अनुसूचित जाति की समस्याएं क्या है? - anusoochit jaati kee samasyaen kya hai?

अनुसूचित जातियों से पशु रूप में बेगार कराया जाता था तथा इन्हें किसी प्रकार की सुख सुविधाएं नहीं दी गई। वैधानिक तौर पर तो अस्पृश्यता निवारण अधिनियम, 1955 के तहत अस्पृश्यता को समाप्त तो कर दिया गया है। परंतु उनके समक्ष आने वाली समस्याओं को यहां प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है -


1. धार्मिक समस्याएं


अनुसूचित जातियों को धर्म से संबंधित किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे। पूजा स्थल पर जाना, मंदिर में प्रवेश तथा ईश्वर के नजदीक से दर्शन आदि उनके लिए प्रतिबंधित किए गए थे। वे मंदिर परिसर से काफी दूर हटकर खड़े होते थे। अस्पृश्य जातियों को धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने तथा सुनने आदि निषिद्ध थे।

वे धर्म संबंधी अनुष्ठान व अन्य क्रियाकलाप नहीं कर सकते थे। हालांकि इस भेदभाव को लेकर अनेक आंदोलन हुए। भक्त आंदोलन तथा पुनर्जागरण आंदोलनों ने इस सुधार हेतु अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए।


हालांकि अब ए दशाएं बदल चुकी हैं। अब ए जातियों मंदिरों, पूजा-स्थलों आदि पर जा सकती हैं।


2. सामाजिक समस्याएं


भारतीय समाज अनेक रूढ़ियों और परंपराओं से बंधा व निर्मित है। इस समाज में शैक्षिक व्यवस्था सदैव से ही परंपरागत आधार पर आश्रित रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा पर केवल सवर्ण हिंदू जातियों का अधिकार रहा तथा अस्पृश्य जातियों को शिक्षा से वंचित रखा गया। इससे हुआ यह कि अस्पृश्य जातियां शैक्षिक रूप से कमजोर होती चली गई। इसके पीछे सवर्ण हिंदू जातियों का यह तर्क था कि यदि ए अस्पृश्य जातियों शैक्षिक रूप से सशक्त हो गई तो उन जातियों में जागरूकता आ जाएगी। उनकी जागृति के पश्चात उन्हें गुलाम बनाए रखना दुष्कर हो जाएगा।


अस्पृश्य जातियां समूहिक रूप से हो रहे आयोजनो तथा समारोह आदि में शामिल नहीं हो सकते थे और इसी की वजह से वे अपने ही घरों में लोकोक्तियों, गीत आदि के माध्यम से मनोरंजन किया करते थे। इन जातियों को सामाजिक रूप से सवर्ण हिंदू जातियों द्वारा बहिष्कृत किया गया था तथा उनके निवास स्थान प्रायः गावों से काफी दूर हुआ करते थे। ए झोपड़ियों अथवा कच्चे मकानों में रहते थे तथा किसी तरह से जीवन बसर करते थे। जिन स्थानों पर इनके निवास स्थान रहते थे, उन्हें किसी नाम विशेष के साथ जाना जाता था, जैसे – डोम की बस्ती अथवा पासियों का मुहल्ला आदि। ए जातियां संस्तरण व्यवस्था में सबसे निम्न पायदान पर रहती हैं तथा इन जातियों में भी विभिन्न प्रकार के संस्तरण पाए जाते है, जैसे मेहतर जाति में लाल वेगि मेहतर का कार्य मारे हुए जानवरों को उठाना है तथा इस कारण अन्य मेहतर जाति के लोग उसके घर भोजन-पानी नहीं करते। 


3. शैक्षणिक समस्याएं


अनुसूचित जातियों को आरंभ से ही सामाजिक व्यवस्था में अत्यंत निम्न स्तर प्राप्त था।

