भ्रूण को पोषण प्रदान करने वाली संरचना का क्या नाम है? - bhroon ko poshan pradaan karane vaalee sanrachana ka kya naam hai?

नमस्कार दोस्तों प्रश्न है मां के रुधिर से भून पोषण प्रदान करने वाली संरचना का नाम लिखिए दोस्तों पहले समझते हैं 14 दोस्तों जब नर युग्मक और मादा युग्मक मिलकर निषेचन की क्रिया द्वारा किसके द्वारा निषेचन की क्रिया द्वारा क्या बनाते हैं युग मनोज और यह युग में जब माता की अपरा में किस में अपरा में यानी कि प्लेसेंटा में इन प्लांट हो जाता है तो उसे हम क्या कहते हैं ढूंढ कहते हैं ठीक है और भ्रूण को पोषण प्रदान करने के लिए किस को भूल को क्या चाहिए होगा उसकी ग्रोथ के लिए या वृद्धि

के लिए पोषण तो यह पोषण उसको माता की जो प्लेसेंटा की क्या होती है हम भी कल कोर्ट अंबिलिकल कॉर्ड एनी की नाभि रज्जु क्या कहते हैं नाभि रज्जु या गर्भनाल भी इसे कहते हैं क्या कहते हैं गर्भनाल उससे पोषण मिलता है ठीक है यार रुधिर मिलता है दोस्तों मां के रुधिर से भ्रूण को पोषण प्रदान करने वाली संरचना का नाम क्या है ना भी रजिया गर्भनाल है आशा करता हूं दोस्तों आपको यह उत्तर समझ में आया होगा धन्यवाद

नमस्कार दोस्तों प्रश्न है मां के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है तो दोस्तों मां के शरीर मां के शरीर से जो गर्भस्थ शिशु होता है गर्भस्थ शिशु या भ्रूण इसे हम कहेंगे भूल जो होता है इससे पोषण माता के रक्त द्वारा प्रदान होता है तो माता का रक्त सीधे तो भ्रुण तक पहुंचता नहीं है तो इसके लिए प्रकृति द्वारा माता के शरीर में एक विशिष्ट संरचना प्रदान की गई है जिससे प्लेसेंटा या अपरा कहा जाता है यह प्लेसेंटा या अपराध होती है यह एक तश्तरी के समान संरचना होती है जो गर्भाशय की विधि के अंदर दबी होती है

तथा इसका निर्माण एलेनट्रस टैलेंट तो यस जिले के द्वारा होता है तो दोस्तों यह जो प्लेसेंटा होती है यह भ्रूण के नाभि रज्जु या अंबिलिकल कॉर्ड से जुड़ी होती है जिसकी सहायता से माता के शरीर से रक्त द्वारा पोषण पूर्ण के शरीर में जाता है अब प्लेसेंटा द्वारा एक तो कार्बोहाइड्रेट या ग्लूकोस जिसे हम कह सकते हैं कि रुको तथा ऑक्सीजन ऑक्सीजन तथा अन्य पोषक तत्व जो है वरुण के शरीर में जाते हैं प्लेसेंटा यात्रा की सहायता से

आशा करते हैं आप कुछ प्रश्न का उत्तर समझ आया होगा वीडियो को देखने के लिए धन्यवाद

भ्रूण को पोषण प्रदान करने वाली संरचना का क्या नाम है? - bhroon ko poshan pradaan karane vaalee sanrachana ka kya naam hai?

बीजाण्डासन या अपरा (Placenta) वह अंग है जिसके द्वारा गर्भाशय में स्थित भ्रूण के शरीर में माता के रक्त का पोषण पहुँचता रहता है और जिससे भ्रूण की वृद्धि होती है। यह अंग माता और भ्रूण के शरीरों में संबंध स्थापित करनेवाला है। यद्यपि माता का रक्त भ्रूण के शरीर में कहीं पर नहीं जाने पाता, दोनों के रक्त पूर्णतया पृथक्‌ रहते हैं और दोनों की रक्तवाहिनियों के बीच एक पतली झिल्ली या दीवार रहती है, तो भी उस दीवार के द्वारा माता के रक्त के पोषक अवयव छनकर भ्रूण की रक्तवाहिकाओं में पहुँचते रहते है।

बीजाण्डासन की उत्पत्ति[संपादित करें]

