गृहस्थ होते हुए भी भगत को साधु क्यों कहा जाता था? - grhasth hote hue bhee bhagat ko saadhu kyon kaha jaata tha?

बालगोबिन भगत घर-परिवार वाले आदमी थे। उनके परिवार में उनका बेटा और पतोहू थे। उनके पास खेतीबारी और साफ़ सुथरा मकान था। इसके बाद भी बालगोबिन भगत साधुओं की तरह रहते और साधु की सारी परिभाषाओं पर खरा उतरते थे, इसलिए लेखक ने भगत को गृहस्थ साधु माना है।

(5) कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे कबीरपंथी मठ में ले जाते, वहाँ से जो कुछ भी भेंट स्वरुप मिलता था उसे प्रसाद स्वरुप घर ले जाते थे।

(6) उनमें लालच बिल्कुल भी नहीं था।

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Question 2:

भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?

Answer:

भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के बुढ़ापे का वह एकमात्र सहारा थी। उसके चले जाने के बाद भगत की देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।

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Question 3:

भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?

Answer:

बेटे की मृत्यु पर भगत ने पुत्र के शरीर को एक चटाई पर लिटा दिया, उसे सफे़द चादर से ढक दिया तथा गीत गाकर अपनी भावनाएँ व्यक्त की। उनके अनुसार आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहनि अपने प्रेमी से जा मिली। यह आनंद की बात है, इससे दु:खी नहीं होना चाहिए।

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Question 4:

भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Answer:

बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे लेकिन उनमें साधु संन्यासियों के गुण भी थे। वे अपने किसी काम के लिए दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते थे। बिना अनुमति के किसी की वस्तु को हाथ नहीं लगाते थे। कबीर के आर्दशों का पालन करते थे। सर्दियों में भी अंधेरा रहते ही पैदल जाकर गंगा स्नान करके आते थे तथा भजन गाते थे।

वेशभूषा से ये साधु लगते थे। इनके मुख पर सफे़द दाढ़ी तथा सिर पर सफे़द बाल थे, गले में तुलसी के जड़ की माला पहनते थे, सिर पर कबीर पंथियों की तरह टोपी पहनते थे, शरीर पर कपड़े बस नाम मात्र के थे। सर्दियों के मौसम में बस एक काला कंबल ओढ़ लेते थे तथा मधुर स्वर में भजन गाते-फिरते थे।

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Question 5:

बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?

Answer:

वृद्ध होते हुए भी उनकी स्फूर्ति में कोई कमी नहीं थी। सर्दी के मौसम में भी, भरे बादलों वाले भादों की आधी रात में भी वे भोर में सबसे पहले उठकर गाँव से दो मील दूर स्थित गंगा स्नान करने जाते थे, खेतों में अकेले ही खेती करते तथा गीत गाते रहते। विपरीत परिस्थिति होने के बाद भी उनकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता था। एक वृद्ध में अपने कार्य के प्रति इतनी सजगता को देखकर लोग दंग रह जाते थे।

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Question 6:

पाठ के आधर पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।

Answer:

बालगोबिन भगत के गीतों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण था। खेतों में जब वे गाना गाते तो स्त्रियों के होंठ बिना गुनगुनाए नहीं रह पाते थे। गर्मियों की शाम में उनके गीत वातावरण में शीतलता भर देते थे। संध्या समय जब वे अपनी मंडली समेत गाने बैठते तो उनके द्वारा गाए पदों को उनकी मंडली दोहराया करती थी, उनका मन उनके तन पर हावी हो जाता था, मन के भाव शरीर के माध्यम से प्रकट हो जाते थे और वे नाचने-झूमने लगते थे।

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Question 7:

कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।

Answer:

बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। ये निम्नलिखित हैं -

(1) जब बालगोबिन भगत के बेटे की मृत्यु हुई उस समय सामान्य लोगों की तरह शोक करने की बजाए भगत ने उसकी शैया के समक्ष गीत गाकर अपने भाव प्रकट किए —“आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया है। यह आनंद मनाने का समय है, दु:खी होने का नहीं।“

(2) बेटे के क्रिया-कर्म में भी उन्होंने सामाजिक रीति-रिवाजों की परवाह न करते हुए अपनी पुत्रवधू से ही दाह संस्कार संपन्न कराया।

(3) समाज में विधवा विवाह का प्रचलन न होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी कर देने को कहा।

(4) अन्य साधुओं की तरह भिक्षा माँगकर खाने के विरोधी थे।

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Question 8:

धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Answer:

बादल से घिरे आसमान में, ठंडी हवाओं के चलने के समय अचानक खेतों में से किसी के मीठे स्वर गाते हुए सुनाई देते हैं। उनकी मधुर वाणी को सुनते ही लोग झूमने लगते हैं, स्त्रियाँ स्वयं को रोक नहीं पाती है तथा अपने आप उनके होंठ काँपकर गुनगुनाते लगते हैं। बालगोबिन भगत के गाने से संपूर्ण सृष्टि मिठास में खो जाती है।

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Question 9:

पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?

