ब्रह्मा जी से वरदान कैसे प्राप्त करें? - brahma jee se varadaan kaise praapt karen?

दारुक असुर : एक बार दारुक नाम के असुर ने ब्रह्मा को प्रसन्न कर शक्तिशाली होने का वरदान प्राप्त किया और कहा कि मेरी मृत्यु किसी से भी न हो। ब्रह्मा ने जब अजर-अमर होने का वरदान देने से इंकार किया तो उसने कहा कि अच्छा ऐसा करें कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री से ही हो। ब्रह्मा ने कहा- तथास्तु। दारुक को घमंड था कि मुझे तो कोई स्त्री मार ही नहीं सकती।

वरदान से वह देवताओं और विप्रजनों को प्रलय की अग्नि के समान दु:ख देने लगा। उसने सभी धार्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए तथा स्वर्गलोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया। सभी देवता ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने बताया कि यह दुष्ट केवल स्त्री दवारा मारा जाएगा। तब ब्रह्मा और विष्णु सहित सभी देव स्त्री रूप धारण कर दुष्ट दारुक से लड़ने गए, लेकिन दैत्य अत्यंत बलशाली था और उसने उन सभी को परास्त कर भगा दिया। 

ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया। भगवान शिव ने उनकी बात सुन मां पार्वती की ओर देखा। तब मां पार्वती मुस्कराईं और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रविष्ट कराया। मां भगवती का वह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा। विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हुआ। भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला। उनके नेत्र द्वारा भयंकर-विकरालरूपी व काली वर्ण वाली मां काली उत्पन्न हुईं। मां काली के भयंकर व विशाल रूप को देख सभी देवता व सिद्ध लोग भागने लगे। 

मां काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत सभी असुर सेना जलकर भस्म हो गई। मां के क्रोध की ज्वाला से संपूर्ण लोक जलने लगा। उनके क्रोध से संसार को जलता देख भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया। शिव श्मशान में पहुंचे और वहां लेटकर रोने लगे। इस रोने के कारण ही उनका नाम 'रुरु भैरव' पड़ा। जब मां काली ने शिवरूपी उस बालक को देखा तो वह उनके उस रूप से मोहित हो गईं। वात्सल्य भाव से उन्होंने शिव को अपने हृदय से लगा लिया तथा अपने स्तनों से उन्हें दूध पिलाने लगीं। भगवान शिव ने दूध के साथ ही उनके क्रोध का भी पान कर लिया। उनके उस क्रोध से 8 मूर्ति हुई, जो क्षेत्रपाल कहलाई।

शिवजी द्वारा मां काली का क्रोध पी जाने के कारण वे मूर्छित हो गईं। देवी को होश में लाने के लिए शिवजी ने शिव तांडव किया। होश में आने पर मां काली ने जब शिव को नृत्य करते देखा तो वे भी नाचने लगीं जिस कारण उन्हें 'योगिनी' कहा गया। 

श्री लिंगपुराण अध्याय 106 के अनुसार उस क्रोध से शिवजी के 52 टुकड़े हो गए, वही 52 भैरव कहलाए। तब 52 भैरव ने मिलकर भगवती के क्रोध को शांत करने के लिए विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया तब भगवती का क्रोध शांत हो गया। इसके बाद भैरवजी को काशी का आधिपत्य दे दिया तथा भैरव और उनके भक्तों को काल के भय से मुक्त कर दिया तभी से वे भैरव, 'कालभैरव' भी कहलाए। 

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ब्रह्मा जी से वरदान कैसे प्राप्त करें? - brahma jee se varadaan kaise praapt karen?

रूद्र संहिताः द्वितीय (सती खंड) आरंभः

नारद ने ब्रह्मा से पूछा-शिवजी का जो चरित अब तक सुनाया उसके बाद मन में एक प्रश्न आया है. शिवजी गृहस्थी से एक बार विरक्त होने के बाद पुनः गृहस्थ बनने को कैसे माने? एक ही शरीर से भगवती उमा दक्षपुत्री और हिमालय पुत्री कैसे बनीं?

ब्रह्माजी बोले- पूर्वकाल में संध्या नामक मानसपुत्री पर मैं मोहित हो गया था. शिवजी ने आकर मर्यादा रक्षा की और मेरी बहुत निंदा की. मैं तो शिवजी की माया से मोहित था. मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था.

संध्या को भी मेरा यह आचरण सहन नहीं हुआ. अपने पिता को मोहित करने वाले अत्यंत सुंदर शरीर से उसे घृणा हुई और उसने योगाग्नि में जलाने का प्रयास किया. शिवजी उसकी मनोस्थिति को समझ गए.

उन्होंने संध्या को तप द्वारा आत्मशुद्धि का विचार जागृत करने को कहा. साध्वी संध्या चंद्रभागा नदी के उदगम स्थल चंद्रभाग पर्वत पर जाकर कठिन तप करने लगी. मैंने वशिष्ठ को आदेश दिया कि वह जाकर तप में लीन संध्या का वरण करें.

