बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

Thursday Fast: गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और देवताओं के गुरु बृहस्पति की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि गुरुवार का व्रत रखने से विवाह से संबंधित परेशानियों का समाधान होता है. सुयोग्य वर और वधु की प्रप्ति होती है. साथ ही घर में समृद्धि आती है. आइए जानते हैं कब से शुरू करना चाहिए गुरुवार का व्रत? कितने गुरुवार तक रखें व्रत? क्या है इस व्रत के नियम...

कब से शुरू करें गुरुवार व्रत ? (when to start thursday Vrat)

गुरुवार व्रत की शुरुआत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार से करना शुभ माना जाता है. पौष महीने को छोड़कर गुरुवार के व्रत साल में कभी भी शुरू कर सकते हैं.

कितने गुरुवार तक रखें व्रत?

News Reels

भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की कृपा पाने के लिए लगातार 16 गुरुवार तक ये व्रत रखना चाहिए. 17वें गुरुवार को व्रत का उद्यापन किया जाता है. मासिक धर्म की वजह से महिलाएं पूजा नहीं कर पाती तो अगले गुरुवार इसका व्रत रखना चाहिए. गुरुवार का व्रत  1, 3, 5, 7, 9, 11 साल या आजीवन रख सकते हैं. 

गुरुवार व्रत की पूजा विधि (thursday Vrat puja vidhi)

  • गुरुवार के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनें.
  • पूजा की चौकी पर भगवान विष्णु की तस्वीर के समक्ष घी का दीपक जलाएं और 16 गुरुवार व्रत का संकल्प लें.
  • एक कलश में पानी और हल्दी डालकर पूजा के स्थान पर रखें.
  • गुरुवार व्रत पूजा में पीले रंग से संबंधित फूल, वस्त्र, फल, पीले चावल,आदि भगवान विष्णु को अर्पित करें.
  • पूजा में बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए बीज मंत्र ‘ॐ बृं बृहस्पतये नम:’ का जाप करें.
  • भगवान विष्णु को गुड़ और चने की दाल का भोग लगाएं और फिर गुरुवार व्रत की कथा का पाठ करें और अंत में भगवान विष्णु की आरती करें
  • गुरुवार के दिन केले के पेड़ की विशेष तौर पर पूजा करनी चाहिए. मान्यता है कि केले के पेड़ में विष्णु भगवान का वास होता है. घर में पूजा के बाद कलश में भरे जल को केले के पेड़ की जड़ में डाल दें.
  • नियमानुसार इस व्रत में एक समय बिना नमक का पीला भोजन करना चाहिए.
  • गुरुवार के दिन पूजा के बाद पीले वस्त्र, पीला अनाज, हल्दी, केले आदि का दान करने से भगवान विष्णु का विशेष वरदान मिलता है.

Chaturmas 2022: चातुर्मास में क्यों नहीं खानी चाहिए ये 4 चीजें, मानेंगे तो फायदे में रहेंगे

Angarak Yog Upay: अंगारक योग कर रहा है परेशान? इन 4 उपायों से कम करें राहु-मंगल की युति का दुष्प्रभाव

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

हिंदू धर्म में व्रत (Fast) रखने का एक खास महत्व माना जाता है. वैसे तो कहा जाता है कि उपवास रखना शरीर के लिए भी काफी लाभकारी होता है. लेकिन आम तौर पर लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए व्रत (Fast) रखते हैं. हफ्ते में आने वाले हर एक व्रत का अपना अलग महत्व माना जाता है. जिसमें बृहस्पतिवार के व्रत की काफी मान्यता है.

गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि गुरुवार के व्रत करने से विवाह में आ रही अड़चन दूर हो जाती हैं और घर में सुख समृद्धि भी बनी रहती है.

बृहस्पतिवार को भगवान विष्णु की पूजा क्यों?

बृहस्पतिवार का दिन देवताओं के गुरु बृहस्पति को समर्पित है। इसी कारण इस दिन को बृहस्पतिवार या गुरुवार भी कहते हैं. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, पक्षियों में सबसे भारी अर्थात् गुरू गरूड़ देव ने कठिन तप करके बृहस्पतिवार को ही भगवान विष्णु की शरण प्राप्त की थी. तब से बृहस्पतिवार को भगवान विष्णु की पूजा का विशेष दिन माना जाने लगा है.

कब से करें शुरू?

पूष या पौष के महीने को छोड़कर आप कभी भी ये व्रत शुरू कर सकते हैं. पौष का महीना अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार दिसम्बर या जनवरी में आता है. बाकी इस व्रत को किसी भी माह के शुक्लपक्ष के पहले गुरुवार से शुरू कर सकते हैं. किसी भी कार्य को शुरू करने के लिए शुक्ल पक्ष काफी शुभ माना जाता है.

