अपने बचपन के संस्मरण का लगभग 200 250 शब्दों में वर्णन कीजिए - apane bachapan ke sansmaran ka lagabhag 200 250 shabdon mein varnan keejie

मेरा बचपन पर निबंध

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रूपरेखा : मानव जीवन का स्वर्णिम बल - मेरा गाँव - मेरा परिवार - बचपन की घटनाएँ - बचपन की शरारतें - बचपन की स्मृतियाँ।

मानव जीवन का स्वर्णिम बल -

बचपन ही मानव-जीवन का स्वर्णिम काल होता है। चिंता रहित जीवन, स्वतंत्र जीवन, एवं भयविहीन कहीं भी घूमना फिरना, जो हाथ में आया खा लिया, अँगूठा चूसने में मधु का आनंद आना और दूध के कुल्ले पर किलकारी भरने में उल्लास की अनुभूति, रोकर-मचलकर, बड़े-बड़े मोती आँखों से बहाकर माँ को बुलाना एवं झाड़ पोंछकर हृदय से चिपका लेना, आदि कई ऐसे स्मृतियाँ है | बचपन ही वो काल है जब ना हमे कोई पढ़ने के लिए कहता है और नाही हमे भविष्य की चिंता रहती है। बचपन मानो स्वर्ग का एक नगरी है जहाँ से हमे निकलने का मन ही नहीं करता। बचपन ही वो समय होता है जहाँ हमे कोई रोक-टोक नहीं करता। पूरी दुनिया एक तरफ और हम एक तरफ होने लगते है। चिंता मुक्त जीवन ही बचपन का सरल अर्थ है।

मेरा गाँव -

वर्तमान बिहार के एक छोटे से गाँव मधुबनी में, जिसने औद्योगिक विकास के साथ-साथ तहसील से जिले का रूप ले लिया है, मेरा बचपन बीता। मेरे गाँव की सुंदरता का कोई वर्णन नहीं किया जा सकता। मेरे गाँव में चारों और वृक्ष की हरयाली नजर आती है। गाँव में एक विशाल तालाब देखने को मिलता है। गाँव में आधा प्रतिशत जमीन खेतो से ढका रहता है जहाँ अन्य का खजाना उगता है। गाँव के नदी का तो कोई जवाब नहीं जहाँ की पानी की पवित्रता वहा के लोगों को लम्बी आयु प्रदान करती है। गाँव में करीब हर घर में एक पालतू पशु रहता है जिससे मेरे गाँव के अधिकतर लोगों का घर चलता है।

मेरा परिवार -

मेरे परिवार में माँ, पिताजी, दादाजी, और एक बड़ा भाई है । सभी मेरा बहुत ध्यान रखते है। पिताजी देश की मायानगरी मुंबई में कार्य करते है। बाबा (दादाजी ) गाँव के एकमात्र सलाहकार है। मेरा परिवार बड़ा ही सरल है और उतना ही सरल हमारा जीवन है। मेरा घर का आँगन कच्चा था। वही पीली मिट्टी का आँगन मेरी क्रीडा-स्थली थी।

