भगवान राम चित्रकूट क्यों गए थे? - bhagavaan raam chitrakoot kyon gae the?

चित्रकूट: हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का विषेश महत्व है। सनातन धर्म के पौराणिक ग्रन्थों में उनके प्रताप और यश की तमाम कहानियां चर्चित हैं। ऐसी ही मान्यताओं के मुताबिक भगवान राम ने चित्रकूट में भी अपने बनवास के दौरान साढ़े 11 वर्ष का समय बिताया था, जहां उनके साथ माता सीता और अनुज लखन साथ थे। कहा जाता है कि पर्वतराज सुमेरू के शिखर कहे जाने वाले चित्रकूट गिरि को कामदगिरि होने का वरदान भगवान राम ने दिया था। तभी से विश्व के इस अलौकिक पर्वत के दर्शन मात्र से आस्थावानों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। प्रतिवर्ष देश भर से करीब दो करोड से अधिक श्रद्धालु चित्रकूट पहुंच यहां मां मंदाकिनी में आस्था की डुबकी लगाने के बाद कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाते है। इस पौराणिक तीर्थ की महिमा का बखान स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में किया है। उन्होंने लिखा है कि 'कामद भे गिरि रामप्रसादा,अवलोकत अप हरत विषादा'।

भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट अनादि काल से वाल्मीकि समेत तमाम महान ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। त्रेता युग में जब अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे। तब उन्होंने आदि ऋषि वाल्मीकि की प्रेरणा से तप और साधना के लिए चित्रकूट आए थे। भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ पावन चित्रकूटगिरी पर अपने वनवास का साढे़ 11 वर्ष व्यतीत किया था।

विश्व के विलक्षण पर्वत कामदगिरि की महिमा का बखान करते हुए कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास महाराज बताते हैं, कि चित्रकूट का कामदगिरि पर्वत विश्व का वह पावन धाम हैं। ऐसी मान्यता है कि प्रभु राम पत्नी और अनुज लक्ष्मण के साथ नित्य निवास करते हैं। इसी पर्वत पर तप और साधना कर प्रभु राम ने आसुरी ताकतों से लड़ने की दिव्य शक्तियां प्राप्त की थीं। कहा जाता है कि जब भगवान राम चित्रकूट को छोड़कर जाने लगे तो चित्रकूट गिरी ने भगवान राम से याचना कि, हे प्रभु आपने इतने वर्षों तक यहां वास किया, जिससे ये जगह पावन हो गई। लेकिन आपके जाने के बाद मुझे कौन पूछेगा। तब प्रभु राम ने चित्रकूटगिरि को वरदान दिया कि अब आप कामद हो जाएंगे। यानि ईच्छाओं (मनोकामनाओं) की पूर्ति करने वाले हो जाएंगे। जो भी आपकी शरण में आयेगा उसके सारे विशाद नष्ट होने के साथ-साथ सारी मनोकामना पूर्ण हो जाएंगी, और उस पर सदैव राम की कृपा बनी रहेगी। जैसे प्रभु राम ने चित्रकूट गिरि को अपनी कृपा का पात्र बनाया कामदगिरी पर्वत कामतानाथ बन गये। इस अलौकिक पर्वत की महिमा गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में भी की हैं। उन्होंने लिखा है 'कामदगिरि भे रामप्रसादा, अवलोकत अप हरत विषादा'। यानी जो भी इस पर्वत के दर्शन करेगा उसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।

वहीं रामायणी कुटी के महंत रामहृदय दास, प्राचीन मुखार बिंद के प्रधान पुजारी भरत शरणदास महाराज और सुप्रसिद्ध भागवताचार्य और गायत्री शक्ति पीठ के व्यवस्थापक डॉ. रामनारायण त्रिपाठी तपोभूमि चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए कहते है कि चित्रकूट आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था का सर्वश्रेष्ठ केंद्र है। यह वह भूमि है, जहां पर ब्रह्म, विष्णु और महेश तीनों देव का निवास है। भगवान विष्णु ने भगवान राम रूप में यहां वनवास काटा था, तो ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए यहां यज्ञ किया था और उस यज्ञ से प्रगट हुआ शिवलिंग धर्मनगरी चित्रकूट के क्षेत्रपाल के रूप में आज भी विराजमान है।

