Show चंपा काले काले अच्छर नही चीन्हानी . (त्रिलोचन) कविता के साथ प्रश्न 1. चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे? उत्तर - चंपा नहीं चाहती थी कि उसकी शादी के बाद उसका पति धन कमाने के लिए कलकत्ता जाए । कोलकाता उसके परिवार को तोड़नेवाला है, उसे उसके पति से अलग करनेवाला है वह ऐसे कोलकाता या महानगर को सहन नहीं कर सकती इसलिए वह कहती है कि कोलकाता पर वज्र गिरे । प्रश्न 2 . चंपा को इस पर क्यों विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने लिखने की बात कही होगी ? उत्तर - चंपा ने दो बातें सुन रखी हैं - 1 .पढ़ना लिखना बुरी बात है । 2 .गांधी बाबा अच्छे मनुष्य है इस कारण वह विश्वास नहीं कर पाती कि गांधी बाबा जैसे अच्छे मनुष्य ने पढ़ने-लिखने जैसी बुरी बात कही होगी । प्रश्न 3 .कवि ने चंपा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ? उत्तर - कवि ने चंपा की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है क. भोलापन। ख. शरारती स्वभाव I ग. मुखर स्वभाव मन की बातों को बिना छिपाए सीधे मुंह पर कहना । घ. आत्मीयता परिवार के साथ मिलकर रहने की भावना । विद्रोही - कष्ट देने वाले के प्रति खुला विद्रोह । प्रश्न 4 . आपके विचार में चंपा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मैं तो नहीं पढ़ूंगी ? उत्तर - मेरे विचार से चंपा के मन में यह बात बैठी हुई है कि पढ़े-लिखे लोग अच्छे मनुष्य नहीं होते वह चालाक, घमंडी,और कपटी हो जाते हैं प्राय : अनपढ़ों को गँवार समझ कर छोड़ जाते हैं इस कारण उसने मन में दृढ़निश्चय कर लिया है कि वह पढ़ - लिखकर कपटी नहीं बनेगी । कविता के आस - पास प्रश्न 1. यदि चंपा पढ़ी - लिखी होती, तो कवि से कैसे बातें करती ? उत्तर - चंपा पढ़ी - लिखी होती तो वह लेखक की उसकी योग्यता के लिए उचित सम्मान देती। मैं उससे बड़े प्रेम, सम्मान, और विनम्रता से बातें करती तब उसकी बातों से विद्रोह नहीं, श्रद्धा व्यक्त होती । प्रश्न 2 .इस कविता में पूर्वी प्रदेशों स्त्रियों कि किस विडंबनात्मक स्थिति का वर्णन हुआ है ? उत्तर - इस कविता में पूर्वी प्रदेश की स्त्रियों की अनपढ़ता और उनके अपने प्रिय से दूर रहने की विवशता का वर्णन हुआ है। वे अनपढ़ हैं उनके गांव में रोजगार नहीं है। आता उनके पतियों को रोजगार के लिए कोलकाता जैसे महानगरों में जाना पड़ता है उनकी विडंबना यह है कि वे पति की चिट्ठी को पढ़ भी नहीं पाते और अपना संदेश लिखकर भी नहीं भेज पाते अतः वह घुट - घुटकर जाती है प्रश्न 3. संदेश ग्रहण करने और भेजने में असमर्थ होने पर एक अनपढ़ लड़की को किस वेदना और विपत्ति को भोगना पड़ा है अपनी कल्पना से लिखिए | उत्तर - अनपढ़ लड़की को अनेक मानसिक विपत्तियों मैं से गुजरना पड़ता हैl वह अपने परिवार और पति से दूर रहने पर बेबस हो जाती है वह न तो पत्र लिखकर अपने माता - पिता या पति को हालचाल दे सकती है न ही उनकी चिट्ठी पढ़कर उनका हालचाल जान सकती है यदि वह किसी और से चिट्ठी लिखवा ले तो भी अपने मन की सारी प्रेम - भरी बातें और वियोग के दुख को नहीं बदला सकती। अकेले में उसकी सबसे बड़ी पीड़ा तो अकेलापन को लेकर होती है। वह उसे अन्य किसी के साथ नहीं बाँट सकती। इसीलिए उसके मन की बातें मन में ही रह जाती है। इसी प्रकार वह अपने पति की प्रेम-भरी चिट्ठी भी किसी दूसरे से पड़वा ने में संकोच अनुभव करती है। कुछ स्त्रियां तो इस कारण बिल्कुल अकेली हो जाती हैं मिलता है Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 16 चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. GSEB Class 11 Hindi Solutions चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Textbook Questions and
