अंधेर नगरी में कौन नहीं रहना चाहता था? - andher nagaree mein kaun nahin rahana chaahata tha?

विषयसूची

  • 1 न जाने की अंधेर हो कौन छन में?
  • 2 बच्चों के उधम मचाने के कारण घर की क्या दुर्दशा हुई class 8?
  • 3 अंधेर नगरी की प्रजा राजा के मरने पर खुश क्यों हुई?
  • 4 बिरानी शब्द को आजकल कैसे लिखा जाता है?
  • 5 अब्बा का शाही फरमान क्या था?
  • 6 नौकरों ने प्रति बच्चे को नहलाने के कितने पैसे लिए?
  • 7 गुरु ने संकट की घड़ी में अपने चले के प्राण कैसे बचाएं?
  • 8 अत्यधिक बारिश होने से अंधेर नगरी में क्या हुआ?

न जाने की अंधेर हो कौन छन में?

इसे सुनेंरोकेंटके सेर भाजी, टके सेर खाजा । गुरु ने कहा- जान देना नहीं है, मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है। न जाने की अंधेर हो कौन छन में? यहाँ ठीक रहना समझता न मन में ।

बच्चों के उधम मचाने के कारण घर की क्या दुर्दशा हुई class 8?

इसे सुनेंरोकेंबच्चों के ऊधम मचाने के कारण घर की क्या दुर्दशा हुई? Solution: बच्चों के उधम मचाने से घर अस्त-व्यस्त हो गया। मटके-सुराहियाँ इधर-उधर लुढक गए। घर के सारे बर्तन अस्त-व्यस्त हो गए।

गुरु अंधेर नगरी में क्यों नहीं रुके?

इसे सुनेंरोकें’टके सेर भाजी, टके सेर खाजा’ से यह अर्थ बोध होता है कि उस नगर में अविवेकी राजा होने के कारण सारे राज्य में अराजकता फैली हुई थी। महंत ने जब राज्य के राजा का ही विवेकहीन होना देखा तो वे आने वाले खतरे को ताड़ गए इसलिए महंत अंधेर नगरी में क्षणभर के लिए भी नहीं रुकना चाहता था।

अंधेर नगरी की प्रजा राजा के मरने पर खुश क्यों हुई?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: (क) मूर्ख को कोई नहीं चाहता क्योंकि वह हमेशा लोगों की परेशानी का कारण बनता है। अंधेर नगरी की प्रजा राजा के मरने पर इसलिए खुश हुई क्योंकि वह मूर्ख था। उसके मरने से उनकी वर्षों की तमन्ना पूरी हुई।

बिरानी शब्द को आजकल कैसे लिखा जाता है?

इसे सुनेंरोकें(घ) ये गलती न मेरी, यह गलती बिरानी! आजकल इस शब्द को ‘परायी’ लिखते हैं। (ङ) न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी। आजकल इस शब्द को ‘मुहूर्त’ लिखते हैं।

राजा के दरबार में कौन नहीं आते थे और क्यों?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: राजसभा में सज्जन और विद्वान लोगों का सत्कार नहीं किया जाता था। इसलिए वे राजसभा में नहीं जाते थे।

अब्बा का शाही फरमान क्या था?

इसे सुनेंरोकेंप्रश्न-7 अब्बा का शाही फरमान क्या था? उत्तर – अब्बा का शाही फरमान था कि जो काम नहीं करेगा, उसे रात का खाना हरगिज नहीं मिलेगा।

नौकरों ने प्रति बच्चे को नहलाने के कितने पैसे लिए?

इसे सुनेंरोकेंनौकरों ने प्रति बच्चों को नहलाने के लिए चार आना के हिसाब से पैसे लिए क्योंकि उनको बाहर से बुलाया गया था सिर्फ नहलाने के लिए।

गुरु ने संकट की घड़ी में अपने चेले के प्राण कैसे बचाएं?

इसे सुनेंरोकेंचेले ने फांसी से बचने के लिए एक तरकीब सोची उसने कहा कि उसके गुरु को बुलाया जाय। गुरु जब आये तो उन्होंने चेले को रोते देख और सारा हाल जानने के बाद एक तरकीब सोची उसने चेले को बुलाया और उसके कान में कुछ मन्त्र गुनगुनाया। उसके तुरंत बाद दोनों गुरु चेले आपस में लड़ने लगे कि मैं फांसी पर चढूंगा।

गुरु ने संकट की घड़ी में अपने चले के प्राण कैसे बचाएं?

देशसऊदी अरबजापान
मुद्राएँ दीनार येन

अत्यधिक बारिश होने से अंधेर नगरी में क्या हुआ?

इसे सुनेंरोकेंअर्थ-उस अंधेर नगरी में बरसात के दौरान इतनी भारी बारिश हुई कि राज्य की एक दीवार गिर गई। राजा तुरंत वहाँ पहुँच गया। उसने संतरी को बुलाया और उससे दीवार गिरने का कारण पूछा। संत्री ने झट जवाब दिया कि दीवार उसकी गलती से नहीं गिरी है।

बिशन घायल तीतर को क्यों बचाना चाहता था?

इसे सुनेंरोकेंघायल तीतर उचित इलाज न मिल पाने के कारण मर जायेगा। अगर इनके हाथ लग गया तो वे इसे खा जाएँगे। इसलिए बिशन तीतर को बचाना चाहता था।

अंधेर नगरी में रहना उचित क्यों नहीं था?

टके सेर भाजी, टके सेर खाजा । मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है। न जाने की अंधेर हो कौन छन में ? यहाँ ठीक रहना समझता न मन में ।

अंधेर नगरी में सब कितने में मिलती थी?

काशी तीर्थ यात्रा की वापसी में एक गुरु और शिष्य किसी नगरी में पहुंचे उसका नाम अंधेर नगरी था। शिष्य बाजार में सौदा खरीदने निकला तो वहां हर चीज एक ही भाव 'सब धन बाइस पसेरी'। भाजी टका सेर और खाजा (एक मिठाई) भी टका सेर।

अंधेर नगरी में कौन रहने लगा था?

एक दिन एक महंत अपने शिष्य गोवर्धन दास और नारायण दास के साथ उस 'अंधेर नगरी' में पहुंचते हैं। अंधेर नगरी का राजा चौपट राजा के नाम से जाना जाता है। यहां भाजी भी बिकती थी टके सेर और मीठा खाजा भी बिकता था टके सेर। महंत वहां की व्यवस्था देख शिष्यों को तुरंत चलने को कहता है पर गोवर्धनदास वहीं टिक जाता है।

अंधेर नगरी का मुख्य पात्र कौन है?

अंधेर नगरी नाटक का पात्र: अंधेर मेगासिटी का आकार वास्तव में छोटा है, इसलिए लेखक के पास इसमें पात्रों के चरित्र को विकसित करने का महत्वपूर्ण अवसर नहीं था, लेकिन फिर भी तीन मुख्य पात्र- महंत जी, गोवर्धन दास और चौपत राजा प्रतिनिधित्व करने में सफल रहे हैं।