बहु संख्या वाद को बनाए रखने के लिए श्रीलंका सरकार द्वारा कौन कौन से कदम उठाए गए? - bahu sankhya vaad ko banae rakhane ke lie shreelanka sarakaar dvaara kaun kaun se kadam uthae gae?

सत्ता के बंटवारे के तीन गुण लिखिए ।


  1. सत्ता का बंटवारा जनीतिक व्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक अच्छा तरीका है।
  2. सत्ता की साझेदारी दर असल लोकतंत्र की आत्मा है।
  3. यह देश की एकता लाता है।


सत्ता के बंटवारे को उदाहरण सहित समझाओ ।


सत्ता के उत्तर-

  1. क्षैतिज वितरण (सरकार - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच के अगों] - भारत ।
  2. ऊर्ध्ज्ञाधर वितरण । (केंद्रीय स्तर, राज्य स्तर पर और क्षेत्रीय स्तर के बीच) - भारत ।
  3. विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बंटवारा । (सामुदायिक सरकार, [बेलिजयम] महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें) - भारत ।
  4. विभिन्न राजनीतिक दलों, दबाव समूहों और आंदोलनों - सत्ता का बंटवारा ।


श्रीलंका में गृह युद्ध के तीन कारणों का उल्लेख कीजिए ।


दो समुदायों के बीच अविश्वास, सिंहली और तमिल संघर्ष में बदल गया ।

  • तमिलों की आबादी प्रांतों के लिए अधिक स्वायत्तता के लिए उनकी मांग को इनकार कर दिया गया था ।
  • शिक्षा हासिल करने में एक आधिकारिक भाषा के रूप में तमिल को मान्यता देने, क्षेत्रीय स्वायत्तता और अवसर की समानता के लिए संघर्ष।
  • 1980 के दशक में कई राजनीतिक संगठनों में एक स्वतत्र तमिल ईलम (राज्य) और श्रीलंका के पूर्वी हिस्से की मांग का गठन किया गया । यह जल्द ही एक नागरिक युद्ध में बदल गया ।


श्रीलंका में लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार ने बहुसंख्यकों की स्थापना कैसे की ?


  1. लोकतांत्रिक रूप में निर्वाचित सरकार (सिंहली समुदाय का प्रभुत्व कायम रखा)
  2. सिंहली समुदाय का प्रभुत्व कायम करने के लिए अपनी बहुसंख्यक - परस्ती के तहत कई कदम उठाए। जैसे 1956 में एक कानून बनाया गया । जिसमें सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दी गई ।
  3. विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में सिंहली को प्राथमिकता देने की नीति ।
  4. संविधान में - बौद्ध धर्म को संरक्षण और बढ़ावा देगी ।


कैसे बेल्जियम सरकार ने अपनी जातीय समस्या का हल किया ?


अंग्रेज़ी और फ्रेंच भाषी मंत्री केंद्र सरकार में बराबर होगा ।

केंद्र सरकार के कई अधिकार सरकार राज्य को दिया गया है। राज्य सरकार केंद्र सरकार के अधीन नहीं होते। ब्रुसेल्स में एक अलग सरकार है, जिसमें दोनों समुदायों के बराबर प्रतिनिधित्व किया है।
जब यूरोप के कई देशों में यूरोप यूनियन बनाने के लिए एक साथ आए थे, ब्रूसेल्स के अपने मुख्यालय के रूप में चुना गया था ।


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बहुसंख्यकवाद

यह मान्यता है कि अगर कोई समुदायबहुसंख्यक है तो वह मनचाहे ढंग से देश का शासन कर सकता है और इसकेलिए वह अल्पसंख्यक समुदाय की आवश्यकताओं या इच्छाओं की अवहेलना कर सकता है।

श्रीलंका में गृहयुद्ध व अशान्ति-

सन् 1948 में श्रीलंका स्वतन्त्र राष्ट्रबना। सिंहली समुदाय के नेताओं ने अपनी बहुसंख्या के बल पर शासन पर प्रभुत्वजमाना चाहा। इस कारण लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने सिंहली समुदाय की प्रभुता स्थापित करने के लिए अपनी बहुसंख्यक परस्ती के अन्तर्गत अनेक कदम उठाए।

