अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का क्या अर्थ है? - arthavyavastha ke udaareekaran ka kya arth hai?

Solution : उदारीकरण का अर्थ ऐसे नियंत्रण में ढील देना या उन्हें हटा लेना है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। उदारीकरण में वे सारी क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिसके द्वारा किसी देश के आर्थिक विकास में बाधा पहुँचाने वाली आर्थिक नीतियों, नियमों, प्रशासनिक नियंत्रणों, प्रक्रियाओं आदि को समाप्त किया जाता है या उनमे शिथिलता दी जाती है।

प्रस्तावना

जैसा कि हम जानते हैं कि औपनिवेशिक युग ( 1773–1947 ) के दौरान भारत अंग्रेजो के शासन के अधीन था और अंग्रेज भारत के प्राकृतिक स्त्रोतों का पूर्ण दोहन करते थे!  अंग्रेज भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री (Raw Material) खरीदा करते थे और तैयार माल(Finished Goods) भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा करते थे, जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्विमार्गी ह्रास होता था।

गौर करने वाली बात ये है की इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ईस्वी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया था, इसी तथ्य से पता चलता है की अंग्रेज ईसाइयो ने किस प्रकार भारत के साथ मक्कारी की और बड़ी ही क्रूरता और चालाकी से पूरी अर्थव्यवस्था को धराशायी कर दिया ! 15 अगस्त 1947 को  भारत के ( उन मनहूस लुटेरे अंग्रेजो से ) स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई। इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी।

ईन पंचवर्षीय योजनावों का लाभ भी दिखा और उनकी बदौलत 1950 में भारत ने 3.5 फीसदी की विकास दर हासिल कर ली थी! कई अर्थशास्त्रियों ने इसे ब्रिटिश राज के अंतिम 50 सालों की विकास दर से तिगुना हो जाने का जश्न मनाया था। समाजवादियों ने इसे भारत की आर्थिक नीतियों की जीत करार दिया था! वे नीतियां जो अंतर्मुखी थीं और सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों के वर्चस्व वाली थीं।

वहीं 1960 के दशक में ईस्ट इंडियन टाइगरों (दक्षिण कोरिया, ताईवान, सिंगापुर और हांगकांग) ने भारत से दोगुनी विकास दर हासिल कर ली थी। जो इस बात का प्रमाण था कि उनकी बाह्यमुखी और निजी क्षेत्र को प्राथमिकता देने वाली आर्थिक नीतियां भारत की अंतर्मुखी नीतियों से  बेहतर थीं। ऐसे में भारत के पास 80 के दशक की बजाय एक दशक पहले 1971 में ही आर्थिक सुधारों को अपनाने के लिए एक अच्छा उदाहरण सामने था।

भारत ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समाजवादी प्रभाव के तहत स्वतंत्रता के तुरंत बाद 1951 में अपना पहला पंचवर्षीय योजना शुरू किया। प्रथम पंचवर्षीय योजना सबसे महत्वपूर्ण थी क्योंकि स्वतंत्रता के बाद भारतीय विकास के शुभारंभ में इसकी एक बड़ी भूमिका थी:-

1:-इसने एक ओर जहाँ कृषि उत्पादन का पुरजोर समर्थन किया वहीं दुसरी ओर

2:-इसने देश के औद्योगीकरण का भी शुभारंभ किया (लेकिन दूसरी योजना से कम, जिसने भारी उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया)।

3:-इसने सार्वजनिक क्षेत्र के लिए एक महान भूमिका (एक उभरते कल्याण राज्य के साथ) के साथ-साथ एक बढ़ते निजी क्षेत्र (बॉम्बे योजना को प्रकाशित करने वालों के रूप में कुछ व्यक्तित्वों द्वारा प्रतिनिधित्व) के लिए एक विशेष प्रणाली का निर्माण किया।

भारत में समाजवादी व्यवस्था पर आधारित विकास प्राप्त करने हेतू मार्च 1950 में प्रधानमंत्राी की अध्यक्षता में एक सांविधक संस्था ‘योजना-आयोग का गठन किया। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करने हेतू योजना आयोग के साथ-साथ सन 1951 में राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन किया।

राष्ट्रीय विकास परिषद  में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं योजना आयोग के सदस्य शामिल होते है। भारतीय योजना कमीशन को मजबूत बनाने हेतू भारत सरकार ने सन 1965 में राष्ट्रीय योजना परिषद का गठन किया।

 भारतीय अर्थव्यवस्था का नियोजन की अवधारणा का यह आधार था। इसे योजना आयोग (1951-2014) और नीति आयोग (2015-2017) द्वारा विकसित, निष्पादित और कार्यान्वित की गई पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से किया गया था। पदेन अध्यक्ष के रूप में प्रधान मंत्री के साथ, आयोग के पास एक मनोनीत उपाध्यक्ष भी होता था, जिसका ओहदा एक कैबिनेट मंत्री के बराबर होता था। मोंटेक सिंह अहलूवालिया आयोग के अंतिम उपाध्यक्ष थे (26 मई 2014 को इस्तीफा दे दिया)।

