ब्राह्मी लिपि को कैसे पढ़ा गया? - braahmee lipi ko kaise padha gaya?

धम्म लिपि
ब्राह्मी लिपि को कैसे पढ़ा गया? - braahmee lipi ko kaise padha gaya?

अशोकस्तम्भ पर धम्म लिपि (लगभग 250 ई.पू.)
प्रकार आबूगीदा
भाषाएँ संस्कृत, प्राकृत, Saka, तमिऴ, तुषारी
समय अवधि चौथी या तीसरी शताब्दी ई.पू.[1][क] से 5 वीं शताब्दी ई.
जनक प्रणाली

आदि-सीनाई लिपि[ख]

  • फ़ोनीशियाई वर्णमाला[ख]
    • आरमेइक लिपि[ख]
      • धम्म लिपि

बाल प्रणालियाँ गुप्त और कई वंशज लेखन प्रणाली
Sister systems खरोष्ठी
आईएसओ 15924 Brah, 300
दिशा बाएँ-से-दाएँ
यूनिकोड एलियास Brahmi
यूनिकोड रेंज U+11000–U+1107F

[ख] ब्राह्मी लिपियों का सॅमॅटिक से मूल, सार्वभौमिक रूप से सहमत नहीं है।

नोट: इस पृष्ठ पर आइपीए ध्वन्यात्मक प्रतीक हो सकते हैं।

धम्म लिपि भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक है। इसके प्रयोग के प्राचीन उदाहरण असोक के अभिलेखों के रूप में उपलब्ध हैं। यह बाएँ से दाएँ लिखी जाती है।

उत्पत्ति[संपादित करें]

धम्म लिपि की उत्पत्ति के विषय मे अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किये गए हैं। इन सिद्धांतों को दो मुख्य धाराओं में विभक्त किया जा सकता हैं।

  • 1)- विदेशी उत्पत्ति का सिद्धान्त ,
  • 2)- वृहद भारत की स्वदेशी उत्पति का सिद्धान्त

विदेशी उत्पति के सिद्धान्त को मनाने वाले पुनः दो भागों में एवं तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है।

  • (क) - यूनानी मूल से ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति - इस सिद्धान्त के पोषक अल्फ्रेड म्यूलर हैं।
  • (ख)- धम्म लिपि की सेमेटिक उत्पत्ति का सिद्धान्त - विलियम जोनश इस सिद्धांत के मुख्य प्रस्तुत करता हैं। इसे भी तीन भागों में विभक्त किया है
1-फिनीशीयान मूल2-दक्षिण सेमेटिक मूल3-उत्तर सेमेटिक मूल

धम्म लिपि के उद्भव के स्वदेशी सिद्धान्त को भी दो भागों में विभक्त किया जाता है-

  • 1-दक्षिण मूल
  • 2-आर्य मूल।

अभी तक माना जाता था कि धम्म लिपि का विकास चौथी से तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्यों ने किया था, पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के ताजा उत्खनन से पता चला है कि तमिलनाडु और श्रीलंका में यह ६ठी सदी ईसा पूर्व से ही विद्यमान थी।

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अशोक स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि

देशी उत्पत्ति का सिद्धान्त[संपादित करें]

कई विद्वानों का मत है कि यह लिपि प्राचीन (सिन्धु लिपि) से निकली, अतः यह पूर्ववर्ती रूप में भारत में पहले से प्रयोग में थी।सिन्धु लिपि के प्रचलन से हट जाने के बाद प्राकृत भाषा लिखने के लिये धम्म लिपि प्रचलन मे आई। धम्म लिपि में संस्कृत मे ज्यादा कुछ ऐसा नहीं लिखा गया जो समय की मार झेल सके। प्राकृत/पाली भाषा मे लिखे गये मौर्य सम्राट अशोक के बौद्ध उपदेश आज भी सुरक्षित है। इसी लिए यह सत्य है कि इस का विकास मौर्यों ने किया।

यह लिपि उसी प्रकार बाँई ओर से दाहिनी ओर को लिखी जाती थी जैसे, उनसे निकली हुई आजकल की लिपियाँ। ललितविस्तर में लिपियों के जो नाम गिनाए गए हैं, उनमें 'धम्म लिपि' का नाम भी मिला है। इस लिपि का सबसे पुराना रूप अशोक के शिलालेखों में ही मिला है।

