बट अमावस्या की पूजा कैसे करें? - bat amaavasya kee pooja kaise karen?

वट सावित्री व्रत को हिंदू धर्म में बड़ा महत्व दिया गया है. जैसे करवाचौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयू और स्वस्थ जीवन के लिए रखती हैं ठीक वैसे ही सावित्री व्रत भी महिलाएं अपने पति की सुख समृद्धि के लिए रखती है. इस व्रत को ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन रखा जाता है और व्रत के दिन वट वृक्ष (बरगद) के नीचे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. महिलाएं वट वृक्ष की परिक्रमा भी करती हैं और अपने पति के सुखमय जीवन की कामना करती हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि इसबार वट सावित्री व्रत कब रखा जाएगा और इसकी पूजा विधि क्या है.

कब है वट सावित्री व्रत

हिंदू धर्म की महिलाएं बहुत ही श्रद्धा और विश्वास के साथ वट सावित्री व्रत के दिन व्रत रखती हैं और पूजा करती है. शास्त्रों में उल्लेख है कि वट सावित्री के दिन सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे बैठकर अपने पति को  दोबारा जीवित कर लिया था. इसबार ज्येष्ठ अमावस्या 29 मई को दिन के 2 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर 30 मई को शाम 4 बजकर 59 मिनट पर खत्म होगा. ऐसे में वट सावित्री व्रत 30 मई दिन सोमवार को रखा जाएगा.

पूजा विधि क्या है

जिन महिलाओं को व्रत रखना है वो सुबह उठते ही नित्य कर्म के बाद सबसे पहले स्नान करें. उसके बाद व्रत का संकल्प लें और घर को गंगाजल से पवित्र करें. पूजा के लिए पूजन सामग्री अपने पास रखें. जिसमें जल, फूल, अक्षत, मौली, रोली, रक्षा सूत्र, भिगोया हुआ चना और धूप का शामिल है. उसके बाद वट वृक्ष के नीचे यमराज और सावित्री-सत्यवान की मूर्ति रखें. पूजा शुरू करने से पहले वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें. जल अर्पित करने के बाद फूल, अक्षत चढ़ाएं और वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधें और आशीर्वाद मांगे. ऐसा करने के बाद व्रत रखने वाली महिलाएं वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें. परिक्रमा करने के बाद हाथ में चना लेकर कथा सुनें.

क्या है वट सावित्री का पर्व और क्यों है ये इतना महत्वपूर्ण है. हिन्दू परंपरा में स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए तमाम व्रत का पालन करती हैं. वट सावित्री व्रत भी सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है.

वट सावित्री व्रत-कथा और इसकी महिमा

यह ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. इस बार यह व्रत 25 मई को किया जाएगा. इसके साथ सत्यवान- वित्री की कथा जुड़ी हुई है. जिसमें सावित्री ने अपने संकल्प और श्रद्धा से, यमराज से, सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे. महिलाएं भी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए इस दिन व्रत और संकल्प लेती हैं.

इस व्रत को करने से सुखद और सम्पन्न दाम्पत्य का वरदान मिलता है. वटसावित्री का व्रत सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे भी रखता है.

Vat Savitri vrat 2022 Date: हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का महत्व करवा चौथ जितना ही बताया गया है. इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए उपवास और पूजा करती हैं. उत्तर भारत में हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को यह व्रत रखने की परंपरा होती है. जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में 15 दिन बाद यानी ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखा जाता है. इस साल वट सावित्री के व्रत पर एक खास संयोग भी बन रहा है. वट सावित्री का व्रत इस बार 30 मई को रखा जाएगा.

क्या है संयोग?
इस बार वट सावित्री के व्रत के साथ सोमवती अमावस्या भी मनाई जाएगी. सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है. यह साल की आखिरी सोमवती अमावस्या भी होगी. इसके बाद सोमवती अमावस्या अगले साल ही आएगी. वट सावित्री व्रत पर महिलाएं करवा चौथ की तरह ही पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं. वहीं सोमवती अमावस्या पर स्नान, दान, पितरों की पूजा का विधान होता है.

वट सावित्री व्रत में कैसे करें पूजा?
वट सावित्री व्रत में सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पत्नियां बरगद की उम्र के समान ही पति की उम्र की कामना करती हैं. शास्त्रों के अनुसार, पीपल के वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास होता है. इस वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसके तने के चारों ओर परिक्रमा करते हुए कलावा बांधने की परंपरा होती है.