1980 का दशक भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव लेकर आया था। भारतीय अर्थव्यवस्था के त्वरित विकास हेतु नये नये मापदण्डो को स्थापित किया गया और नवीन नितियो का सृजिनिकरण हुवा!सुधारों के इस नए मॉडल को सामान्यतः उदारीकरण (Liberalisation), निजीकरण (Privatisation) और वैश्वीकरण (Globalization) माडल (एलपीजी(LPG) मॉडल) के रूप में जाना जाता है।

इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत की अर्थव्यवस्था को मुस्तैदी के साथ या तो बराबरी पर खड़ा करना या उनसे विकास की दौड़ मे कही आगे निकल जाना!

आईये समझते है कि एलपीजी माडल था क्या?

1:- उदारीकरण(Liberalisation)    

   उदारीकरण सरकार के नियमों के ढलान को संदर्भित करता है भारत में आर्थिक उदारीकरण लगातार जारी होने वाले वित्तीय सुधारों को दर्शाता है जो 24 जुलाई, 1991 के बाद से शुरू हुआ था।उदारीकरण का अर्थ ऐसे नियंत्रण में ढील देना या उन्हें हटा लेना है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। उदारीकरण में वे सारी क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिसके द्वारा किसी देश के आर्थिक विकास में बाधा पहुँचाने वाली आर्थिक नीतियों, नियमों, प्रशासनिक नियंत्रणों, प्रक्रियाओं आदि को समाप्त किया जाता है या उनमे शिथिलता दी जाती है।

इस प्रक्रिया में विश्व के साथ व्यापार की शर्तो को उदार बनाया जाता है जिससे ना केवल अर्थव्यवस्था का विकास सुनिश्चित होता है बल्कि देश का व्यापक विकास तथा बहुमुखी उन्नति होती है। उदारीकरण सभी अनावश्यक नियंत्रण और प्रतिबंध से भारतीय व्यापार और उद्योग को उदार बनाने के उद्देश्य से किया लागू गया।वे लाइसेंस-परमिट – कोटा राज के अंत का संकेत है।भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण में निम्नलिखित विशेषताएं समाहित हैं|

विशेषतायें:-

     (1) ईस प्रक्रिया को दौरान सरकार द्वारा एक संक्षिप्त सूची के उद्योगो को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों में  लाइसेंस की आवश्यकता को खत्म कर दिया गया!,

(2) व्यावसायिक गतिविधियों के पैमाने तय करने में ( द्वितीय ) स्वतंत्रता प्रदान कि गयी!,

(3) व्यावसायिक गतिविधियों के विस्तार या संकुचन पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है,

(4) वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही पर प्रतिबंध को हटाने, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को तय करने में स्वतंत्रता प्रदान कर दी गयी,

(5) अर्थव्यवस्था पर कर की दरों में कमी की गयी और अनावश्यक नियंत्रण को उठा लिया गया,

(6) आयात और निर्यात के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया (Ease of Doing)और

(7) यह आसान भारतीयों के लिए विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी को आकर्षित करने के लिए बनाया व लागू किया गया!

उदारीकरण के व्यवसाय तथा उद्योग पर निम्नलिखित प्रमुख प्रभाव पड़ा है :

      टेक्नोलॉजी आयात से मुक्ति :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त उच्चतम प्राथमिकता वाले उद्योगों को विदेशों से टेक्नोलॉजी का आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

उद्योगों के विस्तार की स्वतन्त्रता :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त विद्यमान उद्योगों को विस्तार के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

औद्योगिक लाइसेंसिंग तथा पंजीकरण की समाप्ति :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त उद्योगों के पंजीकरण की प्रणाली को समाप्त कर दिया गया है। जिसके वजह से 6 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों को लाइसेंसिंग से मुक्त कर दिया गया है।

ये उद्योग हैं :-

रक्षा उपकरण, शराब, औद्योगिक विस्फोटक, सिगरेट, खतरनाक रसायन और औषधियाँ

लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि :- लघु उद्योगों की निवेश सीमा 1 करोड़ कर दी गई है तथा अति लघु उद्योगों की निवेश सीमा बढ़ाकर 25 लाख रु. कर दी गई है।पूंजीगत माल के आयात की स्वतन्त्रता :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त विद्यमान उद्योगों को विदेशों से पूंजीगत माल आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

2:-#निजीकरण (Privatisation)

           निजीकरण व्यवसाय, उद्यम, एजेंसी या सार्वजनिक सेवा के स्वामित्व के सार्वजनिक क्षेत्र (राज्य या सरकार) से निजी क्षेत्र (निजी लाभ के लिए संचालित व्यवसाय) या निजी गैर-लाभ संगठनों के पास स्थानांतरित होने की घटना या प्रक्रिया है।