उनकी शिक्षा हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया तथा ना ही उन्हें किसी प्रकार के शैक्षिक अधिकार प्रदान किए गए। शिक्षा की परंपरागत व्यवस्था होने के कारण सवर्ण हिंदुओं ने उन्हें कभी भी शिक्षा की ओर उन्मुख होने के अवसर ही नहीं प्रदान किए। इसका परिणाम यह हुआ कि वे सभी निरक्षर ही रह गए तथा अपने अधिकारों व अभिव्यक्तियों को कभी समाज के समक्ष प्रस्तुत ही नहीं कर पाए। शिक्षा से अवगत न हो पाने के कारण ए जातियां अपेक्षाकृत अधिक अंधविश्वासी तथा रूढ़िवादी बन कर रह गई। हालांकि स्वतंत्र भारत में उनको शिक्षा के अनेक अवसर प्रदान किए गए तथा वे उन अवसरों को सही तरीके से उपयोग में भी ला रहे हैं। परंतु बड़े-बुजुर्ग तथा माता-पिता के अशिक्षित होने के कारण कुछ समस्याएं अभी भी बनी हुई है। इसके अलावा निर्धनता के कारण वे आज भी अपने बच्चों को आवश्यक शिक्षा दिला पाने में अक्षम हैं। पूर्व में भूमिहीन श्रमिक रहने कि वजह से संपत्ति तथा धन के कमी की समस्या सदैव इनके सामने बनी रहती है। यही कारण है कि आज आर्थिक तंगी की वजह से भी ए अपने बच्चों को शिक्षा के जगह पर अन्य आर्थिक गतिविधियों में संलिप्त करना अधिक उचित समझते हैं।


4. आर्थिक समस्याएं


अनिसित जातियों की आर्थिक स्थिति सदैव से ही अत्यंत निम्न रही है. उनका जीवन किसी दास / गुलाम से बेहतर नहीं था। स्वतंत्र भारत में निःसन्देह इनकी स्थिति में सुधार अवश्य हुआ है

परंतु ए सुधार अभी उस स्तर तक नहीं हो पाए हैं कि यह कहा जा सके कि अनुसूचित जातियों की आर्थिक दशा सुदृढ़ हो चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ए कृषि श्रमिक के रूप में ही ए भूस्वामियों के लिए कार्य करते हैं, इनके पास कृषि योग्य भूमि नहीं है. अगर है भी तो केवल नाम मात्र की। इन आधारों पर परिवार की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर पाना मुश्किल रहता है। प्राचीन काल में ए परंपरागत व्यवसायों को करने के लिए विवश थे, परंतु आज ए किसी व्यवसाय के चयन हेतु स्वतत्र हैं। अस्पृश्यता का उन्मूलन हो चुका है तथा ए कहीं भी कभी भी आ जा सकते हैं। हालांकि व्यावहारिक तौर पर कुछ स्थानों पर अभी भी अनुसूचित जातियों को इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


5. राजनीतिक समस्याएं


इन जातियों को किसी भी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे. इनका कार्य केवल सवर्ण हिंदू जातियों की सेवा करना था। राजा, सामंत, जमींदार आदि इनका अमानवीय ढंग से शोषण करते थे तथा शक्ति व चेतनविहीन होने के कारण ए अपने अधिकारों के लिए कभी कुछ कह भी नहीं पाए। वर्तमान समय में इनकी राजनीतिक सहभागीता को भी सुनिश्चित किया गया है।

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  • प्रश्न :

    आज़ादी के 70 सालों के बाद भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदाय जिन समस्याओं से ग्रसित हैं क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग उनका समाधान करने में असफल रहे हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये।

    23 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    नुसूचित जाति आयोग एवं अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्य एवं शक्तियाँ।

    अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएँ।

    हल करने का दृष्टिकोण

    सर्वप्रथम संक्षेप में परिचय दें।

    अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के कार्यों को संक्षेप में बताएँ।

    अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का उल्लेख करते हुए उपर्युक्त आयोगों का मूल्यांकन करें।

    अंत में निष्कर्ष दें।

    भारत में अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय सदियों से उपेक्षित, वंचित एवं शोषित रहा है। अत: इन्हें उत्पीड़न एवं शोषण से बचाने के लिये भारतीय संविधान अन्य प्रावधानों (जैसे-आरक्षण आदि) के अलावा अनुच्छेद 338 के तहत अलग आयोग के गठन की व्यवस्था करता है।

    अनुसूचित जाति आयोग (अनुच्छेद 338) तथा अनुसूचित जनजाति आयोग (अनुच्छेद 338-क) क्रमश: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के संदर्भ में निम्नलिखित कार्य करते हैं-