बौद्धों के प्राचीन ग्रंथ 'ललितविस्तर' में जो उन ६४ लिपियों के नाम गिनाए गए हैं जो बुद्ध को सिखाई गई, उनमें 'नागरी लिपि' नाम नहीं है, 'धम्म लिपि (ब्राह्मी लिपि)' नाम हैं। 'ललितविस्तर' का चीनी भाषा में अनुवाद ई० स० ३०८ में हुआ था। जैनों के 'पन्नवणा सूत्र' और 'समवायांग सूत्र' में १८ लिपियों के नाम दिए हैं जिनमें पहला नाम बंभी (ब्राह्मी) है। उन्हीं के भगवतीसूत्र का आरंभ 'नमो बंभीए लिबिए' (ब्राह्मी लिपि को नमस्कार) से होता है।

सबसे प्राचीन लिपि भारतवर्ष में अशोक की पाई जाती है जो सिंध नदी के पार के प्रदेशों (गांधार आदि) को छोड़ भारतवर्ष में सर्वत्र बहुधा एक ही रूप की मिलती है। जिस लिपि में अशोक के लेख हैं वह प्राचीन आर्यो या ब्राह्मणों की निकाली हुई ब्राह्मी लिपि है। जैनों के 'प्रज्ञापनासूत्र' में लिखा है कि 'अर्धमागधी' भाषा जिस लिपि में प्रकाशित की जाती है वह ब्राह्मी लिपि है'। अर्धमागधी भाषा मथुरा और पाटलिपुत्र के बीच के प्रदेश की भाषा है जिससे हिंदी निकली है। अतः ब्राह्मी लिपि मध्य आर्यावर्त की लिपि है जिससे क्रमशः उस लिपि का विकास हुआ जो पीछे 'नागरी' कहलाई। मगध के राजा आदित्यसेन के समय (ईसा की सातवीं शताब्दी) के कुटिल मागधी अक्षरों में नागरी का वर्तमान रूप स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ईसा की ९वीं और १०वीं शताब्दी से तो नागरी अपने पूर्ण रूप में लगती है। किस प्रकार अशोक के समय के अक्षरों से नागरी अक्षर क्रमशः रूपांतरित होते होते बने हैं यह पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने 'प्राचीन लिपिमाला' पुस्तक में और एक नकशे के द्वारा स्पष्ट दिखा दिया है।

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ब्राह्मी का समय के साथ परिवर्तन

विदेशी उत्पत्ति का सिद्धान्त[संपादित करें]

कई पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि कि भारतवासियों ने अक्षर लिखना विदेशियों से सीखा तथा ब्राह्मीलिपि भी उसी प्रकार प्राचीन फिनीशियन लिपि से व्युत्पन्न हुई है जिस प्रकार अरबी, यूनानी, रोमन आदि लिपियाँ। पर कई देशी विद्वानों ने सप्रमाण यह सिद्ध किया है कि ब्राह्मी लिपि का विकास भारत में स्वतंत्र रीति से हुआ।

ब्राह्मी लिपि की अन्य लिपियों से तुलना
यूनानी Α Β Γ Δ Ε Υ Ζ Η Θ Ι Κ Λ Μ Ν Ξ Ο Π Ϻ Ϙ Ρ Σ Τ
फोनेशियायी
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अर्मानी
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ब्राह्मी
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देवनागरी
बंगला
तमिल
कन्न्ड
तेलुगु

ब्राह्मी लिपि की विशेषताएँ[संपादित करें]

  • यह बाँये से दाँये की तरफ लिखी जाती है।
  • यह मात्रात्मक लिपि है। व्यंजनों पर मात्रा लगाकर लिखी जाती है।
  • कुछ व्यंजनों के संयुक्त होने पर उनके लिये 'संयुक्ताक्षर' का प्रयोग (जैसे प्र= प् + र)
  • वर्णों का क्रम वही है जो आधुनिक भारतीय लिपियों में है।

ब्राह्मी लिपि के अभिलेख[संपादित करें]

सम्राट अशोक के ब्राह्मी लिपि में अंकित प्रमुख अभिलेख
  • रुम्मिनदेई - स्तम्भलेख
  • गिरनार - शिलालेख
  • बराबर - गृहालेख
  • मानसेहरा - शिलालेख
  • शाहबाजगद्री - शिलालेख
  • दिल्ली - स्तम्भलेख
  • गुजरर - लघु-शिलालेख
  • मस्को- शिलालेख
  • कान्धार - द्विभाषी शिलालेख

ब्राह्मी की संतति[संपादित करें]