बचपन की घटनाएँ -

एक बार भाई ने स्नेह से गोदी में लेने का प्रयास किया। उनके हाथ मारने की बचपन की आदत होती थी। मैं चारपाई पर पड़ा रो रहा था। वे खुश हो रहे थे। समझ रहे थे, उनको छेड़-छाड़ मुझे आनंद कर रही है इसीलिए उन्होंने थोड़ा और जोर लगाया । वे मुझे सँभाल न सके और मैं चारपाई से नीचे गिरा और चीख मारकर रो पड़ा। माँ को निमन्त्रित करने का सहज और सरल उपाय यही था। माँ दौड़ी आई और पीली मिट्टी में सने मेरे शरीर को गोदी से चिपका लिया। भैया को डाँटा। पीट सकना उनके वश की बात नहीं थी। कारण, भैया भी शिशु थे और थे माँ के इृदयांश। यद्यपि परिवार मध्यवर्ग था, किन्तु दूध- दही की कमी न थी। हम भोजन में अति कर जाते थे। परिणामत: पेट में अफारा और दूध उलट देना स्वभाव वन गया था। घर के टोटके औषधि का रूप लेते। ममतामयी माँ समीप बैठी टुकुर-टुकुर निहारती और अपने लाल के अच्छा होने की प्रतीक्षा करती हुई प्राथना करती। घुटनों से चलते समय महल का पीली मिट्टी का प्रांगण हमारी दौड़ का मैदान बना। अड़ोसी-पड़ोसी समवयस्क बच्चों के मध्य एक-दूसरे को हाथ मारने में आनंद आता था। एक बार हमने सामने वाली ताई के बच्चे को वह हाथ मारा कि वह चिल्ला उठा। ताई दौड़ी आई और अपने बच्चे को गोद में उठा लिया और क्रोध में मुझे एक चपत रसीद कर दी। मार लगते ही हमने भी रोना शुरू कर दिया। उधर माँ ताई की करतूत देख रही थी। बस फिर माँ ने हमें गोद में लिया और लगी ताई से झगड़ने। सचमुच, बचपन की घटनाएं आज भी याद आती है तो आखों से ख़ुशी के आसूं निकलने लगते है।

बचपन की शरारतें -

जब हम कुछ बड़े हुए। चलना प्रारम्भ किया तो बच्चों से यारी-दोस्ती बढ़ी । परिचय का क्षेत्र घर से बाहर निकल कर गली तक पहुँच गया। बाबा के दो फुट ऊँचे चबूतरे पर चढ़ना हिमालय पर चढ़ने से कम न था। चढ़ने की कोशिश में गिरते और रो-रोकर पुनः चढ़ने का प्रयास करते थे। गली की बिल्ली और कुत्ते हमारे लिए शेर और चीते थे। गली का कुत्ता यदि जीभ निकालकर हमारे पीछे चलने लगता तो हमारी घिग्घी बंध जाती और नन्‍हें कदमों की दौड़ से घर में घुस जाते। हमारे गाँव में बन्दर बहुत थे। एक दिन गली में चहल-कदमी कर रहा था कि अचानक तीन-चार बन्दर आ गए लगे मुझे घूरने, घूर-घूर कर धमकी देने | आँखों ने यह दृश्य देखा, तो मुँह से जोर से जिख निकली, हृदय-गति तेज हो गई, नयनों ने नीर बरसाना शुरू कर दिया, हाथ-पैर काँपने लगे। चीख सुन पड़ोसिन आई और उसने बन्दरों को डंडे दिखाकर भगा दिया। कुछ समय बाद फिर मेरे जान में जान आयी और फिर ऐसे प्रतीत करने लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं। क्यूंकि बचपन में अगर हम डरते हुए दिख जाते है किसी मित्र को फिर बस उनका चिड़ाना कई दिनों तक चलता ही रहता है।

बचपन की स्मृतियाँ -

बचपन की कई यादें आज भी मुझे याद आती है। याद कर के मैं अपने माँ के गोदी में सर रख के बचपन की किस्से पर चर्चा करने लगते है। वो बन्दर से दर जाना, ताई से मार खाना, बाबा के दो फुट ऊँचे चबूतरे पर चढ़ना, आदि कई यादें मुझे बचपन में लौट आने के लिए कहती है। अगर भगवान् जी मुझे पूछते की मुझे क्या चाहिए तो उन्हें में फिरसे मुझे बचपन में भेज देने का आग्रह करता। सचमुच, बचपन सभी लोगों के लिए स्वर्णिम काल होता है।


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अपने बचपन के संस्मरण का लगभग 200 250 शब्दों में वर्णन कीजिए - apane bachapan ke sansmaran ka lagabhag 200 250 shabdon mein varnan keejie

बचपन हर व्यक्ति के जीवन का मौज मस्ती से भरपूर एक अहम हिस्सा होता है। मेरा बचपन बहुत ही सुहावना रहा और मेरा बचपन गाँव में ही बीता है। मैं बचपन में बहुत ही नटखट स्वभाव का होता था और घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका दुलार भी खुब मिलता था। बचपन में सुबह सुबह उठकर दोस्तों के साथ खेत की तरफ जाना ट्यूबवैल के नीचे नहाना और हँसते दौड़ते घर वापिस आना। कुछ इस तरह हमारे दिन की शुरूआत होती थी।

