गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

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गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला ज्ञान धर्म और दर्शन है। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया गया। गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल में) में में हुआ, उन्हें बोध गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके बाद सारनाथ में प्रथम उपदेश दिया, और उनका महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर,भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी फैल गया। इस्लाम के बाद बौद्ध धर्म विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। हीनयान, थेरवाद, महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म में प्रमुख सम्प्रदाय हैं। दुनिया के करीब 2 अरब (29%) लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। किन्तु, अमेरिका के प्यु रिसर्च के अनुसार, विश्व में लगभग 54 करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का 7% हिस्सा है। प्यु रिसर्च ने चीन, जापान व वियतनाम देशों के बौद्धों की संख्या बहुत ही कम बताई हैं, हालांकि यह देश सर्वाधिक बौद्ध आबादी वाले शीर्ष के तीन देश हैं। प्रबुद्ध सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा0 श्री प्रकाश बरनवाल के अनुसार दुनिया के 200 से अधिक देशों में बौद्ध अनुयायी हैं। किन्तु चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, लाओस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 13 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी करोड़ों बौद्ध अनुयायी हैं।

गौतम बुद्ध[संपादित करें]

गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

गौतम बुद्ध के जीवन के विषय में प्रामाणिक सामग्री विरल है। इस प्रसंग में उपलब्ध अधिकांश वृत्तान्त एवं कथानक भक्तिप्रधान रचनाएँ हैं और बुद्धकाल के बहुत बाद के हैं। प्राचीनतम सामग्री में पालि त्रिपिटक के कुछ स्थलों पर उपलब्ध अल्प विवरण उल्लेख्य हैं, जैसे- बुद्ध की पर्येषणा, सम्बोधि, धर्मचक्रप्रवर्तन एवं महापरिनिर्वाण के विवरण। बुद्ध की जीवनी के आधुनिक विवरण प्रायः पालि की निदानकथा अथवा संस्कृत के महावस्तु, ललितविस्तर एवं अश्वघोष कृत बुद्धचरित पर आधारित होते हैं। किन्तु इन विवरणों की ऐतिहासिकता वहीं तक स्वीकार की जा सकती है जहाँ तक उनके लिए प्राचीनतर समर्थन उपलब्ध हों।

ईसापूर्व 563 के लगभग शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वन में गौतम बुद्ध का जन्म प्रसिद्ध है। यह स्थान वर्तमान नेपाल राज्य के अन्तर्गत भारत की सीमा से 7 किलोमीटर दूर है। यहाँ पर प्राप्त अशोक के रुम्मिनदेई स्तम्भलेख से ज्ञात होता है 'हिद बुधे जाते' (= यहाँ बुद्ध जन्मे थे)। सुत्तनिपात में शाक्यों को हिमालय के निकट कोशल में रहनेवाले गौतम गोत्र के क्षत्रिय कहा गया है। कोशलराज के अधीन होते हुए भी शाक्य जनपद स्वयं एक गणराज्य था। इस प्रकार के राजा शुद्धोदन बुद्ध के पिता एवं मायादेवी उनकी माता प्रसिद्ध हैं। जन्म के पाँचवे दिन बुद्ध को 'सिद्धार्थ' नाम दिया गया और जन्मसप्ताह में ही माता के देहान्त के कारण उनका पालन-पोषण उनकी मौसी एवं विमाता महाप्रजापती गौतमी द्वारा हुआ।

बुद्ध के शैशव के विषय में प्राचीन सूचना अत्यन्त अल्प है। सिद्धार्थ के बत्तीस महापुरुषलक्षणों को देखकर असित ऋषि ने उनके बुद्धत्व की भविष्यवाणी की, इसके अनेक वर्णन मिलते हैं। ऐसे भी कहा जाता है कि एक दिन जामुन की छाँह में उन्हें सहज रूप में प्रथम ध्यान की उपलब्धि हुई थी। दूसरी ओर ललितविस्तार आदि ग्रन्थों में उनके शैशव का चमत्कारपूर्ण वर्णन प्राप्त होता है। ललितविस्तर के अनुसार जब सिद्धार्थ को देवायतन ले जाया गया तो देवप्रतिमाओं ने स्वयं उठकर उन्हें प्रणाम किया। उनके शरीर पर सब स्वर्णाभरण मलिन प्रतीत होते थे, लिपिशिक्षक आचार्य विश्वामित्र को उन्होंने ६४ लिपियों का नाम लेकर और गणक महामात्र अर्जुन को परमाणु-रजः प्रवेशानुगत गणना के विवरण से विस्मय में डाल दिया। नाना शिल्प, अस्त्रविद्या, एवं कलाओं में सहज-निष्णात सिद्धार्थ का दण्डपाणि की पुत्री गोपा के साथ परिणय सम्पन्न हुआ। पालि आकरों के अनुसार सिद्धार्थ की पत्नी सुप्रबुद्ध की कन्या थी और उसका नाम 'भद्दकच्चाना', भद्रकात्यायनी, यशोधरा, बिम्बा, अथवा बिम्बासुन्दरी था। विनय में उसे केवल 'राहुलमाता' कहा गया है। बुद्धचरित में यशोधरा नाम दिया गया है।

