चीफ की दावत कहानी में कौन सी मुख्य समस्या का वर्णन हुआ है? - cheeph kee daavat kahaanee mein kaun see mukhy samasya ka varnan hua hai?

भीष्म साहनी लिखित चीफ की दावत,कहानी की समीक्षा       

 भीष्म साहनी लिखित चीफ की दावत कहानी, मौजूदा पीढ़ी में दिन-ब-दिन हो रहे नैतिक क्षरण एवं मूल्यों में हो रहे निरंतर गिरावट को शिद्दत के साथ उजागर करता है.   इस कहानी के मुख्य पात्र मिस्टर शामनाथ, उनकी पत्नी एवं विधवा बूढ़ी मां है.     

   मिस्टर शामनाथ नाम से ही नहीं वरन कर्म से भी दिन के उजाले का प्रतिनिधित्व नहीं करता. पूरे घर पर उसने आधिपत्य सा जमा रखा है, उसकी सोच पूरी तरह सामंती है, तथा घर के तमाम कार्य में वह दखलअंदाजी करता है.     

  अंग्रेजी सभ्यता का हिमायती शामनाथ अपनी मां के साथ बेहद अमानवीय सलूक किया करता है.       

 अपने पदोन्नति की लालसा में वह अपने चीफ को अपने घर पर  दावत  पर  बुलाता है, चीफ के खिदमत के लिए वह अपने घर को बेहद तरतीब से सजाता है, तथा फालतू सामानों को पलंग के नीचे, मेज के पीछे और ऐसेे स्थानों पर छिपा देता है, जहां उसके बॉस की नजर नहीं पर सके,  परंतु उसके समक्ष एक समस्या आन खड़ी होती है, मां को लेकर क्योंकि मां भी उसके नजर में एक फालतू सामान के मानिंद ही थी. एक क्षण के लिए वह सोचता है, की मां को उसकी सहेली के यहां पूरी रात के लिए भेज दे, परंतु इसमें एक संकट था, की मां की तरह वह मां की सहेली से भी नफरत ही किया करता था लिहाजा अगर मां को उक्त सहेली के यहां भेजा जाता तो वह सहेली भी गाहे-बगााहे,  मिस्टर शामनाथ के घर पर दस्तक देती जिसके लिए वह तैयार,  नहीं था.   अंततः यह निर्णय लिया गया की मां अदब से कुर्सी पर बैठी रहे, कुर्सी पर वह किस मुद्रा में बैठेगी और कौन सा पोशाक पहनेगी इसका निर्णय भी मिस्टर शामनाथ द्वारा ही लिया जाता है, मां को यह स्पष्ट हिदायत दी जाती है, की जब तक साहब लोग न चले जाए वह सोए नहीं क्योंकि सोते समय उसे खर्राटे लेने की आदत थी जो उसके साहब को अच्छी नहीं लगेगी.       

बहरहाल अपने पुत्र का आदेश मान उसकी मां कुर्सी पर पांव नीचे किए बैठती है, परंतु कुछ देर बाद उसे नींद आ जाती है, तथा वह पांव कुर्सी पर समेटकर निद्रा के आगोश में चली जाती है.       उसी समय ड्रिंक लेने के पश्चात, बैठकखाने में प्रवेश के लिए शामनाथ और उसके चीफ भी आते हैं शामनाथ अपनी मां को  इस स्थिति में देख आक्रोश मेंं आ तो जरूर जाता है, परंतु वक्त की नजाकत को देखते हुए वह खामोश ही रहता है, तभी चीफ की नजर भी उसके मां पर पड़ती है,  मां की निद्रा भी एक साथ कई पदचाप को सुन टूट जाती है तथा हटात वह खड़ी हो जाती है.       

 मिस्टर शामनाथ अपनी मां का परिचय चीफ से कराता है,  चीफ भी उसके ग्रामीण मां को तवज्जो देता है, तथा उससे अंग्रेजी में हालचाल पूछता है, हाथ मिलाता है, ग्रामीण मां उसके अंग्रेजी में पूछे गए कुशल क्षेम का कोई जवाब तो नहीं देती, परंतु उनका बेटा शामनाथ पल प्रतिपल आदेत्मक  स्वर में अपनी मां को चीफ द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब देने को कहता है. हद तो तब हो जाती है जब चीफ के पुराने एवं ग्रामीण परिवेश के गाने सुनाने की, फरमाइश पर वह मां को जबरन गाने के लिए बाध्य करता है, तत्पश्चात चीफ द्वारा फुलकारी (एक प्रकार का खिलौना) की मांग पर वह मां को चीफ के लिए फुलकारी बनाने को कहता है, मां द्वारा यह कहने पर कि अब उसकीआंखों की रोशनी धुंधली पड़ गई है,  तो भी वह मां की बात अनसुनी कर, चीफ को यह भरोसा देता है, की मां उसके लिए फुलकारी जरूर बना देगी, देर रात गए पार्टी समापन के बाद शामनाथ मां के कमरे में आता है, तथा चीफ के लिए फुलकारी बनाने के लिए खुशामद करता है, मां जब यह कहती है, कि उसकी आंखें जवाब दे चुकी है, तो ऐसी परिस्थिति में  आखिर फुलकारी वह कैसे बनाएं तथा वह अपने बेटे से उसे हरिद्वार भेजने की गुजारिश करती है, जहां शेष बची जिंदगी वह सुकून के साथ गुजार सकें.             परंतु शामनाथ उसके इस बात से आक्रोश से भर उठता है, तथा सख्त लहजे में कहता है, की तुम मुझे समाज में बेइज्जत करना चाहती हो, इसलिए हरिद्वार का राग अलापा करती हो, वह अपनी मां से कहता है की उसने साहब को फुलकारी देने का वचन दिया है, और अगर साहब को फुलकारी मिलती है, तो संभव है उसकी  प्रोन्नति  हो जाए मां उसके प्रोन्नति होने की बात को सुन बेहद खुश होती है, तथा कहती है की मेरे द्वारा फुलकारी बना देने से क्या सचमुच में तुम्हारी   प्रोन्नति हो जाएगी तो मैं तुम्हारे लिए फुलकारी अवश्य बनाऊंगी तथा अपन बेटे के उज्जवल भविष्य कि वह कामना करने लगती है कहानी इसी बिंदु पर आकर समाप्त हो जाता है.       

