भारत के गणराज्य की स्थापना कब हुई? - bhaarat ke ganaraajy kee sthaapana kab huee?

भारत गणतन्त्र का इतिहास 26 जनवरी 1950 को शुरू होता है।

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राष्ट्र को धार्मिक हिंसा, जातिवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद और विशेषकर जम्मू और कश्मीर तथा उत्तरपूर्वी भारत में, क्षेत्रीय अलगाववादी विर्द्रोहों का सामना करना पड़ा।

भारत एक परमाणु-हथियार सम्पन्न राज्य है; इसने पहला परमाणु परीक्षण १९७४ में किया, व १९९८ में बाद में और पाँच परीक्षण कियें। 1950 के दशक के लेकर 1980 के दशक तक, भारत ने समाजवादी-प्रेरित नीतियों का अनुसरण किया। अर्थव्यवस्था लाइसेंस राज, संरक्षणवाद और सार्वजिक स्वामित्व से बन्धी हुई थी, जिसका परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार और धीमा आर्थिक विकास थे। 1991 में शुरू हुएँ नव-उदार आर्थिक सुधारों ने भारत को विश्व में तीसरी सबसे बड़ी और सबसे तेज़ विकसित होती अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर दिया। आज, भारत, वैश्विक मामलों में एक प्रमुख आवाज़ के साथ, एक प्रमुख विश्व शक्ति हैं और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट हेतु प्रयासरत हैं। अनेक अर्थशास्त्रियों, सैन्य विश्लेषकों और बुद्धिजीवियों की यह अपेक्षा हैं कि भारत निकट भविष्य में एक महाशक्ति बनेगा।

1947–1950: भारत अधिराज्य[संपादित करें]

===भारत का विभाजन===India

रियासतों का एकीकरण[संपादित करें]

