आलोक धनवा का एकमात्र संग्रह कौन सा है? - aalok dhanava ka ekamaatr sangrah kaun sa hai?

आलोक धनवा का एकमात्र संग्रह कौन सा है? - aalok dhanava ka ekamaatr sangrah kaun sa hai?

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स्रोत खोजें: "आलोक धन्वा" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR)

आलोक धन्वा का जन्म 2 जुलाई 1948 ई० में मुंगेर (बिहार) में हुआ। इनकी उम्र 74 साल(2022) की है| वे हिंदी के उन बड़े कवियों में हैं, जिन्होंने 70 के दशक में कविता को एक नई पहचान दी। उनका पहला संग्रह है- दुनिया रोज बनती है। ’जनता का आदमी’, ’गोली दागो पोस्टर’, ’कपड़े के जूते’ और ’ब्रूनों की बेटियाँ’ हिन्दी की प्रसिद्ध कविताएँ हैं। अंग्रेज़ी और रूसी में कविताओं के अनुवाद हुये हैं। उन्हें पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान, फ़िराक गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान मिले हैं। पटना निवासी आलोक धन्वा महात्मागांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में कार्यरत थे।

कविता संग्रह

दुनिया रोज बनती

कविताएँ[संपादित करें]

  1. आम का पेड़
  2. नदियाँ
  3. बकरियाँ
  4. पतंग[1],
  5. कपड़े के जूते
  6. नींद
  7. शरीर
  8. एक ज़माने की कविता
  9. गोली दागो पोस्टर
  10. जनता का आदमी
  11. भूखा बच्चा
  12. शंख के बाहर
  13. भागी हुई लड़कियाँ
  14. जिलाधीश
  15. फ़र्क़
  16. छतों पर लड़कियाँ
  17. चौक
  18. पानी
  19. ब्रूनो की बेटियाँ
  20. मैटिनी शो
  21. पहली फ़िल्म की रोशनी
  22. क़ीमत
  23. आसमान जैसी हवाएँ
  24. रेल
  25. जंक्शन
  26. शरद की रातें
  27. रास्ते
  28. सूर्यास्त के आसमान
  29. विस्मय तरबूज़ की तरह
  30. थियेटर
  31. पक्षी और तारे
  32. रंगरेज़
  33. सात सौ साल पुराना छन्द
  34. समुद्र और चाँद
  35. पगडंडी
  36. मीर
  37. हसरत
  38. किसने बचाया मेरी आत्मा को
  39. कारवाँ
  40. अपनी बात
  41. सफ़ेद रात

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • आलोक धन्वा की रचनाएँ कविताकोश में
  1. [https://web.archive.org/web/20180710102147/https://www.zigya.com/blog/%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95-%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF/ Archived 2018-07-10 at the Wayback Machine[‘पतंग’ आलोक धन्वा की एक लंबी कविता है।]इसके तीन भाग है।

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आलोक धन्वा

आलोक धन्वा का जन्म 2 जुलाई 1948 को बिहार के मुंगेर जनपद के अंतर्गत ‘बेलबिहमा' गाँव में हुआ था। आलोक को हिन्दी साहित्य के उन कवियों में गिना जाता है जिन्होंने कविता को एक नई पहचान दी। उनकी कविताएं सामान्य व्यक्ति के जीवन से होकर गुजरती हैं।

‘भागी हुई लड़कियाँ', 'जनता का आदमी', 'गोली दागो पोस्टर', 'कपड़े के जूते' और 'ब्रूनों की बेटियाँ' व ‘कपड़े के जूते‘ हिन्दी की चर्चित प्रसिद्ध कविताएँ हैं।

आपकी पहली कविता '1972' में 'वाम' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उसी वर्ष 'फ़िलहाल' में गोली दागो पोस्टर' कविता प्रकाशित हुई थी। आपकी कविताओं के अनुवाद अंग्रेज़ी और रूसी भाषा में हुए हैं।

आपके कविता संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' ने जनमानस को बहुत प्रभावित किया और यह साहित्य-जगत में चर्चित रहा।

अपने बारे में धन्वाजी कहते हैं, "मैं एक इत्तफाकन कवि हूँ। मैं मुंगेर के एक गांव बेलबिहमा में पैदा हुआ, जो चारों तरफ छोटे पहाड़ों से उतरनेवाली छोटी-छोटी नदियों से घिरा है। जब मुंगेर के जिला स्कूल में मुझे दाखिला मिला, तो यहाँ भी गंगा से नजदीकी बनी रही। ऐसे प्राकृतिक वातावरण में कविताओं की रचना करना तो सहज स्वाभाविक बात है। यहां एक पुस्तकालय है श्रीकृष्ण सेवा सदन, जहां बहुत छोटी उम्र से ही मैं बैठने लगा और भिन्न-भिन्न साहित्यकारों की पुस्तकें पढ़ने लगा। मूलत: विज्ञान का छात्र होने के बावजूद साहित्य से लगाव हो गया। दरअसल समाज और प्रकृति दोनों से कवियों को प्रेरणा मिलती है।"

साहित्यिक कृतियाँ 

कविता संग्रह : दुनिया रोज बनती है

सम्मान : 
पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान, फ़िराक गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान।

Author's Collection

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फ़र्क़

देखना
एक दिन मैं भी उसी तरह शाम में
कुछ देर के लिए घूमने निकलूंगा
और वापस नहीं आ पाऊँगा !

समझा जायेगा कि
मैंने ख़ुद को ख़त्म किया !

नहीं, यह असंभव होगा
बिल्कुल झूठ होगा !
तुम भी मत यक़ीन कर लेना
...

भागी हुई लड़कियां

(एक)

घर की ज़ंजीरें
कितना ज़्यादा दिखाई पड़ती हैं
जब घर से कोई लड़की भागती है

क्या उस रात की याद आ रही है
जो पुरानी फिल्मों में बार-बार आती थी
जब भी कोई लड़की घर से भागती थी?
बारिश से घिरे वे पत्थर के लैम्पपोस्ट
...

उतने सूर्यास्त के उतने आसमान

उतने सूर्यास्त के उतने आसमान
उनके उतने रंग
लम्बी सड़कों पर शाम
धीरे बहुत धीरे छा रही शाम
होटलों के आसपास
खिली हुई रोशनी
लोगों की भीड़
दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे
उनके कंधे, जानी-पहचानी आवाज़ें
...

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आलोक धन्वा का एकमात्र काव्य संग्रह कौन सा है?

इनकी उम्र 74 साल(2022) की है| वे हिंदी के उन बड़े कवियों में हैं, जिन्होंने 70 के दशक में कविता को एक नई पहचान दी। उनका पहला संग्रह है- दुनिया रोज बनती है।

आलोक धन्दा के कितने संग्रह उपलब्ध है?

1. आलोक धन्वा के कितने संग्रह उपलब्ध है ? उत्तर - उनका एकमात्र काव्य संग्रह है- 'दुनिया रोज बनती है' । जो की 1998 में प्रकाशित हुआ था ।

आलोक धन्वा की पहली कविता कौन सी है?

2 जुलाई सन् 1948 में बिहार मुंगेर जिले में जन्मे आलोक धन्वा की पहली कविता 'जनता का आदमी' 1972 में 'वाम' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

आलोक धनवा जी की निम्न में से कौन सी प्रमुख रचना है?

'दुनिया रोज़ बनती है' उनका बहुचर्चित कविता संग्रह है।