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Tri Stariya Panchayati Raj Vyavastha: हमारे देश में पंचायती राज व्यवस्था (panchayati raj system) प्राचीन काल से ही मौजूद रही है। प्राचीन काल में पंचायती राज पंच परमेश्वर के सिद्धांत पर आधारित थी। मध्य काल में पंचायती राज व्यवस्था को आघात जरूर पहुंचा था लेकिन स्वतंत्र भारत में यह व्यवस्था स्थानीय सरकार के रुप में विकसित है। 1992 में संविधान के 73 संविधान संशोधन द्वारा इसे और मजबूती मिली है। इस संविधान संशोधन में इसे सुव्यवस्थित एवं कानूनी आधार दिया गया है। इस संविधान द्वारा भारतवर्ष के सभी राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई है। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ‘सच्चा लोकतंत्र केन्द्र में बैठकर राज्य चलाने वाला नहीं होता, अपितु यह तो गांव के प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग से चलता हैं।’ इस संविधान संशोधन में कई प्रावधान किए गए हैं।-
पंचायती राज व्यवस्था में पंचायतों की संरचनाग्राम पंचायत (gram panchayat)पंचायती राज की संरचना में ग्राम पंचायत सबसे निचली इकाई है। यदि किसी गाँवों की जनसंख्या बहुत कम होती है तो प्रत्येक गांव या गांवों के समूह के लिए एक पंचायत होती है। किसी भी पंचायत में गांव के लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते हैं। पंचायत के चुनाव केवल वे व्यक्ति लड़ सकते हैं, जिनका नाम मतदाता के रूप में पंचायत की सूची में हो और जो सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय में कोई काम नहीं करता है। आपराधिक अपराधों के लिए अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को पंचायत के चुनाव से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। पंचायत एक निकाय के रूप में ग्राम सभा के रूप में गांव में होनी वाली सभा के रूप में जानी जाती है। जिसकी बैठक वर्ष में कम से कम दो बार होती है। ग्राम पंचायत को अपना बजट, पिछले वर्ष के लेखे और वार्षिक प्रशासनिक रिपोर्ट ग्राम सभा के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है। प्रत्येक पंचायत एक प्रधान या सरपंच और एक उपप्रधान या उपसरपंच का चुनाव करती है। ग्राम पंचायत व्यवस्था में सरपंच का महत्वपूर्ण स्थान होता है। वह पंचायत की विभिन्न गतिविधियों को संभालता है। प्रशासन में सरपंच की सहायता के लिए पंचायत स्तर पर पंचायत सचिव और ग्राम पंचायत अधिकारी दो अधिकारी होते हैं। ग्राम पंचायतें अपने खर्चों को पूरा करने के लिए लोगों पर कुछ कर और शुल्क लगा सकती हैं। कुछ कर जो ग्राम पंचायतें लगा सकती हैं। जैसे- जानवरों, वाहनों, घर, खाली भूमि और व्यवसायों पर कर शामिल है। ग्राम पंचायत के प्रमुख कार्य
पंचायत समिति (क्षेत्र पंचायत)पंचायत समिति पंचायती राज की दूसरी इकाई है। यह ग्राम पंचायत और जिला पंचायत में बीच की कड़ी होती है। आमतौर पर एक पंचायत समिति में क्षेत्रफल और आबादी के आधार पर 20 से 60 गांव होते हैं। एक समिति के अधीन औसत जनसंख्या लगभग 80,000 है लेकिन यह सीमा 35,000 से 1,00,000 तक है। पंचायत समिति के सदस्यों को BDC (Blok devlopment council) सदस्य कहते हैं। क्षेत्र पंचायत के सदस्य का चुनाव उस क्षेत्र पंचायत के मतदाता ही करते हैं। इसके बाद चुने हुए सदस्य ब्लॉक प्रमुख या पंचायत समिति अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। क्षेत्र पंचायत के सदस्यों का चुनाव भी सरपंच के चुनाव की तरह प्रत्येक 5 साल बाद किया जाता है। पंचायत समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में, खंड विकास अधिकारी को समिति और उसकी स्थायी समितियों के प्रस्तावों को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। वह समिति का बजट तैयार करता है और अनुमोदन के लिए समिति के समक्ष रखता है। समिति की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना और उसे जिला परिषद और राज्य सरकार को भेजना भी उसकी जिम्मेदारी के दायरे में आता है। वह अपने कार्यों के लिए समिति के अध्यक्ष के प्रति जवाबदेह होता है। पंचायत