एक व्यापक अर्थ में, निजीकरण राजस्व संग्रहण तथा कानून प्रवर्तन जैसे सरकारी प्रकार्यों सहित, सरकारी प्रकार्यों के निजी क्षेत्र में स्थानांतरण को संदर्भित करता है।शब्द “निजीकरण” का दो असंबंधित लेनदेनों के वर्णन के लिए भी उपयोग किया गया है। पहला खरीद है, जैसे किसी सार्वजनिक निगम या स्वामित्व वाली कंपनी के स्टॉक के सभी शेयर बहुमत वाली कंपनी द्वारा खरीदा जाना, सार्वजनिक रूप से कारोबार वाले स्टॉक का निजीकरण है, जिसे प्रायः निजी इक्विटी भी कहते हैं। दूसरा है एक पारस्परिक संगठन या सहकारी संघ का पारस्परिक समझौता रद्द कर के एक संयुक्त स्टॉक कंपनी बनाना|

निजीकरण वह सामान्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा निजी क्षेत्र किसी सरकारी उद्यम का स्वामी बन जाता है अथवा उसका प्रबंध करता है।”

निजीकरण की आवश्यकता मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के अकुशल होने के कारण अनुभव की गई। भारतसार्वजनिक क्षेत्र के अधिकतर उद्यम हानिवहन उठा रहे थे। इसका मुख्य कारण यह था कि सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबन्धकोंको निर्णय लेने की स्वतंत्राता बहुत कम होती है। इस क्षेत्र के उद्यमों से संबंधित अधिकतर निर्णय मिन्त्रायों द्वारा लिये जातेहैं जो निर्णय लेते समय अपने राजनीतिक हितों का अधिक ध्यान रखते हैं। इसके फलस्वरूप निर्णय लेने में अनावश्यकविलम्ब होता है। उत्पादन क्षमता का पूरा प्रयोग सम्भव नहीं होता है। प्रबन्धक पूरी जिम्मेदारी से कार्य नहीं करते इसलिएउत्पादकता कम हो जाती है। ये तत्व सार्वजनिक क्षेत्र को अकुशल बना रहे थे। निजीकरण के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था कीकुशलता में वृद्धि होगी, प्रतियोगिता बढेगी उत्पादन की गुणवता तथा विविधता में वृद्धि होगी। इसका उपभोगताओं को विशेषरूप से लाभ होगा।

निजीकरण निम्न सुविधाओं की विशेषता थी:

          राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में निजी क्षेत्र व सार्वजनिक छेत्र को बड़ी भूमिका देने के उद्देश्य से आर्थिक सुधारों के नए संस्करण लागू किये गये!

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने 1991 की नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को नई परिभाषा गी!

 सरकार के अनुसार निजीकरण की प्रक्रिया को वित्तीय अनुशासन में सुधार और आधुनिकीकरण की सुविधा प्रदान करने के लिए मुख्य रूप से अपनाया  गया था।

निजी पूंजी और प्रबंधकीय क्षमताओं को प्रभावी ढंग से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रदर्शन में सुधार करने के लिए उपयोग मे लाया  जा सकता था !

निजीकरण के लाभ:

       कार्यप्रदर्शन (परफॉर्मेंस):- राज्य-संचालित उद्योगों का रुख नौकरशाही की ओर होता है। जब एक राजनैतिक सरकार का कमजोर कार्य प्रदर्शन राजनैतिक रूप से संवेदनशील हो जाता है, तब ही वह एक कार्य में सुधार करने के लिए प्रेरित होती है और ऐसा कोई सुधार अगले शासन द्वारा आसानी से उलटा जा सकता है।

दक्षता में वृद्धि:- निजी कंपनियों और फर्मों के पास एक ग्राहक आधार तक पहुंचने और मुनाफा बढ़ाने हेतु अधिक माल और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए अधिक प्रोत्साहन होते हैं। सरकार के पूर्ण बजट में अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों का ध्यान रखा जाता है, अतः पर्याप्त वित्त पोषण के अभाव में इसके सार्वजानिक उद्यम अधिक उत्पादक नहीं हो सकते! (ध्यान दें: हालांकि सैमुएलसन शर्त के अनुसार, सार्वजनिक संगठनों की प्रवृत्ति अधिक सार्वजनिक माल और सेवा के उत्पादन की होती है। इसके अतिरिक्त, क्योंकि निजी कंपनियां सीमांत निजी लाभ वक्र के अनुसार माल और सेवाओं का उत्पादन करती हैं, इसलिए निजी कंपनियों के पास कम उत्पादन करने का एक प्रोत्साहन होता है।)

विशेषज्ञता:- एक निजी व्यापार सभी संबंधित मानवीय और वित्तीय संसाधनों को विशिष्ट कार्यों की ओर केंद्रित करने की क्षमता रखता है। एक राज्य के स्वामित्व वाली फर्म को अपने सामान्य उत्पादों को जनसंख्या में लोगों की बहुत बड़ी संख्या को उपलब्ध कराना होता है, इसलिए उसके पास अपने उत्पादों और सेवाओं का विशिष्टीकरण करने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं होते हैं।सुधार इसके विपरीत, सरकार उन कंपनियों के मामले में भी राजनीतिक संवेदनशीलता और विशेष हितों की वजह से सुधारों को टाल सकती है – जो अच्छी तरह से चल रही हैं और अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं की बेहतर सेवा कर रही हैं।