सिद्धार्थ के प्रव्राजित होने की भविष्यवाणी से भयभीत होकर शुद्धोदन ने उनके लिए तीन विशिष्ट प्रासाद (महल) बनवाए - ग्रैष्मिक, वार्षिक, एवं हैमन्तिक। इन्हें रम्य, सुरम्य और शुभ की संज्ञा भी दी गई है। इन प्रासादों में सिद्धार्थ को व्याधि और जरा-मरण से दूर एक कृत्रिम, नित्य मनोरम लोक में रखा गया जहाँ संगीत, यौवन और सौन्दर्य का अक्षत साम्राज्य था। किन्तु देवताओं की प्रेरणा से सिद्धार्थ को उद्यानयात्रा में व्याधि, जरा, मरण और परिव्राजक के दर्शन हुए और उनके चित्त में प्रव्राज्या का संकल्प विरूढ़ हुआ। इस प्रकार के विवरण की अत्युक्ति और चमत्कारिता उसके आक्षरिक सत्य पर सन्देह उत्पन्न करती है। यह निश्चित है कि सिद्धार्थ के मन में संवेग संसार के अनिवार्य दुःख पर विचार करने से उत्पन्न हुआ। उनकी ध्यानप्रवणता ने, जिसका ऊपर उल्लेख किया गया है, इस दुःख की अनुभूति को एक गम्भीर सत्य के रूप में प्रकट किया होगा। निदानकथा के अनुसार इसी समय उन्होंने पुत्रजन्म का संवाद सुना और नवजात को 'राहुल' नाम मिला। उसी अवसर पर प्रासाद की ओर जाते हुए सिद्धार्थ की शोभा से मुग्ध होकर राजकुमारी कृशा गौतमी ने उनकी प्रशंसा में एक प्रसिद्ध गाथा कही जिसमें 'नुबुत्त' (=निर्वृत्त = प्रशान्त) शब्द आता है।

निब्बुता नून सा माता निब्बुतो नून सो पिता।निब्बुता नून सा नारी यस्सायमीदिसो पति॥(अवश्य ही परम शान्त है वह माता, परम शान्त है वह पिता, परम शान्त है वह नारी जिसका ऐसा पति हो।)

सिद्धार्थ को इस गाथा में गुरुवाक्य के समान गंभीर आध्यात्मिक संकेत उपलब्ध हुआ। उन्होने सोचा कि इसने पाप और पुनर्जन्म से मुक्ति के लिए मुझे सन्देश दिया है। इसके साथ ही उन्होने मोतियों का अपना हार उतारकर उस युवती को दे दिया।

आधी रात के अंधकार में सोती हुई पत्नी और पुत्र को छोड़कर सिद्धार्थ कंथक पर आरूढ़ हो नगर से और कुटुम्बजीवन से निष्क्रान्त हुए। उस समय सिद्धार्थ 29 वर्ष के थे। निदानकथा के अनुसार रात भर में शाक्य, कोलिय और मल्ल (राम ग्राम) इन तीन राज्यों को पार कर सिद्धार्थ 30 योजन की दूरी पर अनोमा नाम की नदी के तट पर पहुँचे। वहीं उन्होंने प्रव्राज्या के उपयुक्त वेश धारण किया और छन्दक को विदा कर स्वयं अपनी अनुत्तर शान्ति की पर्येषणा (खोज) की ओर अग्रसर हुए।

आर्य पर्येषणा के प्रसंग में सिद्धार्थ अनेक तपस्वियों से मिले जिनमें आलार (आराड़), कालाम एवं उद्रक (रुद्रक) मुख्य हैं। ललितविस्तर में अराड कालाम का स्थान वैशाली कहा गया है जबकि अश्वघोष के बुद्धिचरित में उसे विन्ध्य कोष्ठवासी बताया गया है। पालि निकायों से विदित होता है कि कालाम ने बोधिसत्व को 'आर्किचन्यायतन' नाम की 'अल्प समापत्ति' सिखाई। अश्वघोष ने कालाम के सिद्धान्तों का सांख्य से सादृश्य प्रदर्शित किया है। ललितविस्तर में रुद्रक का आश्रम राजगृह के निकट कहा गया है। रुद्रक के 'नैवसंज्ञानासंज्ञायतन' के उपदेश से भी बोधिसत्व असन्तुष्ट रहे। राजगृह में उनका मगधराज बिम्बिसार से साक्षात्मार सुत्तनिपात के पब्बज्जसुत्त, ललितविस्तर और बुद्धचरित में वर्णित है।

गया में बोधिसत्व ने यह विचार किया कि जैसे गीली लकड़ियों से अग्नि उत्पन्न नहीं हो सकती, ऐसे ही भोगों में स्पृहा रहते हुए ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। अतएव उरुविल्व के निकट सेनापति ग्राम में नैरञ्जना नदी के तटवर्ती रमणीय प्रदेश में उन्होंने कठोर तपश्चर्या (प्रधान) का निश्चय किया। किन्तु अन्ततोगत्वा उन्होंने तप को व्यर्थ समझकर छोड़ दिया। इसपर उनके साथ कौंडिन्य आदि पंचवर्षीय परिव्राजकों ने उन्हें तपोभ्रष्ट निश्चित कर त्याग दिया। बोधिसत्व ने अब शैशव में अनुभूत ध्यानाभ्यास का स्मरण कर ध्यान के द्वारा ज्ञानप्राप्ति का यत्न किया। इस ध्यानकाल में उन्हें मार सेना का सामना करना पड़ा, यह प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित है। स्पष्ट ही मार घर्षण को काम और मृत्यु पर विजय का प्रतीकात्मक विवरण समझना चाहिए। आर्य पर्येषणा के छठे वर्ष के पूरे होने पर वैशाखी पूर्णिमा को बोधिसत्व ने सम्बोधि प्राप्त की। रात्रि के प्रथम याम में उन्होंने पूर्वजन्मों की स्मृति रूपी प्रथम विद्या, द्वितीय याम में दिव्य चक्षु और तृतीय याम में प्रतीत्यसमुत्पाद का ज्ञान प्राप्त किया। एक मत से इसके समानान्तर ही सर्वधर्माभिसमय रूप सर्वाकारक प्रज्ञा अथवा सम्बोधि का उदय हुआ।

