भक्ति काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है उत्तर बताइए? - bhakti kaal ko svarn yug kyon kaha jaata hai uttar bataie?

BhaktiKaal Ko Swarna Yug Kyon Kahaa Jata Hai

Pradeep Chawla on 09-10-2018

भक्तिकाल अथवा पूर्व मध्यकाल हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण काल है जिसे ‘स्वर्णयुग’ विशेषण से विभूषित किया जाता है. इस काल की समय सीमा विद्वानों द्वारा संवत 1375 से 1700 तक मान्य है.राजनैतिक, सामाजिक,धार्मिक,दार्शनिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अंतर्विरोधों से परिपूर्ण होते हुए भी इस काल में भक्ति की ऐसी धारा प्रवाहित हुयी कि विद्वानों ने एकमत से इसे भक्ति काल कहा.

‘भज’ धातु में ‘क्तिन’ प्रत्यय के साथ निर्मित शब्द ‘भक्ति’ अत्यंत व्यापक एवं गहन है. शांडिल्य और नारद भक्ति सूत्र में ‘भक्ति’ को ‘सा परानुरक्तिरीश्वरे’ एवं ‘सा त्वस्मिन परम प्रेम रूपा’ कहकर पारिभाषित किया है. वस्तुतः भक्ति और प्रेम मनुष्य की सहजात भाव स्थितियां हैं जिनके आधार पर भक्ति दो रूपों में प्रस्फुटित हुई – निर्गुण और सगुण.

निर्गुण का शाब्दिक अर्थ है – निःगुण अर्थात जो लौकिक गुणों (सत्व, रज और तम) में सिमित नहीं है. हम यह भी कह सकते हैं कि आराध्य का वह स्वरुप जो अनादि, अनन्त, असीम और अव्यक्त होते हुए भी सर्वव्यापक एवं सर्वनियन्ता है, स्वयं सृजन कर्ता है और कण-कण में समाया है. श्वेताश्वरोपनिषद में निर्गुण के विषय में कहा गया –

एकोदेवः सर्वभूतेषु गूढ़ सर्वव्यापी सर्वभूतान्तारात्मा.

कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेताव केवलो निर्गुणश्च.

अर्थात निर्गुण एक अद्वितीय देव है जो सर्वव्यापी है, सब प्राणियों में निवास करता है, सभी कर्मों का अधिष्ठाता है, साक्षी है और सबको चेतना प्रदान करता है.

वस्तुतः वेदों-उपनिषदों में ब्रह्म को इसी रूप में वर्णित किया गया है. यहाँ ऋषि- मुनि ज्ञान के आधार पर ईश्वर के ‘नेति-नेति’ स्वरुप को जानने और समझने का प्रयास करते रहे. ज्ञान और भक्ति साधना के दो पृथक रूप माने गए जबकि ये दोनों परस्पर गहन रूप से सम्बद्ध हैं. व्यावहारिक तौर पर देखा जाये तो किसी तत्व अथवा व्यक्ति के विषय में हम यदि बाह्य और अन्तः दोनों दृष्टियों से समझ-जान लेते है तो उसे ज्ञान कहा जाता है. इस प्रक्रिया के उपरांत हमारा ह्रदय उसके प्रति अनुरक्त होने लगता है, हम निरंतर उसी का स्मरण करते हैं, उसे भजते हैं- जिसे भक्ति कहते हैं. आदि गुरु शंकराचार्य ने ज्ञान के साथ अनुभूति अथवा भाव को आवश्यक माना. उन्होंने जीव का परिचय ‘अहं ब्रह्मास्मि’ अर्थात मैं ब्रह्म हूँ- के रूप में दिया लेकिन वह तभी संभव है जब अनुभूति के धरातल पर दोनों में अभेदता हो जाये. यह ब्रह्म और जीव का एक हो जाना है, अद्वैत है. इसी भाव को संत कबीर कहते हैं- ‘तूं तूं करता तूं भया, मुझ में रही न हूँ.’