विश्व के करोडों हिंदुओं के आराध्य भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ कामदगिरि पर्वत पर निवास कर अपने वनवास काल का साढ़े ग्यारह वर्ष व्यतीत किया था। वनवास काल में राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ इतनी लंबी अवधि तक निवास किया था, कि चित्रकूट की कण-कण में राम, लक्ष्मण और सीता के चरण अंकित हो गये हैं। कामदगिरि पर्वत को लेकर प्रचलित किवदंती का उल्लेख करते हुए डॉ. राम नारायण त्रिपाठी बताते हैं कि वायु पुराण में चित्रकूट गिरि की महिमा का उल्लेख है। सुमेरू पर्वत के बढ़ते अहंकार को नष्ट करने के लिए वायु देवता उसके मस्तक को उडा कर चल दिये थे। किंतु उस शिखर पर चित्रकेतु ऋषि तप कर रहे थे। शाप के डर से वायु देवता पुनः उस शिखर को सुमेरू पर्वत में स्थापित करने के लिए चलने लगे। तभी ऋषिराज ने कहा कि मुझे इससे उपयुक्त स्थल पर ले चलो नहीं तो शाप दे दूंगा। संपूर्ण भूमंडल में वायु देवता उस शिखर हो लेकर घूमते रहे, जब इस भूखंड पर आये तो ऋषि ने कहा कि इस शिखर को यहीं स्थापित करों।

चित्रकेतु ऋषि के नाम से ही इस शिखर का नाम चित्रकूट गिरि पडा था। सुप्रसिद्ध भगवताचार्य आचार्य नवलेश दीक्षित बताते हैं कि, धनुषाकार कामदगिरि पर्वत के चार द्वार हैं। जिसमे उत्तरद्वार पर कुबेर, दक्षिणीद्वार पर धर्मराज, पूर्वी द्वार पर इंद्र और पश्चिमी द्वार पर वरूण देव द्वारपाल हैं। इसके अलावा कामदगिरि पर्वत के नीचे क्षीरसागर है। जिसके अंदर उठने वाले ज्वार-भाटा से कभी-कभार कामतानाथ भगवान के मुखार बिंद से दूध की धारा प्रवाहित होती है। विविध विशेषताओं के कारण ही कामदगिरि पर्वत के दर्शन और परिक्रमा के लिए प्रत्येक माह अमावस्या पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का जमावडा लगता है। दीपदान मेले में यह संख्या 40 से 50 लाख तक पहुंच जाती है।
रिपोर्ट-रतन पटेल

आज (10 अप्रैल) राम नवमी है। त्रेतायुग में राजा दशरथ के यहां भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का जन्म हुआ था। श्रीराम और सीता के विवाह के कुछ दिन बाद दशरथ उन्हें राजा बनाने की घोषणा कर चुके थे। राज्याभिषेक से ठीक पहले कैकयी ने दशरथ से अपने दो वर मांग लिए, श्रीराम को वनवास और भरत को राज्य। इसके बाद श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के चल दिए थे। वनवास 14 वर्षों का था। इसमें से करीब 12 वर्ष उन्होंने चित्रकूट में ही निवास किया, लेकिन इसके बाद वे चित्रकूट से पंचवटी पहुंचे। पंचवटी से सीता का हरण हो गया। इसके बाद सीता जी की खोज और रावण वध हुआ। इन सब में करीब दो वर्षों का समय लगा था।

मध्य प्रदेश के डॉ. रामगोपाल सोनी ने राम वन गमन पथ नाम की किताब लिखी है। इस किताब के अनुसार जानिए श्रीराम ने वनवास के समय किन-किन स्थानों की यात्रा की थी और अयोध्या से लंका तक का सफर कैसे तय किया था...

अयोध्या से चित्रकूट

वनवास जाते समय श्रीराम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या से सुमंत्र के रथ में बैठकर निकले थे। सबसे पहले उन्होंने तमसा नदी पार की। इसके बाद श्रृंगवेरपुर से गंगा नदी पार करते हुए वे प्रयागराज पहुंचे थे। प्रयागराज से आगे बढ़ते हुए वे यमुना नदी पार करते हुए वाल्मीकि आश्रम पहुंचे। इसके बाद वे चित्रकूट पहुंचे थे। अयोध्या से चित्रकूट की दूरी करीब 270 किमी है। इस यात्रा में करीब 140 किमी की यात्रा सुमंत्र के रथ से और इसके बाद पैदल चलकर चित्रकूट पहुंचे।

चित्रकूट से अमरकंटक

श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ने करीब 12 वर्ष चित्रकूट में ही निवास किया था। चित्रकूट के बाद ये तीनों अनुसूया के आश्रम पहुंचे थे। यहां से टिकरिया, सरभंगा आश्रम, सुतीक्ष्ण आश्रम, अमरपाटन, गोरसरी घाट, मार्कंडेय आश्रम, सारंगपुर होते हुए अमरकंटक पहुंचे थे। चित्रकूट से अमरकंटक की यात्रा करीब 380 किमी की थी।