भ्रष्टाचार:- एक राज्य के एकाधिकार वाले प्रकार्य भ्रष्टाचार प्रवृत्त होते हैं, निर्णय आर्थिक कारणों की बजाय मुख्य रूप से राजनीतिक कारणों से निर्णय-कर्ता के व्यक्तिगत लाभ (यानी “रिश्वत”) के लिए, किए जाते हैं। एक सरकारी निगम में भ्रष्टाचार (या प्रधान-एजेंट मुद्दे) चालू परिसंपत्ति के प्रवाह और कंपनी के कार्यप्रदर्शन को प्रभावित करता है, जबकि निजीकरण की प्रक्रिया के दौरान होने वाला भ्रष्टाचार एक बार होने वाली घटना है और चालू नकद प्रवाह या कंपनी के कार्य प्रदर्शन को प्रभावित नहीं करता!

उत्तरदायित्व:-निजी स्वामित्व वाली कंपनियों के प्रबंधक अपने मालिकों/शेयरधारकों और उपभोक्ता के प्रति जवाबदेह होते हैं और केवल वहीं टिक और पनप सकते हैं जहां जरूरतें पूरी हो रही हों! सार्वजनिक स्वामित्व वाली कंपनियों के प्रबंधकों को और अधिक व्यापक समुदाय के लिए तथा राजनीतिक “हितधारकों” के प्रति जवाबदेह होना आवश्यक हैं। यह उनकी सीधे और विशेष रूप से अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं की सेवा करने की क्षमता को कम कर सकता है और पूर्वाग्रह के कारण निवेश के निर्णय दूसरे लाभदायक क्षेत्रों से अलग हो सकते हैं।

नागरिक स्वतंत्रता की समस्या:-एक राज्य द्वारा नियंत्रित कंपनी की पहुंच उस जानकारी या संपत्ति तक हो सकती है, जिसे असंतुष्टों या कोई भी व्यक्ति जो उनकी नीतियों से असहमत है, के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है।

लक्ष्य:-एक राजनैतिक सरकार की प्रवृत्ति आर्थिक के बजाय राजनीतिक लक्ष्यों के लिए उद्योग या कंपनी को चलाने की होती हैं।पूंजी निजी स्वामित्व वाली कंपनियां कभी कभी अधिक आसानी से वित्तीय बाजारों में पूंजी निवेश बढ़ा सकती हैं जब इस तरह के स्थानीय बाजार मौजूद होते हैं और उपयुक्त रूप से तरल होते हैं। जबकि निजी कंपनियों के लिए ब्याज दरें अक्सर सरकारी ऋण की तुलना में अधिक होती हैं, यह निजी कंपनियों द्वारा देश के समग्र ऋण जोखिम के साथ उन्हें सब्सिडी देने की बजाय, कुशल निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक उपयोगी व्यवरोध के रूप में कार्य कर सकता है। तब निवेश के फैसले बाजार की ब्याज दरों द्वारा शासित होते हैं। राज्य के स्वामित्व वाले उद्योगों को अन्य सरकारी विभागों और विशेष हितों की मांग के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होती है। दोनों में से किसी भी स्थिति में, छोटे बाजारों के लिए राजनीतिक जोखिम पूंजी की लागत को काफी हद तक बढ़ा सकता है।

सुरक्षा:- अक्सर सरकारों की खस्ता हाल कारोबारों को, रोजगार खत्म होने की संवेदनशीलता के कारण, सहारा देकर चलाने की प्रवृत्ति होती है, जबकि आर्थिक रूप से उनका बंद हो जाना ही हितकर होता है।

बाजार अनुशासन का अभाव:- खराब ढंग से प्रबंधित सरकारी कंपनियां निजी कंपनियों के उस अनुशासन से अलग होती हैं, जिसके अनुसार दिवालिया होने पर उनके प्रबंधन को हटाया जा सकता है, या किसी प्रतियोगी द्वारा उसे खरीद लिया जाता है। निजी कंपनियां अधिक से अधिक जोखिम लेने और फिर यदि खतरे और अधिक बढ़ जायें तो लेनदारों के खिलाफ दिवालियापन संरक्षण लेने में भी सक्षम होती हैं।

प्राकृतिक एकाधिकार:- प्राकृतिक एकाधिकार के अस्तित्व का मतलब यह नहीं है कि यह क्षेत्र राज्य के स्वामित्व वाले ही हों. सार्वजनिक अथवा निजी, सभी कंपनियों के प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी व्यवहारों से निपटने के लिए, सरकारें स्पर्द्धा-रोधी कानून बना सकती हैं या इससे निपटने के लिए सुसज्जित हैं।