सम्बोधि के अनन्तर बुद्ध के प्रथम वचनों के विषय में विभिन्न परम्पराएँ हैं जिनमें बुद्धघोष के द्वारा समर्थित 'अनेक जाति संसार संघाविस्सं पुनप्पुनं' आदि गाथाएँ विशेषतः उल्लेखनीय हैं। संबोधि की गंभीरता के कारण बुद्ध के मन में उसके उपदेश के प्रति उदासीनता स्वाभाविक थी। संसारी जीव उस गंभीर सत्य को कैसे समझ पाएँगे जो अत्यन्त सूक्ष्म और अतर्क्य है? बुद्ध की इस अनभिरुचि पर ब्रह्मा ने उनसे धर्मचक्र-प्रवर्तन का अनुरोध किया जिसपर दुःखमग्न संसारियों को देखते हुए बुद्ध ने उन्हें विकास की विभिन्न अवस्थाओं में पाया।

सारनाथ के ऋषिपत्तन मृगदान में भगवान् बुद्ध ने पंचवर्गीय भिक्षुओं को उपदेश देकर धर्मचक्रप्रवर्तन किया। इस प्रथम उपदेश में दो अन्तों का परिवर्जन और मध्यमा प्रतिपदा की आश्रयणीयता बताई गई है। इन पंचवर्गीयों के अनन्तर श्रेष्ठिपुत्र यश और उसके सम्बन्धी एवं मित्र सद्धर्म में दीक्षित हुए। इस प्रकार बुद्ध के अतिरिक्त 60 और अर्हत् उस समय थे जिन्हें बुद्ध ने नाना दिशाओं में प्रचारार्थ भेजा और वे स्वयं उरुवेला के सेनानिगम की ओर प्रस्थित हुए। मार्ग में 30 भद्रवर्गीय कुमारों को उपदेश देते हुए उरुवेला में उन्होंने तीन जटिल काश्यपों को उनके एक सहस्र अनुयायियों के साथ चमत्कार और उपदेश के द्वारा धर्म में दीक्षित किया। इसके पश्चात् राजगृह जाकर उन्होंने मगधराज बिंबिसार को धर्म का उपदेश दिया। बिम्बिसार ने वेणुवन नामक उद्यान भिक्षुसंघ को उपहार में दिया। राजगृह में ही संजय नाम के परिव्राजक के दो शिष्य कोलित और उपतिष्य सद्धर्म में दीक्षित होकर मौद्गल्यायन और सारिपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। विनय के महावग्ग में दिया हुआ संबोधि के बाद की घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण यहाँ पूरा हो जाता है।

इस प्रकार अस्सी वर्ष की आयु तक धर्म का प्रचार करते हुए उन क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश और बिहार के के अन्तर्गत आते हैं। श्रावस्ती में उनका सर्वाधिक निवास हुआ और उसके बाद राजगृह, वैशाली और कपिलवस्तु में।

प्रसिद्ध महापरिनिर्वाण सूत्र में बुद्ध की अंतिम पदयात्रा का मार्मिक विवरण प्राप्त होता है। बुद्ध उस समय राजगृह में थे जब मगधराज अजातशत्रु वृजि जनपद पर आक्रमण करना चाहता था। राजगृह से बुद्ध पाटलि ग्राम होते हुए गंगा पार कर वैशाली पहुँचे जहाँ प्रसिद्ध गणिका आम्रपाली ने उनको भिक्षुसंघ के साथ भोजन कराया। इस समय परिनिर्वाण के तीन मास शेष थे। वेलुवग्राम में भगवान् ने वर्षावास व्यतीत किया। यहाँ वे अत्यन्त रुग्ण हो गए। वैशाली से भगवान् भंडग्राम और भोगनगर होते हुए पावा पहुँचे। वहाँ चुन्द कम्मारपुत्त के आतिथ्य ग्रहण में 'सूकर मद्दव' खाने से उन्हें रक्तातिसार उत्पन्न हुआ। रुग्णावस्था में ही उन्होंने कुशीनगर की ओर प्रस्थान किया और हिरण्यवती नदी पार कर वे शालवन में दो शालवृक्षों के बीच लेट गए। सुभद्र परिव्राजक को उन्होंने उपदेश दिया और भिक्षुओं से कहा कि उनके अनन्तर धर्म ही संघ का शास्ता रहेगा। छोटे मोटे शिक्षापदों में परिवर्तन करने की अनुमति भी इन्होंने संघ को दी और छन्न भिक्षु पर ब्रह्मदण्ड का विधान किया। पालि परम्परा के अनुसार भगवान् के अन्तिम शब्द थे 'वयधम्मा संखारा अप्पमादेन संपादेथ।' (वयधर्माः संस्काराः अप्रमादेन सम्पादयेत - सभी संस्कार नाशवान हैं, आलस्य न करते हुये सम्पादन करना चाहिए।)

