फ्रांसीसी क्रांति ने सामूहिक पहचान का भाव बढ़ने के लिए क्या किया? - phraanseesee kraanti ne saamoohik pahachaan ka bhaav badhane ke lie kya kiya?

Solution : फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियो ने कई कदम उठाए। उन्होंने इसके लिए रोमांटिसिज्म का सहारा लिया। रोमांटिसिज्म एक सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक खास तरह की राष्ट्रवादी भावना का विकास करना चाहता था। रोमांटिक कलाकार सामान्यतया तर्क और विज्ञान को बढ़ावा देने के खिलाफ होते थे। इसके बदले वे भावनाओं, अंतर्ज्ञान और रहस्यों पर ज्यादा ध्यान देते थे। राष्ट्र के आधार के रूप में उन्होंने साझा विरासत और सांस्कृतिक धरोहर की भावना को अधिक प्रश्रय दिया। भाषा ने भी राष्ट्रवादी भावनाओं को बल देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूरे फ्रांस में फ्रेंच भाषा को मुख्य भाषा की तरह बढ़ावा दिया गया ताकि लोगों में एक राष्ट्र की भावना पनप सके। पोलैंड में रूसी आधिपत्य के खिलाफ विरोध के लिए पॉलिश भाषा का इस्तेमाल किया गया।

फ्रांसीसी क्रांति होने सामूहिक पहचान का भाव बढ़ाने के लिए क्या किया?

आंतरिक आयात निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एकसमान व्यवस्था लागू की गई । क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में फ्रेंच जैसी बोली और लिखी जाती थी, वही राष्ट्र की साझा भाषा बन गई।

फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव दिया करने के लिए फ्रांसिसी क्रांति कलियों ने क्या कदम उठाइए?

Solution : फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियो ने कई कदम उठाए। उन्होंने इसके लिए रोमांटिसिज्म का सहारा लिया। रोमांटिसिज्म एक सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक खास तरह की राष्ट्रवादी भावना का विकास करना चाहता था।

फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने क्या कदम उठाये?

राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी की भूमिका पर चर्चा कर सकेंगे। भारतीयों पर राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव को स्थापित कर सकेंगे। टिप्पणी Page 2 मॉड्यूल - 1 भारत तथा विश्व विभिन्न युगों में टिप्पणी इस राजनीतिक परिवर्तन के फलस्वरूप संप्रभुता राजा के हाथ से फ्रांसीसी नागरिक के हाथों में चली गई।

फ्रांसीसी क्रांति के किन विचारों से सबसे अधिक प्रभावित हैं और क्यों?

देश की जमीन का पांचवा भाग चर्च के पास ही था और ये पादरी वर्ग चर्च की अपार सम्पदा का प्रयोग करते थे। ये सभी प्रकार के करों से मुक्त थे इस तरह उनका जीवन भ्रष्ट, अनैतिक और विलासी था। इस कारण यह वर्ग जनता के बीच अलोकप्रिय हो गया था और जनता के असंतोष का कारण भी बन रहा था।