सहयोग के अर्थ को भली-भाँति समझने के लिए इसकी कुछ परिभाषाओं पर विचार करना आवश्यक है। सहयोग का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रो. ग्रीन ने लिखा है सहयोग दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी कार्य को करने या किसी समान इच्छित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला निरन्तर एवं सामूहिक प्रयत्न है। एक सहयोगी
समूह वह है जो एक ऐसे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिल-जुलकर कार्य करता है जिसको सभी चाहते हैं।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सहयोग सामाजिक अन्तःक्रिया का वह स्वरूप है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति अथवा समूह किसी सामान्य रूप से इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संगठित रूप से मिलकर प्रयत्न करते हैं। सहयोग की विशेषताएंपरिभाषाओं के आधार पर सहयोग की कुछ विशेषताएँ भी उभरकर सामने आती हैं जो निम्नवत् हैं
सहयोग के प्रकार्य लाभ एवं महत्वसामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में सहयोग का काफी महत्व है। आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक, आदि क्षेत्रों में सहयोग का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है, सहयोग सामाजिक जीवन का स्थायी आधार है। सहयोग के बिना समाज की कल्पना तक नहीं की जा सकती है।
Join Hindibag सहयोग क्या है सामाजिक जीवन में सहयोग के महत्व?जब अन्तःक्रिया की पुनरावृत्ति होती है तो यह एक सामाजिक प्रक्रिया बन जाती है। जब एक पति-पत्नी प्रेम, आत्मीयता और सहानुभूति के कारण परस्पर सहायता करते हैं तो यह क्रिया सहयोग का स्वरूप धारण कर लेती है तथा वह एक सामाजिक प्रक्रिया हो जाती है। सहयोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों ही तरह का हो सकता है।
सहयोग क्या है सहयोग का समाजशास्त्रीय महत्व की विवेचना कीजिए?अर्थात सहयोग चेतन अवस्था है जिसमें संगठित एवं सामूहिक प्रयत्न किये जाते हैं क्योंकि समान उद्देश्य होता है। सभी की सहभागिता होती है, क्रियाओं एवं विचारों का आदान-प्रदान होता है। अन्तःक्रिया सकारात्मक होती है तथा सहायता करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। सहयोग में भाग लेने वाले व्यक्ति उत्तरदायित्व पूरा करते हैं।
सहयोग क्या है सामाजिक जीवन?सहयोग सामाजिक जीवन की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी आवश्यकता व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक होती है। सहयोग सामाजिक अन्तः क्रिया का वह रूप है जिसमे कुछ व्यक्ति एक सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक साथ प्रयत्न करते है।
सहयोग से आप क्या समझते हैं सहयोग के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए?प्राथमिक सहयोग मे व्यक्ति समाज के हित को अपना हित समझने लगता है और उसी के अनुरूप कार्य भी करने लगता है। जहाँ एक ओर प्राथमिक सहयोग मे नि:स्वार्थ भावना से प्रेरित होकर सहयोग करने की बात स्पष्ट होती है वही द्वितीयक सहयोग वह सहयोग है जिसमे व्यक्ति समूह के साथ सहयोग अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए करता है।
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