कितने गुरुवार रखें व्रत?

16 गुरुवार तक लगातार व्रत करने चाहिए और 17वें गुरुवार को उद्यापन करना चाहिए. पुरुष यह व्रत लगातार 16 गुरुवार कर सकते हैं परन्तु महिलाओं या लड़कियों को यह व्रत तभी करना चाहिए जब वो पूजा कर सकती हैं, मुश्किल दिनों में यह व्रत नही करना चाहिए.

गुरुवार व्रत की विधि:

गुरुवार व्रत करने के लिए सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म और स्नान करें. इसके बाद पूजाघर या केले के पेड़ की नीचे विष्णु भगवान की प्रतिमा या फोटो रखकर उन्हें प्रणाम करें. कोई नया छोटा सा पीला वस्त्र भगवान को अर्पित करें. हाथ में चावल और पवित्र जल लेकर व्रत का संकल्प लें. एक लोटे में पानी और हल्दी डालकर पूजा के स्थान पर रखें. भगवान को गुड़ और धुली चने की दाल का भोग लगाएं. गुरुवार व्रत की कथा का पाठ करें. भगवान को प्रणाम करें और हल्दी वाला पानी केले की जड़ या किसी अन्य पौधे की जड़ों में डालें.

Follow Us:

  • thursday vrat katha
  • Guruvar Vrat Puja Vidhi
  • thursday vrat

Share Via :

Published Date Thu, Nov 18, 2021, 6:48 AM IST

सूर्योदय से पहले उठकर करें स्‍नान

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

बृहस्‍पतिवार के दिन सूर्योदय से पहले ही उठें और नित्‍यकर्म से निवृत्‍त होकर पीले रंग के वस्‍त्र पहनें। इसके बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। इसके बाद पूजा घर में श्रीहरि विष्‍णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। फिर पीले रंग के गंध-पुष्प और अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद चना-गुड़ और मुनक्‍का चढ़ाकर विधि- विधान से पूजन शुरू करें। इसके बाद धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोऽस्तु ते॥ मंत्र का जप करें। इसके बाद व्रत की कथा पढ़ें। कथा पढ़ने के बाद केले के पेड़ में जल चढ़ाएं।

नए साल में इन उपायों से बनाएं अपनी लाइफ हैप्‍पी-हैप्‍पी

बृहस्‍पतिवार व्रत की कथा

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

मंत्रोच्‍चार के बाद बृहस्‍पतिवार व्रत की कथा पढ़ें। यह इस प्रकार से है कि प्राचीन समय की बात है। भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सेवा-सहायता करता था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान दर्शन करने जाता था लेकिन यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। वह न ही पूजन करती थी और न ही दान करने में उसका मन लगता था। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी तो रानी ने भिक्षा देने से मन कर दिया। रानी ने कहा कि हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत है अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी अजीब हो। धन और संतान से कौन दुखी होता है। इसकी तो सभी कामना करते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करते हैं। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं, तालाब, बावड़ी बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ। मंदिर, पाठशाला धर्मशाला बनवाकर दान दो। निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ। साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा एवं होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी। लेकिन रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली- महाराज मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं अन्य लोगों को दान दूं, जिसको रखने और संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं।

साधु और रानी का संवाद

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना बृहस्पतिवार को घर को गोबर से लीपना अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना। राजा से कहना वह बृहस्‍पतिवार को हजामत बनवाए, भोजन में मांस- मदिरा खाना और कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना। ऐसा करने से सात बृहस्पतिवार में ही आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहां से अंतर्धान हो गये। इसके बाद रानी ने वही किया जो साधु ने बताया था। तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन- संपत्ति नष्ट हो गया और भोजन के लिए राजा-रानी तरसने लगे। तब एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम यहां पर रहो मैं दूसरे देश में चाकरी के लिए चला जाउं क्योंकि यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया वहां जंगल को जाता और लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेंचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा।

कथा में बोलने की है मनाही

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

इधर, राजा के बिना रानी और दासी दुखी रहने लगीं । किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर ही रह जाती। एक समय जब रानी और दासियों को सात दिन बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी । पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है । तू उसके पास जा आ और 5 सेर बेझर मांग कर ले आ ताकि कुछ समय के लिए थोड़ा-बहुत गुजर-बसर हो जा‌ए। दासी रानी की बहन के पास ग‌ई । उस दिन बृहस्‍पतिवार था। रानी का बहन उस समय बृहस्‍पतिवार की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने को‌ई उत्तर नहीं दिया । जब दासी को रानी की बहन से को‌ई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हु‌ई । उसे क्रोध भी आया । दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी । सुनकर, रानी ने कहां की है दासी इसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते हैं तब कोई सहारा नही अच्छे-बुरे का पता विपत्ति में ही लगता है जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा यह सब हमारे भाग्य का दोष है। यह सब कहकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आ‌ई थी। लेकिन मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हु‌ई होगी। कथा सुनकर और पूजन समाप्त कर वह अपनी बहन के घर ग‌ई और कहने लगी, हे बहन। मैं बृहस्‍पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी ग‌ई लेकिन जब तक कथा होती है, तब तक न उठते है और न बोलते है, इसीलिये मैं नहीं बोली। कहो, दासी क्यों ग‌ई थी ।