धन का केंद्रीकरण:- खासकर वाउचर निजीकरण में, सफल उद्यमों से लाभ और उनके स्वामित्व की प्रवृत्ति छितराने की और विविधतापूर्ण होती है। अधिक निवेश साधनों की उपलब्धता पूंजी बाजार को बढ़ावा देती है और तरलता तथा रोजगार सृजन को बढ़ावा देती है।

राजनीतिक प्रभाव:-राष्ट्रीयकृत उद्योगों में राजनीतिक नेताओं के राजनीतिक अथवा लोकलुभावन कारणों से हस्तक्षेप की प्रवृत्ति होती है। उदाहरणों में, एक उद्योग को स्थानीय उत्पादकों से आपूर्ति खरीदने के लिए बाध्य करना (जब कि बाहर से खरीदने की तुलना में यह अधिक महंगा हो सकता है), एक उद्योग को मतदाताओं को संतुष्ट करने या मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के लिए अपनी कीमतें/किराए स्थिर करने के लिए, बेरोजगारी कम करने के लिए कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने, या इसके प्रचालन को सीमांत निर्वाचन क्षेत्रों में ले जाने के लिए बाध्य करना शामिल है।

मुनाफा:- निगम अपने शेयरधारकों के लिए लाभ उत्पन्न करने के लिए मौजूद हैं। निजी कंपनियां उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्द्धी की बजाय अपने उत्पाद खरीदने के लिए लुभा कर लाभ बनाती हैं (या अपने उत्पादों की प्राथमिक मांग बढ़ा कर, या कीमतें घटाकर)! निजी निगम यदि अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति अच्छी करते है, तो वे आमतौर पर अधिक लाभ कमाते हैं। विभिन्न आकारों के निगम सीमांत समूहों पर ध्यान केंद्रित करने और उनकी मांग को पूरा करने के लिए विभिन्न बाजार स्थानों को लक्ष्य बनाते हैं। इसलिए अच्छे निगमित प्रशासन वाली एक कंपनी अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं को कुशलतापूर्वक पूर्ण करने के लिए प्रोत्साहित होती है।

नौकरियों के लाभ:-जब अर्थव्यवस्था अधिक कुशल हो जाती है, अधिक लाभ प्राप्त होते हैं तथा सरकारी सब्सिडी की जरूरत नहीं रहती, कम करों की जरूरत होती है, निवेश और खपत के लिए अधिक निजी धन उपलब्ध होता है, एक अधिक विनियमित अर्थव्यवस्था की तुलना में बेहतर भुगतान वाली नौकरियों का सृजन होता है।

3:-#वैश्वीकरण (Globalization)

          वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह वसुधैव कुटुंबकम का द्योतक है |

यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है। वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से वैश्वीकरण मुख्य रूप से अर्थशास्त्रीयों, व्यापारिक हितों और राजनीतिज्ञों के नियोजन का परिणाम है जिन्होंने संरक्षणवाद (protectionism) और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण में गिरावट के मूल्य को पहचाना। उनके काम का नेतृत्व ब्रेटन वुड सम्मेलन (Bretton Woods conference) और इस दौरान स्थापित हुई कई अंरराष्ट्रीय संस्थाओं ने किया, जिनका उद्देश्य:-

अ):-वैश्वीकरण की नवीनीकृत प्रक्रिया का निरीक्षण,

ब):-इसको बढ़ावा देना और

स):-इसके विपरीत प्रभावों का प्रबंधन करना था।

इन संस्थाओं में पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक (विश्व बैंक) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) शामिल हैं।

वैश्वीकरण में तकनीक के आधुनिकीकरण के कारण यह सुविधा हुई, जिसने व्यापार और व्यापार वार्ता दौर की लागत को कम कर दिया, मूल रूप से शुल्क तथा व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade) (GATT) के तत्वावधान में   ऐसा हुआ है जिसके चलते कई समझौतों में मुक्त व्यापार (free trade) पर से प्रतिबन्ध हटा दिया गया।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से, अंतरराष्ट्रीय व्यापार अवरोधों में अंतरराष्ट्रीय समझौतों — GATT के माध्यम से लगातार कमी आई है।GATT के परिणामस्वरूप कई विशेष पहल की गईं और इसमें विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), जिसके लिए GATT आधार है, शामिल है।

मुक्त व्यापार का संवर्धन!

शुल्क (tariff) में कमी या समाप्ति:- कम या शून्य शुल्क के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र (free trade zone) का निर्माण!

विशेष रूप से समुद्र नौवहन के लिए डिब्बाबंदीकरण (containerization) के विकास के परिणामस्वरूप होने वाले परिवहन मूल्य में कमी!

पूँजी नियंत्रण (capital controls) में कमी या कटौती|

स्थानीय व्यवसाय के लिए सब्सिडी (subsidies) में कटौती, उन्मूलन, या सम्मिश्रण!