Answers अभ्यास कविता के साथ प्रश्न 1. प्रश्न 2. इसलिए चम्पा के मन में यह धारणा स्पष्ट थी कि गाँधी जी एक बहुत बड़े और अच्छे व्यक्ति हैं। ऐसा अच्छा व्यक्ति पढ़ने-लिखने की बात कैसे कर सकता है। क्योंकि चम्पा क्या जाने पढ़ाई लिखाई का महत्त्व। उसके लिए तो मुक्त मन से बातें करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। यहाँ परोक्ष रूप से कवि ने भारतीय ग्राम्य जीवन के कटु यथार्थ से भी हम स्वरू करवाया है। क्योंकि आज भी गरीबी अज्ञानता के घोर अंधकार में डूबे लोगों के बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं। उनके हाथ में कलम की जगह कुदाल है, फावड़ा है। प्रश्न 3. वे उनकी मुँह लगी भी तो है। कवि को पढ़ते हुए देखकर उसे बड़ा आश्चर्य होता है कि इन काले अच्छरों में कैसे अर्थ प्रकट होता है। वह लिखने-पढ़ने की बात को अच्छा नहीं समझती। वह निरीह है, निश्छल है। प्रश्न 4. कविता के आस-पास प्रश्न 1. शिक्षा के महत्त्व को लेकर गाँधी के विचारों पर सन्देह करने की बजाय समर्थन करती। बालम को वहीं गाँव में संग रखने की बजाय वह स्वयं ही कलकत्ता या किसी अन्य किसी शहर में अपने भविष्य को बनाने के लिए निकल पड़ती। कलकत्ता पर बजर न गिराती। अपने पति का संदेशा पढ़ने या भेजने की विवशता न रहती। प्रश्न 2. घर-परिवार और रिश्तेदारी, बालबच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर बड़े-बूढ़ों की देखभाल से लेकर खेत-खलिहान की सारी जवाबदारियाँ उन्हीं के माथे होती हैं। पति के बिना अकेले हाथों इन जवाबदारियों का निर्वाह करना अपने-आप में कितना कठिन है इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है। प्रश्न 3. अनपढ़ लड़की खुद तो संदेश भेजने में असमर्थ होती है अतः उसे खत लिखने के लिए किसी ओर का मुँह ताकना पड़ेगा, उससे मिन्नतें करनी पड़ेगी। उसके समय के अनुसार, उसकी अनुकूलता के अनुसार खत लिखवाने जाने होगा। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि अपने पति के प्रति व्यक्त की गयी भावनाएँ-सार्वजनिक होने का खतरा भी बना रहता है। ठीक यही बात अपने पति का खत आने पर उसे पढ़ने के लिए भी उसे दूसरों के सहारे रहना पड़ता है। कई बातें ऐसी भी होती हैं किसी अन्य के साथ बैठकर पढ़ने में संकोच या लज्जा का सामना करना पड़ता है। प्रश्न 4. Hindi Digest Std 11 GSEB चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Important Questions and Answers कविता के साथ प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. काव्य नायिका चंपा अनजाने ही उस शोषक व्यवस्था के प्रतिपक्ष में खड़ी हो जाती है, जहाँ भविष्य को लेकर उसके मन में अनजान खतरा है। यह कहती है कलकत्ते पर बजर गिरे। कलकत्ते पर वन गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवन को प्रकट करती है। निम्नलिखित विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद करके प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. योग्य विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए। प्रश्न 1.
उत्तर :
सही या गलत बताइए। प्रश्न 1.