Answer:

बालगोबिन भगत द्वारा कबीर पर श्रद्धा निम्नलिखित रुपों में प्रकट हुई है  -

(1) कबीर गृहस्थ होकर भी सांसारिक मोह-माया से मुक्त थे। उसी प्रकार बाल गोबिन भगत ने भी गृहस्थ जीवन में बँधकर भी साधु समान जीवन व्यतीत किया।

(2) कबीर के अनुसार मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा का परमात्मा से मिलन होता है। बेटे की मृत्यु के बाद बाल गोबिन भगत ने भी यही कहा था।

(3) बालगोबिन भगत खेती द्वारा प्राप्त अनाज की राशि को कबीर मठ में भेंट दे देते थे और जो थोड़ा बहुत प्रसाद स्वरुप मिलता उससे अपना गुज़र-बसर करते थे। कबीर के विचार भी कुछ इस प्रकार के ही थे -

"साई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाए।

मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाए।।

(4) कबीर की तरह बालगोबिन भगत भी कनफटी टोपी पहनते थे, रामानंदी चंदन लगाते थे तथा गले में तुलसी माला पहनते थे।

(5) कबीर गाँव-गाँव, गली-गली घूमकर गाना गाते थे, भजन गाते थे। बाल गोबिन भगत भी इससे प्रभावित हुए। कबीर के पदों को वे गाते फिरते थे।

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Question 10:

आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?

Answer:

बालगोबिन भगत कबीर पर अगाध श्रद्धा रखते थे क्योंकि कबीर ने सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध कर समाज को एक नई दृष्टि प्रदान की, उन्होंने मूर्तिपूजा का खंडन किया तथा समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव का विरोध कर समाज को एक नई दिशा की ओर अग्रसर किया। कबीर की इन्हीं विशेषताओं ने बालगोबिन भगत के मन को प्रभावित किया होगा। दोनों के विचार एक दूसरे से मिलते हैं।

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Question 11:

गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?

Answer:

आषाढ़ की रिमझिम बारिश में भगत जी अपने मधुर गीतों को गुनगुनाकर खेती करते हैं। उनके इन गीतों के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि रम जाती है, स्त्रियोँ भी इससे प्रभावित होकर गाने लगती हैं। इसी लिए गाँव का परिवेश उल्लास से भर जाता है।

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Question 12:

"ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।" क्या 'साधु' की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति 'साधु' है?

Answer:

एक साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके आचार-व्यवहार तथा इसकी जीवन प्रणाली पर आधारित होती है। साधु को हमेशा दूसरों की सहायता करनी चाहिए, मोह-माया, लोभ से स्वयं को मुक्त रखना चाहिए। साधु का जीवन सात्विक होता है, उसका जीवन भोग-विलास की छाया से भी दूर होता है। उसके मन में केवल ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति होती है।

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Question 13:

मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?

Answer:

भगत को अपने पुत्र तथा अपनी पुत्रवधू से अगाध प्रेम था। परन्तु उसके इस प्रेम ने प्रेम की सीमा को पार कर कभी मोह का रुप धारण नहीं किया। जब भगत के पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो पुत्र मोह में पड़ कर वो रोते बिलखते नहीं हैं बल्कि पुत्र की आत्मा के परमात्मा से मिलने से खुश होते हैं। दूसरी तरफ़ वह चाहते तो मोह वश अपनी पुत्रवधू को अपने पास रोक सकते थे परन्तु उन्होंने अपनी पुत्रवधू को ज़बरदस्ती उसके भाई के साथ भेजकर उसके दूसरे विवाह का निर्णय किया। सच्चा प्रेम अपने सगे-सम्बन्धियों की खुशी में है। परन्तु मोह वश हम सामने वाले के सुख की अपेक्षा अपने सुख को प्रधानता देते हैं। बालगोबिन भगत ने भी सच्चे प्रेम का परिचय देकर अपने पुत्र और पुत्रवधू की खुशी को ही उचित माना।

गृहस्थ होते हुए भी बालगोबिन भगत को साधु क्यों कहा जाता है 1 2 2 4?

किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे - साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले । कबीर को 'साहब' मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते | किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।

बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी भगत क्यों कहलाते थे?

बालगोबिन भगत घर-परिवार वाले आदमी थे। उनके परिवार में उनका बेटा और पतोहू थे। उनके पास खेतीबारी और साफ़ सुथरा मकान था। इसके बाद भी बालगोबिन भगत साधुओं की तरह रहते और साधु की सारी परिभाषाओं पर खरा उतरते थे, इसलिए लेखक ने भगत को गृहस्थ साधु माना है।

फिर भी उन्हें साधु क्यों कहा जाता था?

फिर भी उन्हें साधु क्यों कहा जाता था ? उत्तर — बालगोबिन बेटा – पोहु वाले गृहस्थ थे लेकिन उनका आचरण साधु जैसा थासाधु आडम्बरों या अनुष्ठानों के पालन के निर्वाह से नहीं होता । यदि कोई जटाजुट बढ़ा लें तो साधु नहीं हो सकता ।

बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी संन्यासी थे कैसे?

केवल गेरुआ वस्त्र पहनने से कोई साधु नहीं बन जाता है। साधु बनने के लिए आचार और विचारों में शुद्धता की आवश्यकता होती है। उनमें ये गुण था अस्तु वे गृहस्थी होकर भी सन्यासी थे वे स्वाभिमानी भी थे क्योंकि वे कभी भी किसी अन्य की चीज को बिना अनुमति के इस्तेमाल नहीं करते थे। वे किसी को भी खरा बोल देते थे