रानी और उसकी बहन का संवाद

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

रानी बोली, बहन । हमारे घर अनाज नहीं था । ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आ‌ई । उसने दासियों समेत 7 दिन तक भूखा रहने की बात भी अपनी बहन को बता दी । इसीलिए मैंने दासी को तुम्हारे पास 5 सेर बेझर लेने के लिए भेजा था।रानी की बहन बोली, बहन देखो बृहस्‍पति देव सबकी मनोकामना पूर्ण करते है । देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो । पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ परंतु बहन के आग्रह करने पर उसने दासी को अंदर भेजा।दासी घर के अंदर ग‌ई तो वहां पर उसे एक घड़ा बेझर से भरा मिल गया। उसे बड़ी हैरानी हु‌ई। उसने बाहर आकर रानी को बताया। दासी रानी से कहने लगी, हे रानी । जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते है, इसलिये क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाये, हम भी व्रत किया करेंगे । दासी के कहने पर रानी ने अपनी बहन से बृहस्‍पति व्रत के बारे में पूछा । उसकी बहन ने बताया, बृहस्‍पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं और कथा सुनें । उस दिन एक ही समय भोजन करें भोजन में पीले खाद्य पदार्थ का सेवन जरूर करें। इससे गुरु भगवान प्रसन्न होते है, अन्न, पुत्र और धन का वरदान देते हैं। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। व्रत और पूजन की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट आ‌ई ।

रानी ने ऐसे किया बृहस्‍पतिदेव को प्रसन्‍न

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

रानी और दासी दोनों ने निश्चय किया कि बृहस्‍पति देव भगवान का पूजन जरूर करेंगें । सात रोज बाद जब बृहस्‍पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा । घुड़साल में जाकर चना और गुड़ बीन ला‌ईं तथा उसकी दाल से केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया । अब पीला भोजन कहां से आ‌ए। दोनों बड़ी दुखी हु‌ई। परंतु उन्होंने व्रत किया था इसलिये बृहस्‍पतिदेव भगवान प्रसन्न थे । एक साधारण व्यक्ति के रुप में वे दो थालों में पीला भोजन लेकर आ‌ए और दासी को देकर बोले, हे दासी । यह भोजन तुम्हारे और तुम्हारी रानी के लिये है, इसे तुम दोनों ग्रहण करना । दासी भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हु‌ई । उसने रानी से कहा चलो रानी जी भोजन कर लो परंतु रानी को भोजन आने के बारे में कुछ भी नहीं पता था इसलिए उसने कहा कि जा तू ही भोजन कर क्योंकि तू व्यर्थ में हमारी हंसी उड़ाती है। तब दासी ने कहा एक व्यक्ति भोजन दे गया है तब रानी ने कहा वह व्यक्ति तेरे लिए ही भोजन दे गया है तू ही भोजन कर। तब दासी ने कहा वह व्यक्ति हम दोनों के लिए दो थालों में सुंदर पीला भोजन दे गया है इसलिए मैं और आप दोनों ही साथ-साथ भोजन करेंगे। यह सुनकर रानी बहुत प्रसन्न हुई और दोनों ने गुरु भगवान को नमस्कार कर भोजन किया।

रानी और दासी संवाद

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

उसके बाद से वे प्रत्येक बृहस्‍पतिवार को गुरु भगवान का व्रत और पूजन करने लगी । बृहस्‍पति भगवान की कृपा से उनके पास धन हो गया । लेकिन रानी फिर पहले की तरह आलस्य करने लगी । तब दासी बोली, देखो रानी । तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन के रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया । अब गुरु भगवान की कृपा से धन मिला है तो फिर तुम्हें आलस्य होता है । बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है, इसलिये हमें दान-पुण्य करना चाहिये । अब तुम भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं- तालाब, बावड़ी और बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ। मंदिर, पाठशाला और धर्मशाला बनवा कर दान दो। निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ। साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़े और स्वर्ग प्राप्त हो और पित्तर प्रसन्न हों । दासी की बात मानकर रानी शुभ कर्म करने लगी । उसका यश फैलने लगा। एक दिन रानी और दासी आपस में विचार करने लगीं कि न जाने राजा किस दशा में होंगें, उनकी को‌ई खोज खबर भी नहीं है। उन्होंने श्रद्धापूर्वक बृहस्‍पति भगवान से प्रार्थना की कि राजा जहां कहीं भी हो, शीघ्र वापस आ जा‌एं।

राजा को दिए बृहस्‍पतिदेव ने स्‍वप्‍न में दर्शन

बृहस्पति देव का व्रत कैसे किया जाता है? - brhaspati dev ka vrat kaise kiya jaata hai?