ब्राह्मी लिपि से उद्गम हुई कुछ लिपियाँ और उनकी आकृति एवं ध्वनि में समानताएं स्पष्टतया देखी जा सकती हैं। इनमें से कई लिपियाँ ईसा के समय के आसपास विकसित हुई थीं। इन में से कुछ इस प्रकार हैं-

देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, ख़मेर, जावानीज़, खुदाबादी लिपि आदि।

कुछ भारतीय लिपियों का तुलनात्मक चित्र यहाँ दिया गया है :

व्यंजन[संपादित करें]

देवबांग्लागुरगुजउडियातमिलतेलुगुकन्नमलसिंहलीतिब्बतीथाईबर्मेलीख्मेरलाओ
က
 
   
   
 
  ​ඣ​    
ဉ/ည
 
   
   
     
 
 
 
     
                       
 
 
   
র/ৰ
                 
  ਲ਼        
                   
 
ਸ਼  
   
 

स्वर[संपादित करें]

देवनागरीबांग्लागुरुमुखीगुजरातीओडियातमिलतेलुगुकन्नडमलयालमसिंहलतिब्बतीबर्मी
                က
का কা ਕਾ કા କା கா కా ಕಾ കാ කා     အာ ကာ
                                    කැ        
                                    කෑ        
कि কি ਕਿ કિ କି கி కి ಕಿ കി කි ཨི ཀི ကိ
की কী ਕੀ કી କୀ கீ కీ ಕೀ കീ කී     ကီ
कु কু ਕੁ કુ କୁ கு కు ಕು കു කු ཨུ ཀུ ကု
कू কূ ਕੂ કૂ କୂ கூ కూ ಕೂ കൂ කූ     ကူ
कॆ                 கெ కె ಕೆ കെ කෙ     ကေ
के কে ਕੇ કે କେ கே కే ಕೇ കേ කේ ཨེ ཀེ အေး ကေး
कै কৈ ਕੈ કૈ କୈ கை కై ಕೈ കൈ කෛ        
कॊ                 கொ కొ ಕೊ കൊ කො     ကော
को কো ਕੋ કો କୋ கோ కో ಕೋ കോ කෝ ཨོ ཀོ    
कौ কৌ ਕੌ કૌ କୌ கௌ కౌ ಕೌ കൗ කෞ     ကော်
कृ কৃ     કૃ କୃ     కృ ಕೃ കൃ කෘ ကၖ
कॄ কৄ     કૄ               කෲ     ကၗ
कॢ কৢ               కౄ   ക്ഌ (ඏ)[2]       ကၘ
कॣ কৣ                   ക്ൡ (ඐ)       ကၙ

अंक[संपादित करें]

अंकदेवनागरीबांग्लागुरुमुखीगुजरातीओडियातमिलतेलुगुकन्नडमलयालमतिब्बतीबर्मी
0
1
2
3
4
5
6
7
8
9

यूनिकोड[संपादित करें]

ब्राह्मी लिपि
Unicode.org chart (PDF)
  0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 A B C D E F
U+1100x 𑀀 𑀁 𑀂 𑀃 𑀄 𑀅 𑀆 𑀇 𑀈 𑀉 𑀊 𑀋 𑀌 𑀍 𑀎 𑀏
U+1101x 𑀐 𑀑 𑀒 𑀓 𑀔 𑀕 𑀖 𑀗 𑀘 𑀙 𑀚 𑀛 𑀜 𑀝 𑀞 𑀟
U+1102x 𑀠 𑀡 𑀢 𑀣 𑀤 𑀥 𑀦 𑀧 𑀨 𑀩 𑀪 𑀫 𑀬 𑀭 𑀮 𑀯
U+1103x 𑀰 𑀱 𑀲 𑀳 𑀴 𑀵 𑀶 𑀷 𑀸 𑀹 𑀺 𑀻 𑀼 𑀽 𑀾 𑀿
U+1104x 𑁀 𑁁 𑁂 𑁃 𑁄 𑁅 𑁆 𑁇 𑁈 𑁉 𑁊 𑁋 𑁌 𑁍
U+1105x 𑁒 𑁓 𑁔 𑁕 𑁖 𑁗 𑁘 𑁙 𑁚 𑁛 𑁜 𑁝 𑁞 𑁟
U+1106x 𑁠 𑁡 𑁢 𑁣 𑁤 𑁥 𑁦 𑁧 𑁨 𑁩 𑁪 𑁫 𑁬 𑁭 𑁮 𑁯
U+1107x
टिप्पणी1.^ यूनिकोड संस्करण 6.1 के अनुसार