 वस्तुतः चीफ की दावत कहानी आज के शिक्षित पीढ़ी द्वारा किए जा रहे अशिक्षित आचरण को पूरी शिद्दत के साथ बेनकाब करता है, यह कहानी हमारे समाज के, तल्ख सच्चाई को भी उद्घाटित करता है, शामनाथ को अपनी मां के आंखों की कम पड़ रही, रोशनी  से कोई वास्ता नहीं वह सिर्फ  अपनी प्रोन्नति के बारे में ही सोचता है,  पर मां तो आखिर मां होती है,  जब वह जानती है  की  फुलकारी से उसके बेटे की  प्रोन्नति संभव है, तो आंख के जाती रोशनी के बीच भी वह फुलकारी बनाने को तैयार हो जाती है.     

यह कहानी, जिस समय लिखी गई उस समय से आज की स्थिति में और भी गिरावट आ चुकी है, उस समय शामनाथ कम से कम चीफ के समक्ष अपनी मां को मां ही कह कर परिचय कराता है, जबकि आज हालात इतने बिगड़ चुके हैंं, की ऐसी परिस्थिति में बेटा अपनी मां को घर की कामवाली कह कर बाहरी व्यक्तियों से परिचय कराने में गुरेज नहीं करता, वही आज की पीढ़ी को बेसहारा मां बाप को वृद्धा आश्रम भेजने  में भी कोई लज्जा नहीं आती, कुछेक वर्ष पूर्व इन्हीं हालातों को दृष्टिगत रखते हुए बागवान फिल्म भी बनाई गई थी. प्रोफेसर  प्रवीण कुमार सिन्हा, हिंदी विभाग ,एमएलटी कॉलेज सहरसा

चीफ की दावत कहानी में क्या संदेश है?

'चीफ की दावत' कहानी द्वारा वह मध्यवर्गीय व्यक्ति की अवसरवादिता, उसकी महत्वाकांक्षा, स्वार्थपरता, हृदयहीनता, कटु-व्यवहार तथा पारिवारिक विघटन को उजागर करते हैं। उनकी यह कहानी नए मध्यवर्ग के आर्थिक व सांस्कृतिक अन्तर्द्वंद को चित्रित करने वाली कहानी है।

चीफ की दावत कहानी का सारांश क्या है?

चीफ की दावत' कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखी गई एक ऐसी कहानी है, जो मां के त्याग और बेटे की उपेक्षा का ताना-बाना बुनती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक माँ का दर्द उकेरा है, जो अपने बेटे बहू के लिए बोझ के समान है। माँ ने अपने बेटे को पाल पोस कर बड़ा किया लेकिन वही बेटा उसे बुढ़ापे में बोझ समझता है।

चीफ के आने से पहले शाम नाथ की सबसे बड़ी समस्या क्या थी?

नाटक की कहानी मिस्टर शामनाथ की है, जो पदोन्नति के लालच में अंग्रेज चीफ को दावत पर बुलाते हैं, लेकिन इसमें बड़ी समस्या है अनपढ मां। शामनाथ मां को सामने नहीं लाना चाहता और घर के किसी कोने में उसे छिपाने के बारे में सोचता है।

चीफ की दावत कहानी के क्या तत्वों के आधार पर समीक्षा कीजिए?

'चीफ की दावत' एक ऐसी ही कहानी है, जिसमें स्वार्थी बेटे शामनाथ को अपनी विधवा बूढ़ी माँ का बलिदान फर्ज ही नजर आता है। भीष्म साहनी ने शामनाथ के माध्यम से शिक्षित युवा पीढ़ी पर करारा व्यंग्य किया है। आज के शिक्षित युवा वर्ग अपने माता पिता को बोझ समझते हैं। व्यक्ति अपनी सुख सुविधा के लिए अपने माता पिता को छोड़ देते हैं।