महादेवी वर्मा की साहित्यिक विशेषताएं क्या थी? - mahaadevee varma kee saahityik visheshataen kya thee?

Mahadevi verma Sahityik parichay: महादेवी वर्मा (Mahadevi verma) का जीवन  एवं साहित्यिक परिचय एवं Up Board Exam Sahityik Parichay in 80 Words. Up Board Exam Hindi Sahityik And General Hindi Most Important sahityik parichay.

महादेवी वर्मा की साहित्यिक विशेषताएं क्या थी? - mahaadevee varma kee saahityik visheshataen kya thee?

जीवन – परिचय –

पीड़ा की गायिका ‘ अथवा ‘ आधुनिक युग की मीरा ‘ के नाम से विख्यात हैं|  श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई ० ( संवत् 1964 ) में उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर फर्रुखाबाद में होलिका दहन के पुण्य पर्व के दिन हुआ था । उनकी माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं । वे श्रीकृष्ण में अटूट श्रद्धा रखती थीं । उनके नाना भी ब्रजभाषा में कविता करते थे । नाना एवं माता के इन गुणों का महादेवीजी पर भी प्रभाव पड़ा ।

नौ वर्ष की छोटी उम्र में ही उनका विवाह स्वरूपनारायण वर्मा से हो गया था ; किन्तु इन्हीं दिनों उनकी माता का भी स्वर्गवास हो गया । माँ का साया सिर से उठ जाने पर भी उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा तथा पढ़ने में और अधिक मन लगाया ।

परिणामस्वरूप उन्होंने मैट्रिक से लेकर एम ० ए ० तक की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । बहुत समय तक वे ‘ प्रयाग महिला विद्यापीठ ‘ में प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत रहीं । महादेवीजी का स्वर्गवास 80 वर्ष की अवस्था में 11 सितम्बर , सन् 1987 ई ० ( संवत् 2044 ) को हो गया ।

साहित्यिक – परिचय –

महादेवी वर्मा ने मैट्रिक उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही काव्य – रचना प्रारम्भ कर दी थी । करुणा एवं भावुकता उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग थे । अपनी अन्तर्मुखी मनोवृत्ति एवं नारी सुलभ गहरी भावुकता के कारण उनके द्वारा रचित काव्य में रहस्यवाद , वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल तथा मर्मस्पर्शी भाव मुखरित हुए हैं ।

इनके काव्य में संगीतात्मकता एवं भाव – तीव्रता का सहज तथा स्वाभाविक समावेश हुआ है । इनकी रचनाएँ सर्वप्रथम ‘ चाँद ‘ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुईं , तत्पश्चात् इन्हें एक प्रसिद्ध कवयित्री के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हुई । सन् 1933 ई ० में इन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्राचार्या पद को सुशोभित किया ।

इनकी काव्यात्मक प्रतिभा के लिए इन्हें ‘ सेकसरिया ‘ एवं ‘ मंगलाप्रसाद ‘ पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । इसके पश्चात् भारत सरकार ने इन्हें ‘ पद्मभूषण ‘ की उपाधि से सम्मानित किया । सन् 1983 ई ० में इन्हें ‘ ज्ञानपीठ ‘ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया |

इसी वर्ष इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से ‘ भारत – भारती ‘ पुरस्कार प्रदान किया गया और  प्रसिद्ध समालोचकों ने इन्हें ‘ आधुनिक युग की मीरा ‘ नाम से सम्बोधित किया है । 

कृतियाँ —

महादेवीजी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

( 1 ) नीहार — इस काव्य – संकलन में भावमय गीत संकलित हैं । उनमें वेदना का स्वर मुखरित हुआ है ।

( 2 ) रश्मि – इस संग्रह में आत्मा – परमात्मा के मधुर सम्बन्धों पर आधारित गीत संकलित हैं ।

( 3 ) नीरजा — इसमें प्रकृतिप्रधान गीत संकलित हैं । इन गीतों में सुख – दुःख की अनुभूतियों को वाणी मिली है ।