बुद्ध के समकालीन[संपादित करें]

  • बुद्ध के प्रमुख गुरु थे- आदिगुरु , अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त ,सूरज आजाद आदि। उनके प्रमुख शिष्य थे- आनन्द, अनिरुद्ध, महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, उपाली, अंगुलिमाल आदि।[1]
  • गुरु अलारा कलम और उद्दाका रामापुत्त : ज्ञान की तलाश में सिद्धार्थ घूमते-घूमते अलारा कलम और उद्दाका रामापुत्त के पास पहुंचे। उनसे उन्होंने योग-साधना सीखी। कई माह तक योग करने के बाद भी जब ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने उरुवेला पहुंच कर वहां घोर तपस्या की। छः साल बीत गए तपस्या करते हुए। सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई। तब एक दिन कुछ स्त्रियां किसी नगर से लौटती हुई वहां से निकलीं, जहां सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे। उनका एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो। ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएं।’ बात सिद्धार्थ को जंच गई। वह मान गए कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है। अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है। बस फिर क्या था कुछ ही समय बाद ज्ञान प्राप्त हो गया।
  • आनन्द :- यह बुद्ध और देवदत्त के भाई थे और बुद्ध के दस सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक हैं। यह लगातार बीस वर्षों तक बुद्ध की संगत में रहे। इन्हें गुरु का सर्वप्रिय शिष्य माना जाता था। आनंद को बुद्ध के निर्वाण के पश्चात प्रबोधन प्राप्त हुआ। वह अपनी स्मरण शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे।
  • महाकश्यप : महाकश्यप मगध के ब्राह्मण थे, जो तथागत के नजदीकी शिष्य बन गए थे। इन्होंने प्रथम बौद्ध अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।
  • रानी खेमा : रानी खेमा सिद्ध धर्मसंघिनी थीं। यह बिंबिसार की रानी थीं और अति सुन्दर थीं। आगे चलकर खेमा बौद्ध धर्म की अच्छी शिक्षिका बनीं।
  • महाप्रजापति : महाप्रजापति बुद्ध की माता महामाया की बहन थीं। इन दोनों ने राजा शुद्धोदन से विवाह किया था। गौतम बुद्ध के जन्म के सात दिन पश्चात महामाया की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात महाप्रजापति ने उनका अपने पुत्र जैसे पालन-पोषण किया। राजा शुद्धोदन की मृत्यु के बाद बौद्ध मठ में पहली महिला सदस्य के रूप में महाप्रजापिता को स्थान मिला था।

पालि साहित्य[संपादित करें]

त्रिपिटक (तिपिटक) बुद्ध धर्म का मुख्य ग्रन्थ है। यह पालिभाषा में लिखा गया है। यह ग्रन्थ बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात बुद्ध के द्वारा दिया गया उपदेशौं को सूत्रबद्ध करने का सबसे वृहद प्रयास है। बुद्ध के उपदेशों को इस ग्रन्थ में सूत्र (पालि : सुत्त) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सूत्रों को वर्ग (वग्ग) में बांधा गया है। वग्ग को निकाय (सुत्तपिटक) में वा खण्ड में समाहित किया गया है। निकायों को पिटक (अर्थ : टोकरी) में एकिकृत किया गया है। इस प्रकार से तीन पिटक निर्मित है जिन के संयोजन को त्रि-पिटक कहा जाता है।

पालिभाषा का त्रिपिटक थेरवादी (और नवयान) बुद्ध परम्परा में श्रीलंका, थाइलैंड, बर्मा, लाओस, कैम्बोडिया, भारत आदि राष्ट्र के बौद्ध धर्म अनुयायी पालना करते है। पालि के तिपिटक को संस्कृत में भी भाषान्तरण किया गया है, जिस को त्रिपिटक कहते है। संस्कृत का पूर्ण त्रिपिटक अभी अनुपलब्ध है। वर्तमान में संस्कृत त्रिपिटक प्रयोजन का जीवित परम्परा केवल नेपाल के नेवार जाति में उपलब्ध है। इस के अलावा तिब्बत, चीन, मंगोलिया, जापान, कोरिया, वियतनाम, मलेशिया, रुस आदि देश में संस्कृत मूल मन्त्र के साथ में स्थानीय भाषा में बौद्ध साहित्य परम्परा पालना करते है।

बुद्ध की शिक्षाएँ[संपादित करें]

भगवान् बुद्ध की मूल देशना (शिक्षा) क्या थी, इसपर प्रचुर विवाद है। स्वयं बौद्धों में कालान्तर में नाना सम्प्रदायों का जन्म और विकास हुआ और वे सभी अपने को बुद्ध से अनुप्राणित मानते हैं।