मुझे बचपन से ही मलाई बहुत पसंद है तो बचपन में रोज सुबह मलाई के साथ पराठे खाने का अलग ही मजा था। मेरा स्कूल भी घर से थोड़ी ही दूरी पर था तो हम सब दोस्त पैदल स्कूल जाते थे और स्कूल में भी शोर मचाकर बहुत मस्ती करते थे।

दोपहर को घर आते ही माँ के हाथ की ठंडी लस्सी मिलती थी और फिर से हसीं मजाक शुरू हो जाता था। कभी कभी ज्यादा शरारते करने पर माँ बाबू जी से डाँट पढ़ती थी लेकिन दादी माँ उनकी डाँट से मुझे बचा लेती थी और अपने आँचल में छुपा लेती थी। दादा जी रोज शाम को हमें सैर के लिए ले जाते थे और हम सब बच्चों को खूब हँसाते थे। हम सब बच्चे गिल्ली डंडा, क्रिकेट, दौड़, रस्सी कूदना आदि खेल खेलते थे। रात को थकने के बाद दादी माँ से कहानी सुनकर सोने में बहुत ही आनंद आता था। उनकी कहानी मनोरंजन के साथ साथ सीख भी देती थी। गाँव में बिजली कम आने के कारण गर्मियों में हम सब लोग छत पर ही सोते थे और प्राकृतिक हवा का आनंद लेते थे।

मेरा बचपन बहुत ही आनंदमय रहा है जिसमें न कोई भय न कोई फिक्र थी। हमेशा अपनी मर्जी चलती थी। काश! मैं एक बार फिर सो बच्चा बन सकता और अपना बचपन दोबारा जी सकता।

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अपने बचपन के बारे में कैसे लिखें?

जब हम एक बच्चे होते है, तब हमें अपने बचपन का कोई महत्व नहीं समज आता। लेकिन जब हम लोग बड़े होते जाते है, तब हमें अपने बचपन का महत्व समज आता है। इसलिए अगर आप किसी वयस्क व्यक्ति को उनके बचपन के बारे में पूछते है, तो वो आपको बचपन का महत्व बहुत अच्छी तरह से समझा सकता है। क्योंकि बचपन ही अपनी सफलता का एक महत्वपूर्ण चरण है।

अपने बचपन का आनंद आपने कैसे लिया इस विषय पर एक लेख लिखिए?

बचपन में बिना बुलाए किसी की भी शादी में शामिल हो जाते थे और खूब आनंद से खाना खाते और मौज उड़ाते थे. बचपन में शोर मचा कर पूरे विद्यालय में हंगामा करते थे. हम बचपन में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा, छुपन- छुपाई और तेज दौड़ लगाना खेलते थे. रोज किसी ना किसी को परेशान करके भागना बहुत अच्छा लगता था.

कब आएगा मेरा बचपन?

हमारे बचपन में जब हम छोटे थे, तब यह सपने देखते थे कि हम जल्दी बड़े कब होंगे क्योंकि तब हमें बड़ों की लाइफ बहुत अच्छी लगती थी। उसके बाद जब बड़े हो गए, तब यह सोचने लगे कि हमारा बचपन ही कितना खूबसूरत हुआ करता था। असल में सही मायनों में अगर देखा जाए तो बचपन वह खूबसूरत पल होता है, जो हम जिंदगी में कभी नहीं भुला सकते है।

बचपन पाठ के आधार पर अपने बचपन की यादों स्मृतियों को लिखिये आपको अपने बचपन का कौन सा क्षण अच्छा लगता है लिखिये?

बचपन के दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन के बड़े महत्वपूर्ण दिन होते हैं । बचपन में सभी व्यक्ति चिंतामुक्त जीवन जीते हैं । खेलने उछलने-कूदने, खाने-पीने में बड़ा आनंद आता है । माता-पिता, दादा-दादी तथा अन्य बड़े लोगों का प्यार और दुलार बड़ा अच्छा लगता हैं ।