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Salomon 1998, पृ॰प॰ 11–13.
  2. Only ancient written Sinhala

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ
  • सिन्धु लिपि (इण्डस लिपि)
  • भारतीय लिपियाँ

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • ब्राह्मी से व्युत्पन्न लिपियाँ (अंग्रेजी में)
  • हम मां ब्राह्मी के आभारी हैं! (नईदुनिया)
  • नवपाषाणकालीन औजारों पर ब्राह्मी लिपि पाई गई (वेबदुनिया)
  • Beyond Brahmi, Indus text shaped modern scripts: study
  • BrahmiScript : यहाँ से ब्राह्मी फॉण्ट तथा ब्राह्मी लिपि सम्पादित्र डाउनलोड कर सकते हैं।
  • देवनागरी से ब्राह्मी और ब्राह्मी से देवनागरी लिपि परिवर्तक (डाउनलोड करें)
  • Brahmi, the FountainheadMother of scripts of all native Indian languages
ब्राह्मी
ब्राह्मी तथा उससे व्युत्पन्न लिपियाँ

उत्तरी ब्राह्मी

  • कुषाण
  • तोचरियन
  • मैतै मयेक
  • गुप्त
    • शारदा
      • ल्हांडा
        • प्राचीन कश्मीरी
        • गुरुमुखी
        • खोजकी
      • टाकरी
        • डोगरी
        • चमियाली
    • सिद्धम
      • तिब्बती
        • फाग्स्पा
          • हंगुल (परिकाल्पनिक)
        • लेपचा
          • लिंबु
    • नागरी
      • देवनागरी
        • मोदी
      • नंदीनागरी
      • गुजराती
    • आद्य-बंगाली
      • कैथी
        • सिलहटी नागरी
      • पूर्वी नागरी
        • बंगाली
        • असमिया
      • मिथिलाक्षर
      • उड़िया
    • नेपाली
      • भूजिमोल
      • प्रचलित नेपाल
      • रंजना
        • सोयोंबो

दक्षिणी ब्राह्मी

  • तमिल ब्राह्मी
    • वट्टेऴुत्तु
      • तमिल
  • सिंहल
  • पल्लव ग्रंथ
    • मलयालम
    • तुळु
    • दिवेस अकुरु
    • सौराष्ट्र
    • ख्मेर
      • लाओ
      • थाई
    • चाम
    • प्राचीन कावी
      • बाली
      • जावाई
      • बबयिन
      • बतक
      • बुहिद
      • हनुओनोओ
      • तगबन्वा
      • सुंदानी
      • लोंतारा
      • रेजंग
    • मोन
      • बर्मी
      • ओझोपथ
  • कलिंग
  • भट्टिप्रोलु लिपि
    • कदंब
    • कन्नड़
    • तेलुगु
    • ताई ले
      • नई ताई लुए
    • अहोम

  • दे
  • वा
  • सं

ब्राह्मी लिपि को कब पढ़ा गया?

सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप (James Prinsep) नामक अंग्रेज विद्वान ने अशोक के लेखों (ब्राह्मी लिपि) का उद्वाचन किया, किंतु उन्होंने लेखों के 'देवानांपिय' की पहचान सिंहल के राजा तिस्स से कर डाली। कालांतर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि सिंहली अनुश्रुतियोंदीपवंश तथा महावंश में यह उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गई है।

ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति कैसे हुई?

अभी तक माना जाता था कि ब्राह्मी लिपि का विकास चौथी से तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्यों ने किया था, पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के ताजा उत्खनन से पता चला है कि तमिलनाडु और श्रीलंका में यह ६ठी सदी ईसा पूर्व से ही विद्यमान थी।

ब्राह्मी लिपि को सबसे पहले पढ़ने वाला विद्वान कौन था?

इसी प्रकार जैन ग्रंथ " समवायांग सूत्र " में उल्लेख है कि आदिनाथ ने अपनी पुत्री को पढ़ाने के लिए लिपि का अविष्कार किया था, उनकी पुत्री का नाम ' बम्भी " था और उसी के नाम के आधार पर ब्राह्मी का नामकरण हुआ ।

खरोष्ठी लिपि को किसने एवं कैसे पढ़ा?

वाराणसी : प्राचीन भारतीय लिपि ब्राह्माी एवं खरोष्ठी के सर्वप्रथम वाचन का श्रेय जेम्स प्रिंसेप को प्राप्त है, जिन्होंने सर एलेक्जैंडर कनिंघम के सहयोग से मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेखों को पढ़कर इस कार्य को प्रतिपादित किया।