परिचय भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने रियासतों को यह विकल्प दिया कि वे भारत या पाकिस्तान अधिराज्य (डामिनियम) में शामिल हो सकती हैं या एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में स्वंय को स्थापित कर सकती हैं। तत्कालीन समय में लगभग 500 से ज़्यादा रियासतें लगभग 48% भारतीय क्षेत्र एवं 28% जनसंख्या की कवर करती थीं। ये रियासते वैधानिक रूप से ब्रिटिश भारत के भाग नहीं थें, लेकिन ये ब्रिटिश क्राउन के पूर्णत: अधीनस्थ थीं। ये रियासते, राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों एवं अन्य उपनिवेशी शक्तियों के उदय को नियंत्रित करने में, ब्रिटिश सरकार के लिये एक सहायक के रूप में थीं। सरदारsardar vallabh Bhai patel भाई पटेल (भारत के पहले उपप्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री) को V.P. मेनन की सहायता से रियासतों के एकीकरण का कार्य सौंपा गया। राजाओं के बीच राष्ट्रवाद का आह्वान शामिल न होने पर अराजकता की आशंका जताते हुए, पटेल ने राजाओं को भारत में शामिल करने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने ‘प्रिवी पर्स’ (एक भुगतान, जो शाही परिवारों को भारत के साथ विलय पर पर हस्ताक्षर करने पर दिया जाना था) की अवधारणा को भी पुनर्स्थापित किया। कुछ रियासतों ने भारत में शामिल होने का निर्णय किया, तो कुछ ने स्वतंत्र रहने का, वहीं कुछ रियासतें पाकिस्तान का भाग बनना चाहती थीं। त्रावनकोर दक्षिण तटीय राज्य, त्रावनकोर, उन प्रथम रियायतों में से एक था जिसने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया था एवं कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्त्व पर प्रश्नचिह्न लगाया था। ऐसा कहा जाता है कि सर सी.पी. अबयर (त्रावनकोर के दीवान) ने यू.के. सरकार के साथ गुप्त संधि भी कर ली थी। यू.के की सरकार स्वतंत्र त्रावनकोर के पक्ष में थी क्योंकि यह क्षेत्र मोनोजाइट नामक खनिज से समृद्ध था, जो ब्रिटेन को नाभकीय हथियारों की दौड़ में बढ़त दिला सकता था। लेकिन केरल समाजवादी पार्टी के एक सदस्य द्वारा उनकी हत्या के असफल प्रयास के बाद, सी.पी. अय्यर ने भारत से जुड़ने का फैसला किया और 30 जुलाई, 1947 को त्रावनकोर भारत में शामिल हो गया। जोधपुर एक राजपूत रियासत, जहाँ का राजा हिंदू था और अधिकांश जनसंख्या हिंदू थी, असाधारण रूप से पाकिस्तान की ओर झुकाव रखता था। युवा एवं अनुभवहीन राजा धनवंत सिंह ने यह अनुमान लगाया कि पाकिस्तान के साथ उसकी रियासत की सीमा लगने के कारण वह पाकिस्तान से ज़्यादा अच्छे तरीके से सौदेबाज़ी कर सकता है। जिन्ना ने महाराज को अपनी सभी मांगों को सूचीबद्ध करने के लिये एक हस्ताक्षरित खाली पेपर दे दिया था। इन्होंने सैन्य एवं कृषकों की सहायता से हथियारों के निर्माण और आयात के लिये कराची बंदरगाह तक मुफ्त पहुँच का प्रस्ताव भी रखा। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए , पटेल ने तुरंत राजा से संपर्क किया और उसे पर्याप्त लाभों एवं प्रस्तावों का आश्वासन दिया। पटेल ने आश्वस्त किया कि हथियारों के आयात की अनुमति होगी। जोधपुर को काठियावाड़ से रेल के माध्यम से जोड़ा जाएगा, साथ ही अकाल के दौरान अनाज की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी। 11 अगस्त, 1947 को महाराजा हनवंत सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये, इस प्रकार जोधपुर रियासत का भारतीय अधिराज्य में एकीकरण हो गया। भोपाल यह एक और रियासत थी जिसने संप्रभु एवं स्वतंत्र रहने की घोषणा की। यहाँ एक मुस्लिम नवाब, हमीदुल्ला खान, अधिसंख्यक हिंदू जनसंख्या पर शासन करता था। वह मुस्लिम लीग का करीबी मित्र एवं कॉग्रेंस का घोर विरोधी था। हालाँकि, उसने माउंटबेटन को लिखा कि कि वह एक स्वतंत्र रियासत चाहता है किंतु माउंटबेटन ने उसे उत्तर देते हुए लिखा कि ‘‘कोई की शासक अपने नजदीकी अधिराज्य (डामिनियम) से भाग नहीं सकता है।” जुलाई 1947, जब अधिकांश राजाओं ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया, तो अंतत: भोपाल के नवाब ने भी विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।’’ हैदराबाद यह सभी रियासतों में सबसे बड़ी एवं सबसे समृद्धशाली रियासत थी, जो दक्कन पठार के अधिकांश भाग को कवर करती थी। इस रियासत की अधिसंख्यक जनसंख्या हिंदू थी, जिस पर एक मुस्लिम शासक निजाम मीर उस्मान अली, शासन करता था। इसने एक स्वतंत्र राज्य की मांग की एवं भारत में शामिल होने से मना कर दिया। इसने जिन्ना से मदद का आश्वासन प्राप्त किया और इस प्रकार हैदराबाद को लेकर कशमकश एवं उलझनें समय के साथ बढ़ती गईं। पटेल एवं अन्य मध्यस्थों के निवेदनों एवं धमकियाँ निजाम के मानस पर कोई फर्क नहीं डाल सकीं और उसने लगातार यूरोप से हथियारों के आयात को जारी रखा। परिस्थितियाँ तब भयावह हो गईं, जब सशस्त्र कट्टरपंथियों ने हैदराबाद की हिंदू प्रजा के खिलाफ़ हिंसक वारदातें शुरू कर दीं। 13 सितंबर, 1948 के ‘ऑपरेशन पोलों के तहत भारतीय सैनिकों को हैदराबाद भेजा गया। 4 दिन तक चले सशस्त्र संघर्ष के बाद अंतत: हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया। बाद में निजाम के आत्मसमर्पण पर उसे पुरस्कृत करते हुए हैदराबाद राज्य का गवर्नर बनाया गया। जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक रियासत, जो 15 अगस्त, 1947 तक भारत में शामिल नहीं हुई थी, की अधिकांश जनसंख्या हिंदू एवं राजा मुस्लिम था। 15 सितंबर, 1947 को नवाब मुहम्मद महाबत खानजी ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया और तर्क दिया कि जूनागढ़ समुद्र द्वारा पाकिस्तान से जुड़ा है। दो राज्यों के शासक मंगरोल एवं बाबरियावाड जो जूनागढ़ के अधीन थे, ने प्रतिक्रिया स्वरूप जूनागढ़ से स्वतंत्रता एवं भारत में शामिल होने की घोषणा की। इसकी अनुक्रिया में जूनागढ़ के नवाब ने सैन्यबल का प्रयोग कर इन दोनों राज्यों पर कब्जा कर लिया, परिणामस्वरूप पड़ोसी राज्यों के राजाओं ने भारत सरकार से मदद की अपील की। भारत सरकार मानती थी कि यदि जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल होने की अनुमति दे दी गई तो सांप्रदायिक दंगे और भयावह रूप धारण कर लेंगे, साथ ही बहुसंख्यक हिंदू जनसंख्या, जो कि 80% है, इस फैसले को स्वीकार नहीं करेगी। इस कारण भारत सरकार ने ‘‘जनमत संग्रह’’ से विलय के मुद्दे के समाधान का प्रस्ताव रखा। इसी दौरान भारत सरकार ने जूनागढ़ के लिये ईंधन एवं कोयले की आपूर्ति को रोक दिया एवं भारतीय सेनाओं ने मंगरोल एवं बाबरियावाड पर कब्ज़ा कर लिया। पाकिस्तान, भारतीय सेनाओं की वापसी के शर्त के साथ ‘जनमत संग्रह’ के लिये सहमत हो गया, लेकिन भारत ने इस शर्त को खारिज कर दिया। 7 नवंबर, 1947 को जूनागढ़ की अदालत ने भारत सरकार को राज्य का प्रशासन अपने हाथ में लेने के लिये आमंत्रित किया। जूनागढ़ के दीवान सर शाह नवाज भुट्टो (सुप्रसिद्ध जुल्फीकार अली भुट्टो के पिता), ने हस्तक्षेप के लिये भारत सरकार को आमंत्रित करने का निर्णय लिया। फरवरी, 1948 को ‘जनमत संग्रह’ कराया गया, जो लगभग सर्वसम्मति से भारत में विलय के पक्ष में गया। कश्मीर एक ऐसी रियासत जहाँ की बहुसंख्यक जनसंख्या मुस्लिम थी, जबकि राजा हिंदू था। राजा हरि सिंह ने पाकिस्तान या भारत में शामिल होने के लिये विलय पत्र पर कोई निर्णय न लेते हुए ‘मौन स्थिति’ बनाए रखी। इसी दौरान, पाकिस्तानी सैनिकों एवं हथियारों से लैस आदिवासियों ने कश्मीर में घुसपैठ कर हमला कर दिया। महाराजा ने भारत सरकार से मदद की अपील की। राजा ने शेख अब्दुल्ला को अपने प्रतिनिधि के रूप में सहायता के लिये दिल्ली भेजा। 26 अक्तूबर, 1947 को राजा हरि सिंह ने ‘विलय पत्र’ पर हस्ताक्षर कर दिये। इसके तहत संचार, रक्षा एवं विदेशी मामलों को भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में लाया गया। 5 मार्च, 1948 को महाराजा हरि सिंह ने अंतरिम लोकप्रिय सरकार की घोषणा की जिसके प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला बने। 1951 में राज्य संविधान सभा निर्वाचित हुई एवं 31 अक्तूबर, 1951 में इसकी पहली बार बैठक हुई। 1952 में, दिल्ली समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसके तहत भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को ‘विशेष दर्जा’ प्रदान किया गया। 6 फरवरी, 1954 को, जम्मू-कश्मीर की संविधान ने भारत संघ के साथ विलय का अनुमोदन किया। जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 3 के अनुसार, जम्मू -कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और रहेगा। अनुच्छेद 370 के तहत, 5 अगस्त, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संवैधानिक आदेश, 2019 की उद्घोषणा की जिसमें जम्मू-कश्मीर को दिये गए ‘विशेष राज्य’ के दर्जे को खत्म कर दिया गया।