मुक्त व्यापार पर प्रतिबंध :-कई राज्यों में बौद्धिक संपदाके हार्मोनीकरण कानून अधिक प्रतिबंधों के साथ लागू हैं।

बौद्धिक संपदा प्रतिबंधों की पराराष्ट्रीय मान्यता (उदा. चीन से प्राप्त पेटेंट अमेरिका में मान्य होगा)

उरुग्वे वार्ता (Uruguay Round) (१९८४ से १९९५) में एक संधि हुई, जिसके अनुसार WTO व्यापारिक विवादों में मध्यस्थता करेगा और व्यापार के लिए एक एकीकृत मंच उपलब्ध कराएगा!अन्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौते जिसमें मास्ट्रिच संधि (Maastricht Treaty) और उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते (North American Free Trade Agreement) (एन ऐ एफ टी ऐ) शामिल हैं, का लक्ष्य भी व्यापार के अवरोधों और मूल्यों को कम करना है।

विश्व निर्यात में वृद्धि हुई है जो १९७० में विश्व सकल उत्पाद (gross world product) के ८ .५ % से बढ़कर २००१ में १६.१ % हो गया।

वैश्वीकरण शब्द का उपयोग (सैद्धांतिक मायने में), इन विकासों के संदर्भ में विश्लेषण के लिए नोएम शोमस्की समेत कईयों के द्वारा किया गया।

आलोचकों ने देखा है कि समकालीन उपयोग में इस शब्द के कई अर्थ हैं, उदाहरण के लिए Noam Chomsky कहते हैं कि :-वैश्वीकरण के कई पहलू हैं जो दुनिया को कई भिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं जैसे:

औद्योगिक (उर्फ ट्रांस राष्ट्रीयकरण) – विश्व व्यापी उत्पादन बाजारों का उद्भव और उपभोक्ताओं तथा कंपनियों के लिए विदेशी उत्पादों की एक श्रृंखला तक व्यापक पहुँच!

ट्रांस राष्ट्रीय निगमों के अन्दर और उनके बीच सामग्री और माल का आवागमन और श्रम आपूर्ति करने वाले गरीब देशों और लोगों के व्यय पर, संपन्न राष्ट्रों और लोगों की माल तक पहुँच!

वित्तीय विश्व व्यापी वित्तीय बाजार की उत्पत्ति और राष्ट्रीय, कॉर्पोरेट और उप राष्ट्रीय उधारकर्ताओं के लिए बाह्य वित्त पोषण करने के लिए बेहतर पहुँच।

आवश्यक रूप से नहीं, परंतु समकालीन वैश्विकता अधीन या गैर-नियामक विदेशी आदान-प्रदान का उदृभव है और सट्टा बाज़ार निवेशकों के मुद्रास्फीति और वस्तुओं, माल की कृत्रिम मुद्रा स्फीति की तरफ़ बढ़ रहा है और कुछ मामलों में एशियाई आर्थिक उछाल के साथ सभी राष्ट्रों का इसकी चपेट में आना मुक्त व्यापार (“free” trade) के द्वारा हुआ है।

आर्थिक-माल और पूंजी के विनिमय की स्वतंत्रता के आधार पर एक वैश्विक साझा बाजार की वास्तविकता!

राजनीतिक – राजनैतिक वैश्वीकरण विश्व सरकार का एक गठन है जो राष्ट्रों के बीच सबंध का नियमन करता है तथा सामाजिक और आर्थिक वैश्वीकरण से उत्पन्न होने वाले अधिकारों की गारंटी देता है।

राजनीतिक रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व शक्तियों के बीच एक शक्ति के पद का आनंद उठाया है; ऐसा इसकी प्रबल और संपन्न अर्थव्यवस्था के कारण है।यूरोपीय संघ, रूसी संघ, चीन और भारत पहले से ही स्थापित विश्व शक्तियों में हैं जिनके पास संभवतया भविष्य में दुनिया की राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता है।

सूचनात्मक – भौगोलिक दृष्टि से दूरस्थ स्थानों के बीच सूचना प्रवाह में वृद्धि!तार्किक रूप से फाइबर ऑप्टिक संचार, उपग्रहों के आगमन और इंटरनेटऔर टेलीफोन की उपलब्धता में वृद्धि के साथ यह एक तकनीकी परिवर्तन है, जो संभवतः वैश्वीकरण के आदर्शवाद से असंबद्ध या इसमें सहायक है।

सांस्कृतिक -पार-सांस्कृतिक संपर्कों की वृद्धि; चेतना (consciousness) की नई श्रेणियों का अवतरण और पहचान जैसे वैश्विकता-इसमें शामिल है सांस्कृतिक प्रसार, विदेशी उत्पादों और विचारों का उपभोग ( consume) करने और आनंद उठाने की इच्छा, नई प्रौद्योगिकी और पद्धतियों को अपनाना और “विश्व संस्कृति” में भाग लेना; भाषाओं की हानि (और इसी क्रम में विचारों की हानि), साथ ही देखें संस्कृति का रूपांतरण (Transformation of culture)!