सगुण भक्ति का अर्थ है- आराध्य के रूप – गुण, आकर की कल्पना अपने भावानुरूप कर उसे अपने बीच व्याप्त देखना. सगुण भक्ति में ब्रह्म के अवतार रूप की प्रतिष्ठा है और अवतारवाद पुराणों के साथ प्रचार में आया. इसी से विष्णु अथवा ब्रह्म के दो अवतार राम और कृष्ण के उपासक जन-जन के ह्रदय में बसने लगे. राम और कृष्ण के उपासक उन्हें विष्णु का अवतार मानने की अपेक्षा परब्रह्म ही मानते हैं, इसकी चर्चा यथास्थान की जाएगी.

कृष्ण काव्य : अनुभूति एवं अभिव्यक्तिगत विशेषताएँ

भक्तिकाल की सगुण काव्य धरा के अंतर्गत आराध्य देवताओं में श्रीकृष्ण का स्थान सर्वोपरि है. वेदों में श्रीकृष्ण का उल्लेख हुआ है, ऋगवेद में कृष्ण (आंगिरस) का उल्लेख है. पुराणों तक आते- आते राम और कृष्ण अवतार रूप में प्रतिष्ठित हो गए. श्रीमद्भाग्वद्पुराण में उन्हें पूर्ण ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया है.

भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति का प्रचार कृष्ण की जन्म एवं लीलाभूमि में व्यापक रूप में हुआ. वैष्णव भक्ति सम्प्रदायों में वल्लभाचार्य –पुष्टिमार्ग. निम्बार्काचार्य- निम्बार्क, श्री हितहरिवंश – राधावल्लभ, स्वामी हरिदास- हरिदासी, चैतन्य महाप्रभु- गौडीय संप्रदाय सभी सम्प्रदायों में पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण तथा श्री राधा उनकी आह्लादिनी शक्ति की उपासना की गयी. सत, चित, आनंद स्वरुप श्री कृष्ण नन्द और यशोदा के आँगन में विभिन्न बाल लीलाओं के माध्यम से समस्त गोकुलवासियों को आनंद प्रदान करते है. बाल रूप में ही राक्षस – राक्षसियों का विनाश कर अपने दिव्य रूप को सहज ग्राह्य बना देते हैं. वे ही सर्वव्यापक, अविनाशी, अजर, अमर, अगम आदि विशेषणों से युक्त होते हुए भी ब्रज के प्रत्येक प्राणी को उसके भावानुरूप आनंद प्रदान करते है.

हिंदी साहित्य में कृष्ण भक्ति पर आधारित काव्यों की लम्बी परंपरा है (आदिकालीन कृष्ण काव्य में चंदवरदाई और विद्यापति उल्लेखनीय है) भक्तिकालीन कृष्ण भक्त कवियों पर महाप्रभु वल्लभाचार्य का विशेष प्रभाव है. उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल एवं किशोर रूप की लीलाओं का गायन किया तथा गोवर्धन पर श्रीनाथ जी को प्रतिष्ठित कर एक मंदिर बनवाया.उन्होंने भगवान के अनुग्रह की महत्ता पर बल दिया. दर्शन के क्षेत्र में विष्णुस्वामी के शुद्धाद्वैत का प्रभाव इन पर दिखाई देता है. अपने इस भक्ति मार्ग को उन्होंने पुष्टिमार्ग कहा और अनेक शिष्यों को कृष्ण भक्ति का मन्त्र देकर दीक्षित भी किया. जिन्हें अष्टछाप के कवि अथवा अष्ट सखा कहा गया. इनमें सूरदास, कुम्भनदास, परमानंददास,कृष्णदास – चार श्री बल्लभाचार्य के शिष्य और गोविन्दस्वामी, नन्ददास, छीतस्वामी और चतुर्भुजदास – चार बल्लभाचार्य के पुत्र श्री विट्ठलनाथ के शिष्य थे. आठ की संख्या होने से इन्हें अष्ट छाप कहा गया.