1947–1948 का भारत-पाकिस्तान युद्ध[संपादित करें]

1950 और 1960 के दशक[संपादित करें]

नेहरू प्रशासन (1952–1964)[संपादित करें]

राज्यों का पुनर्गठन[संपादित करें]

विदेश नीति और सैन्य संघर्ष[संपादित करें]

उत्तर-नेहरू भारत[संपादित करें]

1970 का दशक[संपादित करें]

हरित क्रान्ति और ऑपरेशन फ़्लड[संपादित करें]

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध[संपादित करें]

भारतीय आपातकाल[संपादित करें]

जनता interlude[संपादित करें]

1980 का दशक[संपादित करें]

राजीव गांधी प्रशासन[संपादित करें]

जनता दल[संपादित करें]

1990 का दशक[संपादित करें]

गठबन्धनों का युग[संपादित करें]

2000 का दशक[संपादित करें]

भारतीय जनता पार्टी के अधीन[संपादित करें]

कांग्रेस शासन की वापसी[संपादित करें]

आर्थिक transformation[संपादित करें]

2010 का दशक[संपादित करें]

2014 – भारतीय जनता पार्टी सरकार की वापसी[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • प्राचीन भारत
  • भारत का आर्थिक इतिहास
  • भारत की अर्थव्यवस्था
  • भारत का सैन्य इतिहास
  • भारत की राजनीति
  • भारतीय आपातकाल
  • भारत (बहुविकल्पी)

सन्दर्भ[संपादित करें]

आगे पढ़ें[संपादित करें]

Primary स्रोत[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • [1] बीबीसी भारत प्रोफ़ाइल

भारत में गणराज्य की स्थापना कब हुई थी?

भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था और 26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके तहत भारत देश को एक लोकतांत्रिक, संप्रभु और गणतंत्र देश घोषित किया गया. इसलिए लिए हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है.

भारत में कितने गणराज्य है?

28 राज्य और 8 संघ राज्य क्षेत्र। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। भारत का संविधान देश की न्याय प्रणाली का स्रोत है।

भारत एक गणराज्य कैसे बना?

भारत को 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों से आजादी तो मिल गई थी, लेकिन 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित हुआ था गणतंत्र दिवस का रूप में 26 जनवरी के दिन भारत के लिए बेहद खास है.

प्राचीन गणराज्य कब से कब तक आता है?

भारतवर्ष में लगभग एक सहस्र वर्षों (600 सदी ई. पू. से 4 थी सदी ई.) तक गणराज्यों के उतार चढ़ाव का इतिहास मिलता है।