( 4 ) सान्ध्यगीत – इसके गीतों में परमात्मा से मिलन का आनन्दमय चित्रण है ।

( 5 ) दीपशिखा — इसमें रहस्यभावनाप्रधान गीतों को संकलित किया गया है ।

इनके अतिरिक्त ‘ अतीत के चलचित्र ‘ , ‘ स्मृति की रेखाएँ ‘ , ‘ श्रृंखला की कड़ियाँ ‘ आदि उनकी गद्य – रचनाएँ हैं । ‘ यामा ‘ नाम से उनके विशिष्ट गीतों का संग्रह प्रकाशित हुआ है । ‘ सन्धिनी ‘ और ‘ आधुनिक कवि ‘ भी उनके गीतों के संग्रह हैं ।

महादेवी वर्मा की साहित्यिक विशेषताएं क्या थी? - mahaadevee varma kee saahityik visheshataen kya thee?
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महादेवी वर्मा की साहित्यिक विशेषताएं क्या थी? - mahaadevee varma kee saahityik visheshataen kya thee?

  • महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)
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      • महत्वपूर्ण लिंक 

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)

जीवन-परिचय

श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद जिले के एक सम्पन्न कायस्थ परिवार में 1907 ई० में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० करने के पश्चात् ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या हो गयीं। तब से अन्त तक इसी पद पर कार्य किया। बीच में कुछ वर्षों तक आपने ‘चाँद’ नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन किया था। इन्हें “सेकसरिया’ एवं ‘मंगलाप्रसाद पुरंस्कार’ भी प्राप्त हो चुके हैं। इनकी विद्वता पर भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया है। ये उत्तर प्रदेश विज्ञान परिषद् की सम्मानित सदस्या भी रह चुकी हैं। सन् 1987 में इनका देहावसान हो गया था।

कृतियाँ

महादेवी जी का कृतित्व गुणात्मक दृष्टि से तो अति समृद्ध है ही, परिमाण की दृष्टि से भी कम नहीं है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

‘क्षणदा’, ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा निबन्ध’ उनके प्रसिद्ध निबन्ध- संग्रह हैं।

‘अतीत के चलचित्र’, ‘पथ के साथो’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘मेरा परिवार’ उनके संस्मरणों और रेखाचित्रों के संग्रह हैं।

‘हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य’ और काव्य-ग्रन्थों की भूमिकाओं तथा फुटकर आलोचनात्मक निबन्धों में उनका सजग आलोचक-रूप व्यक्त हुआ है।

‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’ आदि उनके कविता-संग्रह हैं। ‘चाँद’ और ‘आधुनिक कवि’ का उन्होंने सम्पादन किया।

साहित्यिक परिचय

महादेवी जी का मुख्य साहित्यिक क्षेत्र काव्य है तथापि ये उच्चकोटि की गद्य रचनाकार भी हैं। एक ओर जहाँ वे विशिष्ट गम्भीर शैली में आलोचनाएँ लिख सकती हैं, दूसरी ओर श्री की कड़ियाँ’ में विवेचनात्मक गद्य भी प्रस्तुत कर सकती हैं। इन्होंने नारी-जगत् की समस्याओं को

प्राय: अपने निबन्धों का वर्ण्य-विषय बनाया है। ‘पथ के साथी’ में कुछ प्रमुख साहित्यकारों के ‘अतीत के

चलचित्र’ एवं ‘स्मृति की रेखाओं’ में मार्मिक रेखाचित्र प्रस्तुत किया है । ‘मेरा परिवार’ में कुछ पालतू पशु पक्षियों के शब्द-चित्र बड़ी ही मार्मिक शैली में चित्रित किये गये हैं। महादेवी जी के काव्य में आध्यात्मिक वेदना का पुट है। इनका काव्य वर्णनात्मक और इतिवृत्तात्मक न होकर गीतिकाव्य है जिसमें लाक्षणिकता और व्यंजकता का बाहुल्य है।

