भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है ?`? - bholaanaath apane saathiyon ko dekhakar sisakana kyon bhool jaata hai ?`?

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विषयसूची

  • 1 प्रश्न 5 आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाते थे?
  • 2 माता का अंचल पाठ के लेखक अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता था?
  • 3 शिव पूजन सहाय के पिता उसे प्यार से क्या बुलाते थे?
  • 4 माता का आँचल में बालक का िास्तविक नाम क्या था उसका नाम भनलानाथ क्यनं पड़ा?

इसे सुनेंरोकेंभोलानाथ को भी जब साथी बालकों की टोली दिखाई देती है तो उनका खेलना-कूदना देखकर, वह गुरु जी की डाँट-फटकार तथा अपना सिसकना भूल जाता है और उनके साथ खेलने में मग्न हो जाता है। बच्चों के साथ उसे लगता है कि अब डर, भय और किसी तरह की चिंता की आवश्यकता नहीं रही। यही कारण है कि भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

माता का अंचल पाठ के लेखक अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता था?

इसे सुनेंरोकेंअपनी उम्र के साथ जिस रुचि से खेलता है वह रुचि बड़ों के साथ नहीं होती है। दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक भी है-बच्चे को अपने साथियों के बीच सिसकने या रोने में हीनता का अनुभव होता है। यही कारण है कि भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

भोिानाथ ऄपने साधथयों को देखकर धससकना क्यों भूि जाता था?

इसे सुनेंरोकेंउनके साथ वह सबकुछ भुल जाता है। गुरू जी द्वारा गुस्सा करने पर वह अपने पिता की गोद में रोने − बिलखने लगता है परन्तु अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता। मार की पीड़ा खेल की क्रीड़ा के आगे कुछ नहीं लगती। इसलिए रोना भुलकर वह दुबारा अपनी मित्र मंडली में खेल का मजा उठाने लगता है।

सांप को देखकर भोलेनाथ की क्या दशा हुई?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: चूहे के बिल से निकले साँप को देखकर भयभीत भोलानाथ जब गिरता-पड़ता घर भागता है तो उसे जगह-जगह चोट लग जाती है। वह अपने पिता को ओसारे में हुक्का गुड़गुड़ाता हुआ देखता है परंतु उनकी शरण में न जाकर घर में सीधे माँ के पास जाकर माँ के आँचल में छिप जाता है।

शिव पूजन सहाय के पिता उसे प्यार से क्या बुलाते थे?

इसे सुनेंरोकेंपिता जी हमें बड़े प्यार से ‘भोलानाथ’ कहकर पुकारा करते।

माता का आँचल में बालक का िास्तविक नाम क्या था उसका नाम भनलानाथ क्यनं पड़ा?

इसे सुनेंरोकें’माता का आँचल’ पाठ में भोलेनाथ का वास्तविक नाम तारकेश्वर नाथ था, लेकिन उनको सब भोलेनाथ कहकर पुकारते थे। उनका भोलेनाथ नाम इसलिए पड़ा क्योंकि भोलेनाथ के पिता उन्हें बचपन में सुबह नहला-धुला कर अपने साथ पूजा-पाठ करते समय बैठा लेते थे।

बच्चा कब se बैठने लगता है?

इसे सुनेंरोकेंआमतौर पर, बच्चे 3 से 5 महीने की उम्र में सहारे के साथ बैठना शुरू कर देते हैं। 6 महीने की उम्र तक आने पर, बच्चा बिना सहारे के बैठने लगता है। क्योंकि, अब तक उसकी पीठ और गर्दन की मांसपेशियां इतनी मजबूत हो चुकी होती हैं, कि वह बिना सहारे के बैठ सके।

प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?


माता से बच्चे का रिश्ता ममता पर आधारित होता है जबकि पिता से स्नेहाधारित होता है । बच्चे को विपदा के समय अत्याधिक ममता और स्नेह की आवश्यकता थी। भोलानाथ का अपने पिता से अपार स्नेह था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है।

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आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।


छात्र स्वयं अपने अनुभव के आधार पर करे- उधारणतः  
मुझे भी अपने बचपन के कुछ खेल और एक - आध तुकबन्दियाँ याद हैं :-
१ अटकन - बटकन दही चटाके।
बनफूल बंगाले।
२ अक्कड़ - बक्कड़ बम्बे बो,
अस्सी नब्बे पूरे सौ।

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भोलनाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?


भोलानाथ व उसके साथी खेल के लिए आँगन व खेतों पर पड़ी चीजों को ही अपने खेल का आधार बनाते हैं। उनके लिए मिट्टी के बर्तन, पत्थर, पेड़ों के पत्ते, गीली मिट्टी, घर के समान आदि वस्तुएँ होती थी जिनसे वह खेलते व खुश होते। आज जमाना बदल चुका है। आज माता-पिता अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं। वे बच्चों को बेफिक्र खेलने-घूमने की अनुमति नहीं देते। हमारे खेलने के लिए आज क्रिकेट का सामान, भिन्न-भिन्न तरह के वीडियो गेम व कम्प्यूटर गेम आदि बहुत सी चीज़ें हैं जो इनकी तुलना में बहुत अलग हैं। भोलानाथ जैसे बच्चों की खेलने की सामग्री आसानी से व सुलभता से बिना मूल्य खर्च किये ही प्राप्त हो जाती हैं जबकी आज के बच्चों की खेल सामग्री बाज़ार से खरीदना पड़ता है । 

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पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?


पाठ में ऐसे कई प्रसंग आए हैं जिन्होंने मेरे दिल को छू लिए-
(1) रामायण पाठ कर रहे अपने पिता के पास बैठा हुआ भोलानाथ का आईने में अपने को देखकर खुश होना और जब उसके पिताजी उसे देखते हैं तो लजाकर उसका आईना रख देने की अदा बड़ी प्यारी लगती है।
(2) बच्चों द्वारा बारात का स्वांग रचते हुए समधी का बकरे पर सवार होना। दुल्हन को लिवा लाना व पिता द्वारा दुल्हन का घूँघट उठाने ने पर सब बच्चों का भाग जाना, बच्चों के खेल में समाज के प्रति उनका रूझान झलकता है तो दूसरी और उनकी नाटकीयता, स्वांग उनका बचपना।
(3) बच्चे का अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ना। शिथिल होकर बच्चे के बल को बढ़ावा देना और पछाड़ खा कर गिर जाना। बच्चे का अपने पिता की मूंछ खींचना और पिता का इसमें प्रसन्न होना बड़ा ही आनन्दमयी प्रसंग है।
(4) कहानी के अन्त में भोलानाथ का माँ के आँचल में छिपना, सिसकना, माँ की चिंता, हल्दी लगाना, बाबू जी के बुलाने पर भी मन की गोद न छोड़ना मर्मस्पर्शी दृश्य उपस्थित करता है; अनायास माँ की याद दिला देता है।

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आपके विचार से भोलनाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?


भोलानाथ भी बच्चे की स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रूचि लेता है। उसे अपनी मित्र मंडली के साथ तरह-तरह की क्रीड़ा करना अच्छा लगता है। वे उसके हर खेल व हुदगड़ के साथी हैं। अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता। इसलिए रोना भूलकर वह दुबारा अपनी मित्र मंडली में खेल का मजा उठाने लगता है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है।

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