ष्य किए गए अभिमंत्रित वाणों की समाप्ति से पहले ही समाप्त हो गए। मैं ऐसे शूरवीरों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं उनको प्रणाम करता हूं उनकी मनोवृति जो उन्हें पथ से विचलित नहीं होने देती मैं ऐसे लोगों को प्रणाम करता हूं , जो व्यक्ति मन रूपी नाव लेकर समुद्र में जीवन को पार करना चाहते थे किंतु उनकी इच्छा मन में रह गई अर्थात वह किसी कारण काल के जाल में फंस गए और नैया को पार नहीं कर पाए और उस निराकार अनंत सागर में समा गए।  मैं उन सभी को प्रणाम करता हूं मैं ऐसे लोगों को भी प्रणाम करता हूं जो उच्च शिखर की ओर बढ़े मन की  उत्साह भरपूर थी। रह-रहकर उनके मन में उत्साह हिलोरे ले रहा था ऐसे कुछ लोगों ने बर्फानी चोटी पर समाधि ले ली और कुछ असफल रहे , कुछ नीचे उतर गए। मैं ऐसे लोगों के मनोबल को भी प्रणाम करता हूं। मैं उनको प्रणाम करता हूं कभी उपर्युक्त काव्य में कर्मशील होने का संदेश देते हैं कार्य आरंभ करने का संदेश देते हैं चाहे कार्य की सफलता हो अथवा नहीं यह भविष्य पर निर्भर है किंतु कर्मशील व्यक्ति को कभी प्रणाम करते हैं।

काव्य विशेष –

  • कवि ने इस कविता में कर्मशील होने का संदेश दिया है।
  • रूपक अलंकार।
  • बिंब प्रतीक।
  • चित्रात्मक शैली।
  • प्रेरणादायक पद।
  • सरल भाषा।
  • तत्सम शब्दों का प्रयोग।
  • लक्षणा शब्द शक्ति।

एकाकी और अकिंचन  ……………………………………………………………………….उनको प्रणाम !

मैं उन लोग को भी प्रणाम करना चाहता हूं जो धन के अभाव में पृथ्वी की परिक्रमा निकले किंतु उनके पद चिन्ह अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं।  वह ओझल हो गए हैं अर्थात वह अब कहीं विलुप्त हो गए हैं उनके पद चिन्ह ओझल हो गए हैं , मैं वैसे महान लोगों को प्रणाम करना चाहता हूं जो अपने अद्भुत और महत्वपूर्ण कार्यों से कृत नहीं हो पाए फिर भी सहरसा फांसी पर झूल गए उनके बलिदान को और भी अधिक समय नहीं हुआ है लेकिन यह अवश्य खेदजनक है कि संसार उसे पूरी तरह भूल गए हैं। ऐसी महान विभूतियों को मैं बार-बार प्रणाम करता हूं कवी यहां उन व्यक्तियों महँ लोगों को याद किया है जिनके कार्य को यह लोग पृथ्वी पर कुछ समय के लिए याद रखते हैं फिर समय के साथ-साथ उनके महान कार्यों को भूल जाते हैं। जिन महावीरों के कारण भारत में स्वतंत्रता का सवेरा देखने को मिला , जिन्होंने अपनी जान को बलिवेदी पर न्योछावर कर दिया उसको याद इतनी शीघ्र लोग भूल गए। उनके महानतम  न्योछावर को यह दुनिया भूल गई उनको कवि याद करके उनको प्रणाम कर रहे हैं।

काव्य विशेष –

  •  सरल भाषा
  • महान व्यक्ति का स्मरण।
  • कर्मशील होने का सन्देश।
  • तत्सम शब्दों का प्रयोग।
  • लक्षणा शब्द शक्ति।

थी उग्र साधना, पर जिनका  ……………………………………………………………..उनको प्रणाम !

कवि ऐसे लोगों को प्रणाम करना चाहता है जिन्होंने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कठिन साधना की अपने सुखों की चिंता नहीं कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपार कष्ट सहे किंतु उनके जीवन रूपी नाटक का अंत दुख के रूप में हुआ। जिनका जन्म सिंह लग्न में हुआ उनका मरण जीवन समापन और कारण और समय हुआ जीवन की लीला कब समाप्त हो जाए किसी को कोई पता नहीं होता। चाहे सिंह लग्न में जन्म लिया हो उसकी भी मृत्यु विभत्स रूप से भी होती है। जिनका जीवन साहस और दृढ़ रूपी हो ऐसे व्यक्ति जो राजा हो वह भी बंदी का बन जाता है। बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने बंदी बनाकर बक्सर की लड़ाई से काला पानी की सजा के लिए ले गए उन्हें मरने के के बाद 2 गज जमीन अपने मुल्क की भी नसीब नहीं हुई। जो एक देश पर शासन किया करते थे , वह अपने देश में 2 गज की जमीन भी नहीं पा सके।  उनकी मृत्यु उनके देश से बाहर हुई और उनको अपने देश में 2 गज जमीन नसीब ना हो पाए। मैं ऐसे लोगों को प्रणाम करता हूं कभी उन महान आत्माओं को प्रणाम करता है जिन्होंने देश के लिए अतुलनीय सेवा की अपने महत्वपूर्ण कार्यों को उन्होंने देश की धारा बदलने का प्रयास किया पर वह प्रचार – प्रसार से दूर रहे उन्होंने कभी अपनी सेवाओं के लिए पुरस्कार नहीं चाहा। कभी सराहना नहीं चाहिए ऐसे महान आत्माओं को मैं प्रणाम करना चाहता हूं जिनकी सेवाएं अतुलनीय थी। वह विज्ञापन अर्थात प्रचार – प्रसार से भी विमुख रहे उनके विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी दुश्मनों के मनोरथ चूर – चूर कर दिए मैं वैसे दिव्य आत्मा को प्रणाम करना चाहता हूं।

काव्य विशेष

  • उपर्युक्त पंक्ति में जीवन चक्र पर दृष्टि डाला है।
  • कर्तव्य शील व्यक्ति के लिए आह्वान किया है।
  • महान आत्माओं के बलिदानियों को याद किया है।
  • भाषा सरल है।
  • तत्सम भाषाओं का प्रयोग।
  • लक्षणा शब्द शक्ति।
  • माधुर्य गुण।
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