पारिस्थितिकी-वैश्विक पर्यावरण का आगमन चुनौती देता है जिसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, के बिना हल नहीं किया जा सकता है, जैसे जलवायु परिवर्तन (climate change) सीमा-पार जल और वायु प्रदूषण, समुद्र में सीमा से ज्यादा मछली पकड़ना और आक्रामक प्रजातियों के प्रसार.विकासशील देशों में, कई कारखानों का निर्माण किया गया है, जहाँ वे स्वतंत्र रूप से प्रदुषण कर सकते हैं।

वैश्विकता और मुक्त व्यापार प्रदूषण बढ़ाने के लिए अन्योन्य क्रिया करते हैं और एक गैर पूंजीवादी विश्व में हमेशा से विकसित हो रही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के नाम पर इसे त्वरित करते हैं। हानि फिर से गरीब राष्ट्रों के हिस्से में आती है जबकि लाभ संपन्न राष्ट्रों के हिस्से में!

सामाजिक -कम प्रतिबंधों के साथ सभी राष्ट्रों के लोगों के द्वारा प्रवाह में वृद्धि हुई है। कहा जाता है कि इन देशों के लोग इतने संपन्न हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय यात्रा का खर्च वहन कर सकते हैं, जिसे दुनिया की अधिकांश जनसँख्या वहन नहीं कर सकती है। अभिजात्य और संपन्न वर्ग के द्वारा मान्यता प्राप्त एक भ्रमित ‘लाभ’, जो ईंधन और परिवहन की लागत में वृद्धि के साथ बढ़ता है।

परिवहन-हर साल यूरोप की सड़कों पर कम से कर कारें (ऐसा ही अमेरिकी सड़कों पर अमेरिकी कारों के लिए कहा जा सकता है) और प्रौद्योगिकी के समावेशन के माध्यम से दूरी व यात्रा के समय में कमी, यह एक तकनीकी उन्नति है जो श्रम प्रधान बाजारों के बजाय सूचना में काम कर रहे लोगों के द्वारा मान्यता प्राप्त है, अधिक के बजाय कम लोगों की पहुँच में है और यदि यह वास्तव में वैश्वीकरण का प्रभाव है तो यह समग्र मानवता के लिए लाभ के समान रूप से आबंटन के बजाय स्रोतों के असमान आबंटन को प्रतिबिंबित करता है।

अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय

बहुसंस्कृतिवाद (multiculturalism) का प्रसार और सांस्कृतिक विविधता (cultural diversity) के लिए बेहतर व्यक्तिगत पहुँच (उदाहरण हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों के निर्यात के माध्यम से) हालाँकि, आयातित संस्कृति आसानी से स्थानीय संस्कृति को संपूरित करती है, यह संकरण या आत्मसातीकरण (assimilation) के माध्यम से विविधता में कमी का कारण है।

इसका सबसे प्रमुख रूपपश्चिमीकरण (Westernization) है, लेकिन संस्कृतियों का सिनिसिज़ेशन (Sinicization) कई सदियों से अधिकांश पूर्व एशिया में अपना स्थान बना चुका है। तर्क है कि पूंजीवादी वैश्वीकृत अर्थ व्यवस्था के रूप में संस्कृतियों का समरूपीकरण और वैश्विकता का आधिपत्य प्रभाव “एकमात्र” तरीका है जिससे देश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के माध्यम से भाग ले सकते हैं यह संस्कृतियों में प्रशंसनीय अन्तर के बजाय विनाश का कारण है!

अंतरराष्ट्रीय यात्रा (travel) और पर्यटनकुछ लोगों के लिए ही महान है, जो अंतरराष्ट्रीय यात्रा और पर्यटन का खर्च वहन कर सकते हैं।

ब्रिटेन, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका, जैसे देशों ने अप्रवास (immigration) सहित अधिकगैर-कानूनी अप्रवास (illegal immigration), जिन्होंने 2008 में गैर-कानूनी आप्रवासियों को हटाया तथा गैर-कानूनी रूप से देश में प्रवेश कर गए लोगों को आसानी से हटाने के लिए कानूनों में संशोधन किया। इनके अतिरिक्त अन्य ने इस बात को सुनिश्चित किया कि अप्रवास नीतियाँ अनुकूल अर्थव्यवस्था को प्रभावित करें, प्राथमिक रूप से उस पूँजी पर ध्यान दिया गया जो अप्रवासी अपने साथ देश में ला सकते हैं।

स्थानीय उपभोक्ता उत्पादों (जैसे भोजन) का अन्य देशों (अक्सर उनकी संस्कृति में स्वीकृत) में प्रसार इसमें आनुवांशिक रूप से परिष्कृत जीव शामिल हैं। वैश्विक वृद्धि अर्थव्यवस्था का एक नया और लाक्षणिक गुण है एक लाइसेंस युक्त बीज का जन्म जो केवल एक ही मौसम के लिए सक्षम होगा और अगले मौसम में इसे पुनः नहीं उगाया जा सकेगा-जो एक निगम के लिए गृहीत बाजार (captive market) को सुनिश्चित करेगा.संपूर्ण रा्ष्ट्रों की खाद्य आपूर्ति एक कंपनी के द्वारा नियंत्रित होती है जो संभवतः विश्व बैंक या आईएमएफ ऋण शर्तों के माध्यम से.ऐसे GMOs के क्रियान्वयन में सफल है।