उसी रात्रि को बृहस्पति देव ने राजा को स्‍वप्‍न में कहा कि हे राजा उठ तेरी रानी तुझको याद करती है अपने देश को लौट जा। राजा प्रात: काल उठा और जंगल से लकड़ी काटने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल से गुजरते हुए विचार करने लगा कि रानी की गलती से उसे कितने दुःख भोगने पड़े राजपाट छोड़कर जंगल में आकर में आकर रहना पड़ा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचकर गुजारा करना पड़ा। और अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। उसी समय राजा के पास बृहस्‍पति देव साधु के वेष में आकर बोले, हे लकड़हारे । तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो, मुझे बतला‌ओ । यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया । साधु की वंदना कर राजा ने अपनी संपूर्ण कहानी सुना दी । महात्मा दयालु होते है । वे राजा से बोले, हे राजा तुम्हारी पत्नी ने बृहस्‍पति देव के प्रति अपराध किया था, जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हु‌ई । अब तुम चिंता मत करो भगवान तुम्हें पहले से अधिक धन देंगें । देखो, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्‍पतिवार का व्रत शुरू कर दिया है । अब तुम भी बृहस्‍पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करो तथा दीपक जलाकर कथा सुनों। उस दिन एक ही समय भोजन करना लेकिन भोजन में पीले खाद्य पदार्थ का सेवन जरूर करना। भगवान तुम्हारी सब कामना‌ओं को पूर्ण करेंगें । साधु की बात सुनकर राजा बोला, हे प्रभो । लकड़ी बेचकर तो इतना पैसा भ‌ई नहीं बचता, जिससे भोजन के उपरांत कुछ बचा सकूं । मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है । मेरे पास को‌ई साधन नही, जिससे उसका समाचार जान सकूं । फिर मैं कौन सी कहानी कहूं, यह भी मुझको मालूम नहीं है । साधु ने कहा, हे राजा । मन में बृहस्‍पति भगवान के पूजन-व्रत का निश्चय करो । वे स्वयं तुम्हारे लिये को‌ई राह बना देंगे । बृहस्‍पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर में जाना । तुम्हें रोज से दोगुना धन मिलेगा जिससे तुम भली-भांति भोजन कर लोगे तथा बृहस्‍पति देव की पूजा का सामान भी आ जायेगा ।राजा ने ऐसा ही किया और उसको मनोवांछित फल की प्राप्ति हो गई। इस प्रकार जो भी यह कथा पढ़ता या सुनता है उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं।

साल 2020 में जरूर करें स्‍वामीनारायण के इस मंदिर के दर्शन

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें

गुरुवार का व्रत कैसे शुरू करें?

गुरुवार व्रत की पूजा विधि (Thursday Vrat Puja Vidhi) गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करके पीले रंग के वस्त्र धारण कर लें। भगवान विष्णु का ध्यान रखते हुए व्रत का संकल्प लें। भगवान बृहस्पति देव की विधि-विधान से पूजा करें। भगवान को पीले फूल, पीले चंदन के साथ पीले रंग का भोग लगाएं।

गुरुवार का व्रत कौन से महीने से शुरू करना चाहिए?

गुरुवार व्रत की शुरुआत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार से करना शुभ माना जाता है. पौष महीने को छोड़कर गुरुवार के व्रत साल में कभी भी शुरू कर सकते हैं. कितने गुरुवार तक रखें व्रत? भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की कृपा पाने के लिए लगातार 16 गुरुवार तक ये व्रत रखना चाहिए.

बृहस्पतिवार व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए?

व्रत में आप दूध, दही, पनीर, मक्खन खा सकते हैं, इससे आपको एनर्जी मिलेगी. व्रत में कई गेहूं का आटा नहीं खाते ऐसे में ऑप्शन के तौर पर आप अरारोट का आटा, कुट्टू का आटा, राजगीरा आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना और समा चावल खा सकते हैं, ये सभी फलाहार में आते हैं. व्रत में आप सभी फल खा सकते हैं.

बृहस्पति के व्रत में क्या क्या खाते हैं?

फल, साबूदाना, राजगिरी का आटा, आलू, मूंगफली, आलू चिप्स, जमीन से निकले कंद जैसे आलू शकरकंद आदि से बनी वस्तुएं, मेवे, गोंद और नारियल से बने व्यंजन, दूध से बनी मिठाइयां। ध्यान रहे कि इनमें से किसी भी व्यंजन में अन्न का उपयोग ना हो।