जब संसेचित डिंब डिंबवाहिनी से गर्भशय में आता है तो वह वहाँ की उपकला या अंत:स्तर में, जो पिछले मासिक स्रव में नए सिरे से बन चुकी है, अपने रहने के लिए स्थान बनाता है। वह अंत:स्तर को खोदकर उसमें घुस जाता है। इस क्रिया में अंत: स्तर की कुछ रक्तवाहिकाएँ फटकर उनसे निकला हुआ रक्त संसेचित डिंब के चारों ओर एकत्र हो जाता है और अतं:स्तर का एक पतला स्तर डिंब के ऊपर भी छा जाता है। अब डिंब की वृद्धि होने लगती है। उसके चारों ओर जो रक्त एकत्र है उसी से वह पोषण लेता रहता है। उसके बाहरी पृष्ठ में अंकुर निकलते हैं। उधर गर्भाशय के डिंब के नीचे के खुले हुए भाग से भी अंकुर निकलते हैं। भ्रूण के और बढ़ने पर उसके ऊपर के आच्छादित भाग के अंकुर लुप्त हो जाते हैं और केवल अंत:स्तर की ओर के अंकुर रह जाते हैं। इन अंकुरों में रक्तवाहिकाओं की केशिकाएँ भी बन जाती हैं, जो अंत:स्तर की केशिकाओं से केवल एक झिल्ली द्वारा पृथक्‌ रहती है। अंत में यह झिल्ली भी लुप्त हो जाती है और माता और भ्रूण के रक्त के बीच में केवल रक्तकेशिकाओं की सूक्ष्म दीवार रह जाती है, जिसके द्वारा माता के रक्त से ऑक्सीजन और पोषण विसरण (diffusion) और रसाकर्षण की भौतिक क्रियाओं से भ्रूण के रक्त में चले जाते हैं और भ्रूण के शरीर में रासायनिक क्रियाओं द्वारा उत्पत्र हुई कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य त्याज्य पदार्थ माता के रक्त में चले आते हैं। अनुराधा और अंकुर नायक सगे भाई बहिन है।

संरचना[संपादित करें]

पूर्ण बीजाण्डासन (मुनष्य में) २२ सेमी लम्बा होता है। यह बीच में लगभग २ से २.५ सेमी मोटा, चपटा, परिधि में गोल मंडल होता है; किंतु परिधि के पास, जहाँ वह गर्भाशय की उपकला से मिल जाता है, पतला होता है। उसका भार लगभग ५०० ग्राम होता है। प्रसव के समय गर्भाशय के मांसस्तर में संकोच होने से माता और भ्रूण के अंकुरों का संबंध विच्छिन्न हो जाता है। मांससूत्रों के संकोच से गर्भाशय के अंकुरों की रक्तवाहिकाओं के मुँह बंद हो जाते हैं, इससे उनसे रक्त नहीं निकलता, किंतु बीजाण्डासनवाले अंकुरो की वाहिनियों के मुँह खुले रहने से कुछ रक्त निकलकर प्रसव में बाहर आता है।

बीजाण्डासन का कर्म[संपादित करें]

इस प्रकार बीजाण्डासन शिशु की वृद्धि और उसके जीवन के लिए अत्यंत महत्व का अंग है:

(१) वह भ्रूण के फुफ्फुस की भाँति श्वसन (respiration) का कर्म करता है। माता के रक्त का ऑक्सीजन इसके द्वारा भ्रूण में पहुँचता हैं;

(२) भ्रूण के शरीर में उत्पन्न हुई कार्बन डाइआक्साइड तथा भ्रूण के चयापचय से उत्पन्न हुए अन्य अंतिम त्याज्य पदार्थ माता के रक्त में बीजाण्डासन द्वारा लौट जाते हैं। इस प्रकार वह उत्सर्जन (excretion) का कर्म करता है;

(३) भ्रूण में माता के रक्त से पोषक अवयवों के पहुँचाने का काम इसी अंग का है। अतएव वह पोषण (nutrition) भी करता है;

(४) वह अवरोधक (barrier) का भी काम करता है; रोगों के पराश्रयी जीवों तथा बहुत से विषों को माता के रक्त से भ्रूण में नहीं जाने देता तथा

(५) बीजाण्डासन में एक अंत:स्रावी रस या हार्मोन (hormone) भी बनता है, जो भ्रूण की वृद्धि करता है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • ‘गर्भनाल’ से 130 लाइलाज बीमारियों का इलाज[मृत कड़ियाँ]
  • शिशु गर्भनाल से 130 लाइलाज रोगों का इलाज
  • 15687796,00.html संजीवनी साबित होती गर्भनाल[मृत कड़ियाँ]