इन सभी भक्त कवियों ने श्रीमदभागवत के आधार पर ही कृष्ण लीला गान किया है. इसके लिए अपने आराध्य श्रीकृष्ण की कृपा से प्राप्त भगवत प्रेम ही महत्वपूर्ण है. पुष्टिमार्ग का अनुयायी भक्त आत्मसमर्पण युक्त रसात्मक प्रेम द्वारा भगवान की लीला में तल्लीन हो आनन्दावस्था को प्राप्त होता है.

सभी कृष्ण भक्त कवियों की रचनाएँ भक्ति, संगीत और कवित्व का समन्वित रूप है. लीलामय श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति के आवेश में इन अष्टछाप कवियों के ह्रदय से गीतिकाव्य की जो निर्झरिणी प्रस्फुटित हुई उसने भगवदभक्तों को आकंठ निमग्न कर दिया

सम्बन्धित प्रश्न



Comments RAMAN singh on 17-09-2022

भक्ति काल को सवर्ड युग क्यों कहा जाता हैं

रमन सिंह on 17-09-2022

भक्ति काल को स्वर्ड युग क्यों कहा जाता हैं

Neha on 18-08-2022

Kua aap is baat per sahmat he ki,guptkal ek स्वर्णिम युग है

Tannu on 26-06-2022

Hindi sahitya mein Bhakti kal ko swarnikaal kyon Kaha Gaya important notes project file ke liye 12th class ke liye

Sarvesh kumar on 01-02-2022

Bhagtikal ko sward yug Kyu kha jata hai

Shani sahani on 05-01-2022

Kendra shasit Pradesh kya hai

on 05-01-2022

Bhakati kal ko Hindi sahitay ka sawarn yug kyu kha gya hai

Prashant on 14-12-2021

Bhakti kal ko swarna yug jata hai to kijiye siddh kijiye

Biprokha on 03-12-2021

Bhokti kal ko savan yog kohona kaha tok uchit hei

Rahul Batham on 03-12-2021

Bhakti kal ko Hindi sahitya main main ka ka Swarna Yug kyon kaha jata hai

Jyoti Yadav on 02-12-2021

Bhakti kal ko hindi sahitya ka savan Yug kyu kaha jata hai aur karn sahit likhiye

Sumit Bhalekar on 30-09-2021

भकि्त काल को स्वण युग क्यो काहा जाता है

Vinay on 30-09-2021

Jansanchar ke pimukh do madhymo ke nam likhiye

Devendra solanki on 29-09-2021

Bhakti kal ko Swarna Yug Kyon Kaha Gaya

Leelavati jaiswal on 29-09-2021

Bhakti kal ko Swarna Yug kyon kaha jata hai

Vivek Goswami on 16-07-2021

Purskar kahani ki thatvik vishestaye bataiye

Amar on 13-07-2021

भक्तिकाल को स्वर्ण युग क्यो कहा जाता हैं

Amar on 13-07-2021

भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वरयुग क्यो कहा जाता हैं

Muskan on 22-05-2021

Bhakti kal ko swarnkal kis adhar pr kha jata h ?? (In points)