उत्तर :
अपठित पद्य नीचे दी गई कविता को पढ़कर उस पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। अरी वरुणा की शांत कछार ! प्रश्नों के उत्तर लिखिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Summary in Hindiकवि-परिचय : मूल नाम : वासुदेव सिंह काव्य संग्रह :
कहानी संग्रह :
आलोचना :
पुरस्कार : सन् 1981 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ नामक काव्य-कृति पर त्रिलोचन को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । 1983-84 में इनके गज़लों और रुबाइयों के महत्त्वपूर्ण संग्रह ‘गुलाब और बुलबुल’ पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मान पुरस्कार प्रदान किया गया । 1981 में त्रिलोचन को मध्य प्रदेश के पुरस्कार ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ से सम्मानित किया गया । शलाका सम्मान, महात्मा गाँधी पुरस्कार (उ. प्र.) । मृत्यु – सन् 1990 त्रिलोचन का व्यक्तित्व : हिन्दी की प्रगतिशील कविता के प्रमुख हस्ताक्षर त्रिलोचन का वास्तविक नाम वासुदेव सिंह है । इनका जन्म 20 अगस्त, 1917 को चिरानी पट्टी – कटघरापट्टी, जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था । किंतु श्री एस. पी. चैतन्य के साथ हुई बातचीत में त्रिलोचन कहते हैं ‘मेरी वास्तविक उम्र सर्टिफिकेट की उम्र से डेढ़ साल अधिक है । मेरा जन्म 1917 में नहीं, अपितु 1916 में हुआ था ।’ ‘शास्त्री’ उपाधि और त्रिलोचन साहित्यिक नाम से जुड़कर त्रिलोचन शास्त्री ने प्रारंभिक रचनाएँ की; बाद में सिर्फ ‘त्रिलोचन’ नाम से ही पुस्तकें प्रकाशित हुई । त्रिलोचन नाम गाँव के संस्कृत गुरु श्री देवदत्त ने दिया था । गुरु श्री देवदत्त तिवारी ब्राह्मण थे किंतु नाम के साथ तिवारी नहीं लिखते थे । उन्होंने निर्देश दिया था कि ‘त्रिलोचन’ के साथ कभी ‘सिंह’ मत जोड़ना । शायद इसी कारण त्रिलोचन ने ‘सिंह’ ही नहीं बाद में ‘शास्त्री’ लिखना भी छोड़ दिया । सिर्फ त्रिलोचन । इनके पिता का नाम श्री जगरदेवसिंह तथा माता का नाम मनबरता देवी था । इनकी पत्नी का नाम जयमूर्ति देवी था, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं । त्रिलोचन की शिक्षा गाँव में दोस्तपुर में आरंभ हुई । वाराणसी से इन्होंने ‘साहित्यरत्न’ डिग्री हासिल की । इन्होंने एम.ए. (पूर्वार्द्ध) बी.एच.यु. (बनारस हिंदू युनिवर्सिटी) से अंग्रेजी साहित्य से किया । त्रिलोचन का समूचा जीवन विविधता से भरा हुआ है । इन्होंने अपने बहुत से सर्जनात्मक कार्यों के द्वारा हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता और काव्य को नयी दिशा दी । 1930 से 1941 तक इन्होंने बनारस से निकलनेवाली मासिक पत्रिका ‘कहानी’ के सम्पादन कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । 1943 से 1946 तक त्रिलोचन ने ‘हंस’ नामक अत्यंत महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पत्र के सम्पादन-कार्य में अत्यधिक सहयोग किया । 1946 से 1950 तक ये मासिक पत्र ‘चित्ररेखा’ तथा ‘बृहद हिन्दी कोश’ के सहायक सम्पादक रहे । 1952 से 1953 तक ये गणेशराय नेशनल इण्टर कॉलेज, डोभी, जौनपुर में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे । 1953 से 1954 तक इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा निर्गत ‘हिन्दी-अंग्रेजी मानक-कोश’ के संपादन में महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया । 1954 से जून 1959 तक त्रिलोचन ने ‘हिन्दी शब्द-सागर’ के सम्पादन का कार्य किया । 1959 में ये राँची राष्ट्रीय प्रेस में मैनेजर हो गये । 1960 से 1967 तक त्रिलोचन ‘हिन्दी शब्द-सागर’ का संशोधित परिवर्तित संस्करण निकालने में जुटे रहे । 1967 से 1972 तक इन्होंने विदेशी छात्रों को हिन्दी, संस्कृत और उर्दू की शिक्षा दी । 1972 से 1975 तक दैनिक पत्र ‘जनवार्ता के सहायक सम्पादक रहे । 1975 से 1978 तक ये हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल के भाषा-सम्पादक हे । 1978 से 10 मार्च, 1984 तक ये उर्दू विभाग, द्वैमासिक कोश (उर्दू-हिन्दी) परियोजना, दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े रहे । 28 मार्च, ’84 के ये मुक्तिबोध – सृजन पीठ के अध्यक्ष हुए । त्रिलोचन द्वारा किया गया बहुत-सा कार्य उनके संघर्ष को प्रमाणित करता है । इन्होंने कई कोशों के सम्पादन कार्य में सहयोग दिया, जो इनके भाषा-ज्ञान की समृद्धि का सूचक है । विभिन्न पत्रों का सम्पादन कार्य इनके कुशल, तटस्थ सम्पादक होने को प्रमाणित करता है । आज भी त्रिलोचन की लेखनी अपनी पूरी स्वरा में सक्रिय है, इसका कारण यह है कि एक सृजनशील व्यक्ति की लेखनी कभी विराम ले ही नहीं सकती । वह चीजों को महसूस करता है तथा अपने सशक्त शिल्प-पक्ष द्वारा उसे वाणी देता है । यह उसके लिए अनिवार्य है। विवेचकों ने त्रिलोचन को ‘साधारण का असाधारण कवि’ भी कहा है । त्रिलोचन प्रगतिशील कवि हैं जो औसत भारतीय जनों के एक सशक्त कवि हैं । ये हिन्दी में निराला के बाद के दूसरे किसान कवि हैं, जिनमें भारतीयता का संस्कार कूट-कूटकर भरा है । अत्यंत सहज, अर्थयुक्त इनका व्यक्तित्व एवं काव्य भी है । तभी तो मानवीय अनुभूतियाँ थिराई हुई दृष्टिगत होती है । ‘मानवता की पुकार’ इनकी कविता का मुख्य स्वर है । कविवर गजानन माधव मुक्तिबोध के शब्दों में – ‘त्रिलोचन की वाणी का ओज उनके हृदय की प्रथा नहीं है, वह अमर मानवता की पुकार है ।’ यह कवि काल को अपने में समेटे हुए कालातीत बन जाता है । गीत, गजल, रूबाई, सॉनेट, काव्य-नाटक, प्रबंध, कविता आदि अनेक काव्य रूपों से समृद्ध शब्द के जादूगर कवि त्रिलोचन का समूचा काव्य-संचार निजी वैशिष्ट्य के कारण समकालीन कविता में स्थायी महत्त्व रखता है । त्रिलोचन प्रगतिवादी कवि होते हुए भी ये नागार्जुन और केदारनाथ छाप के प्रगतिवादी नहीं हैं । इनकी प्रगतिवाद की श्रेणी में आनेवाली कविताएँ संख्या में कम हैं पर अवध जनपद के सामान्य जीवन के संघर्ष और ऋतु-चित्र उनकी कविता में भरे पड़े हैं । स्वयं के संघर्षपूर्ण जीवन को ध्यान में रखकर त्रिलोचन ने जन-संवेदना को अपनी रचनाओं में काव्यानुभूति द्वारा प्रकट किया है । तभी तो उन्हें सामान जन के प्रबल पक्षधर भी कहा जा सकता है । प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम आत्मपरकता के इस कवि की कविता में लोक-जीवन के गहरे साक्षात्कार को भी अभिव्यक्त किया है । तभी तो इनके व्यक्तित्व की गहरी छाप इनके विभिन्न काव्य-रूपों एवं बिम्बों में भी नजर आते हैं । इसीलिए तो इनकी काव्य भाषा आलोचना-शास्त्र के लिए चुनौती होते हुए शिल्प-विहीन सपाट-बयानीसी लगती है । इनकी भाषा छायावादी रूमानियत से मुक्त है तथा उसका ठाठ ठेठ गाँव की जमीन से जुड़ा हुआ है । त्रिलोचन हिंदी में सॉनेट (अंग्रेजी छंद) को स्थापित करनेवाले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं । त्रिलोचन का कवि बोल-चाल की भाषा को चुटीला और नाटकीय बनाकर कविताओं को नया आयाम देता है । कविता की प्रस्तुति का अंदाज कुछ ऐसा है कि वस्तु और रुप की प्रस्तुति का भेद नहीं रहता । उनका कवि इन दोनों के बीच फाँक की गुंजाइश नहीं छोड़ता । ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ शीर्षक कविता उनके ‘धरती’ नामक काव्यसंग्रह में संकलित है । प्रस्तुत कविता में कवि ने गाँवों के टूटने और शहर के आकर्षण के कारणों को सांकेतिक रूप में अभिव्यक्त किया है । अनपढ़ चम्पा के माध्यम से कवि ने शिक्षा तंत्र में फैले अन्तर विरोधों को अत्यंत सहज भाव से उजागर किया है । काव्य के अन्त में जब वह यह कहती है कि ‘कलकत्ते पर बजर गिरे’ तो इसमें यह कटु यथार्थ भी व्यक्त हुए बिना नहीं रहता आखिर आर्थिक विपन्नता और विवशता के कारण ही तो गाँव टूट रहे हैं । कवि ने परोक्ष रूप से ग्रामीण भोली-भाली जनता को अपने अपने तरीकों से लूटनेवाले शोषण के केन्द्रों पर भी प्रहार किया है । वही चम्पा की जिजीविषा और संघर्ष चेतना भी ध्यान आकर्षित करती है । काव्य का सारांश : ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कवि के ‘धरती’ नामक काव्य संकलन में संग्रहीत है । आर्थिक विपन्नता के कारण रोजीरोटी की तलाश में ग्रामीण युवकों के शहर में पलायन की वेदना तथा तद्जन्य लोक अनुभवों की पीड़ा की अभिव्यक्ति इस कविता का मूल स्वर है । शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करती काव्यनायिका चंपा यहाँ अनजाने ही शोषण व्यवस्था के विरोध में खड़ी दिखती है । कविता में ‘अच्छर’ (अक्षर) के लिए काले-काले विशेषण तो कवि की ओर से दिया गया है जो शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोध को व्यक्त करता है तो दूसरी ओर काव्यनायिका द्वारा ‘कलकत्ते पर बजर गिरे’ जैसी कामना भविष्य को लेकर उसके मन में उठनेवाले अनजान खतरे का भी संकेत देता है । वह इस बात पर दृढ़ है कि वह अपने जीवन साथी को कमाई करने के लिए कोलकाता न जाने देगी । काव्य का भावार्थ : चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती प्रस्तुत काव्यांश में कवि त्रिलोचन ने भोले-भाले अनपढ़ ग्राम्य बालिका की जिज्ञासा को अत्यंत सहज भाव में व्यक्त करते हुए कहा है कि चम्पा काले काले अच्छरों को नहीं पहचान पाती, नहीं पढ़ पाती । कवि को पढ़ते हुए देखकर वह उनके पास आकर खड़ी हो जाती है । कवि के पास ही खड़ी-खड़ी चम्पा चुपचाप कवि को सुनती रहती है और चेहरे पर आश्चर्य के भावों को उभारती है । यह मन ही मन सोचती है कि इन काले अक्षरों से ये सब स्वर यानी तरह-तरह की बातें, विचार, प्रसंग और गीत आदि कैसे फूट पड़ते हैं । चम्पा को यह आश्चर्य होना स्वाभाविक है क्योंकि अनपढ़ लोगों के लिए तो ‘काले अक्षर भैंस बराबर’ होते हैं । यहाँ कवि ने अक्षर के लिए ‘काले काले’ विशेषण का प्रयोग किया है । जो शिक्षा तंत्र में फैले विसंगतियों, शिक्षा के अधिकार से वंचित लोगों, विशेषकर ग्राम्य जनों और उसमें भी ग्राम्य बालिकाओं के वंचित रहने या रखे जाने के षड़यंत्र की ओर भी इशारा किया है । यहाँ ‘अच्छर’, ‘चीन्हती’ आदि शब्द प्रयोग बड़े ही सटीक हैं । भाषा पात्रानुकूल है और कथ्य को हृदयस्पर्शी बनाने में सक्षम हैं । चंपा सुन्दर की लड़की है यहाँ कवि चंपा का सीधा सरल परिचय