सन् 1956 में एक कानून बनाया गया जिसके अन्तर्गत तमिल की उपेक्षाकरके सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दिया गया। विश्वविद्यालयों औरसरकारी सेवाओं में सिंहलियों को प्राथमिकता देने की नीति भी चली। नये संविधानमें यह प्रावधान भी किया गया कि सरकार बौद्धमत को संरक्षण और बढ़ावा देगी।एक-एक करके आए इन सरकारी निर्णयों ने श्रीलंकाई तमिलों की नाराजगीऔर शासन को लेकर उनमें बेगानापन बढ़ाया।

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उन्हें लगा कि बौद्ध धर्मावलम्बी सिंहलियों के नेतृत्व वाली सारी राजनीतिक पार्टियाँ उनकी भाषा और संस्कृति को लेकर असंवेदनशील हैं। उन्हें लगा कि संविधान और सरकार की नीतियाँ उन्हें समान राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर रही हैं, नौकरियों और लाभ के अन्यकामों में उनके साथ भेदभाव हो रहा है और उनके हितों की अनदेखी की जारही है। परिणाम यह हुआ कि तमिल और सिंहली समुदायों के सम्बन्ध बिगड़ते चले गए।

श्रीलंकाई तमिलों ने अपनी राजनीतिक पार्टियाँ बनाईं। उन्होंने तमिल को राजभाषा बनाने, क्षेत्रीय स्वायत्तता हासिल करने तथा शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों की मांग को लेकर संघर्ष किया ‌ लेकिन तमिलों की आबादी वाले क्षेत्र की स्वायत्ता कि उनकी मांगों को निरंतर नकारा गया।1980 के दशक तक उत्तर पूर्वी श्रीलंका में स्वतंत्र तमिल ईलम बनाने की मांग को लेकर अनेक राजनीतिक संकट बने।

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श्रीलंका में दो समुदायों के बीच पारस्परिक अविश्वास ने बड़े टकराव का रूप धारण कर लिया, यह टकराव गृह युद्ध में बदल गया। लिट्टे नेता प्रभाकरण के मारे जाने के बाद श्रीलंका की तमिल समस्या शिथिल पड़ी है गृह युद्ध समाप्त हो गया।

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बहुसंख्यकवाद को बनाए रखने के लिए श्रीलंका की सरकार द्वारा कौन कौन से कदम उठाए गए?

Solution : (i) 1956 में श्रीलंका स्वतंत्र राष्ट्र जिसके तहत तमिल को दरकिनार करके सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दिया गया । <br> श्रीलंकाई तामक शासन काल में बालक तमिल (50%2 में कुछ हिन्दू हैं और <br> (ii) विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को प्राथमिकता देने की नीति भी चली।

श्रीलंका में बहुसंख्यक वाद से क्या तात्पर्य है?

सन् 1948 में श्रीलंका स्वतंत्र राष्ट्र बना। के बल पर शासन पर प्रभुत्व जमाना चाहा। इस वजह से लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपनी बहुसंख्यक-परस्ती के तहत कई कदम उठाए ।

श्रीलंका में बहुसंख्यक वाद के तहत कौन कौन से कदम उठाए गए?

इस कानून के अनुसार तमिल भारतीय मूल के हैं इसलिए उन्हें श्रीलंका की नागरिकता नहीं दी जा सकती है। हालांकि इस कानून को मान्यता नहीं मिली। १९५६ - सरकार ने देश के बहुसंख्यकों की भाषा सिंहली को आधिकारिक भाषा घोषित किया। अल्पसंख्यक तमिलों ने कहा कि सरकार ने उन्हें हाशिये पर डाल दिया।

बहु संख्या वाद से आप क्या समझते हैं?

बहुसंस्कृतिवाद, बहु जातीय संस्कृति की स्वीकृति देना या बढ़ावा देना होता है, एक विशिष्ट स्थान के जनसांख्यिकीय बनावट पर यह लागू होती है, आमतौर पर यह स्कूलों, व्यापारों, पड़ोस, शहरों या राष्ट्रों जैसे संगठनात्मक स्तर पर होते हैं।