BktI kal ke bare me btaye on 04-05-2021

Bkti kal ko swarn Yug ku kah jata hai

Ashwani Raj on 19-09-2020

हिंदी काव्य साहित्य का स्वर्ण युग किसे कहा जाता है

Suraj Kumar on 05-07-2020

Good Good

Bhakt on 26-03-2020

कबीर व अन्य भक्ति कालीन संत कवियों के साहित्य में प्राप्त कर लिया जागरण करने की योगिक प्रक्रियाओं का आधार भी इन्हीं नाथ पंक्तियों का उपदेश है। यही नहीं भाषा और शैली तक उनसे परिचालित है। उपमाएं प्रतीक और बिंब भी ज्यों के त्यों वहीं से सदियों से चले आ रहे हैं। वही सूर्य चंद्र इडा पिंगला गंगा जमुना और सरस्वती और वही सुन महल कबीर को नाथ भक्ति से ही विरासत में मिला। भक्ति काल को स्वर्ण युग बनाने और उसे भावोज्जवल करने की सारी पूंजी इसी नाथ संप्रदाय की रचनाओं से आई हुई प्रतीत होती है। यह कोई कम श्रेय की बात नहीं है। इसी तरह लुइया, राजा धर्मपाल के शासनकाल में कायस्थ परिवार में जन्मे थे। चौरासी सिद्धों में इनका सबसे ऊंचा स्थान माना जाता है। एक और सिद्ध डोभिया मगध के क्षत्रिय वंश में 840 ईसवी में उत्पन्न हुए इन्होंने विरूपा से दीक्षा ली थी । उनके इक्कीस ग्रंथ बताए जाते हैं लेकिन सभी सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकी है। पूर्व मध्यकाल को भक्ति की प्रधानता के कारण इसे भक्ति काल नाम दिया गया है। हिंदी साहित्य में भक्ति काव्य की प्रबल धारा प्रवाहित होने के कारण कुछ विद्वान इसे भक्तिकाल कहना उपयुक्त मानते हैं। आचार्य शुक्ल ने भक्ति काल को निर्गुण और सगुण दो शाखाओं में विभाजित किया है। 13 साल से 17 साल का उद्घोष करता है इसका लाउदी में कबीर दास के निर्गुण संत कवि जायसी सूफी कवि सूरदास अधीक्षक तुलसी प्रेम दीवानी मीरा मूर्ति रसखान जैसी उच्च कोटि की साहित्य प्रतिभाओं ने जो कहा वह किसी सांसारिक नरेश का वरदहस्त प्राप्त लोकमंगल की साधना ही उनका सामाजिक तथा धार्मिक समन्वय के महासेतु थे। भक्ति काल का मूल मंत्र "हरि को भजे हरि को होय" तत्कालीन परिस्थितियों ने ऐसे लोग मंगलकारी साहित्य के निर्माण की स्थिति पैदा की साहित्य चेतना का फल होता है। इसलिए ऐसे कालजई साहित्य को हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्ण काल कहा जाता है।

Pankaj Kumar on 23-12-2019

भकति काल के हिंदी सवण कयो कहा जाता है

Khushi on 22-12-2019

Bhakti kal ko Hindi shahitya kA swarn kaal kyu Kaha jata hai? Pls give Me a answer sir.

Raju ranjan on 07-12-2019

Ritika ke pramukh pravistiyo ka ullekh kijiy

Anima kumari on 28-11-2019

Bhakti kal hindi sahitya ka swarn yug

Deepanshu on 20-10-2019

Bhakti kal ko Hindi sahitya ka Swarna Yug Kaha jata hai kya

Chandan on 11-10-2019

, भक्ति काल को स्वर्ण युग क्यों कहा गया है

Amit on 12-02-2019

Bhakti Kaal Purush aur Kisne Kaha

Basanti on 05-10-2018

Bhagtikal ko sayn yug

Muskee on 05-10-2018

Bhakte call ko hinde sahety ka suvrdh yug ku kha jata her answers chahey

ममता kanwar on 02-10-2018

हिन्दी साहित्य के इतिहास मे भक्तिकाल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?

Bakti kalen ke hindi sahity ka sawrg yug kha jata on 27-09-2018

Baktikalin ke hindi sahity ke swarg yug kya kha jata answar hindi me



भक्ति काल का स्वर्ण युग क्यों कहा गया है?

भक्तिकाल में तुलसी दास, कबीर दास, मीरा बाई, सूरदास, आदि जैसे महान संत कवि हुए जिन्हो ने समाज को एक नई शिक्षा दी और लोगो को अपने ईश्वर तक जाने का मार्ग दिखाया इन्ही सब कारणों के कारण भक्ति काल को स्वर्ण काल भी कहा जाता है ।

हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग किस काल को कहा जाता है और क्यों कहा जाता है?

हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल 'स्वर्ण युग' के नाम से जाना जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी समयावधि 1375 वि.

स्वर्ण युग कौन सा काल है?

गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। इसे भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार, धार्मिक सहिष्णुता, आर्थिक समृद्धि तथा शासन व्यवस्था की स्थापना काल के रूप में जाना जाता है।