अमरकंटक से पंचवटी

​​​​​​​अमरकंटक के बाद श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पंचवटी की ओर चल दिए थे। पंचवटी में गोदावरी नदी के किनारे पर इन्होंने कुटिया बनाई थी। उस जगह पर गोदावरी धनुषाकार थी। यहीं श्रीराम और जटायु का परिचय हुआ था। जटायु ने श्रीराम को बताया था कि वे राजा दशरथ के मित्र हैं। पंचवटी में एक दिन सूर्पणखा पहुंच गई और वह श्रीराम पर मोहित हो गई थी। उसने श्रीराम से विवाह करने की बात कही तो श्रीराम ने मना कर दिया। इसके बाद सूर्पणखा लक्ष्मण के पास पहुंची थी। लक्ष्मण ने भी विवाह के लिए मना कर दिया तो सूर्पणखा सीता को मारने के लिए आगे बढ़ी तो लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी।

सूर्पणखा वहां से खर-दूषण के पास पहुंची। खर-दूषण पंचवटी क्षेत्र में रह रहे थे। खर-दूषण श्रीराम, लक्ष्मण को मारने पहुंच गए। श्रीराम-लक्ष्मण ने उनका वध कर दिया। इसके बाद सूर्पणखा रावण के पहुंची और रावण ने योजना बनाकर मारीच की मदद से सीता का हरण कर लिया।

पंचवटी से किष्किंधा

सीता हरण के बाद जटायु ने उन्हें रावण के बारे में बताया तो श्रीराम पंचवटी से दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ने लगे। पंचवटी से करीब 1255 किमी की यात्रा करने के बाद श्रीराम दक्षिण दिशा में किष्किंधा राज्य पहुंचे थे। उस समय किष्किंधा रामेश्वरम् से करीब 25 किमी दूर ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित थी। हनुमान जी ने श्रीराम ने पहली मुलाकात में पूछा था कि आप पंपा नदी किनारे क्यों घूम रहे हैं। वर्तमान में पंपा नदी सबरी आश्रम में अय्यपा स्वामी मंदिर से करीब 4-5 किमी दूर है। इससे स्पष्ट है कि किष्किंदा नगरी दक्षिण दिशा में पंपा नदी के पास ही थी।

किष्किंधा से लंका

किष्किंधा में श्रीराम ने बालि को मारकर सुग्रीव को राजा बना दिया था। इसके बाद सुग्रीव ने चारों दिशाओं में सीता की खोज में वानर सेना भेजी थी। दक्षिण दिशा में हनुमान जी, अंगद, जामवंत, नल-नील आदि वानरों को भेजा था। दक्षिणा दिशा में हनुमान जी की भेंट संपाति नाम के गीध से हुई। संपाति ने इन्हें सीता के बारे में बताया कि सीता समुद्र में 100 योजन दूर स्थित लंका में है। हनुमान जी लंका पहुंचते हैं और सीता की खोज करके श्रीराम के पास किष्किंधा आते हैं। इसके बाद श्रीराम वानर सेना के साथ दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंचते हैं। यहां नल-नील की मदद से समुद्र पर पुल बांधकर श्रीराम पूरी वानर सेना के साथ लंका पहुंच जाते हैं। लंका में श्रीराम ने रावण का वध करके सीता को मुक्त कराया। इसके बाद श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आते हैं।

राम को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा था?

अवध नरेश को चित्रकूट इसलिए जाना पड़ा क्योंकि उन्हें 14 वर्ष तक वनवास में रहना थाचित्रकूट एक तपोवन था, जहाँ ऋषि-मुनियों द्वारा तपस्या की जाती थी। वहाँ विभिन्न मुनियों के आश्रम भी थे। श्रीराम को यह स्थान वनवास बिताने के लिए उपयुक्त लगा इसलिए वह यहाँ आकर निवास करने लगे।

चित्रकूट में भगवान राम कब आए थे?

चित्रकूट धाम प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है. यहीं पर भगवान राम माता सीता और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल के वनवास के दौरान 11 साल यहीं रहे थे.

चित्रकूट का इतिहास क्या है?

उत्तर प्रदेश में 6 मई 1997 को बाँदा जनपद से काट कर छत्रपति शाहू जी महाराज नगर के नाम से नए जिले का सृजन किया गया जिसमे कर्वी तथा मऊ तहसीलें शामिल थीं। कुछ समय बाद, 4 सितंबर 1998 को जिले का नाम बदल कर चित्रकूट कर दिया गया। यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में फैली उत्तरी विंध्य श्रृंखला में स्थित है।

चित्रकूट में राम ने क्या किया?

भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ पावन चित्रकूटगिरी पर अपने वनवास का साढे़ 11 वर्ष व्यतीत किया था। चित्रकूट: हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का विषेश महत्व है।