भाषा-शैली

महादेवी की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा में काव्यात्मक चित्रमयता सर्वत्र देखने योग्य है। इनकी गद्य रचनाओं में भी काल की चित्रमयता, मधुरता एवं कल्पनाशीलता विद्यमान रहती है जिसमें पाठकों को एक अनोखी आत्मीयता के दर्शन होते हैं। शब्दों का चयन एवं वाक्य-विन्यास अत्यन्त ही कलात्मक है। गद्य में लाक्षणिकता के पुट से एक मधुर व्यंग्य की सृष्टि होती है। भाषा संस्कृतनिष्ठ होने पर भी उसमें शुष्कता और दुर्बोधता का अभाव है। भावों को अभिव्यक्ति में आपको अद्वितीय सफलता मिली है।

उदाहरण

  1. विवरणात्मक शैली- “हिमालय के प्रति मेरी आसक्ति जन्मजात है इसके पर्वतीय अंचलों में मौन हिमानी और मुखर निरझरी, निर्जन वन और कलेवर भरे आकाश वाला रामगढ़ मुझे लिशेष रूप से आक्षित करता रहा है।” – प्रणाम
  2. विवेचनात्मक शैली “महान साहित्यकार अपनी कृति में इस प्रकार व्याप्त रहता है कि उसे कृति से पृथक् रखकर देखना उसके व्यक्तिगत जीवन की सब रेखाएँ जोड़ लेना ही कष्टसाध्य होता है । एक के तौलने में दूसरा तुल जाता और दूसरे को नापने में पहला नप जाता है ।” – प्रणाम
  3. आत्मव्यांजक शैली “मेरे काक पुराण के विवेचन में अचानक बाभा आ पड़ो क्योंकि गमले और दीवार की सन्धि में छिपे एक छोटे-से जीव पर मेरी दुष्टि गर्यो। निकट आकर देखा, गिलहरी का छोटा बच्चा है।” -गिरलू

स्मरणीय तथ्य

जन्म- 1907 ई०।

मृत्यु- 1987 ई०

जन्म-स्थान- फर्रुखाबाद।

पिता- गोविन्दप्रसाद वर्मा।

भाता- श्रीमती हेमरानी।

शिक्षा- एम० ए०।

पति- रूपनारायण किन्तु परित्यक्ता।

अन्य बातें- चाँद’ पत्र का सम्पादन, ‘साहित्य संसद् का स्थापना।

काव्यगत विशेषताएं- छायावादी, रहस्यवादी रचनाएँ, वेदना की प्रधानता।

महत्वपूर्ण लिंक 

  • भारतीय संविधान की विशेषताएँ
  • जेट प्रवाह (Jet Streams)
  • चट्टानों के प्रकार
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  • Indian Citizenship
  • अभिभावक शिक्षक संघ (PTA meeting in hindi)
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  • Parasitic Protozoa and Human Disease
  • गतिक संतुलन संकल्पना Dynamic Equilibrium concept
  • भूमण्डलीय ऊष्मन( Global Warming)|भूमंडलीय ऊष्मन द्वारा उत्पन्न समस्याएँ|भूमंडलीय ऊष्मन के कारक
  •  भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण)
  • मानव अधिवास तंत्र
  • इंग्लॅण्ड की क्रांति 
  • प्राचीन भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ
  • प्रथम अध्याय – प्रस्तावना
  • द्वितीय अध्याय – प्रयागराज की भौगोलिक तथा सामाजिक स्थित
  • तृतीय अध्याय – प्रयागराज के सांस्कृतिक विकास का कुम्भ मेल से संबंध
  • चतुर्थ अध्याय – कुम्भ की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
  • पंचम अध्याय – गंगा नदी का पर्यावरणीय प्रवाह और कुम्भ मेले के बीच का सम्बंध

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महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय क्या है?

महादेवी वर्मा (२६ मार्च 1907 — 11 सितम्बर 1987) हिन्दी भाषा की कवयित्री थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।

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महादेवी वर्मा का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है?

महादेवी वर्मा कवयित्री होने के साथ ही साथ कुशल चित्रकार, अनुवादक भी थीं। उन्हें हिंदी साहित्य के सभी पुरस्कार प्राप्त हुए। 1932 में उन्होंने महिला पत्रिका चांद का कार्यभार संभाला। 1930 में निहार, 1932 में रश्मि, 1934 में नीरजा, 1936 में सांध्यगीत नामक चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए।