1 सती/सहगमन/सहमरण/अन्वारोहण प्रथा :- Show
SUBJECT QUIZ 2 महासती/अनुमरण :- पति की किसी ज्ञात वस्तु के साथ सती
होना महासती कहलाता है। मृत पुत्र के साथ भी स्त्रियाँ सती होती थी जिसे माँ सती कहा गया। इस पर सर्वप्रथम रोक 1831 में कोटा रियासत ने लगाई। 16 फरवरी, 1847 को जयपुर राज्य ने इस व्यापार को अवैध घोषित कर दिया। 4 कन्या वध पर रोक :- हाड़ौती के पी.ए. विलकिन्स के प्रयासों से 1833-34 में क्रमशः कोट-बूंदी रियासत ने इस पर रोक लगायी। ONE LINER QUESTION ANSWER 5 दास प्रथा :- दास प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास सर्वप्रथम 1562 ई. में अकबर ने किया। * 1832 ई. में लार्ड विलियम बैन्टिक ने दासप्रथा अधिनियम पारित किया। जिसके तहत् सर्वप्रथम रोक कोटा रियासत ने लगाई। 6 डावरिया प्रथा :- राजा, महाराजा, सामंत व जागीरदार अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर अपनी पुत्री के साथ दहेज के रूप में कुछ कुंवारी कन्याओं को भेजते थे जिन्हें डावरी या डावरिया कहा जाता था। (एक के साथ एक या अनेक फ्री) 7 समाधि प्रथा :- समाधि प्रथा पर रोक 1844 ई. में जयपुर के प्रशासक लुडलो ने लगायी। NOTES 8 डाकण प्रथा :-
9 विधवा विवाह प्रथा :-
10 बाल विवाह प्रथा :-
11 दहेज प्रथा :- भारत सरकार ने दहेज प्रथा निवारण अधिनियम 1961 में पारित किया। 12 बंधुआ मजदूर/सागड़ी प्रथा/हाली प्रथा :- सागड़ी प्रथा निवारण अधिनियम 1961 ई. में पारित हुआ। 13 मौताणा प्रथा :- जनजातियों में किसी पुरुष या महिला की अकाल मृत्यु किसी व्यक्ति विशेष यादुर्घटनावश हो जाती है तो उस व्यक्ति के बदले जो रूपया या धन मांगा जाता है। मौताणा कहलाता है। मौताणा उदयपुर संभाग के आदिवासियों में सदियों पुरानी सामाजिक परम्परा है। मौताणा का अर्थ “मरने के बाद खून खराबे के बीच हर्जाना वसूलना” है। 14 चढ़ोतरा प्रथ :- आदिवासी परिवार के किसी महिला, पुरुष की मृत्यु की सूचना मिलते ही उसके परिवार एवं गोत्र के लोग ढोल बजाते हुए तीर-कमान, लाठी-भाले, तलवारें आदि लेकर मृत्यु स्थल पर पहुंचते है। मौके पर मृत्यु अप्राकृतिक पाए जाने पर आरोपित पक्ष पर जो दंड सुनाया जाता है, उसे चढ़ोतरा कहा जाता है। 15 चारी प्रथा :- खैराड़ क्षेत्र में यह प्रथा प्रचलित है। इसमें लड़की के परिवार वाले लड़के के घर वालों से दहेज की तरह नकद राशि लेते है। चारी की इस राशि के लालच में ही लड़की वाले वैवाहिक जीवन को ज्यादा नहीं चलने देते थे और फिर चारी लेकर लड़की को दूसरी जगह भेज देते थे। यह प्रथा कमजोर व पिछड़े वर्ग में ज्यादा प्रचलित है। 16 नाता प्रथा :- राजस्थान में नाता प्रथा एक प्रकार से पुर्नविवाह ही है। नाता संबंधों का एक प्रकार है। इस प्रथा में पत्नी अपने पूर्व पति को छोड़कर किसी दूसरे पुरुष को अपना पति बना लेती है। यह प्रथा अधिकांशतया ग्रामीण क्षेत्रों में जनजाति के लोगों में प्रचलित है। 17 संथारा प्रथा :- संथारा प्रथा का विधान जैन ग्रंथों में उल्लेखित है। इस प्रथा में अन्न, जल त्याग कर समत्वभाव से देह त्याग किया जाता है। संथारा आत्महत्या नहीं है। CURRENT AFFAIRS 18 छेड़ा फाड़ना :-
19 लोकाई :- आदिवासियों में मृत्यु के अवसर पर दिये जाने वाला भोज लोकाई या कांदिया कहलाता है। 20 लीला मोरिया :- आदिवासियों में प्रचलित एक विवाह संस्कार है। इसमें दूल्हे के घर पर दूल्हे को वालर बांधकर खाट पर बैठाकर नृत्य किया जाता है, जिसे लीला मोरिया के नाम से जाना जाता है। ← Previous Lesson आजादी से पूर्व राजस्थान में कौन सी प्रथा प्रचलित थी?डाकन प्रथा या डायन प्रथा एक कुप्रथा थी जो पहले राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित थी , इसमें ग्रामीण औरतों पर डाकन यानी अपनी तांत्रिक शक्तियों से नन्हें शिशुओं को मारने वाली पर अंधविश्वास से उस पर आरोप लगाकर निर्दयतापूर्ण मार दिया जाता था। इस प्रथा के कारण सैकड़ों स्त्रियों को मार दिया जाता था।
आजादी से पहले राजस्थान में कौन सी कुप्रथा आई थी?सती प्रथा का अन्त
अन्तत: उन्होंने सन् 1829 में सती प्रथा रोकने का कानून पारित किया। इस प्रकार भारत से सती प्रथा का अन्त हो गया।
राजस्थान में त्याग प्रथा क्या थी?त्याग प्रथा राजस्थान में प्रचलित थी। राजस्थान में क्षत्रिय जाति में विवाह के अवसर पर भाट आदि लड़की वालों से मुॅंह मांगी दान-दक्षिणा के लिए हठ करते थे, जिसे त्याग कहा जाता था। त्याग की इस कुप्रथा के कारण भी प्रायः कन्या का वध कर दिया जाता था। सर्वप्रथम 1841 ई.
हाली प्रथा क्या है?7. बंधुआ मजदूर प्रथा/सागडी प्रथा/ हाली प्रथा सेठ, साहुकार अथवा पूंजीपति वर्ग के द्वारा उधार दी गई धनराशि के बदले कर्जदार व्यक्ति या उसके परिवार के किसी सदस्य को अपने यहां नौकर के रूप में रखता था।
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