नहिं परागु नहिं मधुर मधु Show
नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल। अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥ नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है। अरे भौरे! अभी तो यह एक कली मात्र है। तुम अभी से इसके मोह में अंधे बन रहे हो। जब यह कली फूल बनकर पराग तथा मकरंद से युक्त होगी, उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? अर्थात् जब नायिका यौवन संपन्न सरसता से प्रफुल्लित हो जाएगी, तब नायक की क्या दशा होगी? स्रोत :
यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल हैAdditional information availableClick on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher. Don’t remind me again OKAY rare Unpublished contentThis ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left. Don’t remind me again OKAY नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहिं काल अली कली ही सों बँध्यौ आगे कौन हवाल?नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल। अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥ नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है।
नहीं पराग नहीं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल अली कली ही सौ विंध्यों आगे कौन हवाल इस दोहे में कौन सा अलंकार है?अर्थात – न हीं इस काल में फूल में पराग है, न तो मीठी मधु ही है। अगर अभी से भौंरा फूल की कली में ही खोया रहेगा तो आगे न जाने क्या होगा। दूसरे शब्दों में, 'हे राजन अभी तो रानी नई-नई हैं, अभी तो उनकी युवावस्था आनी बाकी है। अगर आप अभी से ही रानी में खोए रहेंगे, तो आगे क्या हाल होगा।
`' नहिं पराग नहीं मधुर मधु किसकी रचना है ?`?नहिं पराग नहिं मधुर मधु, पत्रा हीं तिथि पाइयै, चिरजीवौ जोरी जुरै क्यों, करी बिरह ऐसी तऊ, मोहन मूरति स्थान की, कनक - कनक तैं सौगुनी, त्यों त्यों प्यासेई रहत, अधर धरत हरि के परत, कहलाने एकत बसत, समै सबै सुंदर सबै । खंजन नैन फँदे पिंजरा, कान्ह भये बस बाँसुरी के । कबीर, रहीम, बिहारी, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह 'दिनकर' ।
नहिं पराग नहिं मधुर मधु किसकी रचना है A घनानंद B बिहारी C रसखान D रसलीन?(D) तुलसीदास TBC: AKG-APCC-HINDI-A 42.
|