करवाते हुए कहा है कि चंपा के पिता का नाम सुंदर है । सुंदर एक ग्बाला है जिसके पास अपनी कुछ गाय भैंसे हैं । चंपा उन गाय भैंसों को चराने जाती है । वह अच्छी है । वह स्वभाव से चंचल और नटखट है, हाँ कभीकभार ऊद्यम या शरारत भी कर देती है । कभी-कभी तो वह कांधे की कलम ही चुरा देती है, उन्हें बड़ा परेशान करती है, जैसेतैसे करके वे कलम को ढूंढकर लाते हैं । तो उनके लिखने के कारज ही गायब कर देती है, वे फिर हैरान परेशान हो जाते हैं । चंपा कहती है : तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर क्या यह काम बहुत अच्छा है यह सुनकर मैं हँस देता हूँ फिर चंपा चुप हो जाती है । इतना ही नहीं उल्टा उन्हें डाँटते हुए या शिकायत के स्वर में कहती है कि तुम दिन भर कागद ही गोदा करते हो । लिखने के कार्य से या सृजन कार्य से उसको क्या लेना देना, फिर चाहे वह अच्छी रचना हो या बुरी उसे उससे क्या; उसके लिए सब कुछ लिखना नहीं गोदना है, व्यर्थ का श्रम है । वह इस काम को अच्छा नहीं समझती । उसके लिए (अनपढ़) तो बोलना, बतियाना, नजर से नजर मिलाना, हँसना-हँसाना, हँसी-ठिठोली करना, तर्क करना, चर्चा करना या आपस में संवाद करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है । सृजन की साधना से उसका कोई वास्ता नहीं है । उसके इस भोलेपन पर कवि को हँसी आ जाती है और चंपा चुप हो जाती है । उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि प्रस्तुत कविता उनके ‘धरती’ नामक काव्यसंग्रह में संकलित है जिसका प्रकाशन सन् 1945 में हुआ था । उस समय देश के कवियों, कलाकारों, विचारकों और राजनीतिज्ञों पर गाँधी के विचारों का व्यापक प्रभाव था । प्रस्तुत काव्यांश में भी कवि ने गाँधी जी का हवाला देते हुए चंपा से कहा है कि देखो चंपा तुम थोड़ा-बहुत पढ़ लिख लो । यह शिक्षा ज्ञान तुम्हारे जीवन में काम आयेगा । कटिनाई के समय तुम्हें उपयोगी होगा । महात्मा गाँधी जी की भी यही इच्छा है । इसीलिए वह सर्वजन के लिए पढ़ने-लिखने की बात करते हैं । मगर चंपा तो चंपा है वह कवि के इस प्रस्ताव को अच्छा नहीं समझाती । उल्टा कहती है तुम तो कहते थे कि गाँधी बाबा अच्छे हैं । यदि वह अच्छे हैं तो पढ़ने-लिखने की बात कैसे कर सकते हैं ? कहने का आशय यह है कि चंपा को विश्वास ही नहीं होता कि गाँधी बाबा ने लोगों को पढ़ने-लिखने की बात कही होगी । क्योंकि चम्पा अनपढ़ है, ग्राम्य बालिका है, उसके गाँव, महौले के अधिकतर बच्चे, उसकी सखी सहेलियाँ भी अनपढ़ होंगे । वो क्या जाने पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व । उसके लिए तो मुक्त मन से बातें करना-ज्यादा महत्त्वपूर्ण है । वह कवि के मुँह लगी भी तो है । यहाँ परोक्ष रूप से कवि ने भारतीय ग्राम्य जीवन के कटु यथार्थ से भी हमें रूबरू करवाया है । क्योंकि आज भी गरीबी अज्ञानता के घोर अंधकार में डूबे लोगों के बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं । उनके हाथ में कलम की जगह कुदाल है, फावड़ा है । इसलिए तो प्रभाकर श्रोत्रिय लिखते हैं – ‘वे जन से, उसकी रोजमर्रा की समस्याओं से अंतरंग रूप में प्रतिबद्ध होने के कारण प्रगतिशील है।’ मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी, कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता बड़ी दूर है वह कलकत्ता कैसे उसे सैंदेसा दोगी कैसे उसके पत्र पढ़ोगी चंपा पढ़ लेना अच्छा है ! यहाँ कवि चंपा को पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व समझाते हो कहते हैं कि देखो चम्पा तुम्हें नहीं पता कि पढ़ाई-लिखाई का क्या महत्त्व है । कल तुम बड़ी हो जाओगी, तुम्हारा विवाह होगा, ससुरोल जाओगी, तुम्हारा पति कुछ दिन तुम्हारे साथ रहकर कमाने-धमाने के लिए कलकत्ता चला जायेगा । कलकत्ता बहुत दूर है । तुम अपने दिल की बातें या अपने संदेशें उस तक कैसे भेजोगी ? यदि तुम्हारा पति कलकत्ते से कोई खत भेजेगा तो तुम कैसे पढ़ोगी । तुम्हें दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा । इसलिए कहता हूँ पढ़-लिख लेना अच्छा है । यहाँ कवि ने चंपा के बहाने भारत के पूर्वी प्रदेशों की स्त्रियों की मातक पीड़ा को व्यक्त किया है। चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा, चंपा अपने ही अंदाज में उत्तर देते हुए कवि को कहती है कि ‘हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो !’ पहली बात तो यह कि ब्याह करूँगी ही नहीं और यदि मेरा ब्याह हो भी गया तो मैं अपने बालम को कलकत्ता नहीं जाने दूंगी, अपने साथ ही रचूगी । कलकत्ते पर ‘बजर’ गिरे । यहाँ कवि ने ग्राम्य जनों की आर्थिक मजबूरियों के चलते शहर की ओर ताकने की विवशता के सवाल को उठाया है । वहीं कलकत्ते पर वन गिरने की इच्छा, जीवन के ठोस यथार्थ के प्रति, चंपा के संघर्ष और उसकी जिजीविषा को भी प्रकट करती है । प्रस्तुत काव्यांश में बोलचाल की भाषा का अपना ठाठ है, अपनी एक गरिमा है । ‘हाय-राम, कलकत्ते पर बजर गिरे’ जैसे शब्द इसका प्रमाण है। शब्द-छवि :
टिप्पण : कलकत्ता – यहाँ कलकत्ता सिर्फ कलकत्ता शहर के लिए ही उपयुक्त नहीं हुआ है । लेकिन भारत के उन सभी महानगरों का प्रतीक है, जिसकी चकाचौंध और रोजगारी की तलाश में ग्रामीण युया उस ओर अभिमुख/आकर्षित होते हैं । चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कोलकाता पर बजर गिरे?वह चाहती है कि ब्याह के बाद उसका पति उसके साथ रहेगा। वह उसे कभी कलकत्ता जाने नहीं देगी। अतः कवि की बात सुनकर उसे कलकत्ता पर गुस्सा आ गया और उसने कलकत्ता पर बजर गिरने की बात कही।
चपा किस पर वज्र गिरने को कहती है और क्यों?Hindi हिंदी
चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे? प्रश्न 16-2. चंपा को इसपर क्यों विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी? प्रश्न 16-3.
2 चंपा को इसपर क्यों विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने लिखने की बात कही होगी?चंपा का मानना है कि जो अच्छे लोग होते हैं, वे पढ़ने-लिखने के लिए नहीं कहते हैं। अतः जब लेखक ने उसे कहा कि गांधी बाबा पढ़ने-लिखने के लिए कहते हैं, तो उसे विश्वास नहीं हुआ। उसके लिए पढ़ना-लिखना अच्छी बात नहीं है। अतः गांधी बाबा अच्छे हैं, वे भला पढ़ने-लिखने के लिए क्यों कहेंगे।
यदि चंपा पढ़ी लिखी होती तो कभी से कैसे बात करते हैं?यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती, तो कवि से कै से बातें करती? Solution : यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती तो कवि की योग्यता का सम्मान करती। चंपा का बात को <br>अभिव्यक्त करने का तरीका विनम्र और सम्मानपूर्ण होता। तब शायद उसकी बातों में <br>विद्रोह के स्वर की अपेक्षा कवि के प्रति श्रध्दा होती।
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