वट सावित्री व्रत की सामग्री
वट सावित्री व्रत के लिए बांस की लकड़ी से बना बेना (पंखा), अक्षत, हल्दी, अगरबत्ती या धूपबत्ती, लाल-पीले रंग का कलावा, सोलह श्रंगार, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए सिंदूर और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए, पांच प्रकार के फल और पकवान का घर में इंतजाम कर लें. वट वृक्ष की पूजा में इन सभी चीजों का इस्तेमाल पूरे विधि-विधान से करें.

शुभम शांडिल्य/नई दिल्लीः (Vat Savitri 2022) हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत और शनि जयंती का विशेष महत्व है. इस बार यह दोनों त्यौहार सोमवारी अमावस्या के दिन पड़ने से विशेष संयोग बन रहा है. ज्योतिषों की माने तो ऐसा संयोग 30 साल बाद बन रहा है. इसके साथ सोमवारी अमावस्या के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग व सुकर्मा योग भी बन रहा है. इस दिन लोग शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव को दूर करने के लिए लोग शनि जयंती का व्रत रखते हैं. वहीं महिलाएं अंखड सौभाग्यवती होने के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं. धार्मिक मान्यता अनुसार इस दिन किए गए दान-पुण्य का कई गुना फल मिलता है. आइए जानते हैं कब और कैसे रहना है, सोमवारी अमावस्या के दिन शनि जयंती और वट सावित्री व्रत? 

इस दिन है वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को पड़ता है. इस बार अमावस्या तिथि 30 मई को है. महिलाएं वट सावित्री व्रत रख इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती है. ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं इस दिन वट सावित्री व्रत रख कर विधि विधान से पूजा करती हैं. उन्हें अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है. इस दिन व्रत रहने से पति को लंबी आयु प्राप्त होती है.

 

ये भी पढ़ेंः Shani Jayanti 2022: शनि जयंती पर करें ये उपाय, खुल जाएगा बंद किस्मत का ताला

 

वट सावित्री व्रत पूजा सामग्री
वट सावित्री व्रत रखने वाली महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करने से पहले सावित्री-सत्यवान की प्रतिमा, लाल कलावा, कच्चा सूता, धूप-अगरबत्ती, मिट्टी का दीपक, घी, फल, रोली मिष्ठान, सवा मीटर कपड़ा, नारियल, पान, अक्षत, सिंदूर सहित अन्य सिंगार के समान मंगा लें.

वट सावित्री व्रत पूजा विधि
इस विधि से करें पूजा
वट सावित्री व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान करने के बाद वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की मूर्ति रख कर विधि विधान से पूजा करें. इसके बाद वट वृक्ष पर जल चढ़ाएं. साथ ही कच्चे सूते से वट के वृक्ष में सात बार परिक्रमा करते हुए बांध दें. अब महिलाएं सावित्री-सत्यवान के प्रतिमा के सामने रोली, अक्षत, भीगे चने, कलावा, फूल, फल अर्पित करें.

ये भी पढ़ेंः सपने में इन चीजों का दिखना होता है बेहद शुभ, जानिए सपने का महत्व

 

(disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओें और जानकारियों पर आधारित है. zee media इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

बरगद अमावस की पूजा कैसे की जाती है?

ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट वृक्ष की जड़ में जल चढ़ा कर तने पर रोली का टीका लगाया जाता है, इसके बाद चना, गुड़, घी आदि अर्पित करने के साथ ही देसी घी का दीपक प्रज्वलित किया जाता है. पूरी श्रद्धा के साथ कच्चे सूत से वृक्ष की पत्तियों की बनी हुई माला पहन कर सावित्री सत्यवान की कथा को सुनना या पढ़ना चाहिए.

वट वृक्ष पूजा कैसे करते हैं?

पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें. जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें. बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें. भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें.

वट पूर्णिमा की पूजा कैसे की जाती है?

ऐसे करें वट पूर्णिमा की पूजा इस दिन सुहागिन महिलाएं प्रातः स्नान-ध्यान करके पूजा सामग्री के साथ वट वृक्ष पर एकत्रित होती हैं. इसके बाद वे वृक्ष के चारों तरफ सूत लपेटती हैं और जल, हल्दी, रोली, कुमकुम अर्पित करती हैं. फिर वे विधिवत पूजा करके पति और परिवार के कल्याण की प्रार्थना करती हैं.

वट वृक्ष की पूजा कब करनी चाहिए?

वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है.