अधिकांश आधुनिक विद्वान् पालि त्रिपिटक के अन्तर्गत विनयपिटक और सुत्तपिटक में संगृहीत सिद्धान्तों को मूल बुद्धदेशना मान लेते हैं। कुछ विद्वान् सर्वास्तिवाद अथवा महायान के सारांश को मूल देशना स्वीकार करना चाहते हैं। अन्य विद्वान् मूल ग्रंथों के ऐतिहासिक विश्लेषण से प्रारंभिक और उत्तरकालीन सिद्धांतों में अधिकाधिक विवेक करना चाहते हैं, जिसके विपरीत कुछ अन्य विद्वान् इस प्रकार के विवेक के प्रयास को प्रायः असम्भव समझते हैं।

आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदि के रूप में बुद्ध की शिक्षाएँ समझी जा सकतीं हैं।

चार सत्य[संपादित करें]

तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था। बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताये हैं।

१. दुःख

इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।

२. दुःख कारण

तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।

३. दुःख निरोध

दुःख-निरोध के आठ साधन बताये गये हैं जिन्हें ‘अष्टांगिक मार्ग’ कहा गया है। तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।

४. दुःख निरोध का मार्ग

तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।

अष्टांगिक मार्ग[संपादित करें]

बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :

1. सम्यक् दृष्टि- वस्तुओं के यथार्थ स्वरूप को जानना ही सम्यक् दृष्टि है।

2. सम्यक् संकल्प- आसक्ति, द्वेष तथा हिंसा से मुक्त विचार रखना ही सम्यक् संकल्प है।

3. सम्यक् वाक्- सदा सत्य तथा मृदु वाणी का प्रयोग करना ही सम्यक् वाक् है।

4. सम्यक् कर्मान्त- इसका आशय अच्छे कर्मों में संलग्न होने तथा बुरे कर्मों के परित्याग से है।

5. सम्यक् आजीव- विशुद्ध रूप से सदाचरण से जीवन-यापन करना ही सम्यक् आजीव है।

6. सम्यक् व्यायाम- अकुशल धर्मों का त्याग तथा कुशल धर्मों का अनुसरण ही सम्यक् व्यायाम है।

7. सम्यक् स्मृति- इसका आशय वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप के संबंध में सदैव जागरूक रहना है।

8. सम्यक् समाधि - चित्त की समुचित एकाग्रता ही सम्यक् समाधि है।

कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को पथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले के स्तर को पाना आवश्यक है। और लोगों को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते है। मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है : प्रज्ञा, शील और समाधि।

पंचशील[संपादित करें]

भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को पांच शीलों का पालन करने की शिक्षा दी है।

१. अहिंसापालि में – पाणातिपाता वेरमनी सीक्खापदम् सम्मादीयामी !अर्थ – मैं प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।२. अस्तेयपालि में – आदिन्नादाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामीअर्थ – मैं चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।३. अपरिग्रहपालि में – कामेसूमीच्छाचारा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामीअर्थ – मैं व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।४. सत्यपालि नें – मुसावादा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामीअर्थ – मैं झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।५. सभी नशा से विरतपालि में – सुरामेरय मज्जपमादठटाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी।अर्थ – मैं पक्की शराब (सुरा) कच्ची शराब (मेरय), नशीली चीजों (मज्जपमादठटाना) के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

बोधि[संपादित करें]

गौतम बुद्ध ने जिस ज्ञान की प्राप्ति की थी उसे 'बोधि' कहते हैं। माना जाता है कि बोधि पाने के बाद ही संसार से छुटकारा पाया जा सकता है। सारी पारमिताओं (पूर्णताओं) की निष्पत्ति, चार आर्य सत्यों की पूरी समझ और कर्म के निरोध से ही बोधि पाई जा सकती है। इस समय, लोभ, दोष, मोह, अविद्या, तृष्णा और आत्मां में विश्वास सब गायब हो जाते हैं। बोधि के तीन स्तर होते हैं : श्रावकबोधि, प्रत्येकबोधि और सम्यकसंबोधि। सम्यकसंबोधि बौध धर्म की सबसे उन्नत आदर्श मानी जाती है।

दर्शन एवं सिद्धान्त[संपादित करें]

तीर्थ यात्रा
बौद्ध
धार्मिक स्थल
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
चार मुख्य स्थल
लुम्बिनी · बोध गया
सारनाथ · कुशीनगर
चार अन्य स्थल
श्रावस्ती · राजगीर
सनकिस्सा · वैशाली
अन्य स्थल
पटना · गया
  कौशाम्बी · मथुरा
कपिलवस्तु · देवदहा
केसरिया · पावा
नालंदा · वाराणसी
बाद के स्थल
साँची · रत्नागिरी
एल्लोरा · अजंता
भारहट

देखें  संवाद  संपादन

गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परन्तु इन सब के बहुत से सिद्धान्त मिलते हैं।

प्रतीत्यसमुत्पाद[संपादित करें]

प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धान्त कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये, इसका अर्थ है कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्मं (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर घटना मूलतः शुन्य होती है। परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते हैं।तृष्णा शून्य जीवन केवल विपश्यना से संभव है। आज के इस युग मे प्रतीत्यसमुत्पाद समाज से कही गायब हो ।

क्षणिकवाद[संपादित करें]

इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। परन्तु वैदिक मत से भिन्न है।

अनात्मवाद[संपादित करें]

आत्मा का अर्थ 'मै' होता है। किन्तु, प्राणी शरीर और मन से बने है, जिसमे स्थायित्व नही है। क्षण-क्षण बदलाव होता है। इसलिए, 'मै'अर्थात आत्मा नाम की कोई स्थायी चीज़ नहीं। जिसे लोग आत्मा समझते हैं, वो चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। आत्मा का स्थान मन ने लिया है।