    इनके हितों का उल्लंघन करने वाले किसी मामले की जाँच पड़ताल एवं सुनवाई करना।

    इनके सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना तथा उन पर सलाह देना।

    इनके संरक्षणात्मक उपायों के संदर्भ में केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करना तथा इस संदर्भ में आवश्यक सिफारिशों तथा सामाजिक-आर्थिक विकास के अन्य उपायों के बारे में संस्तुति करना।

    परंतु आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद भी अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय ऐसी समस्याओं से ग्रसित है, जिसके आधार पर इन आयोगों को असफल माना जाता है, जैसे-

    दोनों समुदाय अपेक्षाकृत गरीब एवं भूमिहीनता की समस्या से ग्रस्त हैं जिसके कारण उन्हें बंधुआ मज़दूरी या अन्य प्रकार के शोषण का शिकार होना पड़ता है।

    स्वास्थ्य एवं कुपोषण की समस्या, जो कि आर्थिक पिछड़ेपन एवं असुरक्षित आजीविका के साधनों के कारण और गंभीर हो जाती है।

    अशिक्षा एवं बेरोज़गारी का उच्च स्तर, यद्यपि समुदाय का एक भाग उच्च शिक्षा ग्रहण कर ऊँचे पदों पर आसीन है, परंतु बहुसंख्यक भाग आज भी अशिक्षित एवं बेरोज़गार है।

    दलितों के उत्पीड़न की घटनाएँ आज भी होती रहती हैं, कभी ‘ऊना घटना’ के रूप में तो कभी ‘सहारनपुर’ मामले के रूप में।

    इसके अलावा, जनजाति समुदाय के पहचान का संकट भी गंभीर समस्या के रूप में उभरा है, इसके साथ ही विस्थापन भी एक प्रमुख समस्या है।

    लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि इन आयोगों की शक्तियाँ सीमित हैं, इनकी प्रकृति केवल सलाहकारी है। यद्यपि इन्हें सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, लेकिन ये शक्तियाँ उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के समान नहीं हैं।

    वस्तुत: अनुसूचित जाति आयोग एवं जनजाति आयोग ने अपने सीमित अधिकार क्षेत्र में इन समुदायों के कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इनकी समस्याओं को निरतंर संसद के ध्यान में लाया गया तथा सरकार ने भी कई कल्याणकारी कार्यक्रमों एवं कानूनों का निर्माण किया है। जैसे- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989।

    निष्कर्षत: कह सकते हैं कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय भले ही आज कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं लेकिन इसे अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोगों की असफलता के रूप नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि इनके अधिकारों एवं शक्तिओं में वृद्धि करने की ज़रूरत है ताकि वे बेहतर तरीके से कार्य कर सकें।

    भारत में अनुसूचित जाति की प्रमुख समस्याएं क्या है?

    अशिक्षा, बेरोजगारी तथा अपनी आजीविका के साधनों से वंचित होने की वजह से जनजातीयो में गरीबी, भूखमरी की समस्या का सामना करते है। और भारी ब्याज लेने पर मजबूर हुए। जनजातियों की परंपरागत संस्थानों एवं कानूनों का आधुनिक संस्थानों एवं कानूनी व्यवस्था के साथ टकराव होने से जनजातीय पहचान के क्षय की आशंकाओं का जन्म हुआ।

    भारत में अनुसूचित जनजातियों के सम्मुख आने वाली मुख्य समस्याएं क्या है?

    स्वास्थ्य एवं कुपोषण की समस्याएं: आर्थिक पिछड़ेपन एवं असुरक्षित आजीविका के साधनों के कारण जनजातियों की कई स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जनजातीय क्षेत्रों में मलेरिया, क्षय रोग, पीलिया, हैजा तथा अतिसार जैसी बीमारियां व्याप्त रहती हैं।

    अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम कब बनाया गया?

    अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989.

    जनजाति से आप क्या समझते हैं?

    जनजाति (अंग्रेजी: Tribe) वह सामाजिक समुदाय है जो राज्य के विकास के पूर्व अस्तित्व में था या जो अब भी राज्य के बाहर हैंजनजाति वास्‍तव में भारत के आदिवासियों के लिए इस्‍तेमाल होने वाला एक वैधानिक पद है। भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति पद का प्रयोग हुआ है और इनके लिए विशेष प्रावधान लागू किये गए हैं