वास्तव में संध्या के मन की पीड़ा एक और थी. उसे अपने रचयिता ब्रह्मा नारीदेह रचना में एक त्रुटि को लेकर दुख था. संध्या क्षुब्ध थी कि उसके जन्म लेने के बाद स्वयं उसके मन में भी कामसुख भोगने की इच्छा व्याकुल करने लगी थी.

संध्या नहीं चाहती थी कि युवावस्था को प्राप्त करने से पूर्व किसी कन्या में कामसुख की लालसा पैदा हो. वशिष्ठ ब्रह्मचारी का वेष धरकर संध्या के पास गए. उन्होंने संध्या का परिचय और तप का उद्देश्य पूछा.

संध्या ने कहा कि वह ब्रह्मा की पुत्री हैं. अपने मन में उत्पन्न कलुषित विचारों से दुखी होकर मानसिक शांति के लिए यहां तप कर रही हूं. वशिष्ठ बोले- हम सभी ब्रह्मा की संतान हैं क्योंकि भगवान ने उन्हें सृष्टि रचना को भेजा है.

परमात्मा के आदेश पर सृष्टि की रचना का कार्य हो रहा है. ब्रह्माजी ने हमारी रचना अपनी कल्पना के आधार पर की. उन्हें भी नहीं पता था कि वह जो बनाने वाले हैं उसका परिणाम क्या होगा. हर रचना में विकास का क्रम होता है.

वशिष्ठ ने कहा- तप उत्तम साधन है. इससे आपके प्रश्नों का उत्तर और मार्ग दोनों मिल जाएंगे. मैं आपको शिवजी को प्रसन्न करने के मंत्र और साधन बताता हूं. आप इसका पालन करते हुए शिवकृपा प्राप्त करें.

संध्या ने वशिष्ठ द्वारा बताए मंत्र से शिवजी का ध्यान किया और शिव प्रसन्न हो गए. संध्या के नेत्र शिवजी के तेज को सहन नहीं कर पाए और उसने आंखें मूंद ली. शिवजी भक्त के हृद्य में प्रवेश कर गए. तब संध्या ने उनका दर्शन और स्तुति की.

संध्या की स्तुति से प्रसन्न शिवजी ने उससे इच्छित वरदान मांगने को कहा. संध्या ने मांगा- प्रभु युवावस्था से पूर्व किसी के मन में भी कामेच्छा जागृत न हो. उसके मन में काम उत्पन्न न हो और वह पथभ्रष्ट न हो. शिवजी ने वरदान दे दिया.

शिवजी से वरदान प्राप्तकर संध्या मेधा मुनि की यज्ञशाला में पहुंची. मुनि ने उनकी साधना की बात सुनी तो बड़े प्रसन्न हुए औऱ उन्हें पुत्रीरूप में स्वीकार कर लिया. उसके बाद मुनि ने उसे अरुंधति नाम दिया और वशिष्ठ से विवाह कर दिया.

अंरूधति और वशिष्ठ के विवाह का प्रसंग सुनाने के बाद ब्रह्माजी ने नारद से कहा- पुत्र मैं तो शिवजी के मोह से ग्रस्त पथभ्रष्ट हुआ औऱ शिवजी ने ही मेरी रक्षा भी की. किंतु इसके बाद शिवजी ने मेरी बड़ी निंदा की. मेरा बहुत उपहास किया.

इस निंदा-उपहास से मैं बहुत दुखी और लज्जित था. यह स्वाभाविक भी था. मैं शिवजी से नाराज था. मेरा रोष धीरे-धीरे वैर और फिर प्रतिशोध का रूप धारण करता चला गया. माया से पुनः ग्रसित और शिवजी से प्रतिशोध लेने की बात मन में चलने लगी.

ब्रह्माजी ने महादेव से प्रतिशोध लेने के लिए क्या किया? शिवजी के विवाह से उस प्रतिशोध का क्या संबंध था. यह अगली पोस्ट में शीघ्र ही.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें?

ऐसे में ब्रह्मा जी की आराधना और स्तुति करना बेहद ही शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु की उपासना ब्रह्मा जी की पूजा के बिना अधूरी है। पुराणों के अनुसार, ब्रह्मा चालीसा का पाठ करने से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न होते हैं और जातक की सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं।

देवता की उम्र कितनी होती है?

आज मैं बात करूंगा देवताओं की उम्र कितने वर्षों की होती है तो देवताओं की उम्र बताने से पहले ये बता दूं कि मनुष्य का 1 साल और देवताओं का एक दिन बराबर होता है और मनुष्य के 365 साल देवताओं का एक साल बराबर होता है तो मुझे जो शास्त्रों से अनुमान मिले है उस हिसाब से देवताओं की उम्र मात्र 13322500 मनुष्य वर्ष (एक करोड़ तैतीस ...

ब्रह्मा जी की पूजा कौन करता है?

आज भी श्रद्धालु केवल दूर से ही ब्रह्मा जी से करते हैं। - पुराण के अनुसार गुस्सा कम होने के बाद सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या करने चलीं गईं थीं। - मान्यताओं के अनुसार सावित्री देवी मंदिर में रहकर भक्तों का कल्याण करती हैं।

ब्रह्मा जी का मंत्र क्या है?

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौह सतचिद एकं ब्रह्माे ॥ ॥ ॐ ब्रह्मणे नम:॥