समिति का कार्यपंचायत समिति का मुख्य कार्य अपने अधिकार क्षेत्र में विभिन्न पंचायतों की गतिविधियों का समन्वय करना है। पंचायत समिति पंचायतों के काम की निगरानी करती है और उनके बजट की जांच करती है। यह पंचायतों के कामकाज में सुधार के लिए उपाय सुझाने का अधिकार भी सुरक्षित रखता है। समिति पर कृषि, पशु से एसयू (पालन, मत्स्य पालन, लघु और कुटीर उद्योग, ग्रामीण स्वास्थ्य उष्णकटिबंधीय आदि) के विकास के लिए योजनाओं को तैयार करने और लागू करने की जिम्मेदारी है। जिला परिषद या जिला पंचायतजिला परिषद त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की शीर्ष इकाई है। आम तौर पर, जिला परिषद में जिला पंचायत के प्रतिनिधि होते हैं। राज्य विधानमंडल और संसद के एक भाग या पूरे जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी सदस्य; चिकित्सा, लोक स्वास्थ्य, लोक निर्माण, इंजीनियरिंग, कृषि, पशु चिकित्सा, शिक्षा और अन्य विकास विभागों के सभी जिला स्तरीय अधिकारी होते हैं। महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विशेष प्रतिनिधित्व का भी प्रावधान है। कलेक्टर जिला परिषद का सचिव होता है। जिला परिषद का कार्यकाल भी ग्राम पंचायत और क्षेत्र पंचायत की तरह 5 साल का होता है। जिला परिषद का अध्यक्ष इसके सदस्यों में से चुना जाता है। जिला परिषद में एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है। उन्हें राज्य सरकार द्वारा जिला परिषद में प्रतिनियुक्त किया जाता है। विभिन्न विकास कार्यक्रमों के लिए सभी राज्यों में जिला स्तर पर विषय विशेषज्ञ या अधिकारी होते हैं। जिला परिषद या जिला पंचायत के कार्यजिला परिषद विभिन्न विकास योजनाओं के कार्यान्वयन के संबंध में सरकार को आवश्यक सलाह भी देती है। यह प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों, अस्पतालों, औषधालयों, लघु सिंचाई कार्यों आदि के रखरखाव के लिए भी जिम्मेदार है। यह स्थानीय उद्योगों और कला को भी बढ़ावा देता है। जिला परिषद के वित्त में राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान और भूमि उपकर और अन्य स्थानीय उपकर और करों में हिस्सा शामिल है। कभी-कभी राज्य सरकार द्वारा कुछ करों को लगाने या पंचायत समितियों द्वारा पहले से लगाए गए करों को एक निश्चित सीमा के अधीन बढ़ाने की अनुमति दी गई है। संक्षेप में कहें तो हमारे देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था स्थानीय सरकार की मुख्य धुरी है, जिसे गांव की सरकार भी कहा जाता है। भारत में पंचायती राज व्यवस्था ही राज्य और केंद्र सरकार की विकास योजनाओं को संचालित करने मुख्य निभा रही हैं। अतः हमें हमें गांव की सरकार चुनते वक्त योग्य प्रतिनिधियों का चुनाव करना चाहिए। जिससे देश में पंचायती राज व्यस्था (panchayati raj system) को और अच्छी गति मिल सके। ये भी पढ़ें-
भारत में पंचायती राज की कौन सी व्यवस्था है?वर्ष 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर पर), पंचायत समिति (मध्यवर्ती स्तर पर) और ज़िला परिषद (ज़िला स्तर पर) शामिल हैं।
पंचायती राज लागू करने वाला पहला दो राज्य कौन है?सही उत्तर विकल्प 3 अर्थात् राजस्थान और आंध्र प्रदेश है। बलवंत राय मेहता समिति, 1957 की सिफारिश पर, जिन्होंने लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश दी, राजस्थान पंचायती राज व्यवस्था स्थापित करने वाला पहला राज्य बना।
पंचायती राज प्रणाली क्या है?परन्तु 73वें संविधान संशोधन के अनुच्छेद 243-घ के द्वारा पंचायती राज व्यवस्था ( पी आर एस ) के सभी तीन स्तरों पर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति तथा इन समूहों की महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 243 ण के अनुसार हर पाँच वर्ष में पंचायत के नियमित चुनाव कराए जाने आवश्यक हैं।
पंचायती राज व्यवस्था के जनक कौन है?सही उत्तर बलवंत राय मेहता है। बलवंत राय मेहता को पंचायती राज संस्थाओं के जनक के रूप में जाना जाता है। बलवंत राय मेहता समिति (1957):
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