अनीश्वरवाद[संपादित करें]

बुद्ध ने ब्रह्म-जाल सूत् में सृष्टि का निर्माण कैसा हुआ, ये बताया है। सृष्टि का निर्माण होना और नष्ट होना बार-बार होता है। ईश्वर या महाब्रह्मा सृष्टि का निर्माण नही करते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात कार्यकरण-भाव के नियम पर चलती है। भगवान बुद्ध के अनुसार, मनुष्यों के दू:ख और सुख के लिए कर्म जिम्मेदार है, ईश्वर या महाब्रह्मा नही। पर अन्य जगह बुद्ध ने सर्वोच्च सत्य को अवर्णनीय कहा है।

शून्यतावाद[संपादित करें]

शून्यता महायान बौद्ध सम्प्रदाय का प्रधान दर्शन है।

यथार्थवाद[संपादित करें]

बौद्ध धर्म का मतलब निराशावाद नहीं है। दुख का मतलब निराशावाद नहीं है, बल्कि सापेक्षवाद और यथार्थवाद है[2]। बुद्ध, धम्म और संघ, बौद्ध धर्म के तीन त्रिरत्न हैं। भिक्षु, भिक्षुणी, उपसका और उपसिका संघ के चार अवयव हैं।[3]

बोधिसत्व[संपादित करें]

दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलों या भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब "बुद्ध" कहलाते हैं। बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि (ज्ञान) नाम दिया गया है। कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे। उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को प्राप्त करे। बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत। "मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के निरोध का मार्ग है" (बुद्ध)। बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर न के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं।

सम्प्रदाय[संपादित करें]

बौद्ध धर्म में संघ का बडा स्थान है। इस धर्म में बुद्ध, धम्म और संघ को 'त्रिरत्न' कहा जाता है। संघ के नियम के बारे में गौतम बुद्ध ने कहा था कि छोटे नियम भिक्षुगण परिवर्तन कर सकते है। उन के महापरिनिर्वाण पश्चात संघ का आकार में व्यापक वृद्धि हुआ। इस वृद्धि के पश्चात विभिन्न क्षेत्र, संस्कृति, सामाजिक अवस्था, दीक्षा, आदि के आधार पर भिन्न लोग बुद्ध धर्म से आबद्ध हुए और संघ का नियम धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा। साथ ही में अंगुत्तर निकाय के कालाम सुत्त में बुद्ध ने अपने अनुभव के आधार पर धर्म पालन करने की स्वतन्त्रता दी है। अतः, विनय के नियम में परिमार्जन/परिवर्तन, स्थानीय सांस्कृतिक/भाषिक पक्ष, व्यक्तिगत धर्म का स्वतन्त्रता, धर्म के निश्चित पक्ष में ज्यादा वा कम जोड आदि कारण से बुद्ध धर्म में विभिन्न सम्प्रदाय वा संघ में परिमार्जित हुए। वर्तमान में, इन संघ में प्रमुख सम्प्रदाय या पंथ थेरवाद, महायान और वज्रयान है। भारत में बौद्ध धर्म का नवयान संप्रदाय है जो भीमराव आम्बेडकर द्वारा निर्मित है।

थेरवाद[संपादित करें]

  • श्रावकयान
  • प्रत्येकबुद्धयान
  • थेरवाद बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है।
  • श्रीलंका, थाईलैंड, म्यान्मार, कम्बोडिया, लाओस, बांग्लादेश, नेपाल आदी देशों में थेरवाद बौद्ध धर्म का प्रभाव हैं।

महायान[संपादित करें]

  • महायान बुद्ध की वास्तविक शिक्षाओं का पालन नही करता ।
  • बुद्ध के अलावा हजारों बोधिसत्व की पूजा करता है।
  • बोधिसत्त्वयान
  • बोधिसत्त्वसुत्रयान
  • बोधिसत्त्वतन्त्रयान / वज्रयान
  • महायान में बुद्ध की पूजा करता है।
  • चीन, जापान, उत्तर कोरिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया आदी देशों में प्रभाव हैं।

वज्रयान[संपादित करें]

  • वज्रयान को तिब्बती तांत्रिक धर्म भी कहां जाता हैं।
  • भूटान में राष्ट्रधर्म
  • भूटान, तिब्बत और मंगोलिया में प्रभाव

नवयान[संपादित करें]

  • डॉ.भीमराव आम्बेडकर के सिद्धांतों का अनुसरण
  • महायान, वज्रयान, थेरवाद से भिन्न सिद्धांत
  • भारत में (मुख्यत महाराष्ट्र में) प्रभाव

प्रमुख तीर्थ[संपादित करें]

भगवान बुद्ध के अनुयायीओं के लिए विश्व भर में पांच मुख्य तीर्थ मुख्य माने जाते हैं :

तीर्थ यात्रा
बौद्ध
धार्मिक स्थल
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
चार मुख्य स्थल
लुम्बिनी · बोध गया
सारनाथ · कुशीनगर
चार अन्य स्थल
श्रावस्ती · राजगीर
सनकिस्सा · वैशाली
अन्य स्थल
पटना · गया
  कौशाम्बी · मथुरा
कपिलवस्तु · देवदहा
केसरिया · पावा
नालंदा · वाराणसी
बाद के स्थल
साँची · रत्नागिरी
एल्लोरा · अजंता
भारहट