विश्व व्यापक फेड्स और पॉप संस्कृति जैसे पॉकेमॉन (Pokémon), सुडोकू, नूमा नूमा (Numa Numa), ओरिगेमी (Origami), आदर्श श्रृंखला (Idol series), यू ट्यूब, ट्वीटर, फेस बुक (Facebook) और माय स्पेस (MySpace).ये उन लोगों की पहुँच में हैं जो टी वी या इंटरनेट का उपयोग करते हैं, ये धरती की जनसँख्या का एक महत्वपूर्ण भाग छोड़ देते हैं।

विश्व व्यापक खेल की घटनाओं जैसे फीफा विश्व कप (FIFA World Cup) और ओलिंपिक खेलों!

सार्वभौमिक मूल्य (universal value) मूल्यों के समूह का निर्माण या विकास –संस्कृति का समरुपीकरण

तकनीकी एक वैश्विक दूरसंचार बुनियादी सरंचना (global telecommunications infrastructure) का विकास और सीमा पार आंकडों का अधिक प्रवाह, साथ ही ऐसी तकनीकों का उपयोग जैसे इंटरनेट, संचार उपग्रहों (communication satellites), समुद्र के भीतर फाइबर ऑप्टिक केबल (submarine fiber optic cable) और वायरलेस टेलीफोन!

विश्व स्तर पर लागू मानकों की संख्या में वृद्धि ; कॉपीराइट का कानून (copyright law), पेटेंट और विश्व व्यापार समझौते!

कानूनी / नैतिक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (international criminal court) और अंतरराष्ट्रीय न्याय आंदोलनों का निर्माण!

वैश्विक अपराध से लड़ने के लिए प्रयास और सहयोग हेतु जागरूकता को बढ़ाना तथा अपराध आयात (Crime importation)!

यौन जागरूकता – वैश्वीकरण के केवल आर्थिक पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करना अक्सर आसान होता है। इस शब्द के पीछे मजबूत सामाजिक अर्थ छिपा है। वैश्वीकरण का मतलब विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक बातचीत भी हो सकता है। वैश्वीकरण के सामाजिक प्रभाव भी हो सकते हैं जैसे लैंगिक असमानता में परिवर्तन और इस मुद्दे को लेकर पूरी दुनिया में लिंग विभेद (अक्सर अधिक क्रूर) ?

इस प्रकार हमने देखा की आखिर LPG ( उदारीकरण , निजीकरण और वैश्वीकरण ) की प्रक्रिया किस प्रकार अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है | 

अर्थव्यवस्था उदारीकरण का क्या अर्थ है?

उदारीकरण का अर्थ ऐसे नियंत्रण में ढील देना या उन्हें हटा लेना है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। उदारीकरण में वे सारी क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिसके द्वारा किसी देश के आर्थिक विकास में बाधा पहुँचाने वाली आर्थिक नीतियों, नियमों, प्रशासनिक नियंत्रणों, प्रक्रियाओं आदि को समाप्त किया जाता है या उनमे शिथिलता दी जाती है।

उदारीकरण क्या है UPSC?

उदारीकरण आर्थिक सुधार की दिशा में उठाया गया एक प्रमुख कदम है। मूलतः इसका अर्थ अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप को कम कर बाज़ार प्रणाली पर निर्भरता बढ़ाना है। उदारीकरण का कृषि, उद्योग तथा सेवा तीनों क्षेत्रों पर अच्छा प्रभाव दिखता है।

निजीकरण उदारीकरण से क्या आशय है?

भारत में आर्थिक उदारीकरण 24 जुलाई 1991 के बाद से शुरू हुआ जो जारी रखने के वित्तीय सुधारों को दर्शाता है। निजीकरण के रूप में अच्छी तरह से निजी क्षेत्र के लिए व्यापार और सेवाओं और सार्वजनिक क्षेत्र (या सरकार) से स्वामित्व के हस्तांतरण में निजी संस्थाओं की भागीदारी को दर्शाता है।

अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से क्या अभिप्राय है इसके मुख्य उपाय?

उदारीकरण का तात्पर्य Udarikaran ka tatparya देश में प्रतिस्पर्धात्मक माहौल तैयार करने के लिए व्यापार को प्रोत्साहन देना होता है। इसके लिए उद्योगों पर लगे कुछ कठोर प्रतिबंधों को अपने अधिकार क्षेत्र से हटा देना। निजी और विदेशी निवेश का विस्तार करने के लिए नियमों में ढील देना ही उदारीकरण कहलाता है।