देखें  संवाद  संपादन

  • (1) लुम्बिनी – जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ।
  • (2) बोधगया – जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त हुआ।
  • (3) सारनाथ – जहां से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
  • (4) कुशीनगर – जहां बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।
  • (5) दीक्षाभूमि, नागपुर – जहां भारत में बौद्ध धर्म का पुनरूत्थान हुआ।

लुम्बिनी[संपादित करें]

गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

यह स्थान नेपाल की तराई में नौतनवां रेलवे स्टेशन से 25 किलोमीटर और गोरखपुर-गोंडा लाइन के सिद्धार्थ नगर स्टेशन से करीब 12 किलोमीटर दूर है। अब तो सिद्धार्थ नगर से लुम्बिनी तक पक्की सडक़ भी बन गई है। ईसा पूर्व 563 में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) का जन्म यहीं हुआ था। हालांकि, यहां के बुद्ध के समय के अधिकतर प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। केवल सम्राट अशोक का एक स्तम्भ अवशेष के रूप में इस बात की गवाही देता है कि भगवान बुद्ध का जन्म यहां हुआ था। इस स्तम्भ के अलावा एक समाधि स्तूप में बुद्ध की एक मूर्ति है। नेपाल सरकार ने भी यहां पर दो स्तूप और बनवाए हैं।

बोधगया[संपादित करें]

गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

लगभग छह वर्ष तक जगह-जगह और विभिन्न गुरुओं के पास भटकने के बाद भी बुद्ध को कहीं परम ज्ञान न मिला। इसके बाद वे गया पहुंचे। आखिर में उन्होंने प्रण लिया कि जब तक असली ज्ञान उपलब्ध नहीं होता, वह पिपल वृक्ष के नीचे से नहीं उठेंगे, चाहे उनके प्राण ही क्यों न निकल जाएं। इसके बाद करीब छह साल तक दिन रात एक पीपल वृक्ष के नीचे भूखे-प्यासे तप किया। आखिर में उन्हें परम ज्ञान या बुद्धत्व उपलब्ध हुआ। जिस पिपल वृक्ष के नीचे वह बैठे, उसे बोधि वृक्ष अर्थात् 'ज्ञान का वृक्ष' कहा जाता है। वहीं गया को बोधगया के नाम से जाना जाता है।

सारनाथ[संपादित करें]

गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

बनारस छावनी स्टेशन से छह किलोमीटर, बनारस-सिटी स्टेशन से साढ़े तीन किलोमीटर और सडक़ मार्ग से सारनाथ चार किलोमीटर दूर पड़ता है। यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है और बनारस से यहां जाने के लिए सवारी तांगा और रिक्शा आदि मिलते हैं। सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है। यह बौद्ध तीर्थ है। लाखों की संख्या में बौद्ध अनुयायी और बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले लोग हर साल यहां पहुंचते हैं। बौद्ध अनुयायीओं के यहां हर साल आने का सबसे बड़ा कारण यह है कि भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। सदियों पहले इसी स्थान से उन्होंने धर्म-चक्र-प्रवर्तन प्रारंभ किया था। बौद्ध अनुयायी सारनाथ के मिट्टी, पत्थर एवं कंकरों को भी पवित्र मानते हैं। सारनाथ की दर्शनीय वस्तुओं में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का प्राचीन मंदिर, धामेक स्तूप, चौखंडी स्तूप, आदि शामिल हैं।

कुशीनगर[संपादित करें]

गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

कुशीनगर बौद्ध अनुयायीओं का बहुत बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल है। भगवान बुद्ध कुशीनगर में ही महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए। कुशीनगर के समीप हिरन्यवती नदी के समीप बुद्ध ने अपनी आखरी सांस ली। रंभर स्तूप के निकट उनका अंतिम संस्कार किया गया। उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर से 55 किलोमीटर दूर कुशीनगर बौद्ध अनुयायीओं के अलावा पर्यटन प्रेमियों के लिए भी खास आकर्षण का केंद्र है। 80 वर्ष की आयु में शरीर त्याग से पहले भारी संख्या में लोग बुद्ध से मिलने पहुंचे। माना जाता है कि 120 वर्षीय ब्राह्मण सुभद्र ने बुद्ध के वचनों से प्रभावित होकर संघ से जुडऩे की इच्छा जताई। माना जाता है कि सुभद्र आखरी भिक्षु थे जिन्हें बुद्ध ने दीक्षित किया।

दीक्षाभूमी[संपादित करें]

गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?

दीक्षाभूमि, नागपुर महाराष्ट्र राज्य के नागपुर शहर में स्थित पवित्र एवं महत्त्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल है। यहीं पर डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को विजयादशमी दशहरा के दिन पहले स्वयं अपनी पत्नी ड॰ सविता आंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और फिर अपने 5,00,000 हिंदू दलित समर्थकों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। 1956 से आज तक हर साल यहाँ देश-विदश से 20 से 25 लाख बुद्ध और बाबासाहेब के बौद्ध अनुयायी दर्शन करने के लिए आते है। इस प्रवित्र एवं महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल को महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘अ’वर्ग पर्यटन एवं तीर्थ स्थल का दर्जा दिया गया है।i

बौद्ध समुदाय[संपादित करें]

संपूर्ण विश्व में लगभग 2 अरब लोग बौद्ध हैं। इनमें से लगभग 70% महायानी बौद्ध और शेष 25% से 30% थेरावादी, नवयानी (भारतीय) और वज्रयानी बौद्ध है। महायान और थेरवाद (हीनयान), नवयान, वज्रयान के अतिरिक्त बौद्ध धर्म में इनके अन्य कई उपसंप्रदाय या उपवर्ग भी हैं परन्तु इन का प्रभाव बहुत कम है। सबसे अधिक बौद्ध पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में रहते हैं। दक्षिण एशिया के दो देशों में भी बौद्ध धर्म बहुसंख्यक है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ़्रीका और यूरोप जैसे महाद्वीपों में भी बौद्ध रहते हैं। विश्व में लगभग 8 से अधिक देश ऐसे हैं जहां बौद्ध बहुसंख्यक या बहुमत में हैं। विश्व में कई देश ऐसे भी हैं जहां की बौद्ध जनसंख्या के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी

अधिकतम बौद्ध जनसंख्या वाले देश
देश बौद्ध जनसंख्या बौद्ध प्रतिशत
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
चीन
22,50,87,000 18%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
जापान
4,33,45,000 36%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
वियतनाम
1,45,78,000 23%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
भारत
79,87,899 0.6%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
थाईलैंड
6,46,87,000 95% [4]
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
म्यान्मार
4,99,92,000 80%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
दक्षिण कोरिया
2,46,56,000 18%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
ताइवान
2,21,45,000 28%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
उत्तर कोरिया
1,76,56,000 12%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
श्रीलंका
1,60,45,600 75%[5]
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
कम्बोडिया
1,48,80,000 97%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
इंडोनेशिया
80,75,400 03%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
हांगकांग
65,87,703 93%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
मलेशिया
63,47,220 22%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
नेपाल
62,28,690 22%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
लाओस
62,87,610 98%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
अमेरिका
61,49,900 02%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
सिंगापुर
37,75,666 67%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
मंगोलिया
30,55,690 98%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
फ़िलीपीन्स
28,55,700 03%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
रूस
20,96,608 02%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
बांग्लादेश
20,46,800 01%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
कनाडा
21,47,600 03%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
ब्राजील
11,45,680 01%
गौतम बुद्ध का धर्म क्या है? - gautam buddh ka dharm kya hai?
 
फ्रांस
10,55,600 02%
बहुसंख्यक बौद्ध देश

आज विश्व में 8 से अधिक देशों (गणतंत्र राज्य भी) में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक या प्रमुख धर्म के रूप में हैं।

अधिकृत बौद्ध देश

विश्व में , कम्बोडिया, भूटान, थाईलैण्ड, म्यानमार और श्रीलंका यह देश "अधिकृत" रूप से 'बौद्ध देश' है, क्योंकी इन देशों के संविधानों में बौद्ध धर्म को ‘राजधर्म’ या ‘राष्ट्रधर्म’ का दर्जा प्राप्त है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. महात्मा बुद्ध के समकालीन लोग
  2. मीर्चा ईटु, दर्शन और धर्म का इतिहास, बुखारेस्ट, कल की रोमानिया का प्रकाशन संस्था, दो हज़ार चार, एक सौ इक्यासी का पृष्ठ। (ISBN 973-582-971-1)
  3. आनन्‍द केंटिश कुमारस्‍वामी, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म, नई यॉर्क, गोल्डन एलिक्सिर प्रेस, दो हज़ार ग्यारह, चौहत्तर का पृष्ठ। (ISBN 978-0-9843082-3-1)
  4. Department of Census and Statistics,The Census of Population and Housing of Sri Lanka-2011 Archived 2017-10-17 at the Wayback Machine
  5. "बौद्ध धर्म और श्रीलंकन संस्कृती". मूल से 20 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 दिसंबर 2016.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • गौतम बुद्ध
  • सम्राट अशोक
  • विश्व में बौद्ध धर्म
  • बौद्ध धर्म का इतिहास
  • पालि भाषा का साहित्य
  • बौद्ध शब्दावली
  • भारत मे बौद्ध धर्म
  • तिब्बती बौद्ध धर्म
  • चीनी बौद्ध धर्म
  • दलित बौद्ध आंदोलन
  • नवयान
  • भारतयान
  • भारत में बौद्ध धर्म का पतन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • धर्मविकी

गौतम बुद्ध कौन से धर्म के थे?

(1) बौद्ध धर्म के संस्थापक थे गौतम बुद्ध. इन्हें एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है. (2) गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था.

बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म में क्या अंतर है?

हालांकि, पुनर्जन्म की तरह ही कर्म भी एक बेहद जटिल अवधारणा है. बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म में इससे जुड़ी कई शिक्षाएं और परंपराएं हैं. दो शोधकर्ताओं की मदद से हमने इन्हें समझने की कोशिश की है.

बौद्ध धर्म के लोग किसकी पूजा करते हैं?

किंवदंती है कि देवी तारा की आराधना भगवान बुद्ध करते थे। हिन्‍दुओं के लिए सिद्धपीठ काली का मंदिर है।

क्या बौद्ध धर्म ईश्